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एक लोक गायक का गला घोंटकर हत्या करते वक़्त आपको शर्म नहीं आई?

जैसलमेर में एक लोक गायक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वो अपने गाने से एक तांत्रिक पर देवी सवार नहीं करवा पाया.

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विस्थापित मांगणियार परिवार दो जून की रोटी के लिए हाथ फैलाए खड़े हैं और जैसलमेर नगर परिषद् हाथ खड़े कर चुका है.
45 साल की केंका के लिए यह जिंदगी का सबसे मुश्किल समय है. हिसाब से उन्हें अभी अपने घर में होना चाहिए था, लेकिन वो रात गुजारने के लिए छत की तलाश में दर -ब-दर भटक रही हैं. उनके साथ उनके कुनबे के 108 और लोग भी हैं. इनमे बूढ़े, बच्चे और औरतें शामिल हैं. वो कभी जिला कलेक्टर के पास जा रही हैं तो कभी एसपी के पास.
राजस्थान के जैसलमेर का गांव दांतल. यहां की रवायत के मुताबिक अपने शौहर की मौत के बाद कोई औरत कम से कम एक महीने तक अपने घर से बाहर नहीं निकलती है. हालातों के चलते मांगणियार समुदाय से आने वाली केंका इस रवायत को तोड़ रही हैं. सितंबर की 27 तारीख को उनके पति आमद खान की उनके गांव के ही लोगों ने हत्या कर दी थी. हमें आमद की हत्या का जो ब्यौरा स्थानीय लोगों से बातचीत के जरिए हासिल हुआ वो कुछ इस तरह है-
गाना गाते हुए आमद खान (बाएं). हमेशा के लिए शांत हो चुके आमद (दाएं)
गाना गाते हुए आमद खान (बाएं). हमेशा के लिए शांत हो चुके आमद (दाएं)

27 तारीख को नवरात्रि की सप्तमी का दिन था. दांतल गांव के आइनाथ माता मंदिर से आमद खान के लिए बुलावा आया. लंगा-मांगणियार बिरादरी के ज्यादातर लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं. लेकिन धर्म कभी भी उनकी कला के आड़े नहीं आता है. ये लोग हर मंदिर में अपने भजन गाते देखे जा सकते हैं. मान्यता यह भी है कि जब तक कोई मांगणियार गाना नहीं गाएगा, देवता नहीं आएंगे.
आमद खां को पहुंचने में थोड़ी देर हो गई. धर्म इनकी कला के प्रदर्शन में आड़े नहीं आता, जाति आती है. मांगणियार घुमंतू जनजाति है. ये लोग जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर हैं. ये लोग देवताओं को खुश करने के लिए सारी रात अपना गला फाड़ते रहेंगे लेकिन मंदिर से इन्हें एक लोटा पानी नसीब नहीं हो सकता.
रैन बसेरे में रह रहे मांगणियार समुदाय के लोग
रैन बसेरे में रह रहे मांगणियार समुदाय के लोग

आमद ने बुलावे की तामील में देरी कर दी थी. इधर शराब के नशे में धुत्त स्थानीय भोपा (एक किस्म के तांत्रिक, जिन पर देवी सवार होती हैं) रमेश जांगीड़ आमद का इंतजार कर रहा था. आमद के गाना गाए बिना देवी उस पर सवार नहीं हो सकती थीं. रमेश को यह इंतजार नागवार गुजर रहा था.
आमद वहां पहुंचे और कहासुनी शुरू हो गई. मामला जैसे-तैसे शांत किया गया. आमद ने गाना शुरू किया. रमेश शराब के नशे में था और उसे इस गाने में ख़ास मजा नहीं आ रहा था. वो उस ट्रांस में नहीं जा पा रहा था जिसकी उसे तलाश थी. उसने आमद से लड़ाई करनी शुरू कर दी. उसने आमद से कहा कि वो ठीक से भजन नहीं गा रहा है. इस वजह से देवी मां उस पर सवार नहीं हो रही हैं.
एक आम मांगणियार बच्चे की तरह आमद ने भी पालने से ही गाना सीखना शुरू कर दिया होगा. उन्होंने जवाब दिया-
"मैं यहां अकेला हूं और मुझे ऐसा ही गाना आता है."
यह बात रमेश के लिए सहन करनी मुश्किल थी. वो स्थानीय समुदाय में भोपा था. उसकी एक सामाजिक हैसियत थी. एक मिरासी उससे ऐसे बात नहीं कर सकता. उसने आमद को भद्दी-भद्दी गलियां देनी शुरू कर दी. इसके बाद आमद वहां से उठ कर घर के लिए चल दिए.
आमद मंदिर से कुछ ही दूर पहुंचे होंगे कि रमेश ने अपने कुछ साथियों के साथ उन्हें घेर लिया. वो लोग आमद को पीटने लगे. आमद का हारमोनियम जमीन पर गिर गया. गांव के ही दूसरे लोगों ने बीच-बचाव किया और आमद की जान बच पाई.
गांव छोड़ता आमद का परिवार
गांव छोड़ता आमद का परिवार

