The Lallantop

फ्रांस चुनाव: धुर-दक्षिणपंथी कर रहे थे सरकार बनाने की तैयारी, वामपंथियों ने एक हफ्ते में ऐसे पलटी कहानी

France Elections Results 2024: फ्रांस से संसदीय चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में वामपंथी गठबंधन ने आश्चर्यजनक जीत हासिल की है. ओपनियन पोल्स में धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन की जीत का अनुमान लगाया गया था. एक हफ्ते पहले हुए प्रथम चरण के चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरा था.

post-main-image
France Elections 2024 में जीत के बाद लोगों को संबोधित करते वामपंथी गठबंधन के नेता. (फोटो: AP)

इतवार का दिन. तारीख 7 जुलाई. सूरज ढल रहा था. फ्रांस की राजधानी पेरिस की जिन सड़कों पर चहल-पहल रहती थी, वहां एक मुर्दा-शांति छाई हुई थी. दुकानों के शटर्स गिराए जा रहे थे. अलग-अलग इलाकों में पुलिस और सुरक्षाबलों के दस्ते तैनात किए जा रहे थे. आशंका थी कि फसाद हो सकता है. एक 28 साल का नेता प्रधानमंत्री बनने की तैयारी कर रहा था. उसने विजय भाषण भी तैयार कर लिया था. फ्रांस में संसदीय चुनाव के परिणाम (France Elections 2024 Results) आने वाले थे.

फिर कुछ घंटे बीते. उस 28 साल के धुर-दक्षिणपंथी नेता का विजय भाषण धरा का धरा रह गया. एग्जिट पोल्स के प्रोजेक्शन में वामपंथी गठबंधन को आगे बताया गया. रिजल्ट भी इन्हीं प्रोजेक्शन के अनुरूप आया. फ्रांस में वामपंथी गठबंधन को आश्चर्यजनक जीत हासिल हुई. हफ्ते भर पहले ही उस 28 साल के नेता की पार्टी इन चुनावों के पहले चरण में देश के भीतर सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी थी. और इसके भी तीन हफ्ते पहले हुए यूरोपीय संसद के चुनाव में भी इस पार्टी ने सबको पीछे छोड़ दिया था. इस धुर-दक्षिणपंथी पार्टी का नाम है- नेशनल रैली. तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिस नेशनल रैली को ओपिनियन पोल्स में फ्रांस में सरकार बनाने का सबसे बड़ा दावेदार बताया जा रहा था, वो पिछड़कर तीसरे नंबर पर आ गई? एक हफ्ते के अंदर उसके विपक्षियों ने ऐसे क्या समीकरण बनाए? और अब आगे की राह क्या है?

आगे बढ़ने से पहले फ्रांस के संसदीय चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के परिणाम जान लेते हैं. फ्रांस की संसद में कुल 577 सीटें हैं. बहुमत के लिए 289 सीटों की जरूरत होती है. इन 577 सीटों में से-

वामपंथी गठबंधन को मिलीं सीटें- 182

मध्यमार्गी गठबंधन को मिलीं सीटें- 168

धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन को मिलीं सीटें- 143

मतलब, इन चुनावों में किसी भी गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. हालांकि, वामपंथी गठबंधन के इस प्रदर्शन पर ना केवल फ्रांस के लोगों का एक बड़ा हिस्सा खुशियां मना रहा है, बल्कि दुनियाभर में वामपंथ की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल और प्रमुख नेता भी खुश हैं. खुशी इस बात की भी है कि इस गठबंधन ने केवल एक हफ्ते के समय में एक नई राजनीतिक इबारत लिख दी. वो भी उस देश में जो यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. वो भी उस यूरोप में जहां बीते कुछ सालों में धुर-दक्षिणपंथ का बहुत तेज उभार हुआ है जिसने कई देशों में या तो अपने दम पर सरकारें बना ली हैं या फिर सत्ता में हिस्सेदारी हासिल कर ली है.

