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'पुष्पा' के विलन की असली कहानी!

हेडिंग पढ़कर सिर्फ 'पुष्पा' का विलेन न समझ लेना, एक्टिंग का ज्वालामुखी है ये आदमी.

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'पुष्पा' के सेकंड पार्ट में फहद का रोल ज्यादा होगा.

17 दिसम्बर, 2021 को अल्लू अर्जुन स्टारर 'पुष्पा: द राइज़' रिलीज़ हुई. रिलीज़ के बाद से ही ये तेलुगु फिल्म दो वजहों से चर्चा में है, पहली तो फिल्म के हीरो अल्लू अर्जुन और दूसरी इसका विलन, भंवर सिंह शेखावत, जिसका रोल निभाया है मलयालम एक्टर फहद फ़ाज़िल ने. फिल्म के जितने भी सीन्स में ये दोनों आमने-सामने आए, जनता का 'हाउज़ द जोश', हाई सर हो गया. मेकर्स ने इसी चीज़ को भुनाने के लिए फहद के कैरेक्टर को कम-से-कम इस्तेमाल किया, ताकि उन्हें सेकंड पार्ट में और यूज़ किया जा सके. 'पुष्पा' के सेकंड पार्ट में भंवर सिंह शेखावत लौटेगा, लेकिन उससे पहले हम आपको कहानी बताएंगे इस रोल को निभाने वाले एक्टर फहद फ़ाज़िल की.
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# बाप बड़ा डायरेक्टर, बेटा फ्लॉप हीरो
फहद पर बात शुरू करने से पहले मलयालम सिनेमा के एक और सुपरस्टार की बात करनी होगी. मोहनलाल. मलयालम सिनेमा के इतिहास में इनके नाम पर एक अलग से चैप्टर लिखा जाएगा. कुछ ऐसा कॉन्ट्रिब्यूशन है इनका. 1980 में डेब्यू किया और अब तक इंडस्ट्री पर राज़ कर रहे हैं. अभी हाल ही में आई 'दृश्यम-2' की वजह से तो आज की तारीख में इनका हिंदी बेल्ट में भी भौकाल बना हुआ है. मोहनलाल ने जिस फिल्म से डेब्यू किया, उसका नाम था ‘मंजिल विरिंजा पूकल’. फिल्म के डायरेक्टर थे फ़ाज़िल. अब तक 30 से ज़्यादा फिल्में बना चुके हैं. मोहनलाल, कुंचको बोबन और नगमा जैसे एक्टर्स को इंडस्ट्री में इन्ट्रोड्यूस कर चुके हैं. ठीक ऐसे ही 2002 में एक और एक्टर को इन्ट्रोड्यूस किया. अपने बेटे यानि फहद फ़ाज़िल को. फिल्म थी ‘कैयेतम दूरत’. एक रोमांटिक कॉमेडी. जहां सुपरस्टार ममूटी ने भी कैमिओ किया. लेकिन फिल्म कुछ कमाल नहीं कर पाई. कमर्शियल और क्रिटिकल फेलियर साबित हुई.
Kaiyethum Doorath
फहद की पहली फिल्म जो बहुत बड़ी डिसासटर साबित हुई.

उस समय फहद की उम्र थी महज 19 साल. कच्ची उम्र में मिली इस असफलता ने उन्हें एक चीज़ सिखा दी. कि बिना पूरी तैयारी के किसी भी चीज़ में उतरना बेवकूफी है. उस पॉइंट पर फहद जानते थे कि उन्हें एक्टिंग नहीं आती. इसी वजह से फिल्म को मिले रिस्पॉन्स के लिए उन्होंने कभी अपने पिता को ब्लेम नहीं किया. चाहते तो आगे और फिल्में कर सकते थे. करियर के शुरुआती पड़ाव में कमर्शियल सक्सेस देख सकते थे. लेकिन उस सक्सेस से एक अलग फहद बनकर तैयार होता. एक अलग किस्म का एक्टर. वो फहद नहीं, जिसे हम आज जानते हैं. और ऐसा वो खुद मानते हैं. इसलिए एक्टिंग से ब्रेक लिया. 7 साल का ब्रेक. इसी दौरान अपनी पढ़ाई पूरी करने का फ़ैसला लिया. आगे पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए.
 