लुटे-पिटे आमद अपने हारमोनियम को वहीं छोड़ कर घर की तरफ बढ़ रहे थे. वो कुछ सौ मीटर आगे बढ़े थे कि उन्हें अपने पीछे से एक स्कॉर्पियो आती हुई दिखाई दी. इसमें रमेश के अलावा उसके दो भाई श्याम और ताराचंद भी सवार थे. उन्होंने आमद को गाड़ी में घसीट लिया. उन्होंने आमद से कहा कि कम से कम दो गाने ही गा दे. लोग मंदिर में बैठे इंतजार कर रहे हैं. अगर भोपे पर देवी नहीं आएंगी तो लोग निराश हो जाएंगे.
आमद काफी समझाइश के बाद मंदिर लौटे. रमेश भोपा तनाव में आ चुका था. यह उसकी प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था. उसने आमद से राग परचल गाने के लिए कहा. यह राग तेज रिद्म वाली राग है. सामान्य तौर पर भोपा ट्रांस में जाने के लिए नशे में धुत्त होकर नाचता है. इस राग को बजाने के लिए हारमोनियम के अलावा ढोलक और खड़ताल जैसे वाद्ययंत्र चाहिए. वहां आमद अकेले थे. उन्होंने अपनी असमर्थता जाहिर की.
कुछ और भजन गाने पर भी जब काम नहीं बना तो भोपा और उसके रिश्तेदारों ने आमद को फिर से पीटना शुरू कर दिया. धार्मिक मान्यताओं की वजह से लोग भोपे के किसी काम में टांग नहीं अड़ाते हैं. ऐसे में आमद अकेले वहां पीटते रहे. जब आमद बेहोश होकर गिर गए तो रमेश और उसके भाइयों को घबराहट महसूस हुई. वो उन्हें पास ही के अस्पताल लेकर गए. अस्पताल पहुंचने पर आमद को मृत घोषित कर दिया गया.
जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते परिजन
जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते परिजन

दूसरे दिन सुबह आमद के घरवालों ने शव को दफनाने से इंकार कर दिया. गांव की पंचायत बुलाई गई. गांव में राजपूत और सुथार बिरादरी को मिलाकर करीब 300 घर हैं. वहीं मांगणियार आबादी महज 40 घर की है. पंचायत में रमेश ने अपनी गलती मानी और कहा कि तनाव की वजह से उससे ऐसा हो गया. गांव के दूसरे लोगों की समझाइश और दबाव के चलते आमद के परिजनों ने उनका शव दफना दिया.
आमद की मौत के तीसरे दिन रमेश ने पूरे गांव के सामने कत्ल के लिए अपनी जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया. उसका कहना था कि देवी मां की वजह से ऐसा हुआ है. आमद की मौत की वजह हृदयघात है. उसका दावा था कि उसने आमद को हाथ तक नहीं लगाया. आमद के परिजनों ने शव दफनाने से पहले आमद को आखिरी स्नान करवाया था. उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि आमद के पूरे शरीर पर चोट के निशान थे. उनके शरीर में जगह-जगह पर खून सूख कर चिपक गया था. ऐसे में उन्होंने रमेश भोपा की बात पर भरोसा करने से इनकार कर दिया.
अब आमद के परिजनों के पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उन्होंने फूलसूंड थाने में जा कर रमेश और उसके दो भाइयों ताराचंद और श्याम के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया. आमद के परिवार को नहीं पता था कि उनका यह कदम उन्हें कई दशक पीछे खींच ले जाएगा. वो फिर से मांग कर कर खाने और दर-दर भटकने पर मजबूर हो जाएंगे.
अपनी कला का प्रदर्शन करते मांगणियार (सांकेतिक फोटो)
अपनी कला का प्रदर्शन करते मांगणियार (सांकेतिक फोटो)

