एकनाथ शिंदे नाराज थे. एकनाथ शिंदे मान गए थे. और अब एक बार फिर से एकनाथ शिंदे नाराज (Eknath Shinde) हो गए हैं! खबरें हैं कि महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) और उप-मुख्यमंत्री अजित पवार 11 दिसंबर को दिल्ली में थे. महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विस्तार (Maharashtra Cabinet Expansion) को लेकर इन नेताओं को BJP के केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात करनी थी. इस बैठक में एकनाथ शिंदे को भी शामिल होना था. लेकिन वो दिल्ली गए ही नहीं. इधर, बीती रात फडणवीस ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की.
शिंदे नाराज थे, फिर डिप्टी सीएम भी बने; अब फिर नाराज़ हैं, महाराष्ट्र में मामला फंसा हुआ है
Maharashtra Cabinet Expansion: Eknath Shinde 11 दिसंबर को दिल्ली में प्रस्तावित बैठक में शामिल नहीं हुए. इस बैठक में महाराष्ट्र कैबिनेट बंटवारे को लेकर बात होनी थी. Devendra Fadnavis और Ajit Pawar भी इस बैठक में शामिल होने पहुंचे थे.
अब इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं. कहा जा रहा है कि सारी कवायद महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में ज्यादा से ज्यादा रसूखदार कैबिनेट पोर्टफोलियो हासिल करने की है. 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 42 मंत्री बन सकते हैं. इनमें से 20 पोर्टफोलियो BJP के खाते में जाने की बात कही जा रही है. एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के खाते में 12 और अजित पवार वाली एनसीपी को 10 पद दिए जाने की बात हो रही है.
और बात सिर्फ नंबर्स की नहीं है. खींचतान प्रभाव और मोटी कमाई करने वाले विभागों की है. हमने ऊपर आपको बताया कि एकनाथ शिंदे नाराज थे. नाराज इसलिए थे कि चुनाव से पहले वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. चुनाव के बाद परिस्थितियां बदल गईं. चीफ मिनिस्टर वाली कुर्सी फडणवीस के हिस्से आ गई. इसके एवज में शिंदे ने कहा कि उन्हें कम से कम गृह विभाग तो मिलना ही चाहिए. लेकिन BJP इसके लिए राजी नहीं हुई. शिंदे नाराज ही रहे. लेकिन तमाम तरीकों से उन्हें राजी किया गया, फिर वो महाराष्ट्र की नवनिर्वाचित सरकार का हिस्सा बने.
इस बीच शिवसेना वाले ये दलील देते रहे कि चुनाव तो शिंदे के चेहरे पर ही लड़ा गया, इसलिए उनके खाते में कुछ तो आना चाहिए. मसलन, गृह विभाग ना सही तो शहरी विभाग और राजस्व विभाग तो आएं. अब खबरें हैं कि BJP को ये मंजूर नहीं है. गठबंधन की मुश्किल तो ये भी है कि NCP की नजरें भी इन्हीं दोनों विभागों पर है.
"पर कतरना चाहते हैं…"फिलहाल नंबरों का सूरत-ए-हाल देखें तो BJP शिंदें की मांगों को मानने के लिए बाध्य भी नहीं है. BJP के पास 132 विधायक हैं. शिंदे की शिवसेना के पास 57 और अजित पवार की एनसीपी के पास 41 विधायक हैं. मतलब, शिंदे के बिना भी बीजेपी और एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार चल सकती है. ऐसे में शिंदे वाली शिवसेना को लगता है कि बीजेपी और एनसीपी मिलकर उसके पर कतरना चाहते हैं.
शिवसेना से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जब एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया, तो शहरी विकास और राजस्व विभाग पर पार्टी का दावा एकदम न्यायोचित है. इधर, BJP से जुड़े सूत्रों का कहना है कि शिंदे को इन दोनों विभागों में से कोई एक विभाग ही मिल सकता है.
महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विस्तार 14 या 16 दिसंबर को हो सकता है. जल्द ही विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी आयोजित होना है. ऐसे में तीनों पार्टियां अपने लिए जो हो सकता है, वो हासिल कर लेना चाहती हैं.
बातें तो दूर तक जाएंगी…महाराष्ट्र की राजनीति में 11 दिसंबर को हुए घटनाक्रम से पहले भी कुछ घटनाक्रम हो चुके हैं. इनसे भी शिंदे की नाराजगी बढ़ी है. हाल फिलहाल में फडणवीस ने रामेश्वर नाइक को चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड की पूरी जिम्मेदारी सौंपी है. पहले ये जिम्मेदारी मंगेश चिवटे के पास थी, जो शिंदे के करीबी हैं. चिवटे को जून 2022 में ये जिम्मेदारी दी गई थी, उस समय शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. रामेश्वर नाइक उस समय उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मेडिकल एड सेल की जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
इससे पहले जब शिंदे नाराज हुए थे तब एक अप्रत्यक्ष तरीके से भी उन्हें एक डर दिखाया गया था. कहा गया था कि अगर शिंदे सरकार में शामिल नहीं होते हैं, तो यह उनकी पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा. साथ ही साथ उनकी पार्टी में टूट का भी खतरा बढ़ जाएगा. शिंदे को बताया गया था कि उनकी पार्टी में ऐसे कई लोग हैं जो महत्वकांक्षी हैं. मसलन, शंभूराजे देसाई, उदय सामंत और दीपक केसरकर.
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उद्धव ठाकरे से बगावत करने के बाद एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने थे. इस समय पार्टी में उनके कद का कोई नेता नहीं है. शिंदे से कहा गया था कि अगर वो सरकार से बाहर रहेंगे और उनकी जगह कोई और उप-मुख्यमंत्री बन गया तो पार्टी में एक पैरलल पावर सेंटर बन जाएगा.
शिंदे को ये बातें समझ में आ गई थीं. उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सरकार का हिस्सा बनना भी चुना. लेकिन अब सारी बात विभागों के बंटवारे पर आ गई है. शिंदे के दिल्ली ना जाने के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं और इन सवालों में के जवाब में शायद सबसे ज्यादा हित शिंदे के ही छिपे हुए हैं.
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