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इंदिरा का करीबी जिसे उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं होने दिया गया!

एक योग गुरु कैसे इंदिरा का सबसे करीबी बन गया?

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जून 1994 में, संजय गांधी की मौत के ठीक 14 साल बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी की एक प्लेन हादसे में मौत हो गई थी (तस्वीर: Dhirendra Brahmachari/facebook)

जम्मू के पास एक छोटा सा क़स्बा है- शिकारगढ़. प्रधानमंत्री बनने से पहले इंदिरा गांधी यहां छुट्टियां मनाया करती थीं. एक रोज़ की बात है. चट्टान पर बैठीं इंदिरा किताब पढ़ रही थीं. कि तभी घोड़ी में बैठा एक शख्स वहां से गुजरता है. सफ़ेद सूती धोती पहने ये शख्स पूछता है, क्या वो इंदिरा गांधी हैं? मैं उनसे मिलना चाहता हूं. इंदिरा का सहायक उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता. इतने में इंदिरा की नजर उस शख्स पर पड़ती है. वो जाकर उससे मुलाक़ात करती हैं. 

शख्स बताता हैं कि वो योग सिखाने वाला एक टीचर है. ये साल था 1957. अब इस मुलाक़ात से कुछ 14 साल आगे चलिए. 1971 के चुनाव के बाद ये योगा गुरु अपने कुछ पत्रकार दोस्तों को कैबिनेट की लिस्ट थमाता है. कुछ रोज़ बाद कैबिनेट का आधिकारिक ऐलान होता है और लिस्ट योग गुरु की लिस्ट से 100 % मैच होती है. ये रुतबा था उस शख्स का जिसे भारत का रास्पुतिन कहा गया. इंदिरा राज में जिसकी तूती सिर्फ बोलती ही नहीं थी, गरजती थी, और ऐसी गरजती थी अफसरशाह से लेकर मंत्री तक सकपका जाते थे. 

नौकरशाहों पर रौब

अपनी किताब ‘इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस : मेकिंग सेंस ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ में VK अनंत लिखते हैं कि जिस विमान हादसे में संजय गांधी की मृत्यु हुई थी. वो पिट्स S2 विमान धीरेंद्र ब्रह्मचारी का था. ऐसे कई प्लेन, गाडियां और महंगे गिफ्ट धीरेंद्र ब्रह्मचारी को मिलते रहते थे जिन पर कोई कस्टम ड्यूटी या टैक्स नहीं चुकाया गया था. दिल्ली की पॉश फ्रेंड्स कॉलोनी में उनकी एक आलीशान कोठी थी. जहां नेताओं का आना जाना लगा रहता था. उद्योगपति और अभिनेता उनके एक दर्शन के लिए लालायित रहते थे. सबको पता था, अगर ब्रह्मचारी ने हां कह दिया तो इंदिरा के अलावा कोई और ना नहीं कह सकता. इंडिया टुडे की तब की एक रिपोर्ट में पत्रकार दिलीप बॉब लिखते हैं,

“गृह मंत्रालय के एक शीर्ष नौकरशाह ने बताया, अगर हमें लगता कि किसी विशेष फ़ाइल को आगे बढाने से स्वामीजी खुश हो जाएंगे तो हम कुछ भी करके फ़ाइल आगे बढ़ाने को तैयार हो जाते”

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ब्रह्मचारी का जन्म 12 फ़रवरी, 1924 को बिहार के मधुबनी ज़िले में हुआ था. (तस्वीर : Dhirendra Brahmachari/facebook)

धीरेंद्र ब्रह्मचारी की असली ताकत का अहसास दुनिया को 1977 के बाद हुआ. जब इमरजेंसी की जांच के लिए बने जस्टिस शाह कमीशन की रिपोर्ट में उनको लेकर कई खुलासे हुए. हालांकि ताकत का ये खेल काफी पहले ही शुरू हो चुका था. ब्रह्मचारी के उदय की कहानी कुछ-कुछ इंदिरा के उदय के साथ-साथ चलती है. 60 के दशक में ब्रह्मचारी डिफेन्स कॉलोनी में एक किराए के घर से अपना योग केंद्र चलाते थे. फिर 1969 में इंदिरा ने ओल्ड गार्ड को किनारे लगाकर कांग्रेस पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली. ठीक इसी समय ब्रह्मचारी को अशोक रोड के पास 1.68 एकड़ का प्लाट मिला. जिसे ख़रीदा गया था, गैस कीजिए, सिर्फ 50 हजार रूपये की कीमत पर. इसके कुछ ही समय बाद उन्हें 3.3 एकड़ का एक और प्लाट मिला. वो भी आने-पौने दाम पर. नई दिल्ली में गोल डाकखाना के पास ब्रह्मचारी ने विश्वायतन नाम का एक योगाश्रम खोला. इस आश्रम से जुड़ा एक किस्सा सुनिए,

