मणिपुर का सबसे पहला ज़िक्र महाभारत में मिलता है. यहां के राजा चित्रवाहन की बेटी चित्रांगदा से अर्जुन की शादी हुई थी. मणिपुर के कई पूर्व शासकों ने खुद को अर्जुन का वंशज भी कहा है, लेकिन स्वयं महाभारत के हिसाब से ये वाला मणिपुर वर्तमान उड़ीसा के आसपास स्थित था. इसलिए आज वाले मणिपुर और महाभारत वाले मणिपुर को एक नहीं कहा जा सकता. (Manipur History)
मणिपुर भारत का हिस्सा कैसे बना?
मणिपुर का छुपा हुआ इतिहास, हिंदू धर्म कैसे फैला मणिपुर में?
मणिपुर के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण सोर्स चेथारोल कुंबाबा नाम का एक ग्रंथ है. जिसमें मणिपुर के अतीत के तमाम शासकों की कहानियां हैं. ये ग्रंथ भी चूंकि वाचिक परम्परा से आगे बढ़ा है, इसलिए इसमें कितनी बातें पूरी तरह प्रामाणिक हैं, कहना मुश्किल है. इस ग्रंथ के हिसाब से ऐतिहासिक समय में मणिपुर (Manipur) के कई कबीलों के बीच लड़ाई हुई. जिसमें 'निंगथोउजा’ कबीले की जीत हुई. और उन्होंने एक साम्राज्य की स्थापना की.
इसी कबीले से मणिपुर के पहले राजा हुए, नोंगदा लैरेन पाखन्बा. इन् राजा के दौरान मणिपुर में एक धर्म की शुरुआत हुई, जिसे सनमाही धर्म या सनमाहिजम कहा जाता है. इस धर्म के अपने ग्रंथ थे, अपने रीति- रिवाज थे और अपने देवता भी थे. इन्हीं में से एक ड्रैगन देवता पाखन्बा को मणिपुर राज्य ने अपना स्टेट एम्ब्लम बनाया और उनके झंडे में भी इसे देखा जा सकता था. वहीं एक दूसरे देवता कांगला शा(Kanglā Shā) के नाम पर राज्य की राजधानी को कांगला नाम मिला और आगे जाकर इस राज्य का नाम पड़ गया, कांगलेइपाक’ (Kangleipak).
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कांगला 1891 तक मणिपुर की राजधानी रहा. जहां कांगला शा की दो विशाल मूर्तियां शहर के गेट पर बनाई गई थी. इस मूर्तियों का शरीर शेर का और सर ड्रैगन का था, जिनके दो सींग थे. मणिपुर के लोग मानते थे, कि ये मूर्तियां उनके राज्य की रक्षा करती हैं. और इन मूर्तियों से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा भी है. ये बात है 22 मार्च 1891 की. संधि के लिए मणिपुर पहुंचे पांच ब्रिटिश अफ़सरों को पकड़ कर इन मूर्तियों के नीचे मार डाला गया. ब्रिटिश सोर्सेज के अनुसार ये एक प्रकार की नरबलि थी. इस बात से ग़ुस्साई ब्रिटिश फ़ौज ने कांगला पर हमला किया और दोनों मूर्तियों को डायनामाइट से उड़ा दिया. भारत की आज़ादी बाद में इन मूर्तियों को दुबारा बनाया गया. और साल 2023 में भी ये ज्यों की त्यों मौजूद हैं.
कांगलेइपाक
इतिहास में अलग अलग समय में मणिपुर को अलग अलग नाम से बुलाया जाता रहा. यहां के लोगों के लिए इसका नाम कांगलेइपाक था. तो बर्मा के लोग इसे 'कथे' कहते थे, जबकि असम के लोग 'मोगली' नाम से बुलाते थे. कहीं कहीं मणिपुर का नाम 'मिक्ली', 'मैत्रबाक', 'कंलैपुं' और 'पोंथोक्लम' भी पढ़ने और सुनने को मिलता है. नाम जो भी हो, मणिपुर 17वीं सदी में उत्तरपूर्व के सबसे ताकतवर राज्यों में से एक हुआ करता था. तब यहां के राजा हुआ करते थे, खागेम्बा.इन्हें एक और नाम से जाना जाता था, Conqueror of the Chinese.
