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AI की मदद से घूम रहे हैं 'डिजिटल भूत', इंटरनेट की दुनिया में लोगों को डर लगता है!

सिलिकॉन इंटेलिजेंस और सुपर ब्रेन जैसी कुछ कंपनियों ने मरे हुए लोगों का डिजिटल वर्जन बनाना शरू कर दिया है. इन्हें Digital Ghost, grief bot या dead bot नाम दिया जा रहा है.

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ये डिजिटल घोस्ट 'लार्ज लैंग्वेज मॉडल' के आधार पर तैयार किए जा रहे हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

एक बार लल्लनटॉप के शो ‘गेस्ट इन द न्यूजरूम’ (Guest in the newsroom) में जावेद अख्तर (Javed Akhtar) के भाई और साइकोएनॉलिस्ट, सलमान अख्तर (Salman Akhtar) आए थे. तब गुजर गए लोगों के सपने आने के बारे में एक सवाल पूछा गया. उन्होंने जवाब दिया कि अगर आपको किसी के जाने के बाद भी, उसके सपने आ रहे हैं. तो इसका मतलब है कि वो आपकी यादों में मरा नहीं है. कहा कि दो तरह के शोक या दुख हैं, जो कभी नहीं जाते. एक 2-8 साल की उम्र में मां के निधन का और दूसरा जवान औलाद के मरने का. शायद यही कारण है कि दुनिया छोड़ गए लोगों को ‘जिंदा’ रखने के लिए, लोग अब टेक्नॉलजी का सहारा ले रहे हैं. AI की मदद से डिजिटल घोस्ट या भूत  (Digital Ghost) बनाए जा रहे हैं.

डिजिटल भूतों का ये काम अभी शुरू ही हुआ है. कि लोग अभी से इनसे डरने लगे हैं. लोगों को क्या डर है? इस पर आगे चर्चा करते हैं. पहले समझते हैं, ये डिजिटल भूत हैं क्या और उनको कैसे बनाया जा रहा है?

Chat-GPT वाली AI टेक्नॉलजी से कैसे हो रहा ये?

बताया जा रहा है कि सिलिकॉन इंटेलिजेंस और सुपर ब्रेन जैसी कुछ कंपनियों ने मरे हुए लोगों का डिजिटल वर्जन बनाना शुरू कर दिया है. इन्हें डिजिटल घोस्ट, ग्रीफ बॉट या डेड बॉट नाम दिया जा रहा है. इनमें लोग अपने जानने वाले, करीबी लोगों की यादों को संजोने का काम करवा रहे हैं.

जिसमें एक डिजिटल बॉट उसी शख्स की तरह बोलता और दिखता है, जैसे वो जब मौजूद थे. ये बॉट जेनरेटिव AI वाली टेक्नॉलजी में काम करते हैं. इसके साथ एक और जटिल सा शब्द आता है, लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM). ये दोनों क्या बला हैं? और इनसे लोगों को ‘अमर’ कैसे किया जा रहा है? बताते हैं.

लार्ज लैंग्वेज मॉडल क्या चीज है?

LLM यानी लार्ज लैंग्वेज मॉडल, LLB के बाद की डिग्री से इसका कोई लेना देना नहीं है. दरअसल ये ऐसे डिजिटल मॉडल हैं, जो बहुत ज्यादा डाटा या जानकारी से लैस होते हैं. इनको ये जानकारी इंटरनेट वगैरह से दी जाती है. कहें तो इन्हें इस डाटा के आधार पर ट्रेन किया जाता है. ताकि ये इंसानी भाषा जैसी नकल कर पाएं. 

हालांकि LLM का नाम AI की चर्चा के साथ ही ज्यादा लिया जाने लगा. लेकिन इनपर काफी पहले से काम चल रहा है. IBM, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियां इस पर सालों से काम करती आई हैं. ये सिर्फ डाटा फीड करने का काम नहीं है. 

