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G20 सम्मेलन से भारत को क्या हासिल हुआ? क्या चीन को टक्कर देने का प्लान सफल हो पाएगा?

नई दिल्ली डिक्लेरेशन को तैयार करने में 200 घंटे की बातचीत, 300 से ज्यादा मीटिंग, 15 ड्राफ्ट लगे हैं.

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विशेषज्ञों के मुताबिक G20 सम्मेलन से दुनिया के मंच पर भारत की स्थिति मजबूत हुई है.

जी20 आयोजन का समापन हो चुका है. प्रधानमंत्रियों-राष्ट्रपतियों के हवाई जहाज अपनी-अपनी यात्राओं की उड़ान उड़ चुके हैं. हमारे देश से जाते मेहमान बहुत सारी बातें छोड़ गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर में एक रिव्यू मीटिंग करवाने का आह्वान किया है, ये मीटिंग इन्हीं जी20 देशों के बीच होगी, ऐसी प्रस्तावना है. देश कितने सहमत होंगे? अभी नहीं पता. साथ ही जी20 की मीटिंग से अलग प्रधानमंत्री ने देशों के प्रतिनिधियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता की. Bilateral meeting. इन मीटिंग का क्या फलसफा रहा? मीटिंग से लौटकर नेताओं ने क्या बयान दिए?

जब जी20 समिट का शिराजा बिखर चुका है. नेता घर लौट चुके हैं. कुछ लौट रहे हैं. तो बात हो रही है कि बात क्या हुई है? सबसे पहले हम आपको छोटे में जी20 के टेकअवे क्या थे? किन-किन जरूरी बातों को हमें समझना होगा ताकि इस पूरी कवायद का निष्कर्ष निकाल सकें.

जब जी20 मीटिंग मोरक्को भूकंप में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करने से शुरु हुई. फिर एक प्रस्ताव आया, जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने को लेकर. सहमति आई और अफ्रीकन यूनियन के शामिल होने का रास्ता खुल गया.

फिर 10 सितंबर की रात जब समिट की समाप्ति की आधिकारिक घोषणा हुई, तो एक कीवर्ड प्रकाश में आया - नई दिल्ली डेक्लरैशन. 37 पन्नों का घोषणा-पत्र. इसे सभी की सहमति से तैयार किया गया है. लेकिन इसको समझने से पहले कुछ combination समझ लीजिए -
- अमरीका और अमरीका का समर्थन करने वाले सभी देश रूस और चीन के विरोधी हैं.
- भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है.
- सऊदी अरब और अमरीका के संबंध थोड़े खट्टे हुए हैं, सऊदी चीन के थोड़ा नज़दीक पहुंच गया है.
अब आया डेक्लरैशन. भारत के शेरपा अमिताभ कांत का बयान भी आया, उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि जो घोषणा-पत्र सामने आया, उसका सबसे कठिन हिस्सा था रूस-यूक्रेन युद्ध. 200 घंटे की बातचीत, 300 से ज्यादा मीटिंग, 15 ड्राफ्ट, तब जाकर जी20 का घोषणापत्र बनाया जा सका.

क्या है इसमें?

- साइबर क्राइम को लेकर vigilance पर सहमति बनी, सख्त टिप्पणी की गई
- बायो फ्यूल अलायंस बनाया जाएगा। इसके फाउंडिंग मेंबर भारत, अमेरिका और ब्राजील होंगे
- क्रिप्टोकरेंसी पर ग्लोबल पॉलिसी बनाई जाएगी
- कर्ज को लेकर बेहतर व्यवस्था बनाने पर भारत ने कॉमन फ्रेमवर्क बनवाने की बात पर जोर दिया है
- फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) पर टिप्पणी की गई, विश्वव्यापी स्तर पर प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करने की बात हुई
- डिजिटल इकोनॉमी और मल्टी-लेटरल बैंकिंग संस्थाओं में सुधार पर भी सहमति बनी
- महिला सशक्तिकरण और नेतृत्व में उनकी भागीदारी पर सहमति बनी

आपको लगेगा कि ठीक तो है. लेकिन कुछ और मुद्दे हैं जो दुनिया को चलाते हैं. जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध. इस पर सभी देशों ने निंदा की. शांति की अपील भी की. ये युद्ध का दौर नहीं - ऐसे रस्मी वाक्य भी कहे गए. लेकिन रूस का कहीं नाम ही नहीं लिया गया. मतलब दो लोगों की लड़ाई की बात हो, एक का नाम लिया जाए, एक का नाम न लिया जाए. ऐसा कुछ हुआ. इस पर यूक्रेन ने आपत्ति जताई है.

इसके अलावा एक और बात हुई. ये बात समिट से इतर है. ये है इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEE EC) पर सहमति. क्या है ये? इसमें भारत, अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब, फ़्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं. इसके तहत भारत से यूरोप के रूट को समंदर और रेल से जोड़ने की योजना है.

