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काम करने में थक जाते हैं, ये शूट आपको 4 घंटे के लिए 'रोबोट' बना देगा

आर्मी में इस्तेमाल होता था, अब आम लोग भी इसे पहन सकते हैं

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एक्सोस्केलेटन को बनाने की प्रक्रिया में रोबोटिक्स और बायो-मकैनिक्स का इस्तेमाल किया जाता है. (फोटो- ट्विटर)

मार्वेल की एक मूवी है ‘आयरन मैन’. अगर आपके जेहन में आयरन मैन का चित्र बनता है तो उसके कपड़े जरूर याद आते होंगे. इसे आयरन मैन का सूट भी कह सकते हैं. कुछ वैसा ही चीन डिजाइन कर रहा है. नाम है ‘एक्सोस्केलेटन’. हालांकि, एक्सोस्केलेटन आयरन मैन के सूट जितनी पावर नहीं प्रदान करेगा. लेकिन, ये कुछ हद तक रोबोटिक शक्ति प्रदान करने में कारगर होगा. इससे हम इंसानों का काम करने का तरीका थोड़ा आसान होगा. काम करने में मदद भी मिलेगी.

आज जानेंगे ये एक्सोस्केलेटन नाम का डिवाइस क्या होता है? ये किस तरह से इंसान की मदद करने में सक्षम है? और भारत इस क्षेत्र में क्या काम कर रहा है?

सबसे पहले बेसिक

आसान भाषा में, टू दी पॉइंट बताएं तो एक्सोस्केलेटन एक तरह का सूट है. जिसे पहना जा सकता है. माने ये एक वियरेबल डिवाइस है. मसलन, स्मार्ट ग्लास या किसी वर्चुअल रियलिटी हेडसेट की तरह. ये डिवाइस लोगों की काम के दौरान परफॉर्मेंस बढ़ाने के लिए काम में लिया जाता है. इसे बॉडी पर पहना जाता है. वैसे ही, जैसे हमें कपड़े या भयंकर ठंड में ऊपर से कोई जैकेट पहनते हैं.

यहां एक बात गौर करने वाली है. एक्सोस्केलेटन सूट कई तरह के होते हैं. इनके काम करने के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं. कुछ एक्सोस्केलेटन सूट हार्ड मटेरियल के बने होते हैं. जैसे, कार्बन फाइबर या कोई मेटल. वहीं, कुछ एक्सोस्केलेटन सूट सॉफ्ट मटेरियल से बनते हैं. ये सूट बिजली की मदद चलाए जा सकते हैं. सेंसर से सुसज्जित हो सकते हैं. या मैकेनिकल भी हो सकते हैं. यानी बिना किसी बिजली या सेंसर के भी चलाए जा सकते हैं. सब सूट की डिजाइन पर निर्भर करता है.

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एक्सोस्केलेटन सूट की मदद से विकलांग चल-फिर भी सकते हैं. (फोटो- ट्विटर)

एक्सोस्केलेटन को बनाने की प्रक्रिया में रोबोटिक्स और बायो-मकैनिक्स का इस्तेमाल किया जाता है. इस सूट का इस्तेमाल कई सेक्टर में किया जा सकता है. जैसे देश की सेना द्वारा. एक सैनिक इस सूट की मदद से अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकता है. इसे वो अपनी वर्दी के ऊपर पहनते हैं. सूट में स्पेशल डिवाइस और AI भी लगाए जाते हैं.

सूट से क्या फायदा होगा?

एक्सो सूट की मदद से कोई भी व्यक्ति 100 किलो तक ज्यादा वजन उठा सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक्सो सूट का बैटरी बैकअप 3-5 घंटों का होता है. नई टेक्नोलॉजी की मदद से इसे और भी बढ़ाया जा सकता है.

सेना में एक्सो सूट का इस्तेमाल सैनिकों की खासा मदद करता है. ऊंचे पहाड़ी इलाकों में जिन सैनिकों की पोस्टिंग होती है, या जहां लगातार बर्फबारी होती है, ऐसे इलाकों में लेग-गियर उन्हें बर्फ में चलने में मदद करता है. सैनिक सामान्य से ज्यादा चलने के काबिल भी हो जाते हैं. यही नहीं, जिन पहाड़ी इलाकों में कम ऑक्सीजन पाई जाती है वहां एक्सो सूट सैनिकों की थकान रोकने के काम भी आता है.

भारत इस दिशा में कहां पहुंचा?

एक्सोस्केलेटन बनाने की दिशा में भारत पिछले कई सालों से काम कर रहा है. इसके लिए DRDO प्रमुखता से काम पर लगा है. DRDO ने कई प्राइवेट कंपनियों के साथ समझौते भी किए हैं. हाल ही में हैदराबाद की प्राइवेट कंपनी स्वाया रोबोटिक्स ने DRDO के साथ मिलकर भारत का पहला वियरेबल एक्सोस्केलेटन डिजाइन किया है. कंपनी ने चार पैरों वाला एक रोबोट भी डिजाइन किया है. स्वाया रोबोटिक्स DRDO की रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (R&DE, Pune) और डिफेंस बायो इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रो मेडिकल लैबोरेटरी (DEBEL, Bengaluru) के साथ मिलकर इस टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है.

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एक्सोस्केलेटन सूट में सैनिक (फोटो- ट्विटर)

द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ये एक्सोस्केलेटन भारतीय सैनिकों के मुताबिक ही डिजाइन किए गए हैं. ये कई तरह से सैनिकों की क्षमता बढ़ाने में मदद करेंगे. 

कहां-कहां इस्तेमाल हो रहा है?

एक्सोस्केलेटन सूट सबसे पहले सेना में इस्तेमाल के लिए बनाए गए थे. लेकिन, समय बीतने के साथ और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास की बढ़ती रफ्तार की मदद से इन्हें अन्य सेक्टर में भी इस्तेमाल में लाया जाने लगा है. जैसे हेल्थकेयर और मैन्युफैक्चरिंग. इतना ही नहीं, एक्सोस्केलेटन का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन और एग्रीकल्चर के क्षेत्र में भी किया जा रहा है. 

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