60 के दशक में PMO में काम कर चुके जनक राज जय अपने संस्मरणों में बताते हैं कि इस आश्रम की फ़ाइल तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. केएल श्रीमाली को भेजी गई थी. श्रीमाली ने ग्रांट देने से इंकार कर दिया. इस पर उन्हें इंदिरा का कॉल आया. श्रीमाली ने जवाब दिया कि आश्रम ने पिछले सालों की ऑडिट रिपोर्ट जमा नहीं की है. इसलिए ग्रांट रोक दी गई. बात प्रधानमंत्री नेहरू तक पहुंची. नेहरू ने गुस्से में जवाब दिया, “क्या मैं श्रीमाली को हटा दूं?. ब्रह्मचारी ने ऑडिट रिपोर्ट जमा नहीं की है”. नेहरू जब तक रहे, तब तक ब्रह्मचारी की ताकतों पर लगाम लगा रहा. लेकिन बाद में उनकी ताकत बढ़ती गई.

NK सिंह , जो वाणिज्य मंत्री DP चट्टोपाध्याय के सचिव हुआ करते थे, ने शाह कमीशन को बताया था कि ब्रह्मचारी उनके आगे डींगे हांका करते थे. एक बार उन्होंने NK से कहा, “मैंने TP सिंह को हटवा दिया क्योंकि वो जमीन की फ़ाइल क्लियर करने में आनाकानी कर रहे थे”. TP सिंह इंदिरा सरकार में वित्त सचिव हुआ करते थे.

IK गुजराल का पत्ता काटा 

ये तो सिर्फ एक नौकरशाह की बात थी. ब्रह्मचारी के असली रसूख का पता उस किस्से से चलता है जब उन्होंने इन्दर कुमार गुजराल को अपने पद से हटवा दिया था. इस किस्से का जिक्र हमें लेखिका मनीषा की किताब 'प्रोफाइल्स ऑफ प्राइम मिनिस्टर्स' में मिलता है. बात तब की है जब गुजराल आवास राज्यमंत्री थे. ब्रह्मचारी गोल डाकखाना वाले आश्रम के लिए कुछ और जमीन की मांग कर रहे थे. फ़ाइल गुजराल के पास पहुंची तो उन्होंने और जमीन देने से साफ़ इंकार कर दिया. ये देखकर ब्रह्मचारी गुजराल के ऑफिस में गए और सबसे सामने धमकी देते हुए बोले, ‘या तो आप मुझे जगह दो या कल से मंत्री पद से हाथ धो लो.’

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लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी के अनुयायी बन गए थे (तस्वीर : Dhirendra Brahmachari/facebook)

कुछ ही रोज़ में उमाशंकर दीक्षित को कैबिनेट मंत्री बनाकर गुजराल के ऊपर बिठा दिया गया. बात यहां भी न रुकी. उमाशंकर दीक्षित भी फ़ाइल क्लियर करने को राज़ी नहीं थे. अंत में उन्हें और गुजराल, दोनों का एक दूसरे विभाग में ट्रांसफर करवा दिया गया.

ब्रह्मचारी को अख़बार एक और नाम से बुलाते थे, द फ्लाइंग सन्यासी. उनके विमानों का जखीरा देखिए,
-चार सीटर सेसना विमान जिसे वो खुद उड़ाते थे 
-एक 19 सीटर डोर्नियर जो उन्हें विदेश से गिफ्ट में मिला था
-एयर अपर्णा नाम की एक एयर टैक्सी सर्विस जिसे वो खास लोगों को किराए पर देते थे 
-और सबसे खास मौले- 5 विमान. 1977 चुनावों के बाद शाह कमीशन ने पाया था कि इस विमान ने 18 बार राय बरेली तक उड़ान भरी थी. जो इंदिरा गांधी का चुनावी क्षेत्र था. 

ये सारे विमान दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट से उड़ान भरते थे. जिसे इस्तेमाल करने की ब्रह्मचारी को बेरोकटोक आजादी थी. इसके अलावा पालम के पास सिलकोरा में उनका अपना प्राइवेट हेंगर था. जम्मू के पास कटरा और मानतलाई में उनके निजी हेलिपैड और निजी हवाई पट्टियां थी. यहां तक कि उन्हें कश्मीर में निजी हवाई पट्टी बनाने की इजाजत दे दी गई, जो सीमा से नजदीकी के चलते कई सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर बनाई गई थी. ये सब इंदिरा की शह पर हो रहा था, या उनका नाम लेकर किया जा रहा था, कहना मुश्किल है. लेकिन इतना तय था कि इंदिरा के राज़ में धीरेंद्र ब्रह्मचारी की हैसियत कुछ-कुछ रास्पुतिन जैसी हो गई थी. रास्पुतिन एक रूसी तांत्रिक का नाम है, जो 20 वीं सदी की शुरुआत में बहुत ताकतवर हो गया था. रूस के ज़ार निकोलस उस्की कठपुतली बन गए थे. रास्पुतिन की पूरी कहानी जानना चाहते हैं तो आइ बटन पर क्लिक कर सकते हैं, या डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक पर जा सकते हैं.

