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लाल निशान कम्युनिज्म का सिंबल कैसे बना? हथौड़ा और हंसिया ही क्यों चुने गए?

हथौड़ा और दरांती का कम्युनिज्म से क्या संबंध है? इन्हीं की कहानी आपको सुनाएंगे. बताएंगे कि हथौड़ा और दरांती कैसे बने कम्युनिज्म का प्रतीक?

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कम्युनिस्ट सिंबल (PHOTO- Adventistas)

साल 1945. फरवरी का महीना. सोवियत रूस के एक शहर याल्टा में एक हाई प्रोफ़ाइल मीटिंग चल रही थी. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री - विंस्टन चर्चिल, अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट और सोवियत सर्वेसर्वा स्टालिन - तीनों इस मीटिंग में मौजूद थे. विश्व युद्ध अभी ख़त्म नहीं हुआ था. लेकिन जर्मनी की हार पक्की दिख रही थी. ऐसे में इस मीटिंग का एजेंडा था- युद्ध के बाद जर्मनी का क्या होगा?

चर्चिल और रूजवेल्ट वेस्टर्न स्टाइल डेमोक्रेसी के पक्ष में थे. वहीं स्टालिन जर्मनी में भी कम्युनिज्म का झंडा फहराना चाहते थे. बहस के दौरान स्टालिन एकदम खड़े हुए. एक झंडा मंगाया, उसे खोलकर रूजवेल्ट और चर्चिल को दिखाने लगे. ये सोवियत संघ का झंडा था. जिसमें कम्युनिज्म के प्रतीक, हथौड़ा और दरांती बने हुए थे. झंडा दिखाकर, स्टालिन बोले, ‘देखो ये झंडा, ये दरांती - किसानों का प्रतीक है. और ये हथौड़ा मजदूरों का. जर्मनी का भविष्य इन्हीं दोनों में है.’

ये सुनते ही सब शांत हो गए. थोड़ा समय गुजरा. फिर चर्चिल उठे और बोले, 

“स्टालिन तुम सही कहते हो. अपने लोगों के लिए एकदम सही प्रतीक चुना है तुमने. दरांती- ताकि लोग काम करते रहें, और हथौड़ा - ताकि कोई बोलने की हिम्मत न कर सके”

अभी जो किस्सा आपने सुना- इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है. लेकिन सोवियत संघ के समय के कई ऐसे किस्से हैं, जो आज भी सुने- सुनाए जाते हैं. बहरहाल हथौड़ा और दरांती के किस्से से शुरुआत इसलिए, क्योंकि आज इन्हीं की कहानी आपको सुनाएंगे. हथौड़ा और दरांती कैसे बना कम्युनिज्म का प्रतीक? 

फरवरी, 1917. ये साल की शुरूआत भर थी. सदियों से शासन करते आ रहे जार साम्राज्य के पाप का घड़ा लगभग भर चुका था. जनता उसके निरंकुश शासन से त्रस्त हो चुकी थी. और किसी भी पल सिंहासन पर बैठे जार निकोलस द्वितीय को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार थी. जरूरत थी तो बस एक चिंगारी की. ये चिंगारी बनी-प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की हार. किसानों, मजदूरों और सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और इसका नेतृत्व किया बोल्शेविकों ने. बोल्शेविक रूस की एक पार्टी थी और इस पार्टी के नेता थे-व्लादिमिर लेनिन. विद्रोह की आग जार निकोलस द्वितीय तक पहुंची और उसे राजगद्दी छोड़नी पड़ी.

Yalta Conference
याल्टा में चर्चिल,रूजवेल्ट और स्टालिन (Photo- Wikipedia)

