क्या होता है गिलोटिन? हमारे यहां 50 से अधिक मंत्रालय हैं. बजट में सभी के लिए अनुदान होता है. लेकिन सत्र की सीमित अवधि में सभी पर चर्चा करा पाना संभव नहीं हो पाता है. ऐसे में जिन मांगों पर चर्चा नहीं हो पाती है उसे बिना चर्चा के ही मतदान कराकर पास कर दिया जाता है. इसी प्रक्रिया को गिलोटिन कहते हैं. एक लाइन में कहें तो-
बजट सत्र में मंत्रालयों की अनुदान मांगों को बिना चर्चा पारित कराने की प्रक्रिया को 'गिलोटिन' कहा जाता है.एक सामान्य प्रक्रिया में मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर चर्चा होती है. सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के सदस्य अपनी राय रखते हैं. इसके बाद संशोधन की जरूरत होती है तो संशोधन के साथ अन्यथा इसके बिना ही सदन इसे पास कर देता है. ऐसा नहीं है कि गिलोटिन की प्रक्रिया कोई पहली बार अपनाई गई है. हर साल एक बड़ी संख्या में अनुदान मांगों को बिना किसी चर्चा के पास कर दिया जाता है. इस साल रेल, सामाजिक न्याय और आधिकारिता और पर्यटन मंत्रालय से जुड़ी मांगों पर चर्चा की गई. इनके अलावा बाकी अनुदान मांगों को बिना चर्चा के ही पास करा दिया गया.

पिछले 15 सालों का रिकॉर्ड देखकर समझ सकते हैं कि गिलोटिन का कितना उपयोग हुआ है. (स्रोत- PRS)
मोदी सरकार ने 2018-19 में सारे अनुदान मांग बिना किसी चर्चा के पास करा लिये थे. 2004-05 और 13-14 में यूपीए ने भी बिना किसी चर्चा के सारे अनुदान मांग पारित करा लिए थे.
अब आगे क्या?
गिलोटिन के जरिए अनुदान मांगों के पारित होने के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विनियोग विधेयक पेश किया. विनियोग विधेयक के जरिए ही संसद में देश के खजाने से पैसा निकालने के प्रस्ताव पर मुहर लगती है. 2020-21 के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 110.4 लाख करोड़ रुपए देश के खजाने से निकालने के लिए संसद में विनियोग विधेयक पेश किया. लोकसभा ने इसे ध्वनिमत से मंजूरी दे दी. अब लोकसभा में वित्त विधेयक पर चर्चा की जाएगी. वित्त विधेयक के पारित होने के साथ बजट की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी.
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