France Elections 2024
एग्जिट पोल अनुमानों के बाद फ्रांस में जश्न मनाते लोग. (फोटो: AP)

हालांकि, फ्रांस में धुर-दक्षिणपंथ को रोकने का श्रेय केवल वामपंथ को नहीं जाता है. इसमें एक बड़ा हिस्सा मध्यमार्गी गठबंधन का भी है. हिस्सा सिविल सोसाइटी के उन लोगों का भी है, जो लगातार डटे रहे. इस पूरी कहानी को समझने के लिए पहले हम दो तारीखों को आए दो चुनाव परिणामों की बात कर लेते हैं.

फ्रांस में धुर-दक्षिणपंथ का प्रभुत्व

30 जून को फ्रांस के संसदीय चुनाव 2024 के पहले चरण के परिणाम आए थे. धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. पार्टी ने अकेले ही लगभग 30 फीसदी वोट हासिल कर लिए थे. उसने पहले ही राउंड में 37 सीटें जीत ली थीं. उसके नेतृत्व वाले गठबंधन को लगभग 34 फीसदी वोट मिले थे. वहीं वामपंथी गठबंधन न्यू पॉपुलर फ्रंट (NPF) लगभग 29 फीसदी वोट और 32 सीटें लाकर दूसरे नंबर पर रहा था. इधर, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का सत्ताधारी मध्यमार्गी गठबंधन लगभग 22 फीसदी वोट और 2 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर आ गया था.

अब चलते हैं 9 जून की तारीख पर. इस दिन यूरोपीय संसद के चुनाव नतीजे आए थे. इन चुनावों में भी नेशनल रैली फ्रांस के भीतर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. पार्टी ने 30 सीटें हासिल कीं. वहीं राष्ट्रपति मैक्रों का गठबंधन 13 सीटों पर सिमट गया. इन्हीं नतीजों को देखते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति ने देश में समय से पहले संसदीय चुनाव कराने की घोषणा कर दी. सभी दल और गठबंधन तैयारियों में जुट गए.

इमैनुएल मैक्रों ने एक तरह से 9 जून को फ्रांस के लोगों से सवाल पूछा कि क्या वो चाहते हैं कि अब धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन देश की सरकार चलाए? 7 जुलाई को इसका जवाब 'ना' में मिला. हालांकि, 30 जून को आए परिणामों ने धुर-दक्षिणपंथ विरोधियों को चिंता में डाल दिया था. इसी के चलते कुछ बड़े कदम उठाए गए और धुर-दक्षिणपंथ को सत्ता तक पहुंचने से रोका गया. आगे इसी कहानी के बारे में बताएंगे.

ये भी पढ़ें- ब्रिटेन चुनाव: कीर स्टार्मर के 'शोर' के बीच नाइजल फराज ने लिखी ऋषि सुनक की हार की 'असली' कहानी

रिपब्लिकन फ्रंट

धुर-दक्षिणपंथ को रोकने की ये कहानी शुरू हो गई 30 जून को पहले चरण के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही. एक दूसरे के विरोधी रहे वामपंथी और मध्यमार्गी दलों ने गठजोड़ बनाने के प्रयास तेज कर दिए. यह गठजोड़ बना. इसे नाम दिया गया- रिपब्लिकन फ्रंट. फ्रांस की राजनीति में इस तरह के गठजोड़ पहले भी बन चुके थे. इसलिए रिपब्लिकन फ्रंट को उम्मीद थी कि उनके गठजोड़ को सफलता मिलेगी.

इस गठजोड़ ने कैसे सफलता पाई, इसे समझने के लिए फ्रांस में संसदीय चुनाव होते कैसे हैं, ये जानना जरूरी है. फ्रांस में संसदीय चुनाव दो चरणों में होते हैं. पहले चरण में अगर किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा मिल जाते हैं तो उसका चुनाव सीधे हो जाता है. इस बार के पहले चरण में 76 उम्मीदवारों का चुनाव इसी तरह हुआ.

