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कहानी गौरव गोगोई की, जिनकी सियासी हैसियत 'राहुल गांधी के करीबी' से ज्यादा होती जा रही है

पिछले साल Gaurav Gogoi ने मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर केंद्र सरकार को खूब घेरा था. इससे मीडिया में भी उनकी जगह बनी. इससे भी चर्चा में आए कि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर पहला भाषण दिया. माना गया कि पूर्वोत्तर से होने के कारण कांग्रेस ने राहुल गांधी के बदले गौरव गोगोई को आगे किया.

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गौरव गोगोई लगातार दूसरी बार लोकसभा में डिप्टी लीडर चुने गए हैं. (फोटो- पीटीआई)

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला लड़का एमबीए करने अमेरिका चला जाता है. पिता चाहते थे कि बेटा उनकी तरह राजनीति में आए. लेकिन बेटा राजनीति से परहेज करना चाहता था. हालांकि 'समाज सेवा' करने की इच्छा जरूर थी. इसी समाज सेवा की चाह और पिता के बार-बार अनुरोध के बाद बेटा राजनीति में आता है. राजनीति में आने के तुरंत बाद सांसद बनता है. और फिर एक के बाद एक सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है. लोकसभा में उसके हिंदी में दिए भाषण वायरल हो जाते हैं. लड़के का नाम है - गौरव गोगोई. असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे. जिन्हें एक बार फिर कांग्रेस ने लोकसभा में डिप्टी लीडर बनाया है.

दिल्ली में असम का बड़ा चेहरा

असम में आज कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा अगर कोई है तो वो निर्विवाद रूप से गौरव गोगोई का है. लेकिन गौरव पिछले 10 सालों से दिल्ली की राजनीति में ही सक्रिय हैं. राजनीति में आने के बाद लगातार दो बाद कालियाबोर से सांसद बने. कालियाबोर लोकसभा सीट गोगोई परिवार के लिए गांधी परिवार के अमेठी और रायबरेली की तरह थी. इस बार परिसीमन के कारण ये सीट खत्म हो गई. गौरव पहली बार अपने पिता के बिना चुनाव में उतरे थे. इसलिए पार्टी के साथ इस बार उनकी भी परीक्षा थी. वे जोरहाट से लोकसभा के लिए चुने गए. बीजेपी के मौजूदा सांसद तपन कुमार गोगोई को 1 लाख 44 हजार वोटों से हराया.

गौरव गोगोई अहोम समुदाय से आते हैं. उनके खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार भी इसी समुदाय के थे. इस समुदाय ने असम में 600 सालों तक (13वीं सदी से 19वीं सदी तक) शासन किया. इस समुदाय का राजनीतिक तौर पर असम में दबदबा नहीं है. लेकिन जोरहाट में इनकी संख्या ठीक-ठाक है.

इंडिया टुडे मैगजीन के एग्जिक्यूटिव एडिटर कौशिक डेका कहते हैं कि जोरहाट में जीत से उनका कद और बढ़ा है. वे बताते हैं, 

"जोरहाट जीतना उनके लिए आसान नहीं था. क्योंकि हिमंता ने उनके खिलाफ पूरी ताकत लगा दी थी. पूरे कैबिनेट को उतार दिया था. बीजेपी के मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों के बावजूद हिंदू बहुल लोकसभा में उन्होंने जीत दर्ज की. ये महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि अब राज्य में हिमंता के खिलाफ कोई चेहरा है तो वे गौरव ही हैं."

उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में जन्म

गौरव गोगोई का जब जन्म हुआ, तब उनके पिता लोकसभा सांसद थे. 4 सितंबर 1982. तरुण गोगोई राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर-पूर्व से कांग्रेस के बड़े नेता थे. करीब 5 दशक तक कांग्रेस की राजनीति की. 6 बार लोकसभा के सांसद रहे. इसलिए गौरव का बचपन दिल्ली में ही बीता. बाकी दुनिया की तरह उनके लिए दिल्ली नया शहर नहीं है. दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. फिर यहीं इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से 2004 में इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री ली. कुछ दिन एयरटेल में नौकरी की. लेकिन मन नहीं लगा. मन 'समाज सेवा' करने का था. 2005 में एयरटेल की नौकरी छोड़कर एक एनजीओ 'प्रवाह' के साथ काम करना शुरू किया.

'प्रवाह' के साथ काम करने के दौरान उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में काम किया था. गांव के लोगों के साथ रहते. जमीन पर सोते और खुद से खाना बनाते थे. इंडिया टुडे मैगजीन से बातचीत में गौरव ने कहा था, 

"मैंने ऑर्गेनिक फार्मिंग, वाटर मैनेजमेंट और सामाजिक विषमता जैसे विषयों पर कई एक्सपेरिमेंटल एजुकेशन प्रोग्राम्स बनाए थे. प्रवाह के साथ काम करते हुए महसूस हुआ कि हाशिये के लोगों के लिए राजनीति ही सबसे बड़ा मंच है. लेकिन मैं बिना तैयारी के राजनीति में नहीं आना चाहता था."

NGO के साथ काम करने के कुछ साल बाद गोगोई ने इसे भी छोड़ दिया. साल 2008 में मास्टर्स करने अमेरिका चले गए. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से 2010 में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री ली. इंडिया टुडे से ही बातचीत के दौरान गौरव ने बताया था कि अमेरिका में पढ़ाई के लिए जाने के दो मकसद थे. एक तो खुद को ट्रेन करना, और दूसरा ये समझना कि विकसित देशों में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स किस तरह से लागू किए जाते हैं.

'ना ना' करते राजनीति में कैसे आए?

अमेरिका से वापस आते ही गौरव जमीन पर सक्रिय हो गए. पार्टी जॉइन नहीं की थी. लेकिन 2011 में विधानसभा चुनाव होने थे. चुनाव के लिए रैलियों में खूब हिस्सा लिया था. आखिरकार पिता तरुण गोगोई के खूब मनाने के बाद मई 2012 में वे आधिकारिक रूप से कांग्रेस से जुड़ गए. तब तरुण गोगोई ने कहा था कि वे लंबे समय से गौरव को राजनीति में आने के लिए मना रहे थे. लेकिन वे मानते नहीं थे.

गौरव राजनीति में आए तो जाहिर है परिवारवाद का आरोप भी लगा. पार्टी में जुड़ने से पहले गौरव ने कहा था कि ये वंशवाद की राजनीति नहीं है. उन्होंने ग्राउंड जीरो से शुरू करने की बात कही थी. और कहा था कि अपने पिता से सीधे सत्ता लेने का कोई इरादा नहीं है. वे अपनी पहचान खुद बनाएंगे.

बेटे के पार्टी जॉइन करने पर तरुण गोगोई ने कहा था, 

"मेरा बेटा मुझसे कहता था कि उसे समाज सेवा करने में ज्यादा रुचि है. मैं उससे कहता था कि राजनीति में रहकर वो समाज सेवा कर सकता है."

हालांकि पिछले साल दी लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में गौरव ने बताया कि पिता ने कभी उन पर राजनीति में आने का दबाव नहीं बनाया. कभी माइक्रोमैनेज करने की जरूरत नहीं समझी.

पार्टी जॉइन करने के दो साल बाद यानी 2014 में लोकसभा चुनाव हुआ था. तब गौरव सिर्फ 31 साल के थे. कालियाबोर से पहला चुनाव लड़कर 93 हजार वोट से जीत गए. इस सीट से उनके पिता तरुण गोगोई और चाचा दीप गोगोई भी सांसद रह चुके थे. गौरव के लिए उनके चाचा दीप गोगोई ने ये सीट छोड़ दी थी.