आमद मांगणियार समुदाय से आते हैं. यह एक घुमंतू जनजाति है. आमद का परिवार गांव के ही एक राजपूत परिवार की तरफ से दी गई खातिरदारी जमीन पर बसा हुआ था. जब आमद के परिजन थाने से घर लौटे तो उन्हें कहा गया कि जब मुकदमा करवाने के लिए पुलिस के पास जा सकते हो तो पुलिस से ही रहने के लिए जमीन मांग लेना. अब गांव में तुम्हें कोई पानी भी नहीं पिलाएगा. ऐसे में आमद के कुनबे के 40 परिवारों को घर छोड़ कर जाना पड़ा. आमद के छोटे भाई बरियाम खान बताते हैं-
"गांव के लोग हमारे खिलाफ हो गए थे. हम लोगों को कोई वहां पानी तक नहीं पिलाता. ऐसे में हमारे पास गांव छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था.
गांव से निकल कर हम पास ही के गांव भलाड़ गए. वहां हमारे कुछ रिश्तेदार रहते थे. वो भी हमारी तरह गरीब हैं. वहां मांगणियार समाज के 20 परिवार हैं. अब 20 परिवारों पर 40 परिवारों का बोझ पड़ेगा तो उनकी भी कमर टूटेगी. हम सात दिन तक खुले असमान के नीचे सोए. हमारे रिश्तेदारों ने हमारे लिए भोजन-पानी का बंदोबस्त किया.
सात दिन बाद हम लोग जैसलमेर के लिए रवाना हुए. हमारे गांव से जैसलमेर 130 किलोमीटर पड़ता है. हमारा घर पीछे छूट गया. हम लोग बटाईदारी पर खेती करते हैं. हमारी पकी हुई फसलें पीछे छूट गई. हमारे कुनबे के पास करीब 100 बकरियां और 13-14 घोड़ी हैं. सारे जानवर राम भरोसे पड़े हैं. आप बताओ हमारी क्या गलती है?"
जब आमद को रमेश अपनी गाड़ी में जबरदस्ती चढ़ा रहा था, आमद की बीवी केंकू सारा नजारा दूर से खड़ी होकर देख रही थीं. वो इस बात को भूल नहीं पा रही हैं. वो अपने गांव को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहती हैं. वो कहती हैं-
"मैं किसी भी सूरत में गांव नहीं लौटना चाहती. मेरे सामने से वो मेरे पति को लेकर चले गए और वापिस उनकी लाश घर लौटी. इतना सबकुछ होने के बावजूद गांव के लोग हमारा साथ नहीं दे रहे हैं. जब पोस्टमार्टम के लिए लाश निकाली जा रही थी तब पुलिस के साथ कुछ हमारे परिवार के कुछ लोग भी गए थे. वो घंटों वहां रहे लेकिन किसी ने उन्हें पानी के हाथ नहीं लगाने दिया. अब वहां जाकर क्या करेंगे."
वो दस्तावेज जो बताते हैं कि आमद भारत के नागरिक थे.
वो दस्तावेज जो बताते हैं कि आमद भारत के नागरिक थे.

जैसलमेर में कलेक्टर और एसपी से मिलने के बाद इनके मामले में थोड़ी बहुत सुनवाई होनी शुरू हुई. मौत के छह दिन बाद पुलिस और मेडिकल दस्ता फिर से दांतल पहुंचा. आमद के शव को कब्र से निकाल कर उसका पोस्टमार्टम किया गया. उनके शरीर पर जानलेवा चोटों के निशान पाए गए.
मौजूदा सूरते हाल यह है कि दांतल के कुल 109 मांगणियार जैसलमेर के रैनबसेरे में रुके हुए हैं. नगर परिषद् इन लोगों को दो जून की रोटी देने से इंकार कर चुकी है. स्थानीय लोग और जिला मिरासी संघ की तरफ से इनके भोजन की व्यवस्था की गई है. गुणसार लोक संगीत संस्थान के बक्श खान पूरे मामले के बारे में कहते हैं-
"हम कलाकारों की वजह से ही राजस्थान की पहचान देश-विदेश में बनी. आज यहां इतने पर्यटक हमारी कला को देखने के लिए आते हैं. हमें विश्व के बड़े से बड़े देश, संगीत के बड़े से बड़े मंच पर सम्मान मिला है. बाहर लोग हमसे इज्जत के साथ पेश आते हैं. दूसरी तरफ हमारे अपने गांव के लोग आज भी हमारे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं. यह एक कलाकार की मौत नहीं है, यह सुर की हत्या है, यह साज की हत्या है."



 
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