बीते दिनों इंद्राणी मुखर्जी की चर्चा चहुंओर रही. रहस्यों से सराबोर इस अपराध कथा से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं. एक इंद्राणी सुर्खियों की इंद्राणी है, जो तमाम गलत वजहों से चर्चा में रही. एक इंद्राणी वह हैं जिनका दर्जा हिंदू माइथोलॉजी में आराध्या का है. इंद्राणी 'शब्द' पर विचार करते हुए थोड़ा भटकें तो आप पौराणिक कथाओं की उन इंद्राणी तक पहुंचेंगे जिन्होंने अपने पति को राखी बांधी थी. हिंदू धर्मग्रंथों में इंद्र की पत्नी इंद्राणी कहलाती हैं. इंद्र की पत्नी का नाम शची था. इस शब्द का अर्थ होता है- तेज, चमक, ताकत, लौ या लपट. महाभारत काल की द्रौपदी इंद्राणी का ही अंश मानी जाती हैं जिनकी पांडव भाइयों से शादी हुई थी.
कौन थी शचीं?
असुर पुलोमा की पुत्री थीं. उन्हें पौलौमी भी कहते हैं. इंद्र ने इस अक्लमंद और सुंदर कन्या के बारे में सुन रखा था. इसलिए पुलोमा को युद्ध में हराने के बाद उन्होंने दंडस्वरूप पुलोमा से उसकी बेटी शची मांग ली. पुलोमा को लगा कि उसकी बिटिया इसी बहाने देव-स्थान में पहुंच गई तो देवताओं से बार-बार की लड़ाई से भी मुक्ति मिल जाएगी. वैसे भी वह लड़ाई में हारा हुआ था. उसने इंद्र की बात मानते हुए शची इंद्र को सौंप दी.
ऋग्वेद की देवियों में इंद्राणी का स्थान प्रधान हैं. ये इंद्र को शक्ति प्रदान करने वाली और स्वयं अनेक ऋचाओं की ऋषि है.
जब इंद्राणी ने बांधी अपने पति को राखी
भविष्य पुराण के मुताबिक, एक बार देवता और दानवों में 12 साल तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए. हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने. तब बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए. स्वास्तिवाचन के साथ उन्होंने ब्राह्मण की मौजूदगी में वह सूत्र इंद्र की दाईं कलाई पर बांधा. जिसके बाद इंद्र की देव-सेना ने दानवों को युद्ध में पटक दिया. काबिल-ए-जिक्र यह भी है कि इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधते हुए जो मंत्र पढ़ा था, उसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है. यह मंत्र था- 'येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल:/दानवेन्द्रो मा चल मा चल.'
'मैं सौतनों का नाश करने वाली हूं'
अपने विवाह के पूर्व शची ने शंकर से सुंदर पति, स्वेच्छामत रूप और सुख और उम्र का वरदान मांगा था. ऋग्वेद में शची के लिए कुछ सूक्त हैं जिनमें सपत्नी का नाश करने के लिए प्रार्थना की गई है (ऋचा, 10-159). कुछ विद्वानों के मत से सूक्त बहुत बाद की रचनाएं हैं. अपने कार्य क्षेत्र में इंद्राणी विजयिनी और सर्वस्वामिनी हैं और अपनी शक्ति की घोषणा वह ऋग्वेद के मंत्र में इस प्रकार करती हैं- 'अहं केतुरंह मूर्धा अहमुग्राविवाचिनी'. अर्थात 'मैं ही विजयिनी ध्वजा हूं, मैं ही ऊंचाई की चोटी हूं, मैं ही अनुल्लंघनीय शासन करने वाली हूं.' वह खुद को सपत्नियों यानी सौतनों का नाश करने वाली बताती हैं. ऋग्वेद के एक बेहद सुंदर और 'शक्तिसूक्त' में वह कहती हैं कि "मैं असपत्नी हूं, सपत्नियों का नाश करने वाली हूं, उनकी नश्यमान शालीनता के लिए ग्रहण स्वरूप हूं, उन सपत्नियों के लिए, जिन्होंने मुझे कभी ग्रसना चाहा था.' उसी सूक्त में वह कहती हैं कि 'मेरे पुत्र शत्रुहंता हैं और मेरी कन्या महती है'- 'मम पुत्रा: शत्रुहणोऽथो मम दुहिता विराट्.'