ये आर्टिकल 'दी लल्लनटॉप' के लिए ताबिश सिद्दीकी ने लिखा है. 'इस्लाम का इतिहास' नाम की इस सीरीज में ताबिश इस्लाम के उदय और उसके आसपास की घटनाओं के बारे में जानकारी दे रहे हैं. ये एक जानकारीपरक सीरीज होगी जिससे इस्लाम की उत्पत्ति के वक़्त की घटनाओं का लेखाजोखा पाठकों को पढ़ने मिलेगा. ये सीरीज ताबिश सिद्दीकी की व्यक्तिगत रिसर्च पर आधारित है. आप ताबिश से सीधे अपनी बात कहने के लिए इस पते पर चिट्ठी भेज सकते हैं - writertabish@gmail.com
इस्लाम के पहले का अरब: भाग 6
जैसे अल-इलाह यानि अल्लाह, पुरुष देवता सर्वशक्तिमान और सबसे बड़ा था ठीक उसी प्रकार देवियों में अल-इलात यानि अल्लात सबसे शक्तिशाली और पूज्य समझी जाती थीं. अल-इलात शब्द भी किसी एक देवी के लिए नहीं बल्कि अल-इलात देवी के कई रूपों के लिए इस्तेमाल किया जाता था. अल्लात को अल्लातु, अलयेलात, अल्लत, और अल-लात नाम से भी संबोधित किया जाता था.अल-लात का मंदिर मक्का शहर से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर "तायफ़" में स्थित था और क़ुरैश (मुहम्मद का घराना) और बाक़ी अरब इसकी पूजा करते थे. अल-लात के मंदिर को भी काबा के जैसा ही पवित्र माना जाता था. ये देवियों में सबसे बड़ी देवी थीं. क़ुरैश अपने बच्चों का नाम देवी अल-लात के नाम पर उसी तरह रखते थे जैसे अल्लाह के नाम पर रखते थे. उदाहरण के लिए ज़ायद अ-लात, तायम अल-लात आदि.
अल्लाह की बेटी
कुछ अरबों का ये भी मानना था कि देवी अल-लात देवता अल्लाह की बेटी हैं. उस समय के बहुत सारे अरब अल्लाह के साथ-साथ उसकी तीन बेटियों की भी पूजा करते थे. ये देवियां थीं अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा. इन तीनों देवियों का मंदिर मक्का के आस-पास ही स्थित था और तीनों की काबा के भीतर भी पूजा होती थी. सारे अरब के लोग इन तीनों देवियों की पूजा करते थे. मगर उनमें से कुछ क़बीलों की कुल देवियां होती थीं तो कुछ के अन्य देवता.मगर विभिन्न क्षेत्रों और मान्यताओं के अनुसार अल्लात शब्द को कुछ मूर्तिपूजक अरब या तो "अल्लाह की बेटी" या "अल्लाह की पत्नी" को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल करते थे. Julius Wellhausen के अनुसार नाबतियन जिन्हें अरबी में "अल-नबात" कहा जाता है, जो उत्तरी अरब के लोग थे, वो ये मानते थे कि "अल्लात" देवता हुबल की मां हैं और देवी मनात देवता हुबल की पत्नी. इसलिए नाबतियों के हिसाब से देवी अल्लात, अल्लाह की पत्नी हुई और देवी मनात की सास और हुबल अल्लाह का बेटा.

क़ुरैश क़बीले की देवी थीं देवी उज्ज़ा. क़ुरैश वही कबीला है जिसमें पैगम्बर मुहम्मद पैदा हुए.
हाजियों की मुंडन प्रथा
इस्लाम के पहले के अरब में हर क़बीले और वंश की अपनी-अपनी देवियां होती थीं. उदाहरण के लिए देवी मनात को मदीना के दो प्रमुख घराने औस और ख़ज़राज के लोग अपनी देवी मानते थे और उसकी पूजा करते थे. ये लोग मनात के आगे चढ़ावा चढ़ाते थे और कुर्बानी देते थे. हज के अंत में हाजियों के मुंडन की रस्म होती थी. मगर औस और ख़ज़राज क़बीले के लोग और मदीना के अन्य लोग मक्का जब हज के लिए जाते थे तो वो अपने सर का मुंडन नहीं करते थे. हज के अंत में वो लोग मक्का और मदीना के बीच कुद्यद नाम की जगह पर जाते थे जहां देवी मनात का मंदिर स्थित था. वहां जाकर ये लोग अपना मुंडन करवाते थे. ये अपना हज तब तक पूरा नहीं मानते थे जब तक देवी मनात के मंदिर में जाकर मुंडन की परंपरा को पूरा नहीं करते थे.उसी तरह क़ुरैश क़बीले की देवी थीं देवी उज्ज़ा. क़ुरैश वही कबीला है जिसमें पैगम्बर मुहम्मद पैदा हुए. अरबों ने देवी उज्ज़ा के लिए एक मंदिर बना रखा था जिसे वो "बुस" कहते थे. यहां वो पुजारी के द्वारा देवी उज्ज़ा से अपने भविष्य की भविष्यवाणी प्राप्त करते थे. कुरैश के लोग जब काबा का चक्कर लगाते थे तो वो ये तल्बियाह (स्तुति) गाते थे.अल-लात, अल-उज्ज़ा और मिनात, तीनों देवियां वास्तव में सबसे ऊंचे दर्जे की देवियां हैं. इनकी हिमायत के हम अभिलाषी हैं. हज की परंपरा सबके लिए एक थी. क़ुर्बानी हज के अंत में दी जाती थी. मगर जो जिस देवी या देवता को अधिक मानता था वो उसकी बलि वेदी में क़ुर्बानी देता था. क़ुरैश के लोग देवी उज्ज़ा को बहुत उंचा स्थान देते थे और वो उनको चढ़ावा चढ़ाते थे और उनकी मूर्ति के आगे बलि वेदी पर जानवरों की कुर्बानी करते थे.