# इरफान ख़ान की वजह से बन गए एक्टर
फहद अमेरिका से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. उन दिनों में उनका निकुंज नाम का एक दोस्त था. दोनों में एक चीज़ कॉमन. दोनों को इंडियन फिल्म्स देखना पसंद था. पर आसपास इंडियन फिल्म्स देखने का कोई जुगाड़ नहीं था. कॉलेज कैम्पस के पास एक पाकिस्तानी ग्रोसरी शॉप थी. दोनों अक्सर फिल्म रेंट पर लाने के लिए वहीं जाते थे. वीकेंड पर फिल्म देखने का मन हुआ. पहुंच गए शॉप पर. स्टोर के ओनर खालिद भाई भी इन दोनों लड़कों और इनके इंडियन सिनेमा के प्रति क्रेज़ से वाकिफ थे. जाते ही इनके हाथ में एक डीवीडी थमा दी. फिल्म थी ‘यूं होता तो क्या होता’. फहद की नज़र पड़ी ‘डायरेक्टेड बाय’ वाले हिस्से पर. जहां नसीरुद्दीन शाह का नाम लिखा था. ये इकलौती फिल्म थी जो नसीर साहब ने डायरेक्ट की थी. खैर, फहद और निकुंज फिल्म लेकर आ गए.
Irrfan
इरफान की एक फिल्म ने फहद की दुनिया बदल के रख दी.

फिल्म शुरू हुई और कुछ ही देर बाद सलीम राजाबली नाम के किरदार की एंट्री हुई. फहद की नज़र उस किरदार पर अटक गई. ऐसी कि फिल्म के नेरेटिव का आभास ही नहीं रहा. सलीम के रूप में ऐसे एक्टर को देख रहे थे जो स्टाइलिश था, चार्मिंग था. और सबसे बड़ी बात, ओरिजिनल था. फहद ने पूछा कि ये एक्टर कौन है? सामने से जवाब मिला, इरफान खान. फहद ने ये नाम पहले कभी नहीं सुना था. लेकिन फिल्म देखने के बाद ये नाम उनके ज़हन से फिर कभी नहीं निकला. आगे इरफान की फिल्में ढूंढ-ढूंढकर देखी. कहानी से उन्हें कोई मतलब नहीं होता था. वो बस स्क्रीन पर इरफान को अपना कमाल करते देखते. वो भी बिना किसी एफर्ट के. देखकर लगने लगा कि यार, एक्टिंग इतनी भी मुश्किल नहीं जितना समझते थे. यही सोचकर एक फ़ैसला लिया. इंजीनियरिंग से तौबा कर, इंडिया लौटने का. फिर से अपना एक्टिंग करियर शुरू करने का. इंडिया लौट भी आए. इरफान ने फहद की ज़िंदगी बदल के रख दी थी. आज वो जैसे भी कलाकार हैं, इसका श्रेय इरफान को देते हैं. उस दुकान से रेंट पर ली गई डीवीडी को देते हैं. लेकिन फहद के मन में एक मलाल रह गया. जिस आदमी ने उनकी ज़िंदगी बदली, उससे कभी मिल नहीं पाए. शुक्रिया अदा नहीं कर पाए.
 



# एक किसिंग सीन, जिसने खूब हल्ला काटा
2009 में एक मलयालम फिल्म रिलीज़ हुई. ‘केरला कैफे’. दस कहानियों में बंटी एंथोलॉजी फिल्म. इन्हीं में से एक कहानी थी ‘मृत्युंजम’. थ्रिलर स्टोरी, जहां एक जर्नलिस्ट पुराने घर की जांच करने पहुंचता है. करीब सात साल बाद फहद ने इस जर्नलिस्ट के रोल से अपना कमबैक किया. फिल्म में ममूटी, पृथ्वीराज सुकुमारन और सुरेश गोपी जैसे एक्टर्स भी थे. बावजूद इसके फहद ने अपना काम नोटिस करवा दिया. जनता को बता दिया कि पूरी तैयारी करके उतरे हैं. बस फिर क्या था, उनके हिस्से ऑफर्स आने लगे. अगले ही साल तीन फिल्में दे डाली. ‘प्रमणी’, ‘कॉकटेल’ और ‘टूर्नामेंट’.
Fahadh In Kerala Cafe
अपनी इस कमबैक फिल्म से अपना काम नोटिस करवा लिया.

लेकिन उनके करियर की दिशा बदली 2011 में आई ‘चप्पा कुरिशु’ ने. सिर्फ उनके करियर की ही नहीं, बल्कि कमर्शियल मलयालम सिनेमा की भी. फिल्म में फहद ने एक ग्रे कैरेक्टर निभाया. जिसने अब तक चली आ रही टिपिकल मेल हीरो वाली इमेज को बदलकर रख दिया. अपने हिसाब से किरदार में नुआन्स जोड़े और उसे रिलेटेबल बनाया. इसी कोशिश की बदौलत केरला स्टेट अवॉर्ड से भी नवाज़े गए. ‘चप्पा कुरिशु’ में उनके काम को इतना पसंद किया गया कि एक बार फिर फहद के हिस्से ऐसा ही किरदार आया. फिल्म थी 2012 में आई ’22 फ़ीमेल कोटायम’. एक रिवेंज थ्रिलर जहां फहद ने एक नेगेटिव किरदार निभाया. क्रिटिक्स और ऑडियंस, दोनों से बराबर तारीफ मिली. यहां तक कि बेस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता.
Fahadh In Chaapa Kurishu
लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 'चप्पा कुरिशु' से.

