कैसे बना हिज़बुल्लाह?
साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. अयातुल्लाह रुहुल्लाह खोमैनी ईरान के सुप्रीम लीडर बने. उन्होंने क्रान्ति के बाद तारीखी जुमले कहे, इन जुमलों ने कई मुस्लिम मुल्कों के लीडरान की नींद उड़कर रख दी. क्या कहा था खोमैनी ने?
“ये इस्लामिक क्रांति यहीं तक सीमित नहीं रहेगी, ये क्रांति दूसरे देशों में भी आएगी.”
खोमैनी इस्लामिक क्रांति के एक्सपोर्ट की बात कर रहे थे. उन्हें जल्द ही इसके लिए एक ज़मीन नज़र भी आ गई. ये ज़मीन ईरान से लगभग डेढ़ हज़ार किलोमीटर दूर थी. लेबनान. दरअसल लेबनान में 1965 में सुन्नी, शिया और ईसाई तीनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. ये लड़ाई सिविल वॉर में तब्दील हो गई. ये लड़ाई 15 सालों तक चली. इससे लेबनान कमज़ोर पड़ गया. फिर 1978 में फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (PLO) पर इज़रायल ने हमला किया. उसने PLO को खदेड़ने के लिए अपनी सेना लेबनान में उतार दी. इज़रायल ने साउथ लेबनान पर कब्ज़ा भी कर लिया. अपनी ज़मीन पर विदेशी सैनिकों को देखकर शिया गुट ने विद्रोह कर दिया. उधर ईरान अपने यहां की इस्लामिक क्रांति को बाकी के अरब देशों में फैलाना चाहता था. उसे लेबनान में उपजाऊ ज़मीन दिखाई दी. ईरान ने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर की मदद से लेबनान में शिया विद्रोहियों का गुट तैयार किया. इसका नाम हिज़बुल्लाह रखा गया. ईरान हिज़बुल्लाह के लड़ाकों को मिलट्री ट्रेनिंग देता. हथियार और पैसा सप्लाई करता. 1983 में लेबनान की राजधानी बेरूत में अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ. इसके कुछ दिनों बाद यूएस मरीन के अड्डे पर बम धमाका हुआ. इन दोनों घटनाओं में कुल 304 लोग मारे गए. अमेरिका ने इसके लिए हिज़बुल्लाह को ज़िम्मेदार ठहराया. हिज़बुल्लाह ने इससे इनकार किया.
हिज़बुल्लाह का सबसे बड़ा मकसद था इज़रायली सेना को अपनी ज़मीन से निकालना. इसके लिए वो इज़रायली सेना पर हमले करते रहता. साल 1999 में इज़रायल के प्रधानमंत्री एहुद बराक ने किया ऐलान किया हम एक साल के भीतर ही अपनी आर्मी को लेबनान से निकाल लाएंगे. ऐलान के मुताबिक ही मई 2000 तक लेबनान से इज़रायल की रुखसती भी हो गई. ये हिज़बुल्लाह और उसके पीछे खड़े ईरान की बड़ी जीत थी. साल 2006 में जब इजरायल ने लेबनान पर फिर हमला किया, उस वक़्त भी हिज़बुल्लाह ही इज़रायल से लड़ने आगे आया. ये जंग 34 दिनों तक चली थी. इस जंग में 11 सौ से ज़्यादा लेबनान के नागरिक और 165 इजरायली मारे गए थे. फिर यूनाइटेड नेशंस के हस्तक्षेप के बाद इसे शांत करवाया गया. इसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा करते हैं. साल 1992 में हसन नसरल्लाह को हिज़बुल्लाह का मुखिया बनाया गया. ईरान पर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वो हर साल हिज़बुल्लाह की बढ़ चढ़कर मदद करता है. एक अनुमान के मुताबिक ईरान हर साल 4 लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा हिज़बुल्लाह को देता है. आज हिज़बुल्लाह इतना पावरफुल है कि उसे ‘स्टेट विद इन अ स्टेट’ बताया जाता है.
- 2021 में नसरल्लाह ने दावा किया था कि उनके पास 1 लाख से ज़्यादा लड़ाके हैं.
- एक अनुमान के मुताबिक हिज़बुल्लाह के पास डेढ़ लाख से ज़्यादा रॉकेट हैं, जो इज़रायल के हर एक हिस्से तक मार करने में सक्षम हैं.
