लल्लनटॉप के खास शो ‘गेस्ट इन दी न्यूजरूम’ में हमारे मेहमान थे भारतीय सेना के 28वें चीफ रहे जनरल मनोद मुकुंद नरवणे (Gen Manoj Mukund Narwane Interview). जनरल नरवणे गलवान घाटी की घटना, चीन के विस्तारवादी रवैये और फौज में सीनियर पदों पर महिला अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर 2017 में हुए बहुचर्चित ‘डोकलाम स्टैंडऑफ’ (Doklam Standoff) पर बात की. जनरल नरवणे ने बताया कि उस समय असल में क्या हुआ था? भारत की सेना ने चीन की फौज का सामना किस तरह से किया? साथ ही जिस प्रतिबंधित क्षेत्र की बात होती है, वहां भारत और चीन की सेनाओं ने कितनी बार अपने कदम रखे.
'चीन ने 100 बार उल्लंघन किया तो हमने भी 200 बार किया'; डोकलाम स्टैंडऑफ पर क्या बोले पूर्व आर्मी चीफ जनरल नरवणे?
17 जून, 2017 को देर रात PM Modi ने Operation juniper को मंज़ूरी दे दी. फौज पहले से तैयार थी. 18 जून की सुबह जब Chinese Army और मज़दूर Doklam में अपनी आंखें मल रहे थे, उन्हें Bulldozer चलने की आवाज़ सुनाई दी. ये बुलडोज़र चीन का नहीं था. आवाज़ उन बुलडोज़र्स से आ रही थी, जिन्हें Indian Army अपने साथ भूटान की सीमा के अंदर ले आई थी.

गेस्ट इन दी न्यूजरूम के दौरान लल्लनटॉप के कुलदीप मिश्रा ने जनरल नरवणे के एक पुराने बयान को कोट करते हुए डोकलाम स्टैंडऑफ के बारे में सवाल किया. जनरल नरवणे ने कोलकाता में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा था
अगर 2017 में डोकलाम के वक्त चीन ने LAC पर 'ग्रे ज़ोन' का 100 बार उल्लंघन किया, तो भारतीय सेना ने डोकलाम गतिरोध के दौरान 200 बार ऐसा किया. डोकलाम ने ये स्पष्ट संदेश दिया है कि भारतीय सशस्त्र बल कोई पुशओवर नहीं है. उन्होंने (चीन) सोचा कि वो रीजनल बुली बनकर बच निकलेंगे, लेकिन हम इस बुली के आगे खड़े हो गए.
कुलदीप मिश्रा ने पूछा कि क्या उस समय इस बयान को डाउनप्ले करने या न छापने के लिए आर्मी हेडक्वार्टर्स और रक्षा मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने कुछ पत्रकारों से कहा था. इस सवाल के जवाब में जनरल नरवणे कहते हैं
चीन ने विवादित क्षेत्र में कदम रखा था जो सही नहीं था. हमने वहां उनका विरोध किया और उसे रोका. पहले भी चीन, लद्दाख में कई जगहों पर ऐसा कर चुका है. हर बार हमने उन्हें रोका है. आप अपने एरिया में जो चाहे करें पर विवादित क्षेत्र में अगर ऐसा होगा तो हम उसे रोकेंगे. डोकलाम न पहली बार था, न आखिरी बार.
इसके अलावा द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट का हवाला देकर जनरल से पूछा गया कि क्या इस बयान को ऐसे देखा गया कि 200 बार अंदर घुसने की बात चीन को उकसाने वाली है? इसके जवाब में जनरल नरवणे कहते हैं
क्या था डोकलाम विवाद?उकसाने वाली कोई बात नहीं है. ये विवादित क्षेत्र है. उन क्षेत्रों में वो भी आते हैं, हम भी जाते हैं. ये तो उनको भी मालूम है और हमें भी मालूम है. ये कोई रूटीन तो नहीं है पर बॉर्डर पर ऐसा होता रहता है. दोनों सेनाएं अपने द्वारा क्लेम की हुई लाइन कर गश्त लगाती हैं.
एक साधारण सा गूगल सर्च आपको बता देगा कि डोकलाम भारत में है ही नहीं. वो है भूटान में. तो चीन वहां चाहे जो करे, हमें उससे क्या? आइए सबसे पहले इसी सवाल का जवाब खोजते हैं. इस नक्शे को देखिए. डोकलाम इलाका एक ट्राइजंक्शन पर है. माने जहां तीन सीमाएं आकर मिलती हैं. एक तरफ है सिक्किम. माने हमारा भारत. दूसरी ओर है हमारा दोस्त भूटान. और इन दोनों की ज़मीन के बीच एक खंजर की तरह मौजूद है चीन. डोकलाम इस ट्राइजंक्शन पर ही मौजूद है. लेकिन भूटान के हिस्से में.
अब समस्या ये है कि चीन इस नक्शे को मानता नहीं है. ठीक उसी तरह, जैसे चीन-भारत के बीच सीमा विवाद है, उसी तरह चीन भूटान के बीच भी सीमा विवाद है. चीन का दावा है कि डोकलाम का इलाका उसके हक में है. और भारत, एक अच्छे दोस्त की हैसियत से यही मानता है, कि डोकलाम भूटान का हिस्सा है. और इसी हिस्से में चीन गांव पर गांव बनाता जा रहा है. मज़े की बात ये है कि इस इलाके में चीनी गांव ऐतिहासिक रूप से मौजूद नहीं थे. और न ही इन गांवों में आम चीनी नागरिक रहते हैं. ये गांव दिखावे के हैं. और इनका इस्तेमाल करती है चीन की सेना-PLA. ज़ाहिर है, भारत अपने दोस्त की ज़मीन लुटते देख नाखुश है.