फहद के रोल के अलावा ‘चप्पा कुरिशु’ को एक और चीज़ के लिए याद रखा जाता है. अपने 2 मिनट लंबे किसिंग सीन के लिए. फिल्म के एक्टर्स फहद फ़ाज़िल और रेम्या नंबीसन के बीच का सीन. उस समय का मलयालम सिनेमा इंटिमेट सीन्स को लेकर इतना लिब्रल नहीं था. ज़ाहिर है ऐसे सीन पर विवाद तो होना था. और हुआ भी. खूब हल्ला कटा. लेकिन ये भी कहा जाता है कि इसी सीन के बाद कमर्शियल मलयालम सिनेमा, स्क्रीन पर इंटिमेट सीन दिखाने में कम्फर्टेबल भी हो गया.
 



# करियर की दशा-दिशा बदलने वाला साल
2012 खत्म होते-होते फहद के हिस्से कई थ्रिलर फिल्में आ चुकी थीं. फिर आया 2013. सोचा कि अपनी फिल्मोग्राफी में वेरिएशन लाया जाए. सिनेमेटोग्राफर राजीव रवि भी उस समय डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखना चाहते थे. राजीव रवि वही शख्स हैं, जिनके कैमरे से आपने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘उड़ता पंजाब’, ‘देव डी’ और ‘बॉम्बे वेल्वेट’ जैसी फिल्मों की दुनिया देखी. खैर, राजीव उस पॉइंट पर ‘अन्नयम रसूलम’ बना रहे थे. लीड रोल के लिए फहद को अप्रोच किया. फहद मान गए. कहानी सिम्पल सी थी. सिम्पल पर टिपिकल नहीं. एक मुस्लिम लड़का जो एक क्रिश्चियन लड़की से प्यार करने लगता है. ज़ाहिर है कि घरवाले नहीं मानते. इसके बाद इनके रिलेशनशिप में क्या मोड आता है, यही फिल्म की कहानी थी. फिल्म में एक्शन और कॉमेडी की कोई गुंजाइश नहीं थी. जिस कारण फहद को मौका मिला अपनी इमोशनल साइड को एक्सप्लोर करने का. जो उन्होंने बखूबी किया भी. हर सीन में अपना मार्क छोड़ा. खासतौर पर फिल्म के क्लाइमैक्स में. इतना मार्मिक था कि जिसने भी देखा, पहले अपनी आंखें पोंछी और फिर जी भर कर फहद की तारीफ की.
Annayum Rasoolum
फहद ने थ्रिलर फिल्मों से ब्रेक लिया और ये रोमांटिक फिल्म की.

फिल्म को मिले रिस्पॉन्स ने फहद में एक अलग किस्म का एनकरेजमेंट भर दिया. जिसके बाद वो ना कभी रुके और ना ही पीछे मुड़कर देखा. ठीक उसी साल 10 और फिल्में दे डाली. ‘आमेन’ और ‘अन्नयम रसूलम’ जैसी फिल्में इमोशनल फ्रन्ट पर बड़ी मज़बूत थीं. जहां फहद के रोमांटिक साइड को निखर कर बाहर आने का मौका मिला. वहीं, ‘नॉर्थ 24 कातम’ और ‘इंडियन प्रणयकद’ में ऑडियंस ने उनकी एफर्टलेस कॉमेडी विटनेस की. फिर आया वो रोल, जहां उन्होंने एक आर्टिस्ट का गुस्सा, घमंड और जलन को प्लैटर पर सजा के रख दिया. फिल्म का नाम भी ‘आर्टिस्ट’ ही था. साल एक, लेकिन जनता ने पर्दे पर 11 फहद देखे. और सब एक-दूसरे से जुदा.
 