भारत से यूएई, फिर वहां से सऊदी अरब, जॉर्डन, इज़रायल, ग्रीस के जरिए यूरोप में एंट्री. ट्रेन, रोड, पानी का जहाज सब चलेगा. व्यापार बढ़ेगा. अनुमान है कि ये प्रोजेक्ट चल निकाला तो भारत यूरोप के बीच बेहद कम समय में सामान लाना-ले जाना हो सकेगा, पैसा बचेगा, सो अलग.

ध्यान रहे कि ये प्रोजेक्ट चीन की काट के तौर पर देखा जा रहा है.चीन ने भी दरअसल वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट चलाया हुआ है. कई देशों से ऐसे ही कई माध्यमों से व्यापार करने का काम. अब ये हो पाएगा या नहीं, वो प्रोजेक्ट के ऑपरेशनल होने के बाद पता चलेगा.

इसके साथ ही ये भी बताना जरूरी है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 की एक रिव्यू मीटिंग करने के लिए कहा है. उन्होंने सभी सदस्यों के सामने प्रस्ताव रखा है कि नवंबर के महीने में सभी सदस्य एक वर्चुअल मीटिंग का हिस्सा बनें और अभी किए जा रहे वादों-दावों पर कितना सफल साबित हो रहे हैं और तैयारी कितनी रंग लाई, इस पर बात की जा सके. एक ये बात जानने की है कि जी20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी जो भारत को मिली है, उसकी मियाद नवंबर महीने तक की है. तो इसी कन्डिशन का लाभ उठाते हुए पीएम मोदी ने नवंबर में इस रिव्यू मीटिंग की कॉल दी. ये साफ करना जरूरी है कि ये बस एक कॉल है. इसकी फॉर्मल तैयारी की जानी है, दुनियाभर के नेताओं से डेट ली जानी है, बहुत तैयारियां होंगी, तो जाकर ये मीटिंग संभव होगी.

हमने पिछले हफ्ते के लल्लनटॉप शो में बताया था कि रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्ष नहीं आ रहे हैं. मीटिंग फिर भी संपन्न हो गई, ऐसे में ये समझना जरूरी है कि क्या पुतिन और शी जिनपिंग के न होने से मीटिंग पर कोई असर पड़ा? कोई पॉवरशो फीका पड़ा? क्योंकि अगर चलताऊ भाषा में महाशक्ति कहकर पुकारना हो तो अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ही पहुंचे थे.

जो बाइडन के साथ मीटिंग में PM मोदी की जो बात हुई, उसका ज़िक्र व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर मौजूद भारत-अमरीका ज्वाइंट स्टेटमेंट में किया गया. कहा गया कि दोनों नेताओं ने दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ करने के लिए बात की. दोनों देशों के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि आज़ादी, लोकतंत्र, मानवाधिकार और नागरिकों को समान अवसर दोनों देशों की सफलता के लिए बेहद जरूरी हैं. ये बयान देखकर ऐसा लगता है कि दोनों नेताओं ने एक कॉमन पेज पर बात की. लेकिन जब बाइडन वियतनाम गए तो उन्होंने प्रेस से बात की. और उन्होंने बताया कि उन्होंने पीएम मोदी से फ्री मीडिया और मानवाधिकारों के सम्मान की बात की. अब ऐसे देखें तो ये बात इसलिए जरूरी हो जाती है कि इस साल पीएम मोदी भी जून के महीने में अमरीका गए थे, उस समय भी कई संगठनों ने भारत में कथित तौर पर गिरते प्रेस फ्रीडम का मुद्दा उठाया. तब एक पत्रकार और पीएम मोदी के बीच की बात भी वायरल हुई थी.

फिर जी20 आया. अमरीकी राष्ट्रपति को भारत आना था. तो जब मोदी और बाइडन के बीच बात होनी थी, उस समय और ज्यादा मीडिया की उपस्थिति की डिमांड अमरीकी सरकार की ओर से रखी गई. साथ ही ये डिमांड भी रखी गई कि जब मोदी और बाइडन की मीटिंग प्रधानमंत्री आवास पर हो, तो वहां भी मीडिया वाले हों. आउटलुक में छपी खबर बताती है कि मोदी सरकार की ओर से इसे मना कर दिया गया.CNN से बात करते हुए US के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलीवन ने कहा कि बाइडन सरकार ने मीडिया से इनफ़ॉर्मल मीटिंग का भी प्रस्ताव रखा था, जिसे प्रेस पूल स्प्रे कहा जाता है. प्रेस पूल स्प्रे में पत्रकार बिना माइक कैमरा के नेताओं से मिलते हैं, अपने सवाल रखते हैं, नेता कुछ सवाल अपनी मर्जी से चुनकर जवाब दे सकते हैं. मतलब इसमें पत्रकारों से ज्यादा मर्जी नेताओं की चलती है. इस डिमांड को भी मोदी सरकार ने नहीं माना, ऐसा जेल सलीवन ने कहा. फिर बाइडन वियतनाम गए तो उनका बयान आया. फिर ये संदेह होना लाज़िम है कि जो साझा स्टेटमेंट मीडिया के सामने आया, सरकारी वेबसाइट पर अपलोड किया गया, उसे टाइप करने में चूक हुई या कुछ बातें आधिकारिक स्टेटमेंट में छुपा ली गईं. और गलती हुई तो किसकी ओर से?