इस्लाम के पहले के अरब में हर क़बीले और वंश की अपनी-अपनी देवियां होती थीं.
अल्लाह को अकेला किया
मक्का पर विजय प्राप्त करने के तुरंत बाद पैगम्बर मुहम्मद और उनके अनुयाइयों ने सबसे पहले अल्लाह की इन तीन बेटियों के मंदिरों को नष्ट किया क्योंकि इस्लाम का उद्गम इसी मूल भावना के साथ हुआ था कि "अल्लाह अकेला है और उसका कोई साथी नहीं है". इसलिए इस्लाम के मूल को अगर सबसे ज्यादा किसी से खतरा था तो वो थी ये तीन देवियां और देवता हुबल.देवता हुबल तो काबा का मुख्य देवता था इसलिए उसकी मूर्ति को तो काबा पर कब्ज़ा होने के तुरंत बाद तोड़ दिया गया और साथ-साथ इन तीन देवियों की भी अन्य मूर्तियों को काबा और उसके आस-पास से नष्ट कर दिया गया. मगर मक्का और उसके आस-पास स्थित इन तीन देवियों का मंदिर इस्लाम और उसके मूल के लिए सबसे बड़ी चुनौती था.
देवी उज्ज़ा जो क़ुरैश घराने और आसपास के अरबों के लिए सबसे अधिक पूज्य थीं, इस्लाम आने के बाद उनके मंदिर को किस तरह तोड़ा गया इसके बारे में शेख़ सफी-उर-रहमान अल-मुबारकपुरी अपनी किताब "अर-रहीक़ अल-मख्तूम" में लिखते हैं:
'मक्का फ़तह के बाद मुहम्मद ने अपने साथी और कमांडर ख़ालिद बिन वलीद को नख्लाह भेजा जहां देवी उज्ज़ा का मंदिर था. देवी उज्ज़ा उस वक़्त वहां सबसे अधिक मान्य और पूजनीय देवी थी. ख़ालिद अपने साथ तीस घुड़सवार लेकर देवी उज्ज़ा के मंदिर गया. वहां उसे देवी की दो मूर्तियां मिलीं. इसमें से एक असली मंदिर के साथ असली मूर्ति थी और दूसरी नकली. खालिद ने एक मूर्ति को असली समझकर तोड़ डाला. और जब वो वापस आया तो मुहम्मद ने उससे पूछा "क्या तुमने वहां कुछ असामान्य देखा?". खालिद ने कहा "नहीं". इसके जवाब में मुहम्मद ने कहा "फिर तुमने उज्ज़ा को अभी नष्ट नहीं किया है. दोबारा जाओ".'

मुक़द्दस काबा की एक पुरानी तस्वीर. (इमेज सोर्स: Destination Economy.com)
गुस्से और अपनी ग़लती के पछतावे से भरे ख़ालिद दोबारा नख्लाह गया और इस बार उसने उज्ज़ा का असली मंदिर ढूंढ लिया. वहां का पुजारी हमलावरों के देखकर देवी उज्ज़ा के गले में तलवार लटकाकर, इस उम्मीद से कि देवी अपनी रक्षा कर लेंगी, भाग खड़ा हुआ. ख़ालिद जब मंदिर में घुसा तो वहां उसका सामना एक काली और नंगी औरत से हुआ जो ज़ोर-ज़ोर से चीख़ रही थी. ख़ालिद को ये समझ नहीं आया कि ये औरत उसे अपने मोह पाश में बांधने के लिए ऐसा कर रही है या अपने देवी को बचाने के लिए ऐसा कर रही है. ख़ालिद ने तलवार निकालकर उस औरत का सर धड़ से अलग कर दिया और उज्ज़ा की मूर्ति को तोड़ डाला और मंदिर ध्वस्त कर दिया.
उज्जा के मंदिर को नष्ट करने के बाद ख़ालिद वापस मुहम्मद के पास आया और उन्हें सारी घटना बताई जिसके जवाब में मुहम्मद ने कहा
"हां. वही उज्जा थी और अब आगे से कोई भी तुम्हारे क्षेत्र में इसकी पूजा नहीं करेगा".
(Source: Ibn-al-Kalbi, Kitaab -ul-asnam, Sheikh Safi-ur-Rahman al-Mubarkpuri- Ar-Raheeq Al-Makhtum)
क्रमशः...
'इस्लाम का इतिहास' की पिछली किस्तें:
Part 1: कहानी आब-ए-ज़मज़म और काबे के अंदर रखी 360 मूर्ति
यों
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