सनातन धर्म में चार वेद और अट्ठारह पुराण हैं. कहा जाता है कि वेदों को समझ पाना आसान नहीं है, लेकिन पुराणों में देवी-देवताओं को केंद्र मानकर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, कर्म-अकर्म की कथाएं कही गई हैं, जो सनातन इतिहास और परंपराओं का बोध कराती हैं. पुराण धर्म की राह दिखाते हैं. इन्हीं में से एक पुराण का नाम है स्कंद पुराण. भगवान शिव के सबसे बड़े पुत्र थे कार्तिकेय. जिन्हें स्कंद कहा गया. इन्होंने भी एक पुराण लिखा, जिसे स्कंद पुराण कहा गया. इस पुराण में कुल 7 खंड हैं. दूसरे खंड का नाम है वैष्णव खंड. और इसमें एक उपखंड है- श्रीअयोध्या महात्म्य. वही अयोध्या, जिसकी चर्चा इन दिनों पूरी दुनिया में है. क्योंकि 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. स्कंद पुराण के अयोध्या महात्म्य में अयोध्या के नाम, उसकी परिधि और सरयू नदी के बारे में बताया गया है.
अयोध्या का वो इतिहास, जो मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में दबकर रह गया!
जानिए कैसे बौद्ध, जैन और सिख धर्मों के लिए भी अयोध्या पवित्र है. स्कंद पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र पर बसी है अयोध्या. जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों की जन्मस्थली है अयोध्या. ह्वेन सांग ने कहा था उन्हें अयोध्या में 100 बौद्ध मठ मिले.
स्कंद पुराण के मुताबिक अकार कहते हैं ब्रह्मा को, यकार विष्णु का नाम है और धकार रुद्रस्वरूप. तीनों के योग से यानी जोड़ से बनता है अयोध्या. पुराण के मुताबिक इसे विष्णु की आदिपुरी कहा गया है और ये विष्णु के सुदर्शन चक्र पर स्थित है. 'कोई भी पापी इस नगरी से युद्ध नहीं कर सकता, इसलिए इसे अयोध्या कहा गया.'
हमारे देश में अलग-अलग धर्म को मानने वाली तमाम जीवित पीढ़ियां अयोध्या को या तो राम मंदिर से जानती हैं, या फिर बाबरी मस्जिद से. अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली तो है ही, लेकिन अयोध्या नगरी का महात्म्य इससे इतर भी है. और इसका नाता सिर्फ हिंदू और मुस्लिम धर्म तक सीमित नहीं है. बौद्ध, जैन और सिख धर्म की जड़ें भी अयोध्या से जुड़ी हैं.
बहुत कम लोग जानते हैं कि रामजन्मभूमि विवाद में एक समय पर कुछ बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भी एक पक्ष बनने की अपील की थी. साल 2018 में विनीत कुमार मौर्य ने राम जन्मभूमि (तब विवादित भूमि) को बौद्ध विहार घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इस याचिका को जस्टिस चंद्रचूड़ ने फरवरी 2023 में खारिज कर दिया था.
कुछ बौद्ध धर्म के अनुयायी दावा करते हैं कि अयोध्या बौद्ध धर्म का केंद्र था लेकिन मध्य युग में जनजागरण के दौरान बौद्ध मठों पर कब्जा कर उन्हें मंदिरों में तब्दील कर दिया गया. बौद्ध परंपरा में अयोध्या को साकेत या कौशल कहा जाता है, जो भगवान बुद्ध के पिता शुद्धोधन के राज का हिस्सा था. इंडिया टुडे मैग्ज़ीन के अक्टूबर 2010 के अंक के मुताबिक चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन सांग ने लिखा है कि उन्हें अयोध्या की यात्रा में 100 बौद्ध मठ और 10 बड़े बौद्ध मंदिर मिले थे. ह्वेन सांग को अयोध्या में 3 हजार बौद्ध भिक्षु मिले थे. जबकि दूसरे धर्मांवलंबियों की संख्या उस समय काफी कम थी.
बात अगर जैन धर्म की करें, तो अयोध्या जैन धर्म के पांच देवों की जन्मस्थली है. जैन धर्म के ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदननाथ, अनंतनाथ और सुमतिनाथ का जन्मस्थान अयोध्या ही है. और सिख समुदाय के पहले गुरु नानकदेव, 9वें गुरु तेग बहादुर और 10वें गुरु गोविंद सिंह ने अयोध्या के गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में ध्यान किया था. ब्रह्मघाट में स्थित ये गुरुद्वारा सबसे पुराने गुरुद्वारों में से एक है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक इसी जगह भगवान ब्रह्मा ने 5 हजार साल तक तपस्या की.
