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पानी वाली 'लिफ्ट' की मदद से बने थे मिस्र के पिरामिड! इस रिसर्च ने सारी टेक्नॉलजी समझा दी

How Pyramid was made: 4500 हजार पहले हाइड्रालिक लिफ्ट की मदद से बना था सबसे पुराना पिरामिड, ऐसा एक नई रिसर्च में दावा किया गया है. इससे पहले मिट्टी की ढलान वगैरह की मदद की थ्योरी दी जाती रही है.

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शक्कारह में दुनिया का सबसे पुराना पिरामिड है (Image: Wikimedia commons))

प्राचीन शहरों में लोगों को दफनाने की जगह को ‘नेक्रोपोलिस’ (Necropolis) कहा जाता है. इस शब्द की ग्रीक जड़ों तक जाएं, तो मतलब निकलता है ‘मुर्दों का शहर’. ऐसा ही एक शहर है प्राचीन मिस्र में, शक्कारह (Saqqarah). जो इन मुर्दों के शहर में सबसे पुराना माना जाता है. मिस्र की बात हो और पिरामिड का जिक्र ना आए, ऐसा तो हो नहीं सकता! शक्कारह में भी एक पिरामिड है. ये है जोजर का पिरामिड (Pyramid of Djoser). जो हाल में एक रिसर्च की वजह से फिर खबरों में आया है. जिसमें इसे बनाने के पीछे की तकनीक बताई गई है. कहा जा रहा है ये हाइड्रालिक लिफ्ट की मदद से बने हो सकते हैं.

जोजर के पिरामिड को सीढ़ीदार पिरामिड भी कहा जाता है. इसे दुनिया का पहला पिरामिड माना जाता है, जिसमें 6 तल्ले और 4 कोने हैं. चूने के पत्थर से बना ये पिरामिड आज से करीब 4700 साल पुराना माना जाता है. वहीं इसकी ऊंचाई 60 मीटर के करीब है. हालांकि, यह सबसे ऊंचे गीजा के पिरामिड से काफी छोटा है. जिसकी ऊंचाई 146 मीटर है. 

बाकि पिरामिड छोटा हो या बड़ा. जोजर का हो या गीज़ा का. सबके साथ आता है एक सवाल. जिसने सालों से साइंटिस्ट्स का माथा खराब कर रखा है.

सावाल- ये बनाए कैसे गए. बिना किसी क्रेन, बुलडोजर के. वो भी सिर्फ बुनियादी औजारों की मदद से. 

आधी रात को तमाम टीवी चैनल इसका ठीकरा एलियंस पर फोड़ देते हैं. कोई दूसरी दुनिया से आया होगा. तभी ऐसे पिरामिड बन पाए, नहीं तो इंसानों के बस की तो ना थी. लेकिन ये तो टीवी की बात हो गई. वैज्ञानिक पिरामिड की निर्माण तकनीकों को लेकर कई थ्योरी देते हैं. 

कुछ कहते हैं कि मिट्टी की एक बहुत लंबी ढलान बनाई गई होगी. जिसके जरिए हजारों टन पत्थरों को लुढ़काकर कई फुट ऊपर फिट किया गया होगा. 

लेकिन ऐसे तमाम थ्योरी पर कई सवाल भी उठाए जाते हैं. मसलन, ढलान होने के बावजूद, क्या तब किसी चीज से 1000-2000 किलो भारी पत्थरों को खींचा जा सकता था? 

इन्हीं सवालों के जवाब फ्रांस के प्लेलियोटेक्नीक इंस्टिट्यूट के साइंटिस्ट खोज रहे थे. और इनकी रिसर्च में पिरामिड बनाने का रास्ता पानी से होकर गुजरता दिखा. जिसके बारे में 5 अगस्त को रिसर्च जर्नल PLOS ONE में इन्होंने बताया. 

हालांकि, यह जवाब खोजना इतना आसान ना था. इसके लिए इन्होंने सैटेलाइट तस्वीरों, वहां के भूगोल, पानी के स्रोत वगैरह का डेटा जुटाया. 

फिर ध्यान गया एक पुराने स्ट्रक्चर पर. जिसके बारे में पहले कोई खास जानकारी नहीं दी गई थी. अनुमान लगाया गया जोजर के पिरामिड के पास ये स्ट्रक्चर, पानी इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा होगा. ये भी कहा गया कि इस सिस्टम में पानी साफ करने का भी इंतजाम था. साथ ही एक हाइड्रॉलिक फ्रेट एलिवेटर या पानी की मदद से चलने वाली एक लिफ्ट जैसी तकनीक के इस्तेमाल की बात भी कही जा रही है. 

