https://www.youtube.com/watch?v=L2M6GJixaOk
किताब में सुनीता लिखती हैं:
‘और राग सब बने बाराती, दूल्हा राग वसंत.’ गा रहे हैं पंडित जसराज. हैदराबाद में चांदबीबी की बावड़ी में पंडित मोतीराम और पंडित मनीराम संगीत समारोह की वह शाम. पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम जी की पुण्यतिथि.
30 नवंबर. तीन दशक से ज्यादा हो गए, जसराज जी इसी दिन अपने पिता को अपनी श्रद्धा के फूल समर्पित करते हैं. अपने स्वरों के फूल. उस दिन, शीत ऋतु में फूलों के राग का नाम है वसंत.
बावड़ी में जगमगाते हैं दीये बावड़ी में तैरते हैं दीये बावड़ी में तैरता है प्रकाश दिपदिप बावड़ी में तैरते हैं प्रकाश के साथ सुर भी आत्मा है इसमें सराबोर नहाई है संगीत में जादुई छड़ी घुमाई है किसी ने वह और कोई नहीं, हैदराबाद का मानस-पुत्र जसराज है.उस दिन कार्यक्रम सम्पन्न होने पर मैं बरबस मंच पर कह उठी थी, ‘वसन्त तब आता है जब पंडित जसराज उसे बुलाते हैं, वसन्त तब आता है जब पंडित जसराज उसे गाते हैं.’
यह अनुभव कोई एक बार का नहीं है. जितनी बार उन्हें सुनना होता है, जिस बिन्दु पर उनका गायन सम्पन्न होता है, वही जीवन का अन्तिम सत्य लगने लगता है. लेकिन, अन्तिम सत्य तो उस व्यक्ति के जीवन का होता है, जिसके जीवन का कोई प्रथम सत्य हो! उसका क्या, जिसका एक ही सत्य हो और वह सत्य हो संगीत!
पंडित जसराज कहते हैं,
'यदि कहूं कि संगीत जीवन है, तब जीवन तो सबके पास है. यदि कहूँ कि संगीत आजीविका है, तो आजीविका भी सभी के पास होती है. यदि कहूँ कि संगीत प्राण है, तो प्राण भी हर जीवनधारी के पास है. मेरे लिए संगीत हर चीज से परे है. हर अभिव्यक्ति से परे है, हर भाव से ऊंचा है. बस संगीत ही संगीत है, और कुछ नहीं.''पंडित जसराज से बात करके मुझे याद आने लगती हैं वे पंक्तियां, ‘हवा को जानना चाहते हो तो उसमें सुगन्ध की तरह रम जाओ तुम हवा को पा जाओगे. नदी को पाना चाहते हो तो उसमें धारा की तरह समा जाओ तुम नदी को पा जाओगे.’ जसराज जी से बात करके लगता है, उनका गायन सुनकर लगता है,‘तुम संगीत को पाना चाहते हो तो स्वयं संगीत बन जाओ, तुम संगीत को पा जाओगे.’