रास्पुटिन की ही तरह ब्रह्मचारी का व्यक्तित्व प्रभावित करने वाला था. पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह, जो ब्रह्मचारी से खुद भी योग सीखते थे, एक जगह लिखते हैं, “वो (धीरेंद्र ब्रह्मचारी) दिखने में तेजस्वी थे. एकदम गोरी चमड़ी वाले और उनकी उपस्थिति करिश्माई थी. इंडिया टुडे के आर्टिकल में दिलीप बॉब लिखते हैं ”उनकी आभा एकदम मसीहा जैसी थी. 6 फुट एक इंच की हाइट, और बिखरे हुए बाल. कोई उन्हें ईसा मसीह समझ सकता था”

ब्रह्मचारी का ऐसा असर बाकी लोगों के साथ-साथ इंदिरा पर भी हुआ. अपनी दोस्त डोरोथी नॉरमन को लिखे एक खत में वो लिखती हैं.  

“मैंने योग को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है. मुझे एक बहुत सुंदर योगी योग सिखाता है. उसकी शक्ल और उसका आकर्षक डीलडौल सबको अपनी तरफ़ आकर्षित करता है लेकिन उससे बात करना एक तरह की सज़ा है. वो बहुत बड़ा अंधविश्वासी है."

दूरदर्शन और तंत्र-मंत्र 

80 के दशक में दूरदर्शन पर हर बुधवार ब्रह्मचारी का एक कार्यक्रम आता था. जिसमें वो लोगों को योग सिखाते थे. ये सुनकर कुछ याद आया होगा आपको लेकिन फ़िलहाल इतिहास पर ही कायम रहते हैं. इमरजेंसी के दौरान ब्रह्मचारी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है. जिसका जिक्र आईबी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक मलयकृष्ण ने 'ओपन सीक्रेट' नाम की किताब में किया है.

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शाह आयोग की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र था कि किस तरह ब्रह्मचारी ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपनी संपत्ति बढ़ा ली थी. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

बात 1974 की है. वरिष्ठ नेता यशपाल कपूर ने एक रोज़ इंदिरा गांधी को बताया कि उनका एक दुश्मन उनके और संजय गांधी के खिलाफ तंत्र-मन्त्र करा रहा है. मलयकृष्ण लिखते हैं, ब्रह्मचारी उनके पास पहुंचे और तहकीकात का जिम्मा सौंपा. तमाम गुप्तचर दौड़ाए गए. रात भर दिल्ली के शमशानों की खाक छानी गई. लेकिन तंत्र-मन्त्र का त भी हाथ न लगा. मामला ख़त्म था लेकिन ब्रह्मचारी संतुष्ट न हुए. अंत में आनन-फानन में एक वैद्य को पकड़ कर लाया गया. उस बेचारे को कुछ दिन जेल में रखकर फिर रिहा कर दिया गया. 1977 में देश को भी इमरजेंसी से रिहाई मिली. 

तब तक दिल्ली वाला आश्रम ब्रह्मचारी का मुख्य अड्डा था लेकिन फिर 1977 में इंदिरा सरकार की रुखसती के साथ ही वो जम्मू के पास मानतलाई आश्रम में शिफ्ट हो गए. जस्टिस शाह कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में उन पर कई आरोप लगाए. गैरकानूनी रूप से जमीन के आवंटन और बिना टैक्स चुकाए विदेशी सामान के आयात पर उन पर कई केस खोले गए. ये केस हालांकि 1980 तक ही बरक़रार रहे. इंदिरा की वापसी के साथ ही ब्रह्मचारी पर लगे सभी आरोप वापिस ले लिए गए.

1980 में प्लेन हादसे में संजय गांधी की मृत्यु हुई. इस हादसे के बाद ब्रह्मचारी ने कहा था , ‘संजय बहुत अच्छे पायलट थे लेकिन मैंने उन्हें हवा में ज़्यादा कलाबाज़ी दिखाने के लिए मना किया था.’ संजय की अंत्येष्टि के दौरान दुनिया ने देखा कि बिना किसी सरकारी ओहदे वाला ये सन्यासी सारे आयोजन का जिम्मा संभाल रहा था. संजय की मौत के बाद जब मेनका की इंदिरा के घर से रुखसती हुई, इसमें भी ब्रह्मचारी का अहम रोल था.