लेकिन भारत की नाराज़गी की वजह सिर्फ दोस्ती नहीं है. दो और कारण हैं. पहला है एक वादा. अगस्त, 1949 में भारत और भूटान के बीच दार्जीलिंग में एक समझौता हुआ, जिसे कहा जाता है ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप. इसका आर्टिकल 2 कहता है कि भूटान अपने विदेश मामलों में भारत सरकार की सलाह लेगा. और इसके बाद से भूटान की विदेश नीति में भारत की भी भूमिका रहती है. भूटान की ज़मीन पर विदेशी आक्रमण उसकी विदेश नीति का विषय है, इसीलिए भारत इसमें दिलचस्पी लेता है. भारत और भूटान के बीच 2007 में फिर एक समझौता हुआ, जिसे कहा जाता है INDIA-BHUTAN FRIENDSHIP TREATY. इसके आर्टिकल 2 में भी लिखा है कि दोनों देश राष्ट्रहित के मुद्दों पर करीबी सहयोग रखेंगे और कोई देश अपनी ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे के हितों के खिलाफ नहीं होने देगा. 1949 और 2007 के समझौतों को दोनों देशों की संसद से मान्यता मिली हुई है. इसीलिए भूटान में चीनी अतिक्रमण का जवाब देना भारत सरकार की नैतिक और कानूनी ज़िम्मेदारी है.
अब आते हैं दूसरे कारण पर. जिसके चलते भारत की नैतिक और कानूनी ज़िम्मेदारी का महत्व बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है. भारत का पूर्वोत्तर, बाकी देश से एक सकरे गलियारे से जुड़ा है. जो किशनगंज से सिलिगुड़ी के बीच पड़ता है. एक जगह इस गलियारे की चौड़ाई सिर्फ 22 किलोमीटर के करीब है. इसीलिए इसे कहा जाता है चिकन्स नेक. माने मुर्गे की गर्दन - उसके बदन का सबसे नाज़ुक हिस्सा. क्योंकि भारत इस गलियारे की वैसे ही परवाह करता है, जैसे ये उसकी गर्दन हो. इसीलिए जब 1947 में पूर्वी पाकिस्तान बना और पूर्वोत्तर का रेल संपर्क देश से कट गया, तो भारत ने महज़ दो साल में एक नई रेलवे लाइन डलवाकर दोबारा असम को रेल के नक्शे से जोड़ा. यहां से गुजरने वाली रेल लाइनें, सड़कें, बिजली की लाइनें और तमाम दूसरी संरचनाओं को आज भी बड़ी बारीक निगरानी में रखा जाता है, ताकि कोई भी गड़बड़ हो, तो तुरंत सुधार ली जाए. आखिर गर्दन है, ध्यान तो रखना पड़ेगा.

अब नक्शे पर देखिए कि चीन यहां से कितना करीब है. कुछ जगहों पर चीन सिलिगुड़ी कॉरिडोर से सिर्फ 80 से 100 किलोमीटर दूर पड़ता है. चीन अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताता रहता है. पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में उग्रवाद और आतंकवाद को समर्थन देता है. वो जितना हो सके, सिलिगुड़ी कॉरिडोर के करीब आ जाना चाहता है. ताकि युद्ध की स्थित में पूर्वोत्तर को भारत से अलग किया जा सके. और इसीलिए चीन डोकलाम में स्थिति को मज़बूत करने में लगा हुआ है. भारत ये जानता है.
चीन ने 2017 में डोकलाम ट्राइजंक्शन से आगे की सड़क बनाने की कोशिश की. जून में इसकी खबर भारत को लग गई. धड़ाधड़ बैठकें होने लगीं. सेना और सरकार के आला अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी के सामने कुछ विकल्प रखे. और 17 जून, 2017 को देर रात प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन जुनिपर को मंज़ूरी दे दी. फौज पहले से तैयार थी. 18 जून की सुबह जब चीनी सैनिक और मज़दूर डोकलाम में अपनी आंखें मल रहे थे, उन्हें बुलडोज़र चलने की आवाज़ सुनाई दी. ये बुलडोज़र चीन का नहीं था. आवाज़ उन बुलडोज़र्स से आ रही थी, जिन्हें भारत की फौज अपने साथ भूटान की सीमा के अंदर ले आई थी. फौज ने तुरंत भूटान के हिस्से की ज़मीन पर एक मानव श्रंखला बना दी. और चीनियों की सड़क का काम बंद करवा दिया.
बात ये थी, कि चीन अगर अपनी सड़क बनाने में कामयाब हो जाता, तो चीनी सेना के लिए भारत की डोका ला पोस्ट की घेरेबंदी आसान हो जाती. चीन झंपेरी की पहाड़ियों तक जाना चाहता था, ताकि वहां से सीधे सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नज़र रख सके, जो भारत को स्वीकार नहीं था. 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं आंखों से आंखे मिलाए वहां खड़ी रहीं. और फिर दोनों सेनाएं पीछे हटीं.
लेकिन चीन इतनी जल्दी डोकलाम का पीछा छोड़ने नहीं वाला था. वो 1998 से यहां सड़क बनाने की कोशिश कर रहा है. हर साल थोड़ी थोड़ी सड़क बनाता है. 2019 में वो भूटान से बातचीत को वहां तक ले आया, जिसके बाद कहा जाने लगा कि संभव है, चीन को उतनी ज़मीन बख्श दी जाए, जितनी वो कब्ज़ाकर बैठा हुआ है. लेकिन इन चीज़ों में वक्त लगता है. इसीलिए चीन पुराने तरीके से ज़मीन हथियाने में लगा हुआ है.
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