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सुदर्शन चक्र पर बसी अयोध्या!अयोध्या के बारे में एक पौराणिक कथा है. ब्रह्मा के सबसे बड़े पुत्र स्वंयभू मनु एक बार अपने पिता के घर हाथ जोड़कर पहुंचे. प्रसन्न ब्रह्मा ने पूछा- 'पुत्र शीघ्र बताओ, तुम यहां क्यों आए हो?' मनु बोले- ‘आपने मुझे सृष्टि की रचना का आदेश दिया है, कृपया मुझे मेरे वास के लिए उचित स्थान दें’. ब्रह्मा अपने पुत्र को साथ लेकर भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ गए और हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से मधुर स्वर में बोले- हे देवों के देव, आप अपने श्रद्धालुओं पर सदा कृपा दृष्टि रखते हैं, और मनु उनमें से एक है. अत: उसे रहने के लिए कोई जगह दे दें. इससे प्रसन्न विष्णु ने उन्हें पृथ्वी के मध्य में स्थित भव्य अयोध्या नगरी प्रदान की. इसके बाद ब्रह्मा मनु के साथ इहलोक में आए और उनकी मर्जी के मुताबिक शहर का निर्माण करने के लिए भगवान विष्णु ने वशिष्ठ और विश्वकर्मा को भेजा. जगह देवताओं की इच्छा के अनुसार चुनी गई. पर वह रहने योग्य नहीं थी. तब वहां सुदर्शन चक्र बनाया गया और उसी पर शहर की नींव रखी गई. रत्नों से मढ़े मंदिर बनाए गए. महल, सड़कें, बाज़ार, फलों और फूलों से लदे पेड़-पौधे, मधुर स्वर वाले पक्षी, असंख्य हाथी-घोड़े, रथ, गाय, बैल बनाए गए और सारी सुविधाएं प्रदान की गईं. खूबसूरत घाटों वाली सरयू इसी अयोध्या के पास से बहती है.
सरयू नदी का जिक्र भी स्कंद पुराण में मिलता है. पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु के दाहिने पैर के अंगूठे से गंगा और बाएं पैर के अंगूठे से सरयू नदी निकली हैं. इसलिए सनातन धर्म में दोनों नदियों को विशेष तौर पर पवित्र माना गया है. स्कंद पुराण में अयोध्या की परिधि का भी जिक्र है. सहस्त्रधारा तीर्थ से पूर्व दिशा में एक योजन तक, सम नामक स्थान से पश्चिम दिशा में एक योजन तक, सरयू तट से दक्षिण दिशा में एक योजन तक और तमसा नदी से उत्तर दिशा में एक योजन तक. एक योजन में 8 मील होते हैं और एक मील में 1.6 किलोमीटर.
मुसलमानों का मक्का-खुर्द!अब बात उस अयोध्या की, जिसे स्थानीय मुसलमान मक्का-खुर्द (छोटा मक्का) कहते हैं. अयोध्या के बाहर रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम समाज के लोग इस शहर को सिर्फ बाबरी मस्जिद के लिए ही जानते हैं. शहर के एक कोन में ईश्वर के पहले दूत पैगंबर आदम के बेटे हज़रत शीश की दरगाह है. इसके चारों ओर उनकी पत्नी और 6 बेटों की कब्रें हैं. अयोध्या नरेश के महल से कुछ दूर पर दरगाह नौगजी है. 16.2 मीटर लंबी ये दरगाह हजरत नूह की है. कहा जाता है कि इस दरगाह पर देशभर के हिंदू-मुस्लिम जियारत करने आते हैं.
जहां स्थानीय दावे करते हैं कि यहां पांच हजार मंदिर हैं, उसी अयोध्या में 32 मस्जिदें भी हैं. इंडिया टुडे मैग्ज़ीन की रिपोर्ट के मुताबिक 12वीं सदी से ही सूफी संत अयोध्या को आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र मानते रहे हैं. उन्हीं सूफियों में मध्य एशिया से आए काज़ी किदवतुद्दीन अवधी थे. मुगलों से पहले फिरदौसिया पंथ के एक और सूफी थे, शेख जमाल गुज्जरी. लेकिन 1980 के दशक में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की आंधी में इन सूफियों और पैगंबरों को भुला दिया गया.
30 दिसंबर को पीएम मोदी जब अयोध्या में महर्षि वाल्मिकी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का उद्घाटन करने पहुंचे, तो बाबरी मस्जिद के पैरोकार इकबाल अंसारी उन पर फूल बरसा रहे थे. उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा- पीएम मोदी हमारे यहां आएं हैं. वो हमारे मेहमान हैं. अतिथियों का स्वागत करना हमारा कर्तव्य है.
यही अयोध्या है…