1631 में जब चीन की तरफ़ से मिंग वंश के राजा चोंग झेन ने भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला किया, तो बर्मा जीतने के बाद वो सीधे मणिपुर की ओर बढ़ा. खागेम्बा ने ना सिर्फ़ चीनी फ़ौज को हराया, बल्कि चीनी सैनिक को युद्धबंदी बनाकर अपने यहां पुलों का निर्माण कार्य भी कराया. उनसे ईंटें बनवाई. जिन्हें चीनी लोग चेक कहकर बुलाते थे. 21 वीं सदी में भी मणिपुर में ईंट को चेक ही बोलते हैं. खागेम्बा के शासन की एक ख़ासियत ये भी थी कि इन्हीं के दौर में मणिपुर में मुसलमानों का आगमन भी हुआ. इनके एक भाई हुआ करते थे, शालुंग्बा. शालुंग्बा ने खागेम्बा के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हुए, बंगाल के मुस्लिम शासकों से हाथ मिला लिया. और कांगलेइपाक यानी मणिपुर पर हमला कर दिया. इस युद्ध में उसकी हार हुई. लेकिन कई मुसलमान सैनिकों को युद्धबंदी बनाकर मणिपुर में ही रख लिया गया. ये लोग मज़दूरी का काम करते थे और यही आगे जाकर मेतेई पंगाल कहलाए.
खागेम्बा के शासन की एक और बात जो नोट करने लायक है, वो ये कि इनके दौर में मणिपुर में पोलो के खेल को खूब बढ़ावा मिला. हालांकि पोलो यहां कई सदियों से खेला जाता रहा है और कई इतिहासकार मानते हैं, पोलो की शुरुआत मणिपुर से ही हुई. खागेम्बा के दौर में पोलो में जो बदलाव हुआ, वही आगे जाकर मॉडर्न पोलो खेल का स्वरूप बना. अब सवाल ये कि कांगलेइपाक का नाम मणिपुर कैसे पड़ा? मणिपुर की कहानी शुरू होती है 18 वीं सदी की शुरुआत में. इस दौर में कांगलेइपाक में एक राजा हुए, जिनका नाम था गरीब नवाज़. इनका असली नाम पामहेयीबा था और ये मैतेई कुनबे से आते थे. गरीब नवाज़ के राज्यकाल को मणिपुर के इतिहास का सबसे निर्णायक काल माना जाता है. क्योंकि इन्हीं गरीब नवाज़ के दौर में कांगलेइपाक का नाम मणिपुर पड़ा.
कांगलेइपाक का नाम मणिपुर कैसे पड़ा?
मणिपुर क्यों? उसके लिए कहानी यूं है कि पामहेयीबा से पहले मणिपुर के राजा हुआ करते थे चराइरोंग्बा. पामहेयीबा इनकी सबकी छोटी रानी नंगशेल छाइबी के बेटे थे. पामहेयीबा की पैदाइश के वक्त सत्ता को लेकर खींचतान चल रही थी. बल्कि मणिपुरी इतिहास के कुछ सोर्सेस के अनुसार राजदरबार में ऐसी प्रथा भी चलती थी कि सबसे बड़े बेटे के अलावा सभी बेटों को मरवा दिया जाता था, ताकि कुर्सी को लेकर आगे लड़ाई नहीं हो. इसमें कितनी सच्चाई है ये पक्का नहीं कहा जा सकता. क्योंकि मणिपुर के इतिहास की अधिकतर बातें वाचिक परम्परा से आगे बढ़ी हैं.
मणिपुर में ब्रिटिश सरकार के पोलिटिकल एजेंट रहे डॉक्टर आर ब्राउन के अनुसार पामहेयीबा जब चार साल के थे, उनके पिता की सबसे बड़ी रानी ने उन्हें मरवाने के लिए गुप्तचरों को उनके पीछे भेजा. पामहेयीबा के नाना उन्हें लेकर पहाड़ों में छुप ग़ए. बाद में जब चराइरोंग्बा को उनके जीवित होने का पता चला, वो पामहेयीबा को वापस लाए और उन्हें युवराज घोषित कर दिया. साल 1709 में पामहेयीबा को राज्य की गद्दी मिली. पामहेयीबा का अधिकतर जीवन अपने पड़ोसी राज्य बर्मा से युद्ध में बीता.
