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सपिंड विवाह पर दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया है?

हिन्दू मैरिज एक्ट का एक मामला पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा. एक महिला की याचिका थी कि उसकी शादी मान्य होनी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उसे अमान्य करार देते हुए कह दिया कि चूंकि ये सपिंड विवाह हुआ है. इसलिए ये विवाह क़ानून में मान्य नहीं है.

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आसान भाषा में- सपिंड विवाह

भारत में शादी के क़ानून धर्मों के हिसाब से बंटे हुए हैं. मसलन हिन्दू धर्म में शादी के क़ानून का नाम है हिन्दू मैरिज एक्ट. हिन्दू मैरिज एक्ट का एक मामला पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा. एक महिला की याचिका थी कि उसकी शादी मान्य होनी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उसे अमान्य करार देते हुए कह दिया कि चूंकि ये सपिंड विवाह हुआ है. इसलिए ये विवाह क़ानून में मान्य नहीं है. तो इस घटना के बहाने 

आसान भाषा में समझेंगे:
-हिन्दू मैरिज एक्ट क्या है?
-सपिंड विवाह किसे कहते हैं ?
-और दिल्ली हाई कोर्ट ने सपिंड विवाह को अमान्य क्यों करार दिया है? 



पहले दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे मामले की कहानी 
मामला शुरू हुआ साल 1998 में. एक महिला की शादी हुई. महिला के अनुसार उसके पूर्व पति और सास-ससुर ने शादी के लिए उसके परिवार से संपर्क किया था. जिस व्यक्ति से महिला की शादी कि बात चल रही थी वो रिश्ते में उसका दूर का चचेरा भाई लगता था. माने दोनों के पिता एक दूसरे के कज़िन लगते थे. दिसम्बर 1998 में हिंदू संस्कारों और रीति-रिवाजों के मुताबिक दोनों की शादी हो गई. फिर आया साल 2007. पति ने कोर्ट में कहा कि उनकी शादी एक सपिंड विवाह है. कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि ये शादी अवैध है. चूंकि पति और पत्नी दोनों ऐसे समुदाय से है जहां शादियां हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत होती हैं इसलिए ये हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 (v) का उल्लंघन है. 
 

महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए शादी की अवैधता को बरकरार रखा. इसके बाद महिला ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सपिंड विवाहों को अवैध घोषित करने वाले हिन्दू मैरिज एक्ट के प्रावधानों की वैधता पर सवाल उठाए. महिला ने तर्क दिया कि प्रथा का कोई प्रमाण न होने पर भी सपिंड विवाह प्रचलित हैं. हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5(v) जिसके तहत सपिंड विवाहों पर रोक है, वो संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. संविधान का आर्टिकल 14 सभी को कानून के सामने बराबरी का अधिकार देता है. महिला ने ये भी कहा कि शादी के समय दोनों परिवारों की रजामंदी भी थी, लिहाजा ये शादी पूरी तरह से वैध है. 

पहले समझते हैं कि सपिंड विवाह क्या होता है?
शब्द से ही शुरू करते हैं. सपिंड का अर्थ निकालें तो बनता है एक पिंड यानी एक कुटुंब. परिवार या खानदान के लिए कुटुंब शब्द इस्तेमाल किया जाता है. यानी हिन्दू समुदाय एक ही परिवार या खानदान में आपसी विवाह को सही नहीं मानता.
 

हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 3(f)(ii) के तहत दो लोगों के पूर्वज अगर एक ही थे. तो उनके विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा. एक्ट के हिसाब से लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक शादी नहीं कर सकता/ सकती. यानी भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी भी रिश्ते में आते हैं, उनसे शादी करना निषेध माना गया है. ऐसा ही नियम पिता की तरफ से भी है पर एक बदलाव के साथ. जहां मां की तरफ से तीन पीढ़ियों की पाबंदी है वहीं पिता की तरफ से पांच पीढ़ियों तक पाबंदी है. यानी लड़का या लड़की के बीच पिता की तरफ से पिछली पांच पीढ़ियों तक कोई रिश्ता मान्य नहीं होगा.

 
इस कानून के पीछे तर्क दिया जाता है कि इससे करीबी रिश्तेदारों के बीच शारीरिक और मानसिक संबंध कई तरह की समस्याओं को जन्म देता है. हालांकि कर्नाटका और तमिलनाडु में, हिन्दू धर्म में ही कुछ समुदाय ऐसे भी हैं, जिनमें मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का सिस्टम है. इन समुदायों को एक्ट में छूट दी गई है जिससे उनकी शादी को मान्यता मिल सके. क़ानून के अनुसार इनके अलावा अलावा अगर कोई दो ऐसे व्यक्ति शादी करते हैं. जिनके पूर्वज और आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे. तो ऐसी शादी को हिन्दू मैरिज एक्ट में अमान्य माना जाएगा. अगर शादी हो चुकी है तो भी उसे शुरुआत से ही गलत या निषेध माना जाएगा.

