राजेंद्र प्रसाद भी प्रगति के पक्षधर थे, मगर भारतीय मानस के मूल को बदलकर नहीं. वह खूब धार्मिक थे और अपने मान्यता संबंधी रुझानों का प्रदर्शन करने में गुरेज़ नहीं करते थे. पटेल इन दोनों के बीच कहीं थे.खैर, नेहरू और प्रसाद के बीच पहला बड़ा सार्वजनिक टकराव शुरू हुआ हिंदू कोड बिल को लेकर. अक्टूबर 1947 में संविधान सभा में अंबेडकर ने इसका मसौदा पेश किया. नेहरू ने उसका समर्थन किया. इसके तहत सभी हिंदुओं के लिए एक नियम संहिता बनाई जानी थी. इसी के तहत विवाह, विरासत जैसे विवादों पर फैसला होना था. इसके तहत हिंदुओं के लिए एक विवाह की व्यवस्था की जानी थी. और भी कई नियम थे.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बतौर संविधान सभा का अध्यक्ष इसमें दखल दिया. उनका कहना था कि इस तरह के नियमों पर पूरे देश में जनमत तैयार किया जाना चाहिए. उसके बाद ही कानून बनाया जाना चाहिए. उनका तर्क था कि परंपराएं कई रूप में प्रचलित हैं और इससे संबंधित सभी वर्गों को साथ में लिए बिना नियम सफल नहीं होगा.
वो खत जो भेजा नहीं गया
कोड बिल पर विवाद सिर्फ सदन के अंदर ही नहीं था. बाहर भी धर्मगुरु और परंपरावादी समाजसेवक इसका मुखर विरोध कर रहे थे. इन सबके बीच अपनी धीमी गति से बिल पर चर्चा चलती रही. उस पर आई आपत्तियों का नोटिस लिया जाता रहा. मगर संविधान जब पूरो होने को था, तब नेहरू ने इस पर सख्त रवैया अपना लिया. उन्होंने बिल पास करने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया. भले ही इसके लिए सभी आपत्तियों को किनारे क्यों न रखना पड़े.
इससे खीझकर राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें एक पत्र लिखा. पत्र में नेहरू को अन्यायपूर्ण और अलोकतांत्रिक बताया गया. प्रसाद ने नेहरू को भेजने से पहले इसे सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिखाया. उन्होंने पत्र मोड़कर जेब में रख लिया. वह बोले, इस मसले को सही समय पर पार्टी फोरम पर उठाइएगा. ये व्यक्तिगत मत विभेद की बात नहीं है.
पटेल को गृहमंत्री की शपथ दिलाते डॉ. राजेंद्र प्रसाद.
पटेल ने ऐसा क्यों किया. इसलिए क्योंकि ये समय था सितंबर 1949 का. सिर्फ संविधान ही पूरा नहीं होने वाला था. उसके ठीक बाद राष्ट्रपति चुनाव भी होने थे. और पटेल चाहते थे कि इस पद पर राजेंद्र प्रसाद निर्वाचित हों. उधर नेहरू राष्ट्रपति के पद पर उस वक्त के गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आसीन कराना चाहते थे. कांग्रेस संगठन को इन दोनों में से किसी एक को चुनना था. पटेल और प्रसाद संगठन पर नेहरू के मुकाबले ज्यादा मजबूत पकड़ रखते थे. मगर वह नेहरू के साथ चुनाव के पहले कोई सीधा टकराव नहीं चाहते थे. आखिर नेहरू जनता के बीच कांग्रेस का चेहरा और सबसे लोकप्रिय नेता थे. पटेल की युक्ति कामयाब रही और कांग्रेस ने राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति के लिए चुना.देखें राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए कौनसा झूठ बोला थाः
26 जनवरी 1950 को सुबह 10:24 मिनट पर राजेंद्र प्रसाद बने देश के पहले राष्ट्रपति. उधर संविधान सभा संविधान पूरा होने के बाद वैकल्पिक विधायिका की तरह काम करने लगी. 1952 के चुनाव में अभी वक्त था. इस बीच हिंदू कोड बिल पर बहस लगातार जारी थी. डॉ. अंबेडकर इसको लेकर आग्रही थे. उनकी इस विषय पर नेहरू से अंदरखाने तीखी झड़प होने लगी थीं. गुस्सा सिर्फ बिल को लेकर नहीं था. डॉ. अंबेडकर लंदन से इकॉनमिक्स में पीएचडी करके आए थे. वह देश के आर्थिक नियोजन से जुड़े मसलों में भी अपनी भूमिका चाहते थे. मगर नेहरू उन्हें इसमें शामिल नहीं कर रहे थे.