खुशवंत सिंह अपनी आत्मकथा में बताते हैं धीरेंद्र ब्रह्मचारी मेनका के कमरे में गए और उन्हें बताया कि इंदिरा ने उन्हें घर से चले जाने को कहा है. खुशवंत सिंह के अनुसार इंदिरा चाहती थी कि दौरान इस पूरे प्रकरण के दौरान धीरेंद्र ब्रह्मचारी वहीं मौजूद रहे और इसके गवाह रहें. खुशवंत सिंह ने आगे लिखा है, “इस दौरान जब बात बहुत आगे बढ़ गई, इंदिरा जोर-जोर से रोने लगीं और ब्रह्मचारी खुद उन्हें कमरे से बाहर ले गए”. 

गन फैक्ट्री पर छापा और दिल्ली से रुखसती 

संजय की मौत के कुछ वक्त बाद तक ब्रह्मचारी का प्रभाव बरक़रार रहा, लेकिन फिर जैसे-जैसे राजीव गांधी की उपस्थिति मजबूत होती गई, ब्रह्मचारी नेपथ्य में जाने लगे. पहली शुरुआत हुई टीवी से. 1982 तक दूरदर्शन पर ब्रह्मचारी का योग कार्यक्रम आता था. ये प्रोग्राम ठीक चित्रहार से पहले आता था. जो दूरदर्शन का सबसे हिट प्रोग्राम था. चित्रहार में हर सेकेंड विज्ञापन के 4 हजार रूपये मिलते थे. दिक्कत ये थी कि कई बार ब्रह्मचारी का प्रोग्राम चित्रहार के स्लॉट पर असर डालता. ये बात दूरदर्शन के अधिकारियों को अखरती थी. उन्होंने ब्रह्मचारी को ऑप्शन दिया कि या तो अपना प्रोग्राम छोटा कर लें या उसे किसी और स्लॉट पर शिफ्ट कर लें. ब्रह्मचारी इसके लिए हरगिज़ तैयार न थे. नतीजा हुआ कि उनका प्रोग्राम टीवी से गायब ही कर दिया गया.

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धीरेंद्र और संजय गांधी दोनों विमान उड़ाने के शौकीन थे. धीरेंद्र ने संजय की मारुति फ़ैक्ट्री में तीन लाख रुपए का निवेश किया था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

अगला पंगा हुआ साल 1983 में. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की जम्मू में शिवा नाम की एक गन फैक्ट्री थी. 1983 में CM डॉ. फारुख अब्दुल्ला ने इस फैक्ट्री पर छापा मारा. छापे के वक्त वो खुद भी वहां मौजूद थे. इस दौरान फैक्ट्री से 500 स्पैनिश बंदूकें मिली. जबकि लाइसेंस सिर्फ स्वदेशी हथियार बनाने का मिला था. हालांकि धीरेंद्र ब्रह्मचारी इस मामले में भी बच निकले और उन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई. किस्मत ने साथ दिया लेकिन ज्यादा वक्त तक नहीं.

1984 में इंदिरा की हत्या के साथ ही ब्रह्मचारी की किस्मत के पासे पलटने लगे. राजीव के सत्ता संभालते ही प्रधानमंत्री का आवास और ऑफिस, दोनों दरवाज़े उनके लिए बंद हो गए. जिस रोज़ इंदिरा की मृत्यु हुई, ब्रह्मचारी को उस चबूतरे से भी उतार दिया दिया, जिस पर इंदिरा का शव रखा हुआ था. ब्रह्मचारी ने मानतलाई लौटने की सोची. सपना था मानतलाई को सिंगापोर बनाने का. पांच हजार फुट लम्बी झील, हजारों कारों वाली पार्किंग, मोनो रेल, स्कूल कॉलेज ये सब सपने का हिस्सा थे. 

ध्यान के लिए एक सुरंग बननी थी. जिसके बाहर ब्रह्मचारी के अनुसार दो भालू पहरा देते. भालू के बच्चे पाल भी लिए गए थे. भालू तो बढ़े हुए लेकिन तब तक सपना हकीकत में गोते लगा चुका था. जून 1994 में, संजय गांधी की मौत के ठीक 14 साल बाद एक रोज़ धीरेंद्र ब्रह्मचारी अपने विमान में सवार हुए. ताकि अपनी जमीन का ब्यौरा ले सकें. विमान ने गोता खाया और जमीन में क्रैश कर गया. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की मौत हो गयी. वक्त ने मानतलाई के उनके आश्रम को खंडर में तब्दील कर दिया. वहीं दिल्ली वाले उनके आश्रम को मोरारजी देसाई नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ योगा नाम दे दिया गया. 

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