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संजय सिंह के बाद अब अमानतुल्लाह खान के पीछे क्यों है ED?

अमानतुल्लाह खान पर ये आरोप हैं कि वो चेयरमैन पद का दुरुपयोग कर रहे है. कैसा दुरुपयोग? वक्फ बोर्ड के बैंक खातों में गड़बड़ी कर रहे हैं. गाड़ियों की खरीद में गड़बड़ी कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने नियम तोड़ते हुए 32 लोगों को वक्फ बोर्ड में नौकरी दे दी.

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ED ने अमानतुल्लाह खान के कई ठिकानों पर छापा मारा है.

10 अक्टूबर की सुबह-सुबह ED की टीम ओखला पहुंची. उनका टारगेट साफ था - आप विधायक अमानतुल्लाह खान से जुड़े ठिकाने. इन ठिकानों पर छापेमारी शुरू हुई. अमानतुल्लाह खान की ज़िंदगी पर आएं, उससे पहले समझते हैं कि मामला क्या है?

अमानतुल्लाह खान पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के कामकाज में वित्तीय हेराफेरी और अन्य अनियमितताओं के आरोप हैं. साथ ही अमानतुल्लाह खान पर ये भी आरोप हैं कि उन्होंने दिल्ली वक्फ बोर्ड की नियुक्तियों में भी गड़बड़ियां कीं. केस समझने के लिए जनवरी 2020 में चलिए. अमानतुल्लाह इस समय दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन थे. इस समय कई शिकायतों के बाद एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और IPC की अलग-अलग धाराओं के तहत अमानतुल्लाह के खिलाफ केस दर्ज किया. आरोप लगाए गए कि ये चेयरमैन पद का दुरुपयोग कर रहे है. कैसा दुरुपयोग? वक्फ बोर्ड के बैंक खातों में गड़बड़ी कर रहे हैं. गाड़ियों की खरीद में गड़बड़ी कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने नियम तोड़ते हुए 32 लोगों को वक्फ बोर्ड में नौकरी दे दी.

केस दर्ज होने के बाद जांच शुरू हुई, लेकिन साल 2022 में इस केस में निर्णायक बढ़त मिली. ACB ने अमानतुल्लाह खान और उनके करीबियों के यहां छापा मारा. इस छापेमारी में अमानतुल्लाह के करीबी कौसर इमाम के घर से ACB को 12 लाख रुपये केस, एक बरेटा पिस्टल और कारतूस बरामद हुए थे. इनके साथ ही यहां से दो डायरियां भी बरामद हुई थीं, जिनमें करोड़ों रुपये के लेनदेन का ब्यौरा लिखा हुआ था, ऐसे आरोप ACB ने लगाए. कहा गया कि डायरी में दी गई ट्रांजैक्शन डिटेल्स का अमानतुल्लाह खान से संबंध है. जांच-पड़ताल में सामने आया कि डायरी में कथित तौर पर गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश में भेजे गए पैसों के अलावा 'दुबई और सऊदी अरब' से आए पैसों का जिक्र लिखा हुआ है.

इसी छापेमारी में अमानतुल्लाह के एक और करीबी को ACB ने पकड़ा. उसके यहां से भी कैश, पिस्टल और कारतूस मिले. पूछताछ में हामिद ने जानकारी दी कि अमानतुल्लाह खान उनके घर में हथियार और कैश रखवाते थे. इधर पत्रकारों से सूत्रों ने भी बात करना शुरू कर दिया. सूत्रों ने कहा कि अमानतुल्लाह खान ने पैसे लेकर अपने करीबियों को वक्फ बोर्ड में भर्ती कर दिया. फिर अमानतुल्लाह खान मीडिया के सामने आए, आज तक से बात की और सफाई दी कि परमानेंट नियुक्ति लटकी हुई थी, इसलिए संविदा पर लोगों को वक्फ बोर्ड में नौकरी दी गई, लेकिन नियम तोड़े बिना.