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लोकसभा में भाषण देने के दौरान गौरव गोगोई. (फाइल फोटो)

चुनाव प्रचार में उनकी ब्रिटिश पत्नी एलिजाबेथ कोलेबॉर्न भी साथ जाती थीं. इसके लिए उन्होंने असमिया भाषा भी सीखी थीं. कुछ रैलियों में वो स्थानीय भाषा में लोगों से बात किया करती थीं. गौरव और एलिजाबेथ की मुलाकात 2010 में न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन्स की इंटर्नशिप के दौरान हुई थी. एलिजाबेथ लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से पढ़ाई कर चुकी हैं. 2013 में गौरव और एलिजाबेथ ने शादी कर ली. एलिजाबेथ खुद एक एनजीओ में काम करती हैं. दोनों के दो बच्चे हैं - कबीर और माया.

हिमंता बिस्वा सरमा नाराज हो गए!

गौरव के कांग्रेस में आने के बाद हिमंता बिस्वा सरमा नाराज हो गए थे. क्योंकि पार्टी में गौरव को तवज्जो ज्यादा मिलने लगी थी. इससे पहले, हिमंता ही तरुण गोगोई के सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट माने जाते थे. 2011 चुनाव में कांग्रेस की भारी जीत का श्रेय भी हिमंता को ही जाता है. लेकिन गौरव के आने के बाद तरुण गोगोई और हिमंता के बीच दिक्कतें शुरू हो गई थीं. लंबे समय तक चले विवाद के बाद जुलाई 2014 में हिमंता ने कांग्रेस छोड़ दी. फिर एक साल बाद अगस्त 2015 में बीजेपी में चले गए.

इधर, सांसदी के चार साल बाद ही गोगोई को 2018 में पश्चिम बंगाल का इनचार्ज बना दिया गया. कई और राज्यों में भी जिम्मेदारी दी गई. बाद में उन्हें लोकसभा का उप-नेता भी बनाया गया. कहा जाता है कि गोगोई परिवार के गांधी परिवार के करीबी होने का फायदा गौरव को भी मिला. तरुण गोगोई भी राजीव गांधी के काफी करीबी थे.

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अपने पिता के निधन के बाद गौरव गोगोई ने एक किस्सा सुनाया था. ये कि वे अपने पिता की आखिरी इच्छा के अनुरूप उनके विधानसभा क्षेत्र तिताबर का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे. जोरहाट जिले की इस विधानसभा सीट से तरुण गोगोई लगातार 20 साल विधायक रहे. 2021 में एक इंटरव्यू में गौरव ने कहा था कि यह उनके पिता की आखिरी इच्छाओं में से एक थी कि उनका उत्तराधिकारी परिवार से बाहर का, लेकिन क्षेत्र का मूल निवासी होना चाहिए.

राहुल गांधी के करीबी हैं!

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि गौरव गोगोई राहुल गांधी के खास नेताओं में हैं. पिछले कुछ सालों में दोनों और करीब आए हैं. क्योंकि जब कांग्रेस पार्टी कमजोर थी, तब गौरव लगातार मोदी सरकार पर खुलकर सवाल उठा रहे थे. और राहुल गांधी को ये पसंद है. पहली बार जब वे सदन में आए, तब कांग्रेस के सिर्फ 44 सांसद थे. इसलिए गौरव अपने भाषणों के कारण पार्टी नेतृत्व की नजर में आए. लेकिन सिर्फ यही नहीं है.

कौशिक डेका कहते हैं कि गौरव गोगोई अमेरिका से वापस आने के बाद से ही राहुल गांधी के साथ जुड़े हैं. वे बताते हैं, 

"उस दौरान ई-मेल पर दोनों की बातें हुआ करती थीं. बाहर से पढ़ने के कारण गौरव दिल्ली के इलीट सोशल सर्किल में फिट बैठते थे. जहां राहुल गांधी और दूसरे राजनीतिक परिवारों के युवा शामिल थे."