युद्ध की शुरुआत हुई एक अपमान को लेकर. हुआ यूं कि पामहेयीबा की बहन की शादी बर्मा के एक राजा के साथ हुई थी. लेकिन बच्चा पैदा होने के बाद बर्मा के राजा ने पामहेयीबा की बहन की बजाय दूसरी रानी को तरजीह देना शुरू कर दिया. इस बात से ग़ुस्सा होकर पामहेयीबा ने बर्मा पर आक्रमण कर दिया. पामहेयीबा ने ताउम्र कई लड़ाइयां लड़ीं और अपने राज्य का विस्तार भी किया. हालांकि उन्हें इस बात के लिए ज़्यादा जाना जाता है कि उनके दौर में मणिपुर में हिंदू धर्म का प्रसार हुआ. इतिहासकार ज्योतिर्मय रॉय अपनी किताब मणिपुर का इतिहास में लिखते हैं,
“मैतेई महाराजा ‘पामहेयीबा’ को ही ‘ग़रीब नवाज’ के नाम से जाना जाता था जिन्होंने इस इलाके में हिन्दू धर्म की स्थापना की थी”
हिंदू धर्म मणिपुर कैसे पहुंचा, इसका सबसे पुराना ज़िक्र 15 वीं शताब्दी में मिलता है. जब 1470 में मणिपुर के राजा क्याम्बा को बर्मा के एक राजा ने भगवान विष्णु की एक छोटी सी मूर्ति भेंट की. राजा क्याम्बा ने विष्णुपुर नाम की एक जगह पर इस मूर्ति का एक मंदिर बनाया. महाराज चराइरोंग्बा के दौर में भी हिंदू धर्म को मणिपुर में खूब बढ़ावा मिला लेकिन ये बहुमत का धर्म बना राजा ‘पामहेयीबा’ के दौर में, जिन्होंने इसे राज धर्म का दर्जा दे दिया था. उन्होंने खुद भी हिंदू धर्म अपना लिया था.
पामहेयीबा के हिंदू धर्म अपनाने का किस्सा कुछ यूं है कि गौड़िया वैष्णव धर्म के दो प्रचारक शांतिदास अधिकारी और गुरु गोपाल दास मणिपुर पहुंचे. उन्होंने पामहेयीबा को हिंदू धर्म अपनाने के लिए मना लिया. शांतिदास अधिकारी के कहने पर ही कांगलेइपाक का नाम मणिपुर रख दिया गया. और धीरे-धीरे जनता के बड़े हिस्से में हिंदू धर्म फैल गया. इसी क़िस्से को लेकर राजा ‘पामहेयीबा’ पर ये आरोप भी लगता है कि उन्होंने राजधर्म फैलाने के लिए मणिपुर के पौराणिक ग्रंथों जिन्हें पुया कहा जाता है, उन्हें जलाने का आदेश दे दिया था. एक आरोप ये भी है कि ‘पामहेयीबा’ ने सत्ता के बल पर लोगों को ज़बरदस्ती धर्म की दीक्षा दिलवाई.
इसके बावजूद पामहेयीबा अपने दौर के एक लोकप्रिय राजा बने रहे, जिसके कारण आगे जाकर उन्हें ग़रीब नवाज़ की उपाधि मिली. और उन्हें फिर इसी नाम से जाना गया. महाराजा गरीब नवाज का शासन काल 1751 तक रहा. इसके बाद क्या हुआ? 1800 के बाद अंग्रेजों ने भारत में शासन पर पकड़ बनानी शुरू की. और तब नॉर्थ ईस्ट भी उनकी नज़र में आया. कई साल तक वे अपना एक पोलिटिकल एजेंट वहां भेजते रहे फिर 1891 के अप्रैल महीने में ब्रिटिश फ़ौज ने मणिपुर पर हमला कर दिया. उन्होंने 5 साल के चुराचंद को मणिपुर की गद्दी सौंप दी और पोलिटिकल एजेंट के मार्फ़त वहां की सत्ता चलाते रहे.
महाराजा चुराचंद ने 1941 तक मणिपुर पर शासन किया. जिसके बाद महाराजा बुधाचंद्र सिंह को मणिपुर की गद्दी मिल गई. जिन्होंने 1949 तक मणिपुर पर राज किया. मार्च 1944 से जुलाई 1944 के बीच मणिपुर का एक हिस्सा जापान की सेना के अधिकार में रहा. और इस दौरान उन्होंने राजधानी इम्फ़ाल पर भारी बमबारी भी की. 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, ब्रिटिश हकूमत ने यहां की सत्ता पूरी तरह महाराजा बुधाचंद्र को सौंप दी थी. मणिपुर की आज़ादी का दिन 28 अगस्त को माना जाता है. क्योंकि इस रोज़ बुधाचंद्र कांगला पहुंचे थे, जहां जश्न के तौर पर 18 तोपें भी दागी गईं.
मणिपुर का भारत में विलय कब हुआ?
ये तारीख़ थी 21 सितम्बर 1949 की. जब महाराजा बुधाचंद्र ने विलय के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये और उसी साल 15 अक्टूबर को मणिपुर भारत का अभिन्न अंग बन गया. 1956 से लेकर 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित राज्य रहा और 21 जनवरी 1972 को इसे अलग राज्य का दर्जा मिल गया.
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