फिर बनी अंतरिम सरकार. जिसे चुनाव होने तक जार की जगह शासन करना था. चुनाव में देरी होती गई. इधर अंतरिम सरकार की मनमानी भी बढ़ती गई. अंतरिम सरकार के फैसलों की वजह से रूस अब भी प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले रहा था. जिन भूमि सुधारों को बात अंतरिम सरकार ने की थी. उस फैसले को भी ताक पर रख दिया गया. किसानों और सैनिकों की खीझ बढ़ती चली गई. अक्टूबर तक आते-आते एक और क्रांति हुई, जिसे अक्टूबर क्रांति के नाम से जाना जाता है. अक्टूबर क्रांति के बाद बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. यहां से कम्युनिस्ट सत्ता में आ गए. कम्युनिस्ट बदलाव चाहते थे. और इस बदलाव की शुरुआत हुई एक नए झंडे की तलाश से. बोल्शेविक ऐसा झंडा चाहते थे जिससे पूरी दुनिया तक ये संदेश जाए कि इतिहास में पहली बार कोई श्रमिक राज्य बना है. जो बाकी देशों के लिए मानक की तरह काम करे. कुछ ऐसा ही फ्रांसीसी क्रांति के बाद हुआ था. जब फ्रांस के तिरंगे झंडे ने 19वीं सदी के गणराज्यों, खासकर यूरोप के लिए, लिबर्टी, इक्वलिटी, फ्रेटर्निटी के मानक तय किए थे. खैर, खोज शुरू तो हुई. लेकिन कोई भी चिन्ह ऐसा नहीं मिला, जिसे झंडे के लिए प्रयोग किया जा सके.

समस्या से निपटने के लिए लेनिन और उस समय के शिक्षा आयुक्त रहे अनातोली लुनाचार्स्की ने एक डिजाइन कंप्टीशन आयोजित करवाया. पूरे गणराज्य से हजारों एंट्रीज आईं. कुछ एंट्रीज पुरानी मान्यताओं से जुड़ी हुईं थीं. जैसे- दो सिर वाला बिना पंख का ईगल का चिन्ह और कॉर्नुकोपिया का चिन्ह.

कॉर्नुकोपिया सींग के आकार का एक कंटेनर होता है. जो फल और सब्जी रखने के काम आता है. इन सब के अलावा एक एंट्री ऐसी आई. जिसमें क्रॉस करता हथौड़ा और दरांती, गेहूं का ढेर, एक उगता हुआ सूरज और एक खड़ी तलवार को दिखाया गया. लेनिन ने तलवार को उसी समय हटवा दिया. क्योंकि तलवार युद्ध की प्रतीक थी और लेनिन कोई ऐसा राज्य नहीं चाहते थे जो युद्ध का समर्थक हो.

नए राज्य की मुहर के लिए बहस चल ही रही थी. तभी 1 मई यानी मजदूर दिवस के मौके पर कलाकार येवगेनी कामज़ोकलिन ने एक टेम्पलेट बनाया. इस टेम्पलेट में क्रॉस हथौड़ा और दरांती दिखाया गया था. ये टेम्पलेट उसी एंट्री से प्रभावित होकर बनाया गया था. जो उस कंप्टीशन में भेजी गई थी. इस टेम्पलेट की दुनिया भर में चर्चा होने लगी.

दिलचस्प बात ये कि कामज़ोलकिन कम्युनिस्ट नहीं थे इसके अलावा वह बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे. वे 10 सालों तक लियोनार्डो दा विंची की क्रिएटिव सोसायटी के सदस्य रहे थे और प्रतीकों के अर्थ और महत्त्व को अच्छी तरह से समझते थे. कुल मिलाकर कहें तो कामज़ोकलिन ही थे, जिन्होंने साम्यवाद को उसका वो सिम्बल दिया, जो आज पूरी दुनिया में उसकी पहचान है. 10 जुलाई 1918 को, सोवियत गणराज्य ने औपचारिक रूप से अपना संविधान अपनाया. जिसमें आधिकारिक तौर पर ये घोषणा की गई-

"सोवियत संघ के झंडे में बैकग्राउंड में लाल रंग होगा, जिस पर क्रॉस करते हुए एक सुनहरी दरांती और एक हथौड़ा होगा. ये दोनों सूर्य की किरणों से चमकते नज़र आएंगे और साथ में होंगी गेहूं की बालियां.”

इस डिज़ाइन के नीचे एक नारा भी था जो कार्ल मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणापत्र के अंतिम वाक्य का सार प्रस्तुत करता था-

"दुनिया के मजदूरों, एकजुट हो जाओ!" 

अक्टूबर क्रांति के ठीक एक साल बाद, बोल्शेविकों ने कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का गठन किया, जिसे 'कॉमिन्टर्न' के नाम से जाना जाता है. इस संगठन का उद्देश्य बस इतना था कि दुनिया के हर देश में कम्युनिस्ट पार्टियों को बढ़ावा मिले और उनके जरिए बड़े लेवल पर सर्वहारा क्रांति हो सके. सर्वहारा मतलब किसान और मजदूर वर्ग. और इस तरह हथौड़ा और दरांती जल्द ही पूरी दुनिया में कम्युनिज्म का प्रतीक बन गए गए.