लेकिन जी20 में जिस एक डायलॉग ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरी, वो था भारत और कनाडा का संवाद. कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो और भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी के बीच मीटिंग हुई. इस मीटिंग में भारत ने अपना स्टेटमेंट जारी किया. इस स्टेटमेंट में चरमपंथियों द्वारा कनाडा में की जा रही है एंटी-इंडिया कार्रवाईयों के प्रति चिंता व्यक्त की गई. आसान करके बताते हैं. कनाडा में बीते कई मौकों पर खालिस्तान समर्थक सामने आए, खालिस्तान की मांग की. कुछ मौकों पर भारत का झंडा भी जलाया गया, ऐसी भी खबरें सामने आईं. PMO ने अपने स्टेटमेंट में कहा-

"ये तत्व अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं, भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं, राजनयिक परिसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और कनाडा में भारतीय समुदाय और उनके पूजा स्थलों को धमकी दे रहे हैं. संगठित अपराध, ड्रग सिंडिकेट और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों का आपस में सहयोग करना जरूरी है."

सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए आपसी सम्मान और विश्वास आवश्यक है.

इस पर आया जस्टिन ट्रूडो का जवाब. पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट, अभिव्यक्ति और विचारों का समर्थन करेगा. साथ में ये भी कहा कि कनाडा हिंसा और नफरत को रोकने के सभी प्रयास करेगा. और साथ ही ये भी कहा कि कुछ लोगों के एक्शन कनाडा में बसी एक पूरी कम्यूनिटी या पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.

ये सामान्य ज्ञान की बात है कि कनाडा में सिख समुदाय की एक बड़ी जनसंख्या रह रही है. रिपोर्ट्स की मानें तो इस समुदाय का एक छोटा-सा हिस्सा खालिस्तान के रूप में एक अलग देश की मांग कर रहा है. ये हो तो वैसे रहा है बीते लंबे समय से, लेकिन हाल के दिनों में ये विवाद बड़े होने लगे हैं. हिंसक प्रदर्शन देखे जा रहे हैं. ध्यान रहे ट्रूडो और मोदी का संवाद उस समय सामने आया है, जब कुछ दिनों पहले ही कनाडा और भारत ने एक ट्रेड डील को लेकर हो रही बातचीत को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

रॉयटर्स की खबर के मुताबिक,   1 सितंबर 2023 को कनाडा ने अनाउन्स किया कि वो भारत से ट्रेड को लेकर बातचीत को पॉज़ कर रहे हैं. ये बातचीत कब पॉज़ हुई? जब तीन महीने पहले ही दोनों देशों में एक ट्रेड डील वास्ते सहमति हुई थी. फिर ट्रूडो इंडिया आते हैं, और G20 में जो होता है, वो भी हमने आपको बता ही दिया.

इसके अलावा इतना बड़ा हमने आयोजन देखा, और भी कुछ छोटी-बड़ी मीटिंग हो रही हैं, होंगी भी, ऐसे में भारत किस राह पर है? एक होस्ट और एक देश के तौर पर हमें कितना कूटनीतिक लाभ हुआ? कितना राजनीतिक लाभ हुआ? क्योंकि जानकार ये तो मानते हैं कि भारत की स्थिति थोड़ी मजबूत हुई है.

और हुई राजनीति. सरकार ने डिनर पर मुख्यमंत्रियों को बुलाया. बवाल मचा नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के नाम पर. ये INDIA गुट में मची हलचल है. ममता बनर्जी ने शिरकत की तो अधीर रंजन चौधरी ने हमला किया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी डिनर में शामिल होने के लिए आनन फानन में दिल्ली पहुंचीं. अगर वह डिनर में शामिल नहीं होती तो कुछ नहीं होता. आसमान नहीं गिरता. महाभारत या कुरान अशुद्ध नहीं हो जाते. उन्होंने कहा कि नेता विपक्ष मलिकार्जुन खड़गे को नहीं बुलाया गया है. यह कैसा अट्रैक्शन था कि वो पहले दिल्ली पहुंच गईं. खाने की मेज पर ममता योगी और अमित शाह के बगल में थीं. नीतीश कुमार पर आया प्रशांत किशोर का रिएक्शन. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार का अपना राजनीति करने का तरीका है. एक दरवाजे को खोलते हैं और पीछे से खिड़की और रोशनदान दोनों को खोलकर रखते हैं. किसकी कब जरूरत पड़ जाए.

राजनीति का एक रूप शशि थरूर ने भी पेश किया. अपने ट्वीट में भारत के शेरपा अमिताभ कांत की तैयारियों की तारीफ की. कहा कि जब आपने IAS सेवा का चुनाव किया तो देश को एक काबिल IFS अफसर का नुकसान हुआ. लेकिन सरकार यही रवैया अपनी घरेलू समस्याओं को डील करने के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल करती है? उन्होंने नेता विपक्ष और किसी भी विपक्ष के सांसद को जी20 में न बुलाए जाने का मुद्दा उठाया. और कहा कि कोई भी लोकतंत्र अपने सहयोगी सांसदों के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ऐसा बर्ताव नहीं करता है.