- हसन नसरल्लाह के आने के बाद हिज़बुल्लाह, लेबनान की राजनीति में भी मज़बूत हुआ है.
क्यों बनाया गया हिज़बुल्लाह?
-इसके तात्कालिक कारण तो इज़रायली सेना को लेबनान से पीछे हटाना था. लेकिन बाद में इस संगठन ने इज़रायल के ख़िलाफ़ कई हमले किए. दूसरे देशों में भी इज़रायली नागरिकों पर हमले में संगठन का नाम आता रहा.
-साल 2000 में हिज़बुल्लाह इज़रायली सेना को पूरी तरह से लेबनान से खदेड़ने में कामयाब रहा. इस उपलब्धि के बाद हिज़बुल्लाह ने खुद को अरब की पहली ऐसी सेना के रूप में पेश किया जो इज़रायल को सफलतापूर्वक हराने में कामयाब रही है.
-इज़रायल ने 1967 के बाद सीरिया के गोलन हाइट्स और फिलिस्तीन के कई हिस्सों पर पर अवैध कब्ज़ा किया हुआ है. वेस्ट बैंक में कई अवैध यहूदी बस्ती बसाई हुई हैं. हिज़बुल्लाह अब इन कब्ज़ो के ख़िलाफ़ संघर्ष करता है.
-अब हिज़बुल्लाह का मकसद इज़रायल को हराना और मिडिल ईस्ट से उपनिवैशिक ताकतों का खात्मा करना बन गया है.
हिज़बुल्लाह, हमास से अलग कैसे?
दोनों अलग-अलग संगठन हैं. लेकिन इज़रायल के ख़िलाफ़ दोनों के उद्देश्य एक हैं. हिज़बुल्लाह के चीफ़ हसन नसरल्लाह ने हमास के 7 अक्टूबर वाले हमले पर एक आधिकारिक बयान दिया था. इसमें उन्होंने कहा था कि हिज़बुल्लाह हमास के हमले में इज़रायल के ख़िलाफ़ पहले दिन से ही लड़ रहा है.तो फर्क क्या है?
- दोनों के मकसद अलग हैं. हमास का मकसद फिलिस्तीन की आज़ादी है. हिज़बुल्लाह पूरे मिडिल ईस्ट में उपनिवेश के ख़िलाफ़ लड़ने की बात करता है
- हमास एक सुन्नी संगठन है, जबकि हिज़बुल्लाह एक शिया संगठन है.
- हमास गाज़ा में ऑपरेट करता है. उसका पॉलिटिकल ऑफिस क़तर में है. जबकि हिज़बुल्लाह लेबनान से काम करता है.
क्या लेबनान में हिज़बुल्लाह के अलावा और भी प्रो फिलिस्तीनी गुट हैं?
लेबनान में The Secular Party Fatah, The Popular Front for the Liberation of Palestine (PFLP) समेत हमास की भी प्रजेंस है.
क्या हिज़बुल्लाह आतंकी संगठन है?
ये डिपेंड करता है आप किस देश में हैं. अमेरिका, इज़रायल समेत कई पश्चिमी देशों ने इसे आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है. सऊदी अरब और कुछ खाड़ी देश जो अमेरिका के दोस्त हैं वो भी हिज़बुल्लाह को एक आतंकी संगठन मानते है. यूरोपियन यूनियन हिज़बुल्लाह की मिलिटरी विंग को एक आतंकी संगठन मानती है. लेकिन उसकी पॉलिटिकल विंग को वो आतंकी संगठन नहीं मानती. भारत सरकार भी हिज़बुल्लाह को आतंकी संगठन नहीं मानती है.
हिज़बुल्लाह की क्या आलोचनाएं हैं?
- कई आतंकी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है.
- इज़रायली नागरिकों पर हमले करवाता है.
- पश्चिम विरोधी, समलैंगिक विरोधी विचार हैं.
लेबनान में हिज़बुल्लाह की भूमिका
हिज़बुल्लाह के लेबनान की सरकार में कई सांसद और मंत्री हैं. कई बार उनके सहयोग से लेबनान में सरकार बनी है. 2016 में उसने ईसाई नेता मिशेल औन का समर्थक किया था और उन्हें राष्ट्रपति बनाया था. हालांकि 2022 के चुनावों में हिज़बुल्लाह ने अपना बहुमत खो दिया, लेकिन राजनीति में उनका दबदबा अभी भी बना हुआ है. लेबनान में कई विरोधी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि हिज़बुल्लाह लेबनान को इज़रायल के साथ संघर्ष में धकेल रहा है.
