मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहीं था
पढ़िए गौरव सोलंकी की कविता - मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहीं था
मार्च में तो मैंने हथेली तक पर कविता लिखी

लेकिन कुछ लोगों को तो याद होगा ही कि
मैंने पुलिस के सायरनों
और खिड़की पर खड़े होकर कूदने का सोचने वाली लड़कियों के बारे में कविताएं लिखीं
मैंने केक की दुकान में काम करने वाले उदास लड़कों
और साहसी अपराधियों पर काफ़ी कुछ लिखा
और मैं अपना पलंग तोड़ देने और फिर बुनने के बारे में
और दिसम्बर के डर के बाद
गुलमोहर के फूलों से आने वाली उम्मीद के बारे में सोचता था
जब मैंने लिखा
कि औरतों के उघड़े कंधों के बारे में
कुछ भी अश्लील कहना मुमकिन नहीं है
उसके बाद सब ख़त्म होता गया
मार्च में तो मैंने हथेली तक पर कविता लिखी
जो मैंने तुमसे अलग होते वक़्त वादा किया था
कि नहीं लिखूंगा
फिर एक दिन मुझे सोते हुए
ठंडा लोहा महसूस हुआ अपने गाल पर
और मैं उठ बैठा
फिर तुम्हें फ़ोन भी किया था
जो मिला नहीं
और फिर मैं नौकरी पर चला गया
अप्रैल तक मैं ज़िंदा था
फिर मई में वो एक रेलवे स्टेशन था
जहाँ मैं भरभराकर गिर सा गया
जब मुझे यक़ीन हुआ
कि अब नहीं लिख पाऊंगा मैं कविता
शुरू से पता था यह तो मुझे
कि मेरी भी है एक मियाद
और हर कवि को एक गरम साँकल जैसे बजते हुए लम्हे के बाद
पूर्व कवि होना ही होता है
लेकिन मुझे उम्मीद करना सिखाया गया था
मैंने अपने बिस्तर के ऊपर लगे हुक में,
नाइंसाफ़ियों और चूमती हुई लड़कियों में ढूंढ़ी कविताएं
मैंने मनुष्यों पर भी भरोसा किया
पर वह गई तो लौटी नहीं