The Lallantop

उस गेस्ट हाउस कांड की कहानी, जिसके बाद मुलायम और मायावती में दुश्मनी हो गई थी!

इस कांड की जांच के लिए बनी कमेटी ने सीधे तौर पर मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया था.

post-main-image
मुलायम सिंह यादव और मायावती. (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का 10 अक्टूबर को निधन हो गया. मुलायम सिंह ने अपने लंबे राजनीतिक करियर में जहां खूब नाम कमाया, तो वहीं उनके दामन पर कुछ दाग भी लगे. ऐसा ही एक राजनीतिक किस्सा है गेस्ट हाउस कांड का. जिसने यूपी की राजनीति में चिर-परिचित मायावती और उनके बीच की दुश्मनी को जन्म दिया.

क्या था गेस्ट हाउस कांड?

बात है 1995 की. मुलायम सिंह यादव की सपा और कांशीराम की बसपा गठबंधन सरकार यूपी की सत्ता में थी. लेकिन गठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा था. फिर आया 23 मई 1995 का दिन. मुलायम सिंह यादव तब बसपा के संस्थापक कांशीराम से बात करना चाहते थे. लेकिन कांशीराम ने मना कर दिया. इसी रात कांशीराम ने फोन कर दिया BJP नेता लालजी टंडन को. फोन पर बात हुई. बीजेपी-बसपा गठबंधन को लेकर.

ये वो समय था, जब कांशीराम की तबीयत खराब थी. वो अस्पताल में भर्ती थे. उनकी देखभाल कर रहे थे उनके दोस्त और राज्यसभा सांसद जयंत मल्होत्रा. साथ में मायावती भी थीं. तब कांशीराम ने मायावती को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या वो सूबे की सीएम बनेंगी. 

कांशीराम ने मायावती को बीजेपी के समर्थन वाले लेटर भी दिखाए. इसके बाद 1 जून 1995 को मायावती लखनऊ पहुंचीं और सपा-बसपा के डेढ़ साल पुराने गठबंधन को खत्म करने की जानकारी राज्यपाल मोतीलाल वोरा को भेज दी. राज्यपाल को लिखी चिट्ठी में मायावती ने सपा से समर्थन वापस लेने के साथ ही बीजेपी के साथ सरकार बनाने का दावा भी पेश किया.

फिर आया 2 जून, 1995 का दिन. इस तारीख को यूपी के राजनीतिक इतिहास का काला दिन कहा जाता है. इस दिन मायावती लखनऊ में ही स्टेट गेस्ट हाउस में बसपा विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थीं. उधर समर्थन वापसी की सूचना से आगबबूला हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने समर्थकों को गेस्ट हाउस भेज दिया. इन समर्थकों को एक टास्क दिया गया. उस समय बसपा के एक बागी नेता राजबहादुर के नेतृत्व में पहले ही 12 विधायक टूटकर सपा के समर्थन में आ चुके थे. लेकिन दल-बदल कानून के चलते बसपा के 67 में से कम से कम एक तिहाई (उस समय के नियम के मुताबिक) विधायकों का टूटना जरूरी था.

बस मुलायम ने समर्थकों को टास्क दिया कि कुछ विधायकों को समझाकर या धमकाकर अपनी तरफ करना है. मुलायम समर्थक बाहुबलियों की ये फौज पहुंच गई गेस्ट हाउस. यहां करीब 4 बजे से हिंसा शुरू हुई और दो घंटे तक चली. इस हिंसा में सपा और बसपा, दोनों दलों के कई समर्थक घायल हो गए. बसपा विधायकों ने आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस के कॉन्फ़्रेंस रूम से कुछ विधायकों का अपहरण करने की कोशिश भी की गई.  

मायावती के साथ बदसलूकी

बाहुबलियों की ये फौज जब गेस्ट हाउस पहुंची, तो वहां एक कमरे में मायावती अपने समर्थकों के साथ थीं. भीड़ के बारे में जानकारी मिलने पर कमरे का गेट अंदर से बंद कर लिया गया. तो सपा समर्थकों ने गेट पीटना शुरू कर दिया. मायावती को यहां जातिसूचक और लिंगसूचक गालियां दी गईं. उन्हें बाहर आने की धमकी भी दी गई. बताया जाता है कि उस समय वहां मौजूद यूपी पुलिस के जवानों को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का सीधा निर्देश था कि सपा समर्थकों पर सख्त कार्रवाई ना की जाए. उस समय के कुछ प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह वहां मौजूद थे, जो हमले को रोकने के बजाए सिगरेट पीते रहे.