वहीं, पहले चरण में अगर किसी उम्मीदवार को 50 फीसदी से ज्यादा मत नहीं मिलते हैं तो फिर उस सीट के उम्मीदवार दूसरे चरण में पहुंचते हैं. यहां पर वो सभी उम्मीदवार चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं, जिन्हें पहले चरण में 12.5 फीसदी से ज्यादा मत हासिल हुए हैं. ऐसे में दूसरे चरण में कई सीटों पर कई बार दो से ज्यादा उम्मीदवार भी चुनाव लड़ते हुए नजर आते हैं. दूसरे चरण में इन उम्मीदवारों में से जिस किसी को भी सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे संसद के लिए चुन लिया जाता है.

तो वामपंथी और मध्यमार्गी दलों ने इसी दूसरे चरण के लिए रणनीति बनाई थी. इस गठजोड़ के नेताओं ने कहा कि नेशनल रैली लोगों में भेद करती है. यह फ्रांसीसी क्रांति और देश के संविधान के बराबरी वाले सिद्धांत के खिलाफ है. इन नेताओं ने नेशनल रैली को लोगों के बीच इस तरह से पेश किया कि यह उन मूल्यों और सिद्धातों के खिलाफ है, जिनकी बुनियाद पर फ्रांस का निर्माण हुआ है. चुनाव प्रचार के दौरान मध्यमार्गी गठबंधन के एक प्रमुख नेता और देश के प्रधानमंत्री गैब्रियल अटाल ने कहा,

"हमें नेशनल रैली को बहुमत तक पहुंचने से रोकने की जरूरत है. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो मैं ये कह सकता हूं कि यह हमारे देश के लिए एक त्रासदी होगी."

इसी तरह धुर-वामपंथी दल LFI के एक प्रमुख नेता फ्रांसोइस रुफिन ने कहा,

"आज हमारा बस एक ही उद्देश्य है. नेशनल रैली को पूर्ण बहुमत से रोकना."

इधर, सिविल सोसाइटी के लोगों ने भी नेशनल रैली के खिलाफ मोर्चा खोला. कहा कि ये पार्टी प्रवासियों के खिलाफ नफरत फैलाती है. इसके नेता मुसलमानों और यहूदियों के खिलाफ हेट स्पीच देते हैं, नस्लवादी भाषण देते हैं. 

रणनीतिक मतदान

दरअसल, नेशनल रैली के खिलाफ इस तरह के आरोप लगते रहे हैं. इस चुनाव प्रचार के दौरान भी उसके नेताओं पर इस तरह के आरोप लगे. कुछ उम्मीदवारों को एडॉल्फ हिटलर का समर्थन करते हुए देखा-सुना गया. 1972 में जब यह पार्टी नेशनल फ्रंट के नाम से बनी थी, तब इसकी सदस्य के रूप में कई भूतपूर्व नाजी कमांडर्स को शामिल किया गया था. हालांकि, बीते कुछ सालों में पार्टी ने अपनी छवि को सुधारने के प्रयास किए हैं.

वामपंथी और मध्यमार्गी गठबंधनों ने पहले चरण का चुनाव अलग-अलग लड़ा था. वामपंथी गठबंधन में LFI के साथ-साथ फ्रांस की सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल हैं. फ्रांस की ग्रीन पार्टी भी इस गठबंधन का हिस्सा है. इधर, मध्यमार्गी गठबंधन में फ्रांस की मध्यमार्गी और दक्षिणपंथी-मध्यमार्गी पार्टियां शामिल हैं. इन दोनों गठबंधनों ने ऐतिहासिक तौर पर नीतिगत स्तर पर एक दूसरे का तीखा विरोध किया है. साल 2017 में इमैनुएल मैक्रों के राष्ट्रपति बनने के बाद से ये तीखा विरोध जारी रहा. हालांकि, इस संसदीय चुनाव के पहले चरण के बाद यह तय हुआ कि इन विरोधों को किनारे रखा जाए और धुर-दक्षिणपंथ का विरोध किया जाए.