इन सबके बीच संसद के बाहर के आंदोलन भी उग्र हो रहे थे. धार्मिक मोर्चे पर विरोध का नेतृत्व संत करपात्री जी महाराज कर रहे थे. इसी दौर में एक बार उन्होंने हजारों साधु संतों और श्रद्धालुओं के साथ संसद तक मार्च निकाला. यहां पुलिस ने उन्हें रोका. विरोध तीखा हो गया और लाठीचार्ज हुआ. इसमें करपात्री जी महाराज का दंड टूट गया.
जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद और बीआर अंबेडकर
राजेंद्र प्रसाद का खत - कॉमन सिविल कोड की प्रस्तावना
सदन के अंदर राजेंद्र प्रसाद का धैर्य भी टूट रहा था. उन्होंने बतौर राष्ट्रपति एक खत लिखा. प्रधानमंत्री नेहरू को. इसका मजमून कुछ यूं था कि मौजूदा प्रतिनिधि सभा देश का सही ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं करती है. 1952 में देश में पहले आम चुनाव होंगे. लोकसभा का गठन होगा. उस सभा को हिंदू कोड बिल के मसौदे पर बात करनी चाहिए. डॉ. प्रसाद ने यह भी लिखा कि अगर सरकार को बिल पास करना ही है, तो सिर्फ हिंदुओं को ही क्यों लक्ष्य किया जा रहा है. सभी धर्मों को इसमें शामिल किया जाए. सभी के लिए विवाह, विरासत के एक जैसे नियम बनाए जाएं.
आज के संदर्भों में देखें तो प्रसाद की ये बात कॉमन सिविल कोड की प्रस्तावना थी. मगर नेहरू का सेकुलरिज्म बोध यह कहता था कि एक नए बने देश में हिंदू बहुसंख्यकों के मुकाबले अल्पसंख्यकों को अतिरिक्त सेफगार्ड दिए जाने चाहिए. इसलिए उन्होंने प्रसाद का यह सुझाव नहीं माना. फिर प्रसाद ने लिखा कि मैं संसद में इस मसले पर हो रही संसद की दैनंदिन कार्यवाही पर नजर रखूंगा. अगर उसके बाद भी बिल पास हुआ तो मैं बतौर राष्ट्रपति अपने स्तर पर इसका परीक्षण करूंगा.
कभी टकराव रहने के बावजूद न राजेंद्र प्रसाद, न नेहरू ने आपसी सौजन्य में कोई कमी दिखाई. 1959 में IIPA के उद्घाटन पर साथ शिरकत की.
लेकिन नेहरू ने समझदारी से काम लिया
नेहरू ने इसके जवाब में लिखा कि बिल के प्रावधानों पर देश में बड़े पैमाने पर सहमति है. जवाबी खत के साथ साथ नेहरू संविधान विशेषज्ञों से भी सलाह कर रहे थे. सभी ने यही कहा कि देश का राष्ट्रपति संसद की बात मानने के लिए बाध्य है. इस सलाह के बावजूद नेहरू ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने मामले को जरूरत से ज्यादा तूल नहीं दी और चुनाव का इंतजार करने लगे. नेहरू ने प्रसाद और पटेल के साथ कई मौकों पर यह प्रकट समझदारी दिखाई. वह विरोध को उस स्तर तक नहीं ले जाते थे कि चीजें सांगठनिक विघटन की ओर जाने लगें. फिर चाहे वह सोमनाथ मंदिर का मामला हो या फिर कोड बिल का.
मगर डॉ. अंबेडकर नेहरू की इस कूटनीति से सहमत नहीं थे. उन्होंने अक्टूबर 1951 में नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. अपना अलग मोर्चा बना लोकसभा चुनाव की तैयारी करने लगे.इन चुनावों में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस को शानदार बहुमत मिला. उसके बाद राष्ट्रपति के चुनाव हुए, जिसमें राजेंद्र प्रसाद विजयी रहे. पहली लोकसभा ने कई संशोधनों को समाहित करते हुए 1955-56 में हिंदू कोड बिल्स पास किए. इसमें हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू सक्सेशन (उत्तराधिकार) एक्ट, हिंदू माइनॉरिटी एक्ट एंड गार्डियनशिप एक्ट और हिंदू एडॉप्शंस एंड मेंटिनेंस एक्ट शामिल थे.
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