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क्या महिलाओं की तुलना में ज्यादा ज़ोखिम उठाते हैं मर्द? मगरमच्छ और अजगर से पंगा लेने वालों का सीक्रेट पता चल गया

रिसर्च में ये देखने की कोशिश भी की जा रही थी कि अमीरी-गरीबी का जोखिम लेने के व्यवहार पर क्या असर पड़ता है? पता चला कि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर जगहों में रहते थे. वो भरी सड़क पार करते वक्त ज्यादा जोखिम उठाते थे. 'रिस्की राइडर' बनने को लेकर रिसर्च में और भी कई बातें बताई गईं.

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यह रिसर्च कुल 1,030 लोगों पर की गई (Image: social media)

अगर आप सोशल मीडिया की गली-कूचों में फिरने के आदी हैं. तो मुमकिन है कि आपने किसी शख्स को मगरमच्छ या शेर का कॉस्ट्यूम पहनकर, खतरनाक जंगली जानवरों को उंगली करते देखा होगा. नहीं देखा है? तो उसका इंतजाम भी नीचे कर दिया जाएगा. मगर आज बात इन वीडियो की नहीं करते हैं. बात करते हैं कि आदमी जान हथेली पर लेकर ऐसे बवाल काम करते हैं. तो क्या पुरुष महिलाओं से ज्यादा रिस्क लेते हैं (Do men take more risks than women)?

पुरुष ज्यादा जोखिम लेते हैं?

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और एडिथ कोवन यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट लोगों ने इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की. आमतौर पर माना जाता है कि आदमी ज्यादा जोखिम भरे काम करते हैं. रिसर्च से जुड़ी हैना गोडमैन का कहना है कि 

रिसर्च में पाया गया है कि आदमी ट्रैफिक भरी सड़कों पर ज्यादा जोखिम उठाते हैं. ये बात भी इस तरफ इशारा करती है कि जोखिम उठाना आदमियों का काम, महिलाओं से ज्यादा मालूम होता है.  

रिसर्च में जोखिम लेने से जुड़ी और क्या बातें सामने आईं? सब बताते हैं… लेकिन पहले ये बात समझ लें कि ये रिसर्च बस एक इशारा है कि ऐसा हो सकता है. और इसके पीछे ऐसी कुछ वजहें हो सकती हैं. आइए अब बात करते हैं कि रिसर्च में आदमियों के ज्यादा जोखिम लेने के बारे में क्या बताया गया है. 

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हजार से ज्यादा लोगों की आदतों पर रखी गई नजर 

रिसर्च कुल 1,030 लोगों पर की गई. देखा गया कि वो सड़क कैसे पार करते हैं या फिर साइकिल किस तरह चलाते हैं? इसके लिए कहीं दूर से किसी पार्क, कैफे या कार में बैठकर लोगों की हरकतों पर निगरानी रखी गई. 

गरीब, अमीरों से ज्यादा रिस्क लेते हैं?

रिसर्च में ये देखने की कोशिश भी की जा रही थी. कि लोगों के आर्थिक-सामाजिक परिवेश का जोखिम लेने के व्यवहार पर क्या असर पड़ता है? माने गरीबी में रहने वाले लोग ज्यादा जोखिम ले रहे थे या फिर नहीं. पता चला कि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर जगहों में रहते थे. वो भरी सड़क पार करते वक्त ज्यादा जोखिम उठाते थे. 

जवानी का खून गर्म होता है. फिल्मों में भी सनी पाजी को कहते सुना जा सकता है कि मौत से वो डरते हैं जिनकी हड्डियों में पानी भरा होता है. रिसर्च में जोखिम लेने और उम्र का लेना देना भी पाया गया. मालूम चला कि युवा, बुजुर्गों के मुकाबले ज्यादा जोखिम उठा रहे थे.

हैना बताती हैं कि यह रिसर्च ‘यंग मेल सिंड्रोम’ को बल देती है. जिसमें माना जाता है कि लड़के जवानी के दिनों में ज्यादा रिस्क लेते हैं. इस दौरान उनका पार्टनर को ढूंढने के लिए कंपटीशन भी ज्यादा होता है.

इसके पीछे क्या वजह हो सकती है?

रिसर्च के मुताबिक, ‘सेक्सुअल सिलेक्शन’ का सिद्धांत यह अनुमान लगाता है कि पुरुष, अपने प्रजनन (खासकर जवानी) के दिनों में महिलाओं के मुकाबले ज्यादा जोखिम वाले काम करते हैं. माना जाता है, जोखिम लेने की आदत से अच्छे जीन और बेहतर साथी का अनुमान लगाया जाता है. इससे सदस्यों में कौन कितना प्रतियोगी या कंपटीटिव है? यह अंदाजा भी लगाया जाता है. 

कुल मिलाकर कहें तो ज्यादा रिस्क लेने को ज्यादा कंपटीटिव होने से जोड़कर देखा जाता है.

दूसरे शब्दों में समझें. तो ऐसा माना जाता है, कि मानव विकास के क्रम में जोखिम लेने वाले साथी को प्राथमिकता मिलती है. माने पार्टनर चुनते वक्त उसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है जो जोखिम उठाता हो, ऐसा कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है.

रिसर्च में बिना हेलमेट साइकिल चलाने और भरी सड़क में जोखिम लेने के जरिए, इस सिद्धांतों को समर्थन देने की कोशिश की गई है. हालांकि मानव व्यवहार को लेकर एक बात समझने वाली है कि किसी आदत या व्यवहार के पीछे कोई भी एक वजह नहीं होती. तमाम फैक्टर मिलकर किसी एक व्यवहार के पीछे की वजह का अनुमान लगाते हैं. जैसे कि रिसर्च में उम्र और आर्थिक परिवेश को भी इससे जोड़कर देखा गया है.

फिलहाल इस रिसर्च के नतीजे आपके सामाने हैं. आपको क्या लगता है कौन ज्यादा जोखिम लेता है.

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