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फिजिक्स के छात्रों को उनका 'धर्मग्रंथ' देने वाले एचसी वर्मा को पद्मश्री, मां ने पढ़ाने की गजब तरकीब निकाली थी

छठ पूजा के प्रसाद का लालच इतना आगे ले गया कि 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ फ़िज़िक्स’ लिख डाली.

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इतने बड़े-बड़े और ढेर सारे कार्यों के बावज़ूद अगर एच सी वर्मा देशभर में फ़ेमस हैं तो अपनी पुस्तक 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स’ के लिए.
जैसे अंग्रेज़ी सीखने वालों के लिए रेन एंड मार्टिन की बुक 'हाई स्कूल इंग्लिश ग्रैमर एंड कंपोजिशन' धर्मग्रंथ है, वैसे ही इंजीनियरिंग करने वाले एचसी वर्मा की 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ फ़िज़िक्स’ को धर्मग्रंथ की तरह मानते हैं. शायद ही किसी एकेडेमिक्स की किताब को इतनी प्रसिद्धि मिली होगी जितनी एचसी वर्मा की इस एक पुस्तक को. आज उनकी बात इसलिए क्यूंकि 8-9 नवंबर, 2021 को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जिन 119 लोगों को पद्म पुरस्कार दिए, उनमें एचसी वर्मा भी शामिल हैं. उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.
एचसी वर्मा को 2020 में ही पद्मश्री देने की घोषणा कर दी गई थी. लेकिन कोरोना संकट के चलते अब जाकर उन्हें ये सम्मान दिया गया. इस बारे में ट्वीट करते हुए राष्ट्रपति ने लिखा:
विज्ञान और इंजीनियरिंग के लिए डॉ. हरीश चंद्र वर्मा को पद्मश्री प्रदान किया गया है. डॉ. वर्मा भौतिक विज्ञान के शिक्षक और शोधकर्ता हैं. अपनी पुस्तक 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स’ के लिए प्रसिद्ध हैं. दो-खंडों में उपलब्ध इस पुस्तक ने स्कूल स्तर पर भौतिकी शिक्षा में क्रांति लाने का काम किया है.

कौन हैं एचसी वर्मा?

डॉ. हरीश चंद्र वर्मा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT-Kanpur) के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर रहे हैं. अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इससे पहले वो पटना विश्वविद्यालय के विज्ञान कॉलेज में लेक्चरर रह चुके थे. न्यूक्लियर फ़िज़िक्स उनका कोर सब्जेक्ट है और इससे जुड़े उनके क़रीब 150 शोधपत्र कई प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं.
8 अप्रैल, 1952 को बिहार के दरभंगा में जन्मे डॉ. हरीश चंद्र वर्मा का ज्यादातर समय पटना में रहकर बीता. उनकी पढ़ाई यहीं हुई. एचसी वर्मा ने सीधे कक्षा 6 से अपनी औपचारिक शिक्षा प्रारंभ से की. उनके पिता समस्तीपुर के एक स्कूल में टीचर थे. इंटरनेट पर वायरल एक क्लिप में डॉ. वर्मा बताते हैं कि पढ़ने के प्रति उनकी रुचि एक रोचक घटना ने बदली. उन्होंने बताया,
मेरी मां ने कहा था कि मुझे हर घंटे के हिसाब से दो ठेकुआ (छठ पूजा का प्रसाद) खाने को मिलेंगे. शर्त इतनी है कि कॉपी, पेन और बुक लेकर बैठना है. पढ़ने न पढ़ने की कोई शर्त नहीं. बाल मन को लगा कि अगर शर्त में पढ़ना शामिल नहीं तो डील अच्छी है. और बैठ गए एक कमरे में. 5-10 मिनट बीतते न बीतते, बोर होने लगे. सोचा कि चलो किताब के पन्ने ही उलट पलट लिए जाएं. इस दौरान महसूस हुआ कि पढ़ना इतना भी बुरा नहीं.
एचसी वर्मा ने बताया था कि ये पहली बार था जब वो हर किताब में लिखी हर चीज़ को बड़ी ध्यान से पढ़ रहे थे. उधर ठेकुए का मीटर भी चालू था. 2 ठेकुए प्रति घंटे. उस महीने ख़ूब ठेकुए तो कमाए ही, साथ ही एग्ज़ाम में भी अच्छे नम्बर ले आए. इसके बाद बेशक मोटिवेशन हट चुका था, लेकिन वो क्या मीम है, “शुरू मजबूरी में किए थे, अब मज़ा आने लगा था.” बस उसी तर्ज़ पर ये लड़का एकेडेमिक्स के मामले में नित नई ऊंचाइंया छूता चला गया.

