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अयोध्या में टूटेगी बरसों पुरानी परंपरा, रामलला का दर्शन करेंगे हनुमानगढ़ी के महंत प्रेमदास

Ayodhya के Hanuman Garhi के रूलबुक के मुताबिक मंदिर के मुख्य पुजारी को मंदिर परिसर के बाहर नहीं जाना चाहिए. लेकिन हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीं महंत प्रेमदास इस नियम को तोड़ने जा रहे हैं.

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महंत प्रेमदास 200 साल से पुरानी रवायत को तोड़ने जा रहे हैं. (एक्स)

30 अप्रैल. अयोध्या के लिए ये तारीख खास है. इस दिन हनुमान गढ़ी के मुख्य पुजारी एक यात्रा पर निकलने वाले हैं. अपनी 1.6 किलोमीटर की यात्रा के जरिए वो 200 सालों से ज्यादा पुरानी रवायत को तोड़ने वाले हैं. उनका ये कदम हनुमान गढ़ी के नियम के भी खिलाफ है, जिसके मुताबिक'गद्दीनशीं'(मुख्य पुजारी) मंदिर के परिसर को नहीं छोड़ेंगे.जानते हैं यह नियम क्यों लागू है और मुख्य पुजारी महंत प्रेमदास अब इसे क्यों तोड़ रहे हैं?

हनुमान गढ़ी और उसके नियम

रायबहादुर लाला सीताराम ने अपनी किताब श्रीअवध की झांकी में हनुमानगढ़ी का वर्णन किया है. उनके मुताबिक अयोध्या के जीर्णोद्धार के समय महाराजा विक्रमादित्य ने यहां 360 मंदिर बनाए थे. औरंगजेब के समय इनमें से कई तहस-नहस हो गए. तहस-नहस होने के बाद 17वीं शताब्दी में हनुमानगढ़ी एक टीले के रूप में मौजूद था. यहां एक पेड़ के नीचे हनुमान की छोटी मूर्ति रखकर पूजा की जाती थी.

माना जाता है कि 18वीं शताब्दी में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने ने हनुमान गढ़ी के लिए जमीन दी थी. जब मंदिर के पुजारी बाबा अभयराम दास ने उनके बीमार बेटे को ठीक किया था. कहते हैं कि नवाब का बेटा किसी असाध्य बीमारी से पीड़ित था. वैद्य और हकीम ने हाथ खड़े कर दिए थे. तब नवाब के मंत्रियों ने बाबा अभयरामदास से बच्चे को देखने की अर्जी लगाई. बाबा ने बच्चे को बीमारी से मुक्ति दिला दी. जिसके बाद नवाब से प्रसन्न होकर बाबा को कुछ देने की इच्छा जताई. 

बाबा ने कहा कि वो तो साधु हैं उन्हें क्या चाहिए. हनुमानजी की कृपा से उनका बेटा ठीक हुआ है. यदि आपकी इच्छा हो तो हनुमानगढ़ी बनवा दीजिए. इसके बाद नवाब ने मंदिर के लिए 52 बीघा जमीन उपलब्ध कराई थी. हनुमानगढ़ी मंदिर किले के आकार का है. इस भूखंड पर मंदिर के अलावा सैंकडों दुकानें, घर, श्रीराम हॉस्पिटल और हनुमंत संस्कृत महाविद्यालय है.

प्रचलित मान्यता है कि राम जन्मभूमि मंदिर की यात्रा तभी पूरी होती है जब कोई व्यक्ति हनुमानगढ़ी के दर्शन करता है. हनुमान गढ़ी का संविधान  मंदिर से जुड़े आचरण के नियम तय करता है. इसके मुताबिक मुख्य पुजारी केवल मंदिर से जुड़ी जमीन पर ही रह सकता है. जो 52 बीघा (0.13 वर्ग किलोमीटर) में फैली हुई है. वो इससे बाहर नहीं जा सकते.

ऐसी मान्यता है कि जब राम धरती से विदा हुए थे, तो उन्होंने अपना राज्य हनुमान के जिम्मे छोड़ दिया था. हनुमान यहां एक गुफा बना कर यहां रहते थे. और राम जन्मभूमि की देखरेख करते थे. इसी कारण इसका नाम हनुमान गढ़ या हनुमान कोट बना जो बाद में हनुमान गढ़ी हो गया. अब राम ने अयोध्या की जिम्मेदारी हनुमान को सौंपी थी. इसलिए अयोध्या के लोग हनुमान को अपना राजा और मंदिर के गद्दीनशीं को उनका प्रतिनिधि मानते हैं. इसलिए अपना पद नहीं छोड़ सकते.

हनुमंत संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य और महंत प्रेम दास के शिष्य महेश दास ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया, 

हनुमान गढ़ी का संविधान 200 साल से भी पुराना है. बाबा अभयराम दास जी महाराज के समय का. 17वीं सदी के उतरार्द्ध के आसपास.जब तीन मुख्य अखाड़ों जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ था. हनुमानगढ़ी निर्वाणी अखाड़े के अंतर्गत आ गया. और तब से मंदिर का प्रबंधन उनके द्वारा ही संभाला जाता है.

उन्होंने बताया कि नियमों के मुताबिक, गद्दीनशीं (जिनकी सीट मंदिर में हनुमान मूर्ति के सामने स्थापित है) 52 बीघा के परिसर से बाहर नहीं जा सकते. क्योंकि वे हनुमान के प्रतिनिधि और सेवक भी हैं. महेश दास ने आगे बताया, 

जब हनुमान जी को किसी बड़े धार्मिक समारोह के लिए आमंत्रित किया जाता है तो उनका प्रतीक या निशान (हनुमान का निशान चांदी और सुनहरे धागे से उकेरा हुआ झंडा) भेजा जाता है. गद्दीनशीं खुद नहीं जाते हैं.

नियम क्यों तोड़ रहे हैं महंत प्रेमदास?

हनुमानगढ़ी से जुड़े सन्यासियों के मुताबिक, मंदिर के गद्दीनशीं महंत प्रेमदास का दावा है कि हनुमान उनके सपने में आकर राम मंदिर जाने का आदेश दे रहे हैं. मंदिर के एक पुजारी ने बताया कि मंदिर में दर्शन करने के महंत के अनुरोध के बाद 21 अप्रैल को निर्वाणी अखाड़ा पंचायत की बैठक बुलाई गई. जिसमें करीब 400 सदस्य हैं. पंचों ने लंबी चर्चा के बाद यह मानते हुए दर्शन की अनुमति देने का फैसला किया कि यह आह्वान स्वयं भगवान हनुमान ने किया है.

यात्रा कैसे निकाली जाएगी?

हनुमानगढ़ी के पुजारियों ने बताया कि प्रोटोकॉल के मुताबिक, यदि गद्दीनशीं बाहर निकलते हैं तो उनके साथ रथ पर ‘हनुमान निशान’ रखा जाता है. और हाथी, घोड़े, ऊंट, चांदी की छड़ियां और हजारों अनुयायियों के साथ शाही जुलूस निकाला जाता है.

निर्वाणी अखाड़ा पंचायत ने तय किया है कि 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन ये 'ऐतिहासिक यात्रा' आयोजित की जाएगी. तय कार्यक्रम के मुताबिक, महंत प्रेमदास हनुमानगढ़ी के पिछले गेट से अपने शाही जुलूस के साथ रथ पर सवार होकर निकलेंगे, जिसे वीआईपी गेट कहा जाता है. हालांकि राम मंदिर के सुरक्षा प्रोटोकॉल के चलते वे रथ को मंदिर से कुछ दूरी पर छोड़ देंगे. और गेट नंबर 3 से चार पहिया वाहन से मंदिर में एंट्री लेंगे. वह भगवान राम के लिे 56 प्रकार के भोग और दूसरे प्रसाद लेकर जाएंगे.

राजनीतिक हलकों में भी रहेगी नजर

हनुमानगढ़ी ने राम मंदिर आंदोलन से एक दूरी बनाए रखी है. राहुल गांधी जैसे नेता अब तक रामजन्मभूमि पर जाने से बचते रहे हैं, लेकिन उन्होंने हनुमानगढ़ी जाकर पूजा-अर्चना की है. अब जबकि इस मंदिर के महंत रामजन्मभूमि की यात्रा पर जा रहे हैं तो राजनीतिक हलकों में भी इस पर कड़ी नजर रखी जाएगी.

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