कुछ ही दिनों बाद अमानतुल्लाह खान भी अरेस्ट कर लिए गए. फिर जमानत पर बाहर आ गए. लेकिन जांच अटक रही थी. सूत्रों के हवाले से आती खबरें बताती हैं कि डायरी से ACB को जो लेनदेन के ब्यौरे मिले थे, उसकी जांच कर पाना ACB के लिए मुमकिन नहीं था. ये मामला सीधे तौर पर मनी लॉन्डरिंग का लग रहा था. इसलिए ACB ने ED से संपर्क किया और जांच की डीटेल शेयर की. ED ने अपने स्तर पर जांच शुरू की, जिसके बाद ये ताज़ा छापेमारी सामने आई है.

कुछ ही दिनों बाद अमानतुल्लाह खान भी अरेस्ट कर लिए गए. फिर जमानत पर बाहर आ गए. लेकिन जांच अटक रही थी. सूत्रों के हवाले से आती खबरें बताती हैं कि डायरी से ACB को जो लेनदेन के ब्यौरे मिले थे, उसकी जांच कर पाना ACB के लिए मुमकिन नहीं था. ये मामला सीधे तौर पर मनी लॉन्डरिंग का लग रहा था. इसलिए ACB ने ED से संपर्क किया और जांच की डीटेल शेयर की. ED ने अपने स्तर पर जांच शुरू की, जिसके बाद ये ताज़ा छापेमारी सामने आई है.

अब आम आदमी पार्टी का जब एक और नेता केंद्रीय जांच एजेंसी के रडार पर है, तो उसकी कहानी खोजी जाने लगी है. तो क्या कहानी है?

अमानतुल्लाह खान की कहानी शुरू होती है पश्चिमी यूपी के मेरठ से. अमानतुल्लाह यहां के सटला इलाके में पड़ने वाले अफगानपुर के रहने वाले हैं. कक्षा 12 तक की पढ़ाई की मेरठ में. फिर दिल्ली में पढ़ाई का ख्वाब बुना. जामिया में दाखिला ले लिया. और उस इलाके में सेटल होने की दिशा में कदम बढ़ा दिया, जहां आगे चलकर वो विधायक बने - ओखला. जामिया में पढ़ाई की जहमत रास नहीं आई तो पढ़ाई पूरी नहीं हुई. कक्षा 12 पास करके ही रह गए. लेकिन नेतागिरी में पैर जमने लगे थे. ओखला के इलाके में नाम होने लगा था. फिर साल आया 2008. अमानतुल्लाह का पहला चुनावी साल. रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का टिकट लिया, ओखला विधानसभा से पर्चा भर दिया. वही हुआ, जिसका उन्हें भी अंदाज था. चुनाव हार गए. यही क्रम साल 2013 में भी रहा. लोजपा के टिकट पर एक और हार अमानतुल्लाह के खाते में आ चुकी थी.

लेकिन साल 2013 आते-आते दिल्ली में एक बड़ा बदलाव हो रहा था. आम आदमी पार्टी जैसी नई नवेली पार्टी ने हल्ला शुरू कर दिया था. जिस चुनाव में अमानतुल्लाह हार गए थे, AAP ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में 28 सीटें निकाल ली थीं. भाजपा को 32 सीटें और कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं. किसी के पास बहुमत नहीं था. सांठ-गांठ से ही सरकार बननी थी. लिहाजा कांग्रेस ने आप को समर्थन दिया, अरविन्द केजरीवाल सीएम की कुर्सी पर बैठ गए.

लेकिन अभी तक केजरीवाल और अमानतुल्लाह की मुलाकात नहीं हो सकी थी. इस मुलाकात का मौका दिया ओखला से आने वाले कांग्रेस विधायक आसिफ मोहम्मद खान ने. कैसे? जनवरी 2014 में चलते हैं. नए-नए सीएम बने केजरीवाल दिल्ली सचिवालय में कुछ पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे. अचानक से कमरे का दरवाजा खुला, सफेद बालों वाला एक नेता हल्ला करते हुए कमरे में घुसा. ये थे ओखला से विधायक आसिफ. उन्होंने अरविंद केजरीवाल को कहना शुरू किया कि वो साल 2008 में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर की जांच कराएं. आसिफ ने आरोप लगाया कि आप ने अपने चुनावी घोषणाओं में बाटला हाउस एनकाउंटर की जांच कराने की बात कही थी, लिहाजा उन्हें करानी चाहिए.

