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विष्णु खरे ने लोकतंत्र पर कठोर टिप्पणी करते हुए अपनी कविता में क्यों लिखा 'डरो'?

आज हिंदी के कवि और आलोचक विष्णु खरे की पहली पुण्यतिथि है.

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पिछले साल आज ही के दिन विष्णु खरे ने अंतिम सांस ली थी.
आज यानी 19 सितम्बर को हिंदी के कवि और आलोचक विष्णु खरे की पहली पुण्यतिथि है. पिछले साल यानी 19 सितम्बर 2018 के दिन  दिल्ली में दिमाग की नसें फट जाने की वजह से विष्णु खरे का देहांत हुआ था. इनका जन्म मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिले में 9 फरवरी, 1940 के दिन हुआ था. आज इस उदास मौके पर उन्हें याद करते हुए हम उनकी एक कविता 'डरो' अपने पाठकों के लिए लेकर आए हैं.

डरो 

कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया न सुनो तो डरो कि सुनना लाज़िमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झांकने वाला कौन है न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर.


विष्णु खरे


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