दिक्कत है मॉडल को इसी हिसाब से ट्रेन करने की. जैसे किसी बच्चे के सामने तमाम जानकारी होती है. लेकिन उससे सीखने की कला उसे सिखाई जाती है. ऐसे ही इन मॉडल्स को अलग-अलग लेवल पर. इंसानी भाषा (Natural language understanding, NLU) की समझ बनाना सिखाया जाता है. कि इस शब्द के बाद ये शब्द. ये वाक्य ऐसे लिखा जाता है. इस संदर्भ में होता है, वगैरह-वगैरह. 

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साथ ही इंसानी भाषा को समझकर (Natural Language Processing, NLP) उसका ठीक-ठीक अर्थ समझने के लिए भी इन्हें ट्रेन किया जाता है. यानी जानकारी तो इन मॉडल्स के पास इंटरनेट वगैरह से आती है. लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करना है, वो इन्हें अलग से सिखाया जाता है. इनमें इन बातों का ख्याल भी रखा जाता है कि AI इंटरनेट में मैजूद गलत और खतरनाक जानकारी किसी को न बताए, जिससे किसी को नुकसान पहुंच सके.

ये हो गया हमारा LLM. इसके साथ AI की मदद से जब कोई वाक्य, तस्वीर या वीडियो बनाए जाते हैं. तो उसे जेनरेटिव AI कहते हैं. ये खुद से पहले से फीड की गई जानकारी के मुताबिक, नई सी जानकारी बनाकर हमें दे सकता है. इसको समझते हैं डिजिटल घोस्ट वाले मामले से.

एक्सपर्ट्स को लग रहा है डिजिटल भूतों से डर

तो जैसा हमने बताया LLM जिस पर ChatGPT जैसे जेनरेटिव AI काम करते हैं. डाटा के आधार पर काम करता है. इन डिजिटल घोस्ट के मामले में, ये डाटा इन्हें दिया जाता है. शख्स की फोटो, ऑडियो रिकार्डिंग, वीडियो या फिर उस इंसान ने जो कुछ भी लिखा हो उससे.

इस जानकारी के आधार पर AI की मदद से उस इंसान का डिजिटल वर्जन तैयार किया जाता है. जो वैसी ही बातें कर सकता है, जैसा जिंदा होने पर वो शख्स किया करते थे. लेकिन एक्सपर्ट्स को इससे डर है! साइंस न्यूज के मुताबिक, इसकी रिसर्च से जुड़े नोवाज़क बॉसिनस्का ने बताया कि 

मेरे छोटे ही शैक्षणिक करियर में, मैंने डिजिटली अमर करने की टेक्नॉलजी में बड़े बदलाव होते देखे हैं. जहां एक तरफ ये फील्ड कभी छोटी सी थी. वहीं आज ये इंडस्ट्री इतनी हो गई है कि इसके लिए नया शब्द भी दिया गया है, ‘डिजिटल आफ्टर लाइफ इंडस्ट्री.’ (Digital Afterlife Industry)
एक रिसर्चर के तौर पर मेरे लिए ये आश्चर्य करने की बात है. वहीं एक इंसान के तौर पर यह डराने और चिंता की बात है.

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वो आगे कहते हैं कि आज की टेक्नॉलजी के आधार पर, भविष्य के बारे में बता पाना बड़ा मुश्किल है. लेकिन वो कुछ काल्पनिक परिदृश्यों के जरिए इन बॉट्स की समस्या के बारे में बताते हैं. जैसे कोई बीमार मां, मरने से पहले अपने बच्चे के लिए, अपना ऐसा एक डिजिटल बॉट छोड़कर चली जाए. तो क्या यह सही होगा?

इसमें दिक्कत ये है कि अभी की रिसर्च से हमें ये नहीं मालूम कि इस सब से किसी बच्चे के दिमाग पर क्या असर पड़ेगा. दुनिया छोड़कर चले गए किसी शख्स की यादों को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल करना तो ठीक, लेकिन किसी AI का किसी बच्चे को बड़ा करना कितना सही होगा? ऐसे तमाम सवाल इस टेक्नॉलजी के साथ जुड़े ही हैं. आपको क्या लगता है, इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कैसे सही या गलत है?

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