बाद में AAP ने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई चुनावी वादा नहीं किया था. बहरहाल, पत्रकारों के सामने इस तरह का राजनीतिक हमला देखकर अरविन्द केजरीवाल थोड़ा सकुचाए. उन्हें समझ में आ गया कि अगर ओखला की राजनीति करनी है तो आसिफ मोहम्मद खान के बराबर एक नेता खड़ा करना होगा. इलाके के कुछ नेता बताते हैं कि इस काम में अरविन्द केजरीवाल की मदद की कुछ स्थानीय पत्रकारों और कुछ दोस्तों ने. कुछेक दिन की रेकी के बाद केजरीवाल के सामने अमानतुल्लाह खान का नाम रख दिया गया. आम आदमी पार्टी को आसिफ मोहम्मद खान की काट मिल चुकी थी.

लेकिन अभी अमानतुल्लाह को अपनी काबिलियत साबित करनी थी. और इसका मौका मिला उन्हें जुलाई 2014 में. इस साल एक विवाद हुआ. ओखला के इलाके में पोस्टर लगाए गए - कांग्रेस के तीन मुस्लिम विधायकों मतीन अहमद, आसिफ मोहम्मद खान और हसन अहमद के खिलाफ. इन पोस्टरों में आरोप लगाए गए थे कि कांग्रेस के ये तीन MLA पैसा खाकर भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. कांग्रेस ने पुलिस में केस दर्ज कराया. इस मामले के जानकार बताते हैं कि ये पोस्टर तो AAP के इशारे पर लगाए गए थे. लेकिन पार्टी के जिस नेता ने ये पोस्टर लगवाने की जिम्मेदारी निभाई थी, उसने पुलिस केस की बात सुनते ही अपना फोन ऑफ कर लिया. दिल्ली पुलिस ने इधर आम आदमी पार्टी के तीन नेताओं दिलीप पांडे, राम कुमार झा और जावेद अहमद को अरेस्ट कर लिया था. AAP को डैमेज कंट्रोल करना था. लिहाजा भोर में साढ़े 5 बजे अमानतुल्लाह खान के पास एक फोन आया. उनसे पूछा गया कि क्या वो पोस्टर लगवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेंगे? अमानतुल्लाह ने हामी भारी. पुलिस के पास गए, कह दिया कि ये सारे पोस्टर मैंने लगाए हैं. पुलिस ने सबूत मांग लिया. अमानतुल्लाह के पास वो था नहीं, लिहाजा उन्हें हिरासत में लिया नहीं लिया गया.

लेकिन इस घटना ने उनके नंबर बढ़ा दिए. पार्टी में वो अब एक प्रभावशाली नेता की तरह देखे जाने लगे. केजरीवाल के इस्तीफे के बाद साल 2015 में जब फिर से विधानसभा चुनाव हुए, तो आम आदमी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया. अमानतुल्लाह जीत गए. उन्होंने बीजेपी के ब्रहम सिंह को 64 हजार 532 वोटों से हराया. ओखला में जीत की खबरें चलीं तो मेरठ में उनके घर पर भी जश्न मनाया गया. लोग बताते हैं कि मेरठ से जश्न में लबरेज कुछ और युवा ओखला चले आए. सटला के ही रहने वाले थे. ये युवा कब्जा करने, पैसे उगाहने, मारपीट जैसे छिटपुट अपराध काम करते थे. दिल्ली के लोग इन्हें सटला गैंग कहते हैं. सटला गैंग के लोग ओखला के इलाके में एक्टिव हो गए, और विधायक अमानतुल्लाह खान के नाम का इस्तेमाल करने लगे. अमानतुल्लाह खान के हिस्से न चाहते हुए भी बदनामी आने लगी. यही से परेशानी भी शुरू हुई. और शुरू हुआ मुकदमों का सिलसिला.