हिज़बुल्लाह की लीडरशिप
चीफ़ हैं हसन नसरल्लाह
सेकेंड इन कमांड हैं नईम कासिम
हिज़बुल्लाह के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के मुखिया हैं हाशिम सैफुद्दीन, ये हिज़बुल्लाह के विदेशी मामलों को देखते हैं.
अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर क्या इज़रायल दो मोर्चों पर लड़ाई करेगा? 7 अक्टूबर के बाद से हिज़बुल्लाह और इज़रायल के बीच झड़पें बढ़ी हैं. लेकिन इनका दायरा दोनों देशों की बॉर्डर के आस-पास ही रहा है. जानकार कहते हैं कि इज़रायल दो मोर्चों पर लड़ाई से बचेगा. इसलिए लड़ाई की आशंका कम दिखती है.
इसकी चर्चा क्यों?
जैसा शुरू में बताया इज़रायल ने 11 जून को हिज़बुल्लाह के कमांडर तालिब समीर अब्दुल्लाह को मार गिराया है. हमास और फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों ने तालिब को श्रद्धांजलि दी है.
क्या है तालिब की कहानी? पैदाइश मार्च 1969 में हुई. 1984 में हिज़बुल्लाह की सदस्यता ली. 2006 में इज़रायल के साथ जंग में तालिब की अहम भूमिका थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने कम से कम 3 पोस्ट इज़रायल के कब्ज़े से आज़ाद करवाई थी. सीरिया के सिविल वॉर में भी हिज़बुल्लाह की भी भूमिका रही है. उसने इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ जमकर लड़ाई की थी. तालिब ने सीरिया में भी हिज़बुल्लाह के कई मोर्चों को लीड किया था. 7 अक्टूबर वाले हमले के बाद वो लेबनान के पूर्वी हिस्से से इज़रायल के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल रहे थे.
ये चैप्टर यहीं तक अब G7 समिट के अपडेट्स जान लेते हैं.
इटली में G7 समिट का आगाज़ हो चुका है. पीएम मोदी भी इस समिट में पहुंचे हैं. समिट में कई मुद्दों मसलन रूस-यूक्रेन से लेकर इज़रायल-गाज़ा वॉर पर चर्चा होनी है. अब इसके अपडेट्स जान लेते हैं.
- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की है कि G7 देश यूक्रेन को सालाना लगभग 4 लाख करोड़ रुपए कर्ज़े के तौर पर देंगे. ये पैसा रूस की विदेशों में सीज़ की गई संपत्ति से वसूला जाएगा.
- इसके साथ ही जो बाइडन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमीर ज़ेलेंस्की के साथ एक 10 साल का सिक्योरिटी अग्रीमेंट साइन किया है. माना जा रहा है कि आने वाले समय में ये अग्रीमेंट रूस-यूक्रेन जंग में अहम भूमिका निभाएगा. ज़ेलेंस्की ने इस मौके पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि ये अग्रीमेंट यूक्रेन के नाटो में जुड़ने के लिए पुल की तरह काम करेगा. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका भविष्य में भी उसे मदद देना जारी रखेगा चाहे कोई भी राष्ट्रपति हो.
- G7 समिट में ही ब्रिटेन की ओर से एक ज़रूरी घोषणा हुई है जिसमें ब्रिटेन ने रूस के स्टॉक एक्सचेंज पर भी प्रतिबंधों की घोषणा की है. साथ ही ब्रिटेन ने रूस के जहाजों पर भी बैन लगा दिया है.
- ब्रिटिश अख़बार दी गार्डियन के अनुसार G7 का दूसरा फोकस इज़रायल-गाज़ा की जंग को रोकना होगा. इसके लिए G7 देश मिस्र और क़तर की ओर देख रहे हैं. यही दोनों देश ऐसे हैं जो हमास को सीज़फायर के लिए राज़ी कर सकते हैं. हालांकि G7 देशों ने युद्ध की निंदा तो की पर इज़रायल को हमले रोकने के लिए कोई आदेश, अनुरोध या चेतावनी नहीं दी.
- अपने जॉइंट स्टेटमेंट में G7 का कहना है कि वो एक टू स्टेट सलूशन चाहते हैं जिससे क्षेत्र में शांति स्थापित हो सके.
वीडियो: खर्चा पानी: टाटा को पीछे छोड़ महिंद्रा ने रचा इतिहास