सूर्य की मणि पर लट्टू थे कृष्ण, पाने को किया जबरदस्त युद्ध
बहुत धांसू मणि थी. तभी तो उस पर लट्टू थे किसन भगवान. कि दो दो बार उसकी खातिर लड़ गए.

भगवान कृष्ण पर एक मणि के लिए राजा प्रसेनजित की हत्या का झूठा आरोप लगा था. पर यह मणि दरअसल रीछों के राजा जांबवान के पास थी. कृष्ण ने जांबवान से युद्ध करके वह मणि हासिल की और प्रसेनजित के बड़े भाई को सौंपकर अपनी बेगुनाही साबित की. लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी. भगवान सूर्य की यह मणि अब प्रसेनजित के भाई सत्राजित के 'अनसेफ' हाथों में थी और दुनिया-जहान की नजर इस पर थी. इन्हीं में से एक था अक्रूर. उसने महाबली शतधन्वा को मणि लाने की सुपारी दी. शतधन्वा ने सत्राजित को मार डाला और मणि लाकर अक्रूर को दे दी. अक्रूर ने भाड़े के टट्टू शतधन्वा से पिंकी प्रॉमिस करा लिया कि बेटे कभी मेरा नाम मत लेना. सत्राजित की बेटी थी सत्यभामा. पिता के मर्डर से दुखी वह कृष्ण के पास पहुंची और शतधन्वा की सारी करतूत बता दी. कृष्ण तुरंत द्वारका पहुंचे और बड़े भाई बलराम से बोले कि बहुत हो गया सम्मान. अब मणि को कोई नहीं रखेगा, हम रखेंगे. चलो रथ स्टार्ट करो, शतधन्वा को सबक सिखाना है. दोनों भाई पहुंचे और शतधन्वा से युद्ध करने लगे. शतधन्वा को लगा कि अक्रूर उसकी जान बचाने आएगा. लेकिन जब वह नहीं आया तो उसने सोचा कि गुरु भाग निकलने में ही अक्लमंदी है. उसके पास एक हृदया नाम की घोड़ी थी, जो सौ योजन चलती थी और फिर टें बोल जाती थी. कृष्ण ने घोड़ी की कमजोरी जान ली और रथ से उतरकर पैदल ही गए और मिथिला के पास शतधन्वा के प्राण ले लिए. लेकिन उसके पास तो मणि थी नहीं, कृष्ण खाली हाथ लौट आए. बाद में कृष्ण ने योग विद्या से जान लिया कि मणि अक्रूर के पास है. अक्रूर की समाज में इज्जत थी. कृष्ण ने इज्जत से मणि मांगी, अक्रूर ने उसी सम्मान से उन्हें सौंप दी. इतनी आसानी से मणि मिल जाने पर कृष्ण को 'अनएक्सपेक्टेड प्रसन्नता' हुई और उन्होंने मणि अक्रूर को वापस कर दी. उसे गले में लटकाकर खूंसठ अक्रूर भी सूरज की तरह चमकने लगे. (ब्रह्मपुराण, गीताप्रेस, पेज 46-47)