जुलाई 2016- अमानतुल्लाह पर एक महिला ने अंजाम भुगतने की घमकी देने का आरोप लगाया. मामले में अमानतुल्लाह पर धारा 506 (धमकी देना) और 509 (महिला की गरिमा को नुकसान पहुंचाना) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ. अमानतुल्लाह को पकड़कर हवालात में डाल दिया गया. हालांकि बाद में उन्हें मामले में जमानत मिल गई.

सितंबर 2016 - अमानतुल्लाह पर उनके साले की पत्नी ने यौन शोषण का आरोप लगाया. पुलिस केस दर्ज हुआ. अमानतुल्लाह खान अरेस्ट हो गए. ये केस सामने आने के बाद अमानतुल्लाह ने इस्तीफे की पेशकश की. कहा कि वो सफाई देते-देते थक गए हैं. लेकिन पार्टी ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. कहा कि ये मामला परिवार से जुड़ा हुआ है, इसलिए इस्तीफा नामंजूर किया जाता है. अमानतुल्लाह अरेस्ट हुए और इस केस में भी वो जमानत पर बाहर आ गए.

अप्रैल 2017 - नगर निगम चुनाव से पहले कांग्रेस-आप कार्यकर्ताओं के बीच जामिया नगर इलाके में भिड़ंत हो गई थी. अमानतुल्लाह पर हिंसा करने के आरोप लगे थे, लेकिन अमानतुल्लाह ने कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन पर गोली चलाई है. कांग्रेस ने उन पर FIR भी करवा दी

मई 2017 - अमानतुल्लाह ने कहा कि कुमार विश्वास भाजपा के एजेंट हैं. ये बात कहते ही पार्टी में हल्ला मचा, और कुछ ही दिनों बाद उन्हें पार्टी की पीएसी से निकाल दिया गया.

फरवरी 2018 -  दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने आरोप लगाया कि उन्हें अमानतुल्लाह खान और पार्टी के एक और विधायक प्रकाश जारवाल ने पीट दिया. और ये पिटाई अरविन्द केजरिवाल के घर पर उनके सामने हुई. आप ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. पुलिस केस हुआ. मेडिकल जांच हुई. मारपीट की पुष्टि हो गई. अमानतुल्लाह खान अरेस्ट हो गए. और हमेशा की तरह जमानत पर बाहर आ गए.

साल आया 2020. दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. तमाम शिकायतों के बावजूद पार्टी ने अमानतुल्लाह का टिकट रीपीट किया, फिर से जीत गए. फरवरी का महीना लगा. तो अमानतुल्लाह पर एक और केस दर्ज हो गया. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने डासना के विवादित पुजारी यति नरसिंहानन्द सरस्वती को धमकी दी है. ये केस भी बाकी मामलों की तरह लटका हुआ है. इसी साल दिल्ली में दंगे भी हुए थे. आप के नेता और पार्षद ताहिर हुसैन को दंगे की साजिश रचने के आरोप के तहत अरेस्ट किया गया. अमानतुल्लाह खान ने जुबान खोलकर ताहिर हुसैन का साथ दिया. दो ट्वीट किए, जो उस समय बहुत वायरल हुए थे.

"LG साहब, क्या आपकी दिल्ली  पुलिस नहीं जानती कि दिल्ली के दंगे कराने के लिए बीजेपी के नेता, कपिल मिश्रा,अनुराग ठाकुर,और परवेश वर्मा भी ज़िम्मेदार हैं? तो फिर दिल्ली दंगों में मुसलमानों की ही गिरफ़्तारी क्यों?"

"दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्ज शीट में ताहिर हुसैन को दिल्ली दंगों का मास्टरमाइंड बनाया है, जबकि पूरा देश जानता है कि दंगे किसने कराये? असल दंगाइयों से अभी तक पुलिस ने पूछताछ तक नही की. मुझे लगता है कि ताहिर हुसैन को सिर्फ मुसलमान होने की सज़ा मिली है."

अमानतुल्लाह खान पर इस स्टैंड के लिए हमले हुए, आलोचना हुई. मामला कुछ दिनों बाद शांत पड़ गया. दो साल तक लगभग शांति, लेकिन मई 2022 के महीने में अमानतुल्लाह फिर से प्रकाश में आए. इस महीने दिल्ली नगर निगम ने अलग-अलग इलाकों में अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाया था. जब MCD का बुलडोजर शाहीन बाग के इलाके में पहुंचा, तो वहां सामने अमानतुल्लाह खान खड़े थे. उन्होंने विरोध किया. उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया सरकारी काम में बाधा पहुंचाने का. और साथ ही दिल्ली पुलिस ने उन्हें बैड कैरेक्टर घोषित कर दिया. हिरासत में ले लिए गए, लेकिन हमेशा की तरह जमानत भी मिल गई. और मार्च 2023 के महीने राउस एवेन्यू कोर्ट ने उन्हे इस केस में बरी भी कर दिया.

और अब है ये दिल्ली वक्फ बोर्ड वाला केस, जिसकी जांच पहले एंटी-करप्शन ब्यूरो कर रहा था, अब है जांच ED के हाथ में.

लेकिन जाहिर है कि वो आम आदमी पार्टी के अकेले नेता नहीं हैं, जो केंद्रीय एजेंसियों या दिल्ली पुलिस की जांच का सामना न कर रहे हों, या कर चुके हों। आम आदमी पार्टी के पास ऐसे नेताओं की एक लिस्ट है, सीनियर से जूनियर के क्रम में चलते है -

संजय सिंह - राज्यसभा सांसद
दिल्ली शराब पॉलिसी केस में घूसखोरी के आरोप में उन्हें अक्टूबर 2023 में अरेस्ट किया गया. उन पर आरोप हैं घूस लेने के. साथ ही ये भी कि उन्होंने दिल्ली के कुछ रेस्तरां व्यापारियों से पैसे मनीष सिसोदिया के जरिए आम आदमी पार्टी के फंड में जमा करवाए. इसके एवज में उन्होंने शराब पॉलिसी में बदलाव किये ताकि व्यापारी भी पैसे कमा सकें.

मनीष सिसोदिया - पूर्व डिप्टी सीएम, दिल्ली
वही केस, दिल्ली शराब पॉलिसी. उन्हें फरवरी 2023 में अरेस्ट किया गया. उन पर भी संजय सिंह से मिलते-जुलते आरोप. शराब व्यापारियों से मीटिंग की. उनके फायदे के लिए शराब पॉलिसी में बदलाव किये गए, एवज में पार्टी के लिए चंदा लिया गया.

सत्येंद्र जैन - पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली
मनी लॉन्डरिंग का केस. उन्हें मई 2022 में Ed ने अरेस्ट किया. उन पर आरोप कि उन्होंने अपनी चार कंपनियों के जरिए पैसों का हेरफेर किया. ED ने अरेस्ट करने के साथ ही उनकी लगभग 5 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली.

संदीप कुमार - पूर्व महिला व बाल कल्याण मंत्री, दिल्ली
रेप का केस. संदीप कुमार साल 2015 में विधायक बनकर आए थे. उन पर एक महिला ने आरोप लगाया कि वो उनके पास राशन कार्ड बनवाने गई थी. संदीप ने महिला को नशीला पदार्थ मिलाकर कोल्ड ड्रिंक पिलाई, और फिर उसका रेप किया. साल 2016 में एक सीडी भी सामने आई थी, जिसमें इस घटना से जुड़ा एक वीडियो था. आरोप सामने आने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें सरकार और पार्टी से बर्खास्त कर दिया था. अरेस्ट हो गए.