आपने एक और शब्द बार-बार सुना हिन्दू मैरिज एक्ट. इस मसले को अच्छी तरह समझने के लिए जरूरी है कि हम हिन्दू मैरिज एक्ट को भी अच्छे से समझ लें. 
हिन्दू मैरिज एक्ट दरअसल हिन्दू कोड बिल के अंतर्गत आता है. हिन्दू समुदाय के रिफॉर्म के लिए तीन अलग-अलग भागों में इसे लाया गया था. इसी का एक हिस्सा है हिन्दू मैरिज एक्ट. जो 1955 में लाया गया. इसके अन्य दो हिस्सों में, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 यानी Succession Act और हिन्दू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 हैं. इन दोनों कानूनों के तहत हिन्दू समुदाय में संपत्ति में उत्तराधिकार और तलाक जैसे मुद्दों में बच्चों की कस्टडी और विवाह के बाद अलग होने पर मेंटेनेंस आदि का प्रावधान है. हिन्दू मैरिज एक्ट के लागू होने के बाद एक हिन्दू व्यक्ति अगर हिन्दू रीति रिवाज से शादी करता है, तो उस पर नियम लागू होंगे. मसलन इस एक्ट के कुछ मुख्य पहलू आपको बताते हैं:

●शादी के समय लड़के की न्यूनतम आयु 21 साल और लड़की की उम्र भी 21 साल होनी चाहिए. पहले लड़कियों के लिए यह उम्र 18 थी. 2021 में केंद्र सरकार ने बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक, 2021 के तहत ये उम्र 21 कर दी.
●बिना तलाक दिए अगर कोई दूसरा विवाह करता है तो वो अवैध माना जायेगा.
●तलाक के लिए भी कुछ बिंदु मान्य होंगे जैसे
●अगर पति या पत्नी में से कोई व्यभिचार यानी शादी के अलावा भी कहीं और संबंध रखता है तो ये तलाक का आधार बन सकता है.
●पति-पत्नी बिना तलाक के दो साल या उससे ज़्यादा समय से अलग रह रहे हों, तो इसे आधार मानकर तलाक की अर्ज़ी दी जा सकती है.
●धर्मांतरण: पति या पत्नी में से यदि किसी एक ने कोई और धर्म अपना लिया हो, तो शादी तोड़ी जा सकती है.
●एकविवाह रहते यदि कोई दूसरा विवाह करता है तो ये अवैध होगा. इसके लिए 7 साल तक की जेल हो सकती है.
●यदि व्यक्ति ने दूसरा विवाह किया है और छुपाया है तो इसमें 10 साल तक की जेल का प्रावधान है.

ये कानून हिन्दुओं पर लागू होते हैं. तो एक सवाल ये भी उठता है कि हिन्दू किसे कहेंगे? 
भारत के संविधान के मुताबिक किसी व्यक्ति के माता-पिता दोनों या दोनों में से कोई एक हिन्दू समुदाय से हो तो व्यक्ति हिन्दू होगा. लेकिन जो व्यक्ति जन्म से हिन्दू, सिख, जैन या बौद्ध हैं उन सब पर हिन्दू कोड बिल के प्रावधान लागू होते हैं.  इसमें एक अपवाद भी है, 1955 के एक्ट के सेक्शन 2(2) के तहत आदिवासी समूहों को इस कानून से छूट है. कुछ और समुदायों, जिनमें सपिंड विवाह की छूट है, वो भी ऐसी शादी कर सकते हैं. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए. साथ में वो रिवाज़ भी इतना प्रचलित होना चाहिए कि अमुक क्षेत्र के समुदाय, कबीले के खुद को हिन्दू मानने के बावजूद किसी रिवाज, मसलन सपिंड विवाह का पालन भी कानून की तरह होता हो. रिवाज भी समाज के विरुद्ध नहीं होना चाहिए.
 

हिन्दू मैरिज एक्ट का प्रावधान जिसकी वजह से सपिंड विवाह की मनाही है 
हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा है 5(v). इसके तहत ही सपिंड विवाह को गलत माना गया है. इस धारा के मुताबिक दो हिंदुओं के बीच विवाह तभी हो सकता है अगर वो एक दूसरे के सपिंड न हों. दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए यही तर्क दिया. 

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या टिप्पणी की?
हाईकोर्ट की 2 जजों की बेंच जिसमें एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह की बेंच ने मामले पर विचार करने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता के परिवार को ये तथ्य पता था कि विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. इसलिए इस मामले में कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं हो सकती. 
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा -
 

"आप हमेशा जानते थे कि यह एक निषिद्ध संबंध है. कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं है. आपके माता-पिता को शादी के लिए सहमत नहीं होना चाहिए था." 
 

याचिकाकर्ता ने ये भी तर्क दिया था कि इस तरह के सपिंड विवाहों को देश के कुछ हिस्सों जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में आम माना जाता है. इस पर अदालत ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट में ऐसी शादियों को वहीं वैध माना जाता है जहां ये प्रथा का हिस्सा हैं. लिहाज़ा ऐसी जगहों पर सपिंड विवाह को वैध माना जाएगा. चूंकि याचिकाकर्ता उस समुदाय से नहीं है जहां ऐसे विवाह प्रचलित हैं इसलिए उसके विवाह को अवैध ही माना जाएगा.

भारत से बाहर  देशों में सपिंड विवाह को लेकर क्या नियम हैं?
बात करें यूरोप के देशों की तो उनमें ऐसी शादियों को लेकर कानून तो हैं. पर भारत की तुलना में वो उतने सख्त नहीं हैं. फ़्रांस में 1810 का पीनल कोड चलता है. जैसे अपने यहां इंडियन पीनल कोड था, वैसा ही. फ्रेंच पीनल कोड 1810 के तहत अगर दो लोग वयस्क हैं और आपसी सहमति से साथ है तो रिश्ता मान्य होगा. ये पीनल कोड नेपोलियन बोनापार्ट के समय से लागू है. उस समय बेल्जियम में भी यह कोड लागू किया गया था. आज के मॉडर्न समय में बेल्जियम का अपना अलग पीनल कोड है जो कि 1867 से लागू है. पर इस तरह के रिश्तों को वहां कानूनी मान्यता प्राप्त है.  इसी तरह पुर्तगाल में भी ऐसे रिश्तों को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है. आयरलैंड में 2015 में समलैंगिक विवