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फिलिस्तीन के रॉकेट्स के सामने इजराइल का एयर डिफेंस सिस्टम कैसे फेल हो गया?

इज़राइल का आयरन डोम, सारे रॉकेट हमलों को नहीं रोक पा रहा.

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इजराइल के 'आयरन डोम डिफेंस सिस्टम पर उसके आसमान की सुरक्षा की जिम्मेदारी है (फोटो सोर्स- Getty और आज तक)

10 मई 2023 का दिन. इज़राइल का दक्षिणी इलाका. यहां के आसमान में एक बार फिर पुरानी जानी-पहचानी आवाजें गूंज उठीं. ये आवाजें रॉकेट के वार्निंग सायरन, और इज़राइल के आसमान का रक्षा कवच कहे जाने वाले आयरन डोम की इंटरसेप्टर मिसाइलों की थीं. इधर से इज़राइल, गाजा में हवाई हमले कर रहा है और उधर से फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) ग्रुप के मिलिटेंट्स इज़राइल पर सैकड़ों रॉकेट दाग रहे हैं. इन उग्रवादियों को अमेरिका और इजराइल आतंकवादी कहते हैं. बीते कई दिनों से भयंकर लड़ाई छिड़ी हुई है. महिलाओं बच्चों सहित 20 से ज्यादा फिलिस्तीनियों के मारे जाने की खबर है. और इज़राइल में भी PIJ के दागे रॉकेट्स ने कुछ जानें ली हैं. सवाल है कि क्या इज़राइल का आयरन डोम हवाई हमले रोक पाने में उतना कारगर नहीं रहा?

आज बात इजराइल के आयरन डोम की. इसकी क्षमता पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? विस्तार से समझेंगे.

सबसे पहले बात इज़राइल और गाजा में चल रही ताजा आसमानी लड़ाई की.

अंग्रेजी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने इजराइल डिफेंस फ़ोर्स (IDF) के हवाले से खबर दी कि बीते बुधवार 10 मई को गाज़ा के उग्रवादियों ने इज़राइल की तरफ 270 रॉकेट दागे थे. जिनमें से 60 को इज़राइल के एयर डिफेंस सिस्टम ने निष्क्रिय कर दिया. वहीं इजराइली अखबार द टाइम्स ऑफ़ इजराइल के मुताबिक तीन रॉकेट इजराइल के आबादी वाले इलाकों में भी गिरे जबकि कुछ रॉकेट खुले इलाकों में गिरे. ये गाजा के PIJ ग्रुप की तरफ से बदले की कार्रवाई थी. इसके पहले बीते दो दिनों में इजराइल ने गाजा पर एयरस्ट्राइक की थी. जिसमें 20 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. इसके बाद PIJ ने इजराइल के सबसे घनी आबादी वाले शहर तेल अवीव पर भी निशाना साधकर रॉकेट छोड़े. साल 2021 के बाद तेल अवीव पर गाजा के इस्लामिक जिहाद ग्रुप का ये पहला हमला है.  हालांकि इतिहास की बात करें तो साल 2001 से गाजा के मिलिटेंट आर्गेनाईजेशन हमास और इजराइल के बीच आसमानी जंग जारी है. जिसके चलते इजराइल को आयरन डोम डेवेलप करना पड़ा था.

आयरन डोम क्या है, अब इसे समझते हैं.

आयरन डोम

आपको एक मोबाइल गेम याद है? जिसमें चीजें ऊपर से नीचे गिरती रहती थीं. और उनके नीचे गिरने से पहले उन्हें मारकर खत्म करना होता था. समझिए कि कुछ-कुछ इसी शैली की एक चीज है इज़रायल के पास. जो हमास के रॉकेट्स को बीच हवा में रोककर उन्हें खा जाती है. इस चीज़ का नाम है- आयरन डोम. एक क़िस्म का लौह कवच. जिसपर इज़रायली आसमान की सुरक्षा का जिम्मा है. 
आयरन डोम, इजराइल का एयर डिफेन्स सिस्टम है. इसे इजराइल की राफेल डिफेंस सिस्टम और इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने मिलकर बनाया है. और इसमें अमेरिका ने तकनीकी और आर्थिक मदद की थी. आयरन डोम को साल 2011 से सर्विस में लाया गया है. इसे ख़ास तौर पर गाजा से दागे जाने वाले रॉकेट्स और आर्टिलरी फायर को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है.

आयरन डोम में तीन हिस्से होते हैं - रडार, लॉन्चर और कमांड पोस्ट. रडार से मिली जानकारी के आधार पर सिस्टम ये तय करता है कि आसमान में नज़र आ रहा रॉकेट या गोला खतरा पैदा कर सकता है या नहीं. अगर रॉकेट किसी आबादी वाले इलाके में गिरने वाला है या किसी महत्वपूर्ण इमारत से टकराने वाला है तो आयरन डोम, रॉकेट पर इंटरसेप्टर मिसाइल फायर कर देता है. फिलहाल आयरन डोम में तामीर मिसाइलें इस्तेमाल की जा रही हैं.

इंटरसेप्टर मिसाइलें एक लॉन्चर से फायर की जाती हैं, जो दोनों तरह के होते हैं - स्टेश्नरी और मोबाइल. माने एक जगह से दूसरी जगह जा सकने वाले. मिसाइलें हवा में सीधे ऊपर की तरफ फायर की जाती हैं. उसके बाद वो अपने निशाने को ट्रेस करते हुए दिशा बदलती है. ये इंटरसेप्टर हवा में ही रॉकेट से टकराकर उसे नष्ट कर देती हैं. सिस्टम, उस इलाके में सायरन भी बजाता है, जहां खतरे का अंदेशा होता है.

साल 2021 में इजराइली अखबार हयोम से बात करते हुए इजराइली सेना के अधिकारियों ने कहा था कि आयरन डोम जबसे सर्विस में आया है तबसे इसके हार्डवेयर में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन बीते सालों में इसके सॉफ्टवेयर में कई बदलाव हुए हैं, जिन्होंने इसे और ज्यादा सक्षम बना दिया है. अधिकारियों का ये भी कहना था कि आयरन डोम क्रूज मिसाइल्स, ड्रोन और रॉकेट के हमलों का मुकाबला कर सकता है.

लेकिन हाल ही में इजराइल को जिस तरह रॉकेट के हमले झेलने पड़े. उन्होंने आयरन डोम की काबिलियत पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कहा जा रहा है कि आयरन डोम अब बहुत काम का नहीं है.

आयरन डोम बेफायदा?

आयरन डोम के आलोचक कई दिक्कतें बताते हैं. उनका कहना है कि ये इजराइल का ये एयर डिफेन्स सिस्टम, एक तरह से लड़ाई को और लंबा खींच रहा है. कैसे?

इजरायल के पॉलिटिकल साइंटिस्ट  योआव फ्रॉमर ने साल 2014 में वाशिंगटन पोस्ट में लिखा था. वो लिखते हैं,

"आयरन डोम फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. इजराइलियों को लगातार होने वाले रॉकेट हमलों से बचाने की आयरन डोम की जो काबिलियत है उससे कलह और निराशा कभी ख़त्म नहीं होगी. क्योंकि उसकी इसी क्षमता के चलते, लगातार रॉकेट हमले करने के लिए प्रोत्साहन भी मिलता है."

ये तो कुछ ऐसी बात हुई कि हथियारों से शांति कभी नहीं आती. आप कहेंगे कि हमले की स्थिति में बचाव का तरीका होने में बुराई नहीं है. ये सच भी है कि आयरन डोम सिस्टम के आने के बाद से इजरायलियों के जेहन से रॉकेट हमलों का डर ख़त्म हुआ है. और आयरन डोम के चलते इजराइल को अब अपने सैनिकों को गाजा लड़ने भेजने की जरूरत नहीं है. जबकि साल 2008 और 2009 में उसे ऐसा करना पड़ा था. लेकिन एक तरफ ये भी कहा जाता है कि इजराइल की सरकार इस सिस्टम पर इतना निर्भर है कि वो डिफेन्स के दूसरे तरीकों पर, हमले के दौरान शेल्टर बनाए जाने जैसी जरूरतों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती. जबकि ये सिस्टम काफी महंगा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या बचाव के मामले में आयरन डोम पूरी तरह से कामयाब है? समझते हैं.

इजरायली अधिकारियों और वहां की हथियार बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि आयरन डोम सिस्टम का सक्सेस रेट 90 फीसद से ज्यादा है और ये अब तक हजारों रॉकेट और आर्टिलरी फायर्स को टारगेट हिट करने से पहले ही नष्ट कर चुका है. दो साल पहले मई, 2021 में फिलिस्तीन और इजराइल में लड़ाई छिड़ी थी. तब भी इज़राइली सेना की तरफ से आंकड़ा दिया गया था कि गाजा से 38 घंटे में एक हजार से ज्यादा रॉकेट दागे गये. जिनमें से 90 फीसद रॉकेट आयरन डोम के जरिए ख़त्म कर दिए गए. इसके बाद अगस्त 2022 में इजराइल डिफेंस फ़ोर्स यानी IDF ने कहा कि आयरन डोम का इंटरसेप्शन सक्सेस रेट 97 फीसद है.

लेकिन कुछ डिफेंस एनालिस्ट्स इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि इजराइल के दिए इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इन जानकार लोगों का मानना ये भी है कि हमास और इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों ने अब खुद को आयरन डोम के हिसाब से ढाल लिया है. माने उन्होंने अपने रॉकेट अटैक की तकनीकों में कुछ बदलाव किया है.
माइकल आर्मस्ट्रांग, ब्रॉक विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होंने आयरन डोम सिस्टम पर स्टडी की है. साल 2019 में उन्होंने अपने एक असेसमेंट में लिखा था कि कोई भी मिसाइल सिस्टम पूरी तरह भरोसेमंद नहीं होता. खास तौर पर तब जब ख़तरे का स्वरुप बदल रहा हो. हमले के तरीके बदल रहे हों.

बीते हफ्ते इज़राइल के लिए गाजा के रॉकेट्स ने दिक्कत पैदा कर दी थी. इज़राइली अख़बार जेरुसलम पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते हफ्ते गाजा की तरफ से दागे गए रॉकेट्स को रोकने के दौरान ये इंटरसेप्शन सक्सेस रेट सिर्फ 60 फीसद था. हालांकि रिपोर्ट कहती है कि IDF ने इसकी जांच की थी और कहा कि एक तकनीकी खराबी के चलते आयरन डोम कुछ रॉकेट्स को नष्ट करने में नाकाम रहा. हालांकि बाद में ये खराबी दूर कर ली गई. और आयरन डोम फिर उतना ही इफेक्टिव हो गया. 
इसके बाद बीते बुधवार इजराइल ने ट्विटर पर रॉकेट्स को हवा में नष्ट करने का वीडियो भी जारी किया. और ट्वीट कर कहा,

“थैंक गॉड फॉर द आयरन डोम.”

IDF ने अपने बयान में कहा कि तकनीकी दिक्कतें थीं लेकिन IDF के एयर डिफेंस का स्तर और परफॉरमेंस कायम है.

लेकिन क्या ये सिर्फ एक तकनीकी खराबी की बात है, जो आई और चली गई. और अब गाजा के रॉकेट इजराइल के लिए चिंता का सबब नहीं हैं? या दिक्कतें कुछ और भी हैं?

गाजा के रॉकेट्स में क्या बदला?

फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद के अलावा हमास भी एक मिलिटेंट आर्गेनाईजेशन है. आजकल गाजा पर हमास का ही कंट्रोल है. अमेरिका, PIJ की ही तरह, हमास को भी आतंकी संगठन मानता है. इन दोनों संगठनों को शुरुआत में ईरान और दूसरे सहयोगी देशों से मदद मिली. हथियार और बाकी चीजों की सप्लाई मिस्त्र के बॉर्डर के रास्ते इन्हें मिलती रही. लेकिन अब ज्यादातर हथियारों का प्रोडक्शन और बाकी तैयारियां फिलिस्तीनी एक्सपर्ट्स खुद ही करते हैं. और ऐसा माना जाता है कि इन दोनों आर्गेनाईजेशंस के पास दसियों हजार रॉकेट्स का जमावड़ा है. क्योंकि एक्सप्लोसिव के अलावा एक मेटल प्लेट लगाकर बहुत कम कीमत में भी रॉकेट तैयार किए जा सकते हैं.

रॉकेट की रेंज कितनी दूर तक है, ये भी आयरन डोम सिस्टम के तहत एयर डिफेंस पर प्रभाव डालता है. साल 2000 के बाद इजराइल के बाद दूसरी बार फिलिस्तीनियों का विद्रोह शुरू हुआ था. इसे सेकण्ड इंतिफादा कहते हैं. इस दौरान साल 2001 में हमास ने कासम नाम का एक रॉकेट बनाना शुरू किया था. इसकी रेंज सिर्फ दो या तीन मील तक की थी. लेकिन धीरे-धीरे कासम की रेंज बढ़ाकर 10 मील तक पहुंच गई. और अब गाजा में इससे भी कहीं ज्यादा रेंज के रॉकेट हैं. साल 2019 में इजराइली सेना ने कहा था कि तेल अवीव शहर के पास गिरे एक फिलिस्तीनी रॉकेट की रेंज 75 मील थी.
ये तो लंबी दूरी की बात हो गई. बहुत कम रेंज के रॉकेट भी इजराइल के आयरन डोम के लिए दिक्कत पैदा करते हैं. इजराइली डिफेंस फ़ोर्स में ब्रिगेडियर जनरल रहे माइकल हेरजॉग ने कहा था कि आयरन डोम ढाई मील या उससे कम दूरी से आ रहे रॉकेट्स के लिए ज्यादा प्रभावी नहीं है.

आयरन डोम सिस्टम की इंटरसेप्टर मिसाइल का रॉकेट के मुकाबले कहीं महंगा होना भी एक बड़ी दिक्कत है. रिपोर्ट्स के मुताबिक आयरन डोम की एक यूनिट की कीमत 400 करोड़ रुपए तक हो सकती है. जबकि एक रॉकेट कुछ सौ डॉलर यानी कुछ हजार रुपए में भी तैयार किया जा सकता है. आयरन डोम सिस्टम, एक रॉकेट को इंटरसेप्ट करने के लिए तामीर नाम की दो मिसाइल लॉन्च करता है. और एक तामीर मिसाइल अस्सी हजार डॉलर यानी करीब 65 लाख रुपए की होती है.

कुल मिलाकर वही कहावत फिर, हथियारों से शांति नहीं आती. राजनीतिक समाधान से आती है. लड़ रहे पक्षों को वार्ता की मेज तक पड़ता है.