इसके बाद शाम के समय लखनऊ के जिलाधिकारी राजीव खेर गेस्ट हाउस पहुंचे. उन्होंने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के मौखिक आदेशों को नहीं माना. डीएम ने पुलिस की मदद से बड़ी मुश्किल से वहां से भीड़ को हटाया. अब तक राज्यपाल तक भी पूरी सूचना पहुंच गई थी. ऐसे में एक्स्ट्रा पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची. तब जाकर लाठीचार्ज हुआ और सपा समर्थकों को खदेड़ा गया. फिर मायावती कमरे से बाहर आईं. ये सुनिश्चित होने के बाद कि सपा के कार्यकर्ता चले गए हैं. इधर, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का आदेश न मानने वाले जिलाधिकारी राजीव खेर का उसी रात 11 बजे ट्रांसफर कर दिया गया.

बताया जाता है कि हालात यहां तक बिगड़ गए थे कि सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस के अंदर बिजली-पानी काट दिया था. विधायक काफी डरे हुए थे. बाद में कांशीराम ने इसे मायावती की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा कहा. इसके बाद 3 जून 1995 को बीजेपी, कांग्रेस, जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी के 282 विधायकों के समर्थन से मायावती ने आखिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. देश में पहली दलित महिला मुख्यमंत्री. 

मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद 6 जून, 1995 को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ मायावती (साभार- एक्सप्रेस)

इस कांड के बाद मायावती और मुलायम के बीच एक राजनीतिक लकीर खींच गई. मायावती ने इसके बाद कई बार अपनी रैलियों में इस कांड का जिक्र किया. इसका जिक्र करते हुए हमेशा उनके चेहरे पर एक गुस्सा आ जाता था. मायावती ने अपनी आत्मकथा 'मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफ़रनामा' में लिखा, 

''मुलायम सिंह का आपराधिक चरित्र उस समय सामने आया, जब उन्होंने स्टेट गेस्ट हाउस में मुझे मरवाने की कोशिश करवाई. उन्होंने अपने बाहुबल का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ़ हमारे विधायकों का अपहरण करने की कोशिश की, बल्कि मुझे मारने का भी प्रयास किया.''

गेस्ट हाउस कांड की जांच 

इस कांड की जांच के लिए रमेश चंद्र कमेटी बनाई गई. इसने अपनी 89 पेज की रिपोर्ट में गेस्ट हाउस कांड के आपराधिक षड्यंत्र के लिए मुलायम सिंह यादव को सीधे ज़िम्मेदार ठहराया. रिपोर्ट में कहा गया कि योजना पहले ही बना ली गई थी और इसके लिए कुछ अधिकारियों को पहले ही लखनऊ ट्रांसफर कर दिया गया था.

इस घटना के ठीक 24 साल बाद 19 अप्रैल 2019 को पहली बार मुलायम सिंह यादव और मायावती एक ही मंच पर साथ नजर आए. 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा ने गठबंधन किया तो मैनपुरी में एक रैली में दोनों नेता साथ आए. वहीं 2019 के चुनावों में गठबंधन से ठीक पहले मायावती ने मुलायम सिंह यादव के ऊपर लगे गेस्ट हाउस कांड वाले केस वापस ले लिए. उन्होंने इसे लेकर तब ट्वीट कर बताया था, 

“2 जून 1995 का लखनऊ गेस्ट हाऊस केस बसपा और सपा गठबंधन के बाद और लोकसभा आम चुनाव के दौरान ही सपा के आग्रह पर 26 फरवरी 2019 को माननीय सुप्रीम कोर्ट से वापस लिया गया था.”

हालांकि, ये गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला और चुनावों के ठीक बाद बसपा ने गठबंधन तोड़ लिया. 

Video- वो गेस्ट हाउस कांड जिसे कांशीराम ने मायावती की राजनीतिक परीक्षा कहा था