19-20 जनवरी को कई जगह हमले हुए. इसी को लेकर CRPF ने बिना वारंट घाटी के कई घरों की तलाशी ली. सैकड़ों लोग हिरासत में लिए गए. '
' से बात करते हुए लोग बताते हैं कि CRPF ने महिलाओं के साथ छेड़खानी की. 20 की रात तक यह बात फैल गई कि CRPF के जवान बिना वारंट घरों में घुसे और लोगों को मारापीटा.
राज्य के हालात ठीक नहीं थे. राज्यपाल जगमोहन ने 20 जनवरी को कहा-
मैं एक डॉक्टर के रूप में यहां आया हूं. मैं कोई सैलरी नहीं लूंगा. मैं सिर्फ 100 रुपये लूंगा, पर्सनल खर्चों के लिए. मैंने आपसे साफ-सुथरे प्रशासन का वादा किया है. लेकिन अगर कोई कानून और व्यवस्था को दिक्कत पहुंचाने की कोशिश करता है तो मेरे हाथों से अमन का पत्ता खिसक जाएगा.
आर्टिकल 370 निष्क्रिय करने के बाद गृहमंत्री अमित शाह, जगमोहन मल्होत्रा से मिलने गए थे.
अमन का पत्ता तो 1987 चुनावों के बाद से ही खिसकने लगा था. जगनमोहन ने 20 जनवरी को अमन की बात कही थी, लेकिन 21 जनवरी को हालात बद से बदतर हो गए. जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी प्रदर्शनकारी सड़कों पर आए. प्रदर्शनकारी बढ़ते-बढ़ते गौकदल (कदल यानी पुल) के करीब पहुंचे. यहां 'इस्लाम जिंदाबाद' और 'आज़ादी' जैसे नारे लगाए गए. जवानों पर पत्थर फेंके गए. इसके बाद CRPF के जवानों ने फायर किया. कई लोग मारे गए. सैकड़ों घायल हुए. कई लोग जान बचाने के लिए झेलम नदी में कूद गए. मौत की गिनती सभी की अलग-अलग रही. भारतीय मीडिया ने करीब 20 बताया. विदेशी मीडिया ने 50 के पार बताया. कई संगठनों ने 100 तक भी बताया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट
मुताबिक़ आधिकारिक तौर पर 21 लोग मारे गए थे. लेकिन जब पुलिस कंट्रोल रूम में शवों की गिनती की गई तो यह आंकड़ा 50 तक पहुंच गया.
बाद में जगमोहन और फारुख अब्दुल्ला बोले कि 20 जनवरी को CRPF ने जो छापे मारे उसमें उनकी कोई भागीदारी नहीं थी.
गौकदल के नजदीक रहने वाले लोग उस वाकए को लेकर 'फ्री कश्मीर' से बात करते हुए बताते हैं-
उस दिन पकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच मैच खेला जा रहा था. नारों की आवाज़ आ रही थी. मैंने खिड़की से देखा तो बहुत भीड़ दिखी. फोर्स के लोगों ने लोकल महिलाओं के साथ छेड़खानी की थी. लोग गुस्से में थे और प्रदर्शन कर रहे थे. दोनों छोर से फायरिंग हो रही थी. बचने का कोई तरीका नहीं था. लोग नज़दीकी घरों में घुस गए. कोई वार्निंग नहीं दी गई. बहुत से लोग मारे गए. इतने सालों बाद भी इंसाफ़ नहीं मिला है.21 जनवरी की हिंसा में बचे फारुक अहमद वानी 'अल जज़ीरा
' से बात करते हुए बताते हैं-
मैं गौकदल नरसंहार में एकमात्र जिंदा बचा इंसान था. एक जवान मेरे पास आया. हाथ में बंदूक लिए. मुझे डर लगा और मैंने उससे कहा खुदा के वास्ते मुझे मत मारो. मैं राज्य सरकार का ऑफिसर हूं और ऑन ड्यूटी हूं. उसने मेरी बात सुने बिना मुझ पर गोली चलाई. मेरे पूरे शरीर से खून बह रहा था. मैं नीचे गिर गया. बाद में मुझे हॉस्पिटल ले जाया गया. 22 दिन हॉस्पिटल में रहा. उसके बाद ठीक हुआ.इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट
मुताबिक़ गौकदल नरसंहार के दिन ही जम्मू और कश्मीर पुलिस ने क्रालखुद पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की और और मामले की जांच शुरू कर दी. लेकिन 15 साल बाद केस बंद कर दी गई. नरसंहार के बाद लोगों के गुस्से के कारण सरकार को 21 दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था. पुलिस रिकॉर्ड्स के मुताबिक़ सुरक्षा बलों पर 'अनियंत्रित' भीड़ पथराव कर रही थी लेकिन इसमें पुलिस की कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की 2005 की एक रिपोर्ट
बताती है कि क्रालखुद पुलिस स्टेशन में, तस्वीर थोड़ी साफ हो जाती है. दंगाई भीड़ के खिलाफ FIR 3/90 दर्ज की गई थी. RPC 307, 148, 149 और 153 के तहत मामले दर्ज किए गए थे. स्कैन किए जाने पर, पुलिस रोजानामचा देख बताती है कि मामले में शामिल लोगों को नहीं ट्रेस किया जा सका.
अपनी किताब कर्फ्यूड नाइट्स में लेखक और पत्रकार बशारत पीर लिखते हैं-
प्रदर्शनकारी जब गौकदल पुल पार कर रहे थे तब CRPF के जवानों ने उन पर फायर किया था. इसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए. यह कश्मीर का पहला नरसंहार था.बशारत अपनी किताब में लिखते हैं, रिपोर्टर होने के नाते मेरा फोटोग्राफर मेराजुद्दीन से मिलना हुआ. उन्होंने घटना को लेकर बताया-
मैं बच्चों की तरह रोया जब लोगों पर गोली चलाई जा रही थी. उसके बाद से मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा जो रुला गया हो. यह वाकया मुझे सालों तक डराता रहा.
बशारत पीर ने विशाल भारद्वाज के साथ मिलकर पहले 'हैमलेट' के मूल ढांचे को समझा और फिर उसे भारतीय जमीन पर 'हैदर' के रूप में जिंदा किया. बशारत 'हैदर' फिल्म में भी दिखे थे.
स्थानीय ह्यूमन राइट्स ग्रुप ने जम्मू-कश्मीर राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) से कई बार जांच की मांग की. दिसंबर, 2012 में SHRC की डिवीजन बेंच ने जांच के आदेश दिए. पिछले साल जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने बाद SHRC खत्म हो गया.
गौकदल में जो हुआ उसके लिए जिम्मेदार CRPF और वहां मौजूद अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई. घटना को लेकर कोई सरकारी जांच के आदेश नहीं दिए गए. घटना के 15 साल बाद, पुलिस ने मामले को बंद कर दिया. इसमें शामिल लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटाई गई.
आज भी 20-21 जनवरी के करीब सरकार गौकदल में सुरक्षा बढ़ा देती है, क्योंकि विरोध-प्रदर्शन की संभावना रहती है. मारे गए लोगों के परिजन सालों बाद भी इंसाफ़ के इंतज़ार में हैं.
वीडियो- कश्मीर में पांच साल गुज़ारने वाले पत्रकार की मुंह ज़ुबानी