डेका कहते हैं कि चूंकि गौरव सोशल सेक्टर में काम कर चुके हैं. और राहुल गांधी का कई सारे मुद्दों पर समाजवादी नजरिया है. इसलिए दोनों की खूब बनती भी है.

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संसद परिसर में राहुल गांधी के साथ गौरव गोगोई. (फाइल फोटो)

राहुल गांधी से नजदीकियों पर गौरव ने खुद लल्लनटॉप को इंटरव्यू में बताया कि डिप्टी लीडर होने के नाते राहुल गांधी से बार-बार मिलने का मौका मिलता है. राहुल गांधी की छवि जो लोग आज देख रहे हैं, उसके बारे में उन्हें बहुत पहले पता चल गया था. इसलिए उन्हें राहुल पर भरोसा था.

संसद में भाषण और नाराज अमित शाह

पिछले साल गौरव गोगोई ने मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर केंद्र सरकार को खूब घेरा था. इससे मीडिया में भी उनकी जगह बनी. इससे भी चर्चा में आए कि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर पहला भाषण दिया. माना गया कि पूर्वोत्तर से होने के कारण कांग्रेस ने राहुल गांधी के बदले गौरव गोगोई को आगे किया. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन सवाल पूछे थे. 

1. आज तक पीएम नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए? 
2. हिंसा पर पीएम मोदी ने अब तक बयान क्यों नहीं दिया? 
3. प्रधानमंत्री ने मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया?

लोकसभा में चर्चा शुरू होने के दौरान तब के संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पूछ लिया था कि राहुल गांधी का नाम स्पीकर के पास भेजा गया था लेकिन उनका नाम वापस क्यों लिया गया? इस पर गोगोई ने जवाब दिया था, 

“स्पीकर के चेंबर में हुई बातों को सार्वजनिक करना ठीक नहीं है, क्या हम बताएं कि प्रधानमंत्री ने आपके दफ्तर (स्पीकर) के अंदर क्या-क्या बात की.”

इस पर अमित शाह और दूसरे मंत्री भड़क गए. शाह ने कहा कि ये गंभीर आरोप है, आपको बताना चाहिए पीएम और स्पीकर के बीच क्या बात हुई.

गौरव को एक बार फिर लोकसभा का डिप्टी लीडर बनाकर कांग्रेस ने भरोसा जताया है. इस पर कौशिक डेका कहते हैं कि राहुल गांधी की नजदीकियों का फायदा तो मिला ही. साथ में, गौरव गोगोई की अच्छी बात है कि वो ब्रीफ से आगे नहीं बढ़ते हैं. जितना उनको कहा जाता है उतना ही बोलते हैं.

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कांग्रेस के साथ करीब से काम करने वाले एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी को नार्थ-ईस्ट में अपनी स्थिति मजबूत करनी है. और असम इसके केंद्र में है. वे बताते हैं कि हिमंता बिस्वा सरमा के पार्टी छोड़ने के बाद राज्य में एक निर्वात बना. गौरव एक ऐसे परिवार से आते हैं जिसका असम में लंबे समय तक दबदबा रहा है. युवा हैं और मुखर भी हैं. इसलिए पार्टी उन पर लगातार भरोसा कर रही है.

असम की राजनीति को जानने वाले बताते हैं कि उनकी राष्ट्रीय राजनीति में पैठ अच्छी है. लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी वैसी पकड़ नहीं है जैसी उनके पिता की थी. राज्य में 2014 के बाद से कांग्रेस की पकड़ भी कमजोर होती चली गई. इसलिए निर्विवाद नेता होने के बाद भी राज्य में वे कितने स्वीकार्य होंगे, ये 2026 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बताएगा.

वीडियो: जमघट: संसद, अमित शाह, BJP और हिमंता बिस्वा सरमा पर गौरव गोगोई ने क्या खुलासे किए?