1991 में USSR के टूटने तक यह चिन्ह सोवियत फ्लैग की शोभा बढ़ाता रहा. और उसके बाद आज भी डिजाइन में थोड़े-बहुत बदलाव के साथ यह कई कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रतीक बना हुआ है, जिनमें पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और वियतनाम के अलावा कई देशों की पार्टियां शामिल हैं.

USSR के टूटने के बाद, पूर्वी यूरोप के कई राज्यों ने, जो कभी USSR का हिस्सा थे. उन्होंने यूरोपीय संघ से दरांती और हथौड़ा के निशान पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. ये कहते हुए कि हथौड़ा और दरांती तानाशाही का प्रतीक हैं. हालांकि प्रतिबंध नहीं लगा और ये फैसला सदस्य देशों पर छोड़ दिया गया कि वे चाहें तो ये प्रतीक अपनाएं या ना अपनाएं.

निशान की अहमियत क्या है, इसके लिए एक हालिया वाकया आपको बताते हैं. 2022 में, रूस के आक्रमण के बाद, यूक्रेन ने अपने देश से सोवियत से जुड़े हर-एक निशान को मिटाने की कोशिश की. यूक्रेन में देश को ‘मदर यूक्रेन’ की मूर्ति से रेप्रेज़ेंट किया जाता है. पहले इस मूर्ति के हाथ में रखी ढाल पर दरांती और हथौड़ा बना रहता था. लेकिन युद्ध की शुरुआत के बाद इस प्रतीक को 'त्रिशूल' के प्रतीक से बदल दिया गया है.

हथौड़े और दरांती को ही झंडे का चिन्ह क्यों बनाया गया?

असल में 20वीं सदी की शुरुआत में सोवियत रूस में तीन-चौथाई लोग किसान और मजदूर थे. हथौड़ा मजदूर वर्ग का एक जरूरी उपकरण (टूल) था तो वहीं दरांती, जिसे हंसिया या हंसुआ भी कहा जाता है, किसानों का एक जरूरी उपकरण था. कम्युनिस्ट शासन की शुरुआत में काम को बहुत महत्त्व दिया जाता था. इसी कारण जब सिम्बल चुनने की बारी आई. तो किसान और मजदूरों के काम के उपकरणों को कम्युनिज़्म के प्रतीक के तौर पर चुना गया.

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सोवियत का झंडा (Photo- Wikipedia)

इस समय दुनिया भर की लगभग सभी कम्युनिस्ट पार्टियों के झंडे पर यही हथौड़ा और दरांती मौजूद है. रूस में रूसी संघ की कम्युनिस्ट पार्टी- CPRF के झंडे पर यही निशान मौजूद है और उसकी प्रतिद्वंदी पार्टी CRCP के झंडे पर भी थोड़े बदलाव के साथ यही चिन्ह मौजूद है. कजाकिस्तान की कम्युनिस्ट पीपुल्स पार्टी से लेकर किर्गिज़स्तान की कम्युनिस्ट पार्टी भी यही चिन्ह प्रयोग करती है.

दुनिया की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी का दावा करने वाले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतीक चिन्ह पर हथौड़ा और दरांती का रंग पीला है. भारत की बात करें तो यहां भी हथौड़ा और दरांती इसके कई वामपंथी दलों के प्रतीक चिन्हों पर मौजूद रहते हैं फिर चाहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) हो या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी).

एक समय ऐसा भी था जब पृथ्वी के रहने योग्य 20% जमीन पर USSR का ये झंडा फहराया जाता था. हालांकि आज के समय में कम्युनिज्म का दावा करने वाले पांच देश- चीन, उत्तर कोरिया, लाओस, क्यूबा और वियतनाम में से किसी एक भी देश के झंडे पर हथौड़ा और दरांती नहीं दिखाई देता. 

वीडियो: तारीख: हथौड़ा और दरांती कैसे बना कम्युनिज्म का प्रतीक? उस हाईप्रोफाइल मीटिंग में क्या हुआ था?