जितेंद्र तोमर  -पूर्व कानून मंत्री, दिल्ली
वकालत की फर्जी डिग्री का केस. साल 2015 में विधायक बने थे. विधायक बनने के बाद मंत्री बने थे. कुछ दिनों बाद एक RTI के जरिए दावा किया गया कि जितेंद्र तोमर ने जो वकालत की डिग्री दिखाई है, वो फर्जी है. ये जानकारी और पुख्ता कर दी भागलपुर यूनिवर्सिटी ने, जब उसने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि जिस रजिस्ट्रेशन नंबर पर जितेंद्र तोमर अपनी डिग्री दिखा रहे हैं, उस पर किसी और का नाम है. अरेस्ट हो गए.

विजय सिंघला - पंजाब सरकार में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री
एक परसेंट कमीशन मांगने का केस. आरोप लगा था कि उन्होंने स्वास्थ्य महकमे की टेंडर प्रक्रिया में किसी को फायदा पहुंचाने के लिए एक फीसदी कमीशन मांगा था. सीएम भगवंत मान ने तुरंत प्रभाव से उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. इसी साल मई में उन्हें पंजाब की एंटी क्रप्शन ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. फिलहाल सिंगला जमानत पर बाहर हैं लेकिन केस अभी भी जारी है.

आसिम अहमद खान  - पूर्व खाद्य आपूर्ति मंत्री, दिल्ली
घूसखोरी का केस. 2015 में विधायक बने. साल 2018 में आसिम अहमद खान पर एक बिल्डर से 6 लाख रुपये घूस मांगने के आरोप लगे. जिस व्यक्ति से आसिम अहमद खान ने कथित तौर पर घूस मांगी, उस व्यक्ति ने कॉल रिकार्ड करके अरविन्द केजरिवाल को भेज दिया. केजरीवाल ने आसिम को कैबिनेट से हटा दिया और सीबीआई जांच की सिफारिश की. आसिम अरेस्ट हुए और केस में जांच अब भी जारी है.

सोमनाथ भारती - पूर्व कानून मंत्री, दिल्ली
घरेलू हिंसा का केस. 2013 में विधायक बने. और इसी साल उनकी पत्नी ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया. कहा कि जब वो गर्भवती थीं, तो सोमनाथ भारती उनके पीछे कुत्ते छोड़ देते थे. उन्हें गर्भपात के लिए भी मजबूर किया और अपनी कलाई काटने के कोशिश की. सोमनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था. बाद में उन पर एम्स कर्मचारियों के साथ मारपीट करने के आरोप भी लगे थे.

प्रकाश जारवाल - पूर्व विधायक, देवली, दिल्ली
महिला से बदसलूकी का केस. साल 2017 में एक 53 साल की महिला ने आरोप लगाया कि विधायक प्रकाश ने महिला को धमकी दी, बदसलूकी भी की. प्रकाश जरवाल पर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को पीटने का भी आरोप लगा था.

ये तो विधायक, मंत्री और सांसद स्तर के नेता हो गए. इनके अलावा इस फेहरिस्त में दो पार्षदों का भी नाम आता है. ताहिर हुसैन और गीता रावत. ताहिर हुसैन पर साल 2020 में हुए दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा था और वो जेल गए थे. और गीता रावत को साल 2022 में सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने घूस लेते रंगे हाथों अरेस्ट किया था.

देखें तो पार्टी के लगभग दर्जन भर हेवीवेट नेता किसी न किसी जांच या केस का सामना कर रहे हैं. ऐसे में एक सवाल है जो राजनीतिक हलकों में उठने लगा है कि क्या इस पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर पानी फिर रहा है? पार्टी के अंदर क्या स्थिति है? क्या बात और क्या प्लानिंग होती है?

एक बात साफ होनी चाहिए. अगर कोई दोषी है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि ये उन नेताओं और जनप्रतिनिधियों के लिए मिसाल बने, जिन्हें हम और आप चुनकर सदन या संसद भेजते हैं. निर्दोष है तो जाहिर है कि उसे पाकसाफ और बाइज़्ज़त बरी होना चाहिए. लेकिन एजेंसियों की कार्रवाइयां भी इतनी पारदर्शी और साफ होनी चाहिए कि उनकी स्वायत्तता और उनकी काबिलियत को किसी खास पार्टी के खांचे में न बांधा जाए.