लेकिन इस सब को पावर बिजली या तेल से नहीं बल्कि नदी के पानी से मिल रही थी. 

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पिरामिड के किनारे मौजूद संरचना 

इस रिसर्च से जुड़े पैलियोटेक्नीक के सीईओ ज़ेवियर लैंड्रू बताते हैं, 

यह एक जलाशय की खोज है. हमारी रिसर्च से फिलहाल पिरामिड बनाने की तकनीक के सवाल को नई दिशा मिलेगी. इस स्टडी से पहले कोई एक मत नहीं था कि यह स्ट्रक्चर किस लिए इस्तेमाल किए जाते रहे होंगे. कुछ का मानना था कि यह अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किए जाते होंगे. लेकिन यह बहस का मुद्दा था. 

यह लिफ्ट काम कैसे करती रही होगी? 

बताया गया कि इस सिस्टम को काम करने के लिए करीब 2 किलोमीटर दूर नील की एक सहायक से पानी लाना पड़ता होगा. जिसके लिए एक नहर की जरूरत पड़ी होगी. यह पानी पिरामिड के भीतर दो खांचों में भरता था. जहां इस पानी की मदद से पत्थरों ऊपर उठाया जाता रहा होगा. ऐसा दावा किया जा रहा है. 

अब समझते हैं कि जो काम रस्सी और लोगों से मुश्किल था. वो पानी से कैसे हो सकता था. 

आर्किमिडीज (Archimedes) नंगे ही दौड़ पड़े

रिसर्च में कहा जा रहा है कि 4700 साल पहले पत्थरों को पानी की मदद से ऊपर उठाया गया होगा. लेकिन ये होता कैसे है? कैसे हजारों टन भारी जहाज पानी में तैर सकते हैं. इसके पीछे का सिद्धांत बताने का श्रेय जाता है, आर्किमिडीज को. इस सिद्धांत के बारे में पता लगाने की कहानी और भी मजेदार है.

कहानी चलती है कि एक बार राजा ने आर्किमिडीज से अपने मुकुट में सोने की मात्रा पता करने के लिए कहा. लेकिन दिक्कत थी कि वह उसे पिघलाकर चेक नहीं कर सकता था कि उसमें चांदी मिली है या नहीं. 

फिर एक दिन नहाते हुए आर्कमिडीज ने देखा कि जब वो पानी में गए तो कुछ पानी बाहर गिरा. पता लगा कि जितने आयतन या वॉल्यूम की कोई चीज पानी में डाली जाएगी, उतने ही आयतन का पानी ऊपर उठेगा.

इसके बाद आर्किमिडीज का सिद्धांत आया कि किसी तरल में किसी चीज को डुबाने पर उस पर एक उत्पलावन बल लगता है. या कहें पानी उस पर एक तरह का बल लगाता है. और यह बल विस्थापित पानी के आयतन के बराबर होता है. 

फर्ज करिए अगर किसी चीज का वजन 1 किलो है और पानी के भीतर डालने पर वह पूरी तरह डूबकर, इतना ही पानी बाहर गिराती है तो फिर पानी में इस चीज़ का वजन जीरो होगा. क्योंकि जितना वजन उस चीज का होगा उतना ही बल उस पर लगेगा.

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जितना पानी विस्थापित उतना बल वह लगाएगा. 

सिंपल सा फंडा है अगर लबालब भरी बाल्टी में कोई चीज डाली गई तो उससे कुछ पानी विस्थापित होगा या गिरेगा. अब अगर विस्थापित पानी का वजन उस चीज से कम होगा, तो पानी उसपर वजन से कम बल लगाएगा और वह चीज डूब जाएगी. वहीं अगर विस्थापित पानी का वजन ज्यादा होगा, तो वह चीज तैरेगी.

कुल मिलाकर कह सकते हैं जिस चीज का घनत्व या डेंसिटी पानी से कम होगी तो वह तैरेगी. अब पत्थर तो पानी से ज्यादा घनत्व रखते हैं. लेकिन लेकिन लकड़ी या बांस वगैरह के भीतर भरी हवा पानी से कम घनत्व की होती है. यह पानी पर तैर सकती है. साथ ही इस पर एक वजन तक पत्थर भी तैयाए जा सकते हैं.

ऐसा इस रिसर्च का दावा है कि पानी को बांध वगैरा की मदद से ऊपर ऊठाए जाने पर पत्थरों को भी निर्माण की जगह तक पहुंचाया जाता रहा होगा. दावे पहले भी किए जाते रहे हैं. किए जाते रहेंगे. लेकिन प्राचीन पिरामिड बिना आधुनिक तकनीक के कैसे बनाए गए. ये बात फिलहाल पूरी तरह से हम नहीं जानते हैं.

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