एचसी वर्मा ने 10+2 कंप्लीट करने के बाद IIT या किसी इंजीनियरिंग इन्स्टीट्यूट जाने से बेहतर B.Sc करना समझा और पटना साइंस कॉलेज के टॉप थ्री टॉपर्स में से एक रहे. फिर IIT कानपुर से M.Sc और Ph.D पूरी की.
1979 में, जब इनके टीचर सोच रहे थे कि इस ब्राइट माइंड का भी प्रतिभा पलायन निश्चित है, तब इन्होंने शिक्षक बनने की ठानी और वापस उसी कॉलेज पहुंच गए पढ़ाने जहां से B.Sc की थी. 15 साल तक वहां पढ़ाया और फिर 1994 में IIT कानपुर जॉइन कर लिया. 30 जून 2017, यानी अपने रिटायरमेंट तक वहीं पढ़ाते रहे. वर्तमान में प्रो. वर्मा इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिक्स टीचर्स (IAPT) की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं, जो स्कूलों और कॉलेजों में भौतिकी शिक्षा के लिए काम करता है.
इतने बड़े-बड़े और ढेर सारे कार्यों के बावजूद अगर वो देशभर में फ़ेमस हैं तो अपनी पुस्तक 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स’ के लिए. जिसके बारे में राष्ट्रपति ने भी बात की और हम भी एक बार शुरू में कर चुके हैं. 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स’ के पहले खंड में यांत्रिकी, तरंगें और ऑप्टिक्स शामिल हैं और दूसरे खंड में थर्मोडायनेमिक्स, इलेक्ट्रिसिटी और मॉडर्न फ़िज़िक्स जैसे एडवांस चैप्टर्स हैं.
कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ फ़िज़िक्स भारत की सबसे ज़्यादा बिकने वाली नॉन फ़िक्शन में से है. कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ फ़िज़िक्स भारत की सबसे ज़्यादा बिकने वाली नॉन फ़िक्शन में से है.


इस पुस्तक को लिखने का आइडिया प्रो. वर्मा को तब आया जब वो पटना में पढ़ा रहे थे. तब ज़्यादातर अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं से अंग्रेज़ी में अनुवाद की गई पुस्तकें ही चलती थीं. दिक्कत सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा की नहीं थी. ये भी थी कि इन किताबों में रेफ़रेंसेज़ उस देश काल के हिसाब से थे, जहां की ये पुस्तकें थीं. गांव और छोटे शहरों से आने वाले स्टूडेंट फ़िज़िक्स के कॉन्सेप्ट तो क्या ही समझते, दुरूह भाषा में ही उलझ कर रह जाते थे. इन दिक़्क़तों से स्टूडेंट्स को निजात दिलाने के लिए एचसी वर्मा ने 8 साल की कड़ी मेहनत के बाद 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स’ का पहला एडिशन छपवाया. एंड रेस्ट इज़ दी हिस्ट्री.
एच सी वर्मा कहते हैं कि जब वो दशकों बाद इस किताब को देखते हैं तो लगता है अब भी इसमें बहुत सी कमियां हैं. ऑफ़ कोर्स कमियां फ़ेक्च्युअल नहीं, ‘कहन’ या ‘फ़ॉर्मेट’ की हैं. वैसे अंत में ये भी जान लीजिए कि ये किताब एकेडेमिक्स के हिसाब से नहीं, बल्कि सबके लिए फ़िज़िक्स आसान बनाने के लिए लिखी गई थी.