# जब रील लाइफ वाइफ से रियल लाइफ शादी की
2014 में एक फिल्म आई. ‘बेंगलोर डेज़’. ‘फुल ऑफ लाइफ’ टाइप की फिल्म. कहानी थी तीन कज़िन्स की. जो कज़िन्स कम और एक-दूसरे के दोस्त ज़्यादा थे. फिल्म रिलीज़ हुई और बड़ी हिट साबित हुई. लोग इसे इंडियन सिनेमा में दोस्ती पर बनी बेस्ट फिल्मों में गिनने लगे. मलयालम एक्टर्स निविन पौली, दुलकर सलमान और नज़रिया नाज़िम ने इन तीनों कज़िन्स के किरदार निभाए. फहद भी फिल्म का हिस्सा थे. उन्होंने नज़रिया के पति का रोल किया था. जिस वजह से उनके ज़्यादातर सीन नज़रिया के साथ ही थे.
Bangalore Days Scene
रील लाइफ कपल प्ले करते-करते रियल लाइफ रोमांस शुरू हो गया.

फिल्म की शूटिंग अपने सेट पेस पर चल रही थी. लेकिन इस सब के बीच फहद को एक बात का आभास तक नहीं हुआ. कि वो नज़रिया को चाहने लगे हैं. ये तो हुई नॉर्मल ज़िंदगी. फिर ये मेंटॉस टाइप ज़िंदगी कब बनी? जब नज़रिया भी उन्हें चाहने लगीं. पहले तो नज़रिया ने भी वेट किया. मौका दिया कि फहद आगे से बात शुरू करें. शायद फहद भी उस दिन का वेट कर रहे थे. जब इतनी हिम्मत जुटा लें कि अपने प्यार का इज़हार कर पाएं. पर वो दिन कभी आया ही नहीं. नज़रिया को वो दिन खुद लाना पड़ा. जब देखा कि फहद तो बात करने आएंगे नहीं, तो खुद पहुंच गईं. अपनी फीलिंग्स बयां कर दी और वादा किया कि हमेशा तुम्हारा ध्यान रखूंगी. उस दिन से पहले किसी लड़की ने फहद से ऐसा नहीं कहा था. दोनों ने घरवालों की रज़ामंदी लेकर 21 अगस्त, 2014 को शादी कर ली.
 



# फहद फ़ाज़िल मतलब उम्दा कंटेंट की गारंटी
फहद को ‘न्यू ऐज मलयालम सिनेमा’ का पोस्टर बॉय कहा जाता है. यहां तक कि क्रिटिक्स ने उनकी कुछ फिल्मों को मॉडर्न क्लासिक्स तक का दर्जा दे दिया. उनकी इसी बेहतरीन फिल्मोग्राफी में से हमनें कुछ फिल्में चुनी. खास आपके लिए. जिन्हें हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
#1. तोंडीमुदलम द्रीसाक्षीयम (2017)
श्रीजा और प्रसाद की नई शादी हुई है. दोनों एक बस जर्नी पर निकले हैं. अपनी लाइफ के नए चैप्टर की शुरुआत करने. यहां कहानी में ट्विस्ट आता है. जब बस में श्रीजा की सोने की चेन चोरी हो जाती है. और चोर का नाम भी प्रसाद है. अब इस चोर को पुलिस स्टेशन ले जाया जाता है. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही ये महाशय चेन निगल लेते हैं. आगे पुलिस क्या करती है और क्या कभी चेन मिल पाती भी है या नहीं, यही फिल्म की कहानी है. यहां चोर प्रसाद का रोल फहद ने निभाया. फिल्म की ज़्यादातर कहानी पुलिस स्टेशन में सेट है. बावजूद इसके ये ऑडियंस पर अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने देती.
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सिम्पल सी कहानी पर परफॉरमेंस ऐसी कि जकड़ के रख ले.

फिल्म में एक्टर्स की परफॉरमेंस की खूब तारीफ हुई. 'मैंने आज तक ऐसी शानदार परफॉरमेंस नहीं देखी', फिल्म को लेकर ये कहना था ‘मासूम’ और ‘मिस्टर इंडिया’ के डायरेक्टर शेखर कपूर का. फिल्म ने तीन नैशनल अवॉर्ड अपने नाम किए और 2017 की बेस्ट इंडियन फिल्मों में शुमार हुई.
#2. नॉर्थ 24 कातम (2013)
कहानी है हरीकृष्णन की. OCD से जूझता एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर. उसके कलीग्स उससे परेशान रहते हैं. साथ काम करना पसंद नहीं करते. तभी कंपनी का एक जरूरी प्रोजेक्ट आता है. जिसके लिए हरी को त्रिवेंद्रम भेजा जाता है. लेकिन पहुंचने से पहले उसे रास्ते में दो अजनबी मिलते हैं. जो हमेशा के लिए उसकी लाइफ और लाइफ के प्रति उसका नज़रिया बदल देते हैं. फिल्म ने बेस्ट फिल्म का नैशनल अवॉर्ड जीता. हरीकृष्णन बने फहद का काम भी ऑडियंस और क्रिटिक्स ने खूब पसंद किया.
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कॉमेडी ट्राइ की और ये एक्सपेरिमेंट कारगर साबित हुआ.