क्योंकि पहले चरण में एक दूसरे के विरोध में चुनाव लड़ने के चलते वामपंथी मध्यमार्गी गठबंधनों के उम्मीदवार कई सीटों पर दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे. इन उम्मीदवारों ने धुर-दक्षिणपंथी विरोधी वोट बांट दिया. ऐसे में तय हुआ कि दूसरे चरण में बची 501 सीटों पर उस गठबंधन के उम्मीदवार को ही चुनाव में उतारा जाएगा, जिसके नेशनल रैली के उम्मीदवार के खिलाफ जीतने की संभावना सबसे अधिक हो.

France Elections 2024
फ्रांस की राजनीति के लिए अगले कुछ महीने उथल-पुथल भरे होने वाले हैं. (फोटो: AP)

दूसरे चरण के चुनाव से पहले कुल 221 उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया. इनमें से 83 उम्मीदवार मध्यमार्गी गठबंधन के थे और 132 वामपंथी गठबंधन के. दोनों गठबंधनों ने नेशनल रैली विरोधी वोट को एक-दूसरे को ट्रांसफर कराने का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया. मसलन, अगर पहले चरण में किसी सीट पर नेशनल रैली के उम्मीदवार को 40 फीसदी वोट मिले और वामपंथी एवं मध्यमार्गी गठबंधन के उम्मीदवारों को 35 और 25 फीसदी वोट, तो दूसरे चरण में मध्यमार्गी उम्मीदवार रेस से हट गया और अपने 25 फीसदी वोट वामपंथी उम्मीदवार को ट्रांसफर करने की अपील कर दी.

इस रणनीतिक गठबंधन का ही रिजल्ट 7 जून को सामने आया. पहले चरण में जिस धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन को लगभग 34 फीसदी वोट मिले थे, वो लगभग 25 फीसदी पर आ गया. वहीं वामपंथी गठबंधन का मत प्रतिशत 29 से बढ़कर लगभग 33 हो गया. इधर, राष्ट्रपति मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन को भी फायदा हुआ. पहले राउंड में इस गठबंधन को लगभग 22 फीसदी वोट मिले थे, जो दूसरे राउंड में बढ़कर लगभग 28 प्रतिशत हो गए.

तो ये थी पूरी कहानी. फिलहाल फ्रांस के वामपंथी और मध्यमार्गी गठबंधनों ने धुर-दक्षिणपंथ को सत्ता तक पहुंचने से रोक लिया है. लेकिन अब उनके सामने एक नई चुनौती खड़ी है.

जैसा कि हम बता चुके हैं कि ये गठबंधन एक दूसरे का तीखा विरोध करते रहे हैं. नीतिगत मामलों पर इनकी सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे में, विशेषज्ञों का कहना है कि इनका मिलकर सरकार चलाना बहुत मुश्किल होगा. फिलहाल इन दोनों गठबंधनों के नेता बयानबाजी कर रहे हैं. कुछ बयानबाजियां ऐसी हैं जिनसे दूरी बढ़ सकती है, तो कुछ एक-दूसरे के साथ आने का आह्वान कर रही हैं. इस बीच बात ये भी चल रही है कि ऐसी भी सरकार बनाई जा सकती है जो टेक्नोक्रैटिक हो, जिसमें इन गठबंधनों के खांटी नेता ना शामिल हों. जो भी हो, फ्रांस की राजनीति के लिए अगले कुछ महीने बहुत उथल-पुथल भरे होने वाले हैं.

वीडियो: दुनियादारी: फ्रांस के राष्ट्रपति इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर क्यों हुए? इमैनुएल मैक्रॉन को किसका डर?