#3. ट्रांस (2020)
‘मेरे करियर का सबसे थका के रख देने वाला रोल’, ऐसा कहना था खुद फहद फ़ाज़िल का. फिल्म में फहद एक मोटिवेशनल स्पीकर बने हैं. जो आगे जाकर बड़ा स्पिरिचुअल लीडर बन बैठता है. बेसिकली, ये फिल्म खोखले स्पिरिचुअल लीडर्स के गोरखधंधे पर बनी है. कि कैसे ये लीडर्स लोगों को जैसी ज़िंदगी जीने से रोकते हैं, खुद ठीक वैसी ही ज़िंदगी जीते हैं. इनका किरदार ग़ज़ब का है. ऐसा कि सुननेवाला इनके अलावा किसी और की ना सुने. सम्मोहित कर लेता है. तड़पाकर रख देता है. कुछ ऐसा ही असर होता है ऑडियंस पर भी. फिल्म में नज़रिया भी इनके साथ हैं.
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पिछले साल की बेहतरीन परफॉरमेंस में से एक.

#4. महेशइन्ते प्रतिकारम (2016)
केरेला के इडुक्की जिले में सेट एक खूबसूरत-सी फिल्म. कहानी है महेश की. अपने पिता और पेट डॉग के साथ रहता है. फोटो स्टूडियो चलाता है. सबसे बनाकर चलने वाला इंसान. अचानक एक दिन उसके पड़ोसी का किसी से झगड़ा हो जाता है. महेश मामला सुलझाने उतरता है. तो बदले में उसी की पिटाई हो जाती है. सब के सामने शर्मिंदगी महसूस होती है. अज़ीब सी कसम खाता है. जब तक बदला नहीं ले लेगा, तब तक चप्पल नहीं पहनेगा. बदला ले पाता है या फिर पूरी ज़िंदगी नंगे पांव ही रहता है, यही आगे की कहानी है. लेकिन फिल्म की कहानी सिर्फ महेश के बदले तक सिमट कर नहीं रही. बीच में बहुत कुछ घटता है. ऐसा जो हमेशा के लिए ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीज़ों के प्रति उसका नज़रिया बदल देता है. फिल्म देखने के लंबे अरसे बाद भी जब महेश को याद करेंगे, तो चेहरे पर एक मुस्कान अपनी जगह ढूंढ लेगी.
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इस फिल्म को देखने के बाद जब भी याद करेंगे, चेहरे पर अपने आप एक स्माइल आ जाएगी.

#5. कुंबलंगी नाइट्स (2019)
फहद फ़ाज़िल के बैनर ‘फहद फ़ाज़िल एंड फ़्रेंड्स’ के तले बनी फिल्म. चार भाइयों की कहानी. साजी, फ्रैंकी, बॉबी और बॉनी. चारों में हमेशा खींचतान चलती ही रहती है. इसी बीच बॉबी को गांव में रहने वाली बेबी से प्यार हो जाता है. बॉबी के भाई भी उसके साथ खड़े हो जाते हैं. दोनों को मिलवाना चाहते हैं. लेकिन एक प्रॉब्लम है. बेबी का जीजा यानि शम्मी. जो बॉबी को बेबी के लायक नहीं मानता. क्या ये भाई बॉबी को बेबी से मिलवा पाते हैं या नहीं, और क्या खुद अपने फ़ासले खत्म कर एक छत के नीचे आ पाते हैं या नहीं, यही फिल्म की कहानी है.
Shammi
यूट्यूब पर लोगों ने 'साइको शम्मी' नाम से शम्मी के लिए वीडियो तक बना रखे हैं.

फहद ने इस फिल्म में जीजा शम्मी का रोल किया था. शम्मी एक शक्की और सनकी किस्म का इंसान है, जो अपने इमोशन हैंडल करने में असमर्थ है. ना सुनने का आदी नहीं. और जब सुनने को मिले, तो छोटे बच्चे की तरह दीवार से सिर टिकाकर कोने में खड़ा हो जाता है. शम्मी एक टिपिकल विलेन नहीं है. हाथ का काम आंखों से लेता है. नज़र ऐसी पैनी कि गलती चाहे खुद ही की हो, लेकिन फिर भी सामने वाले से माफी मंगवा ले. फहद को अपने इस रोल के लिए केरला स्टेट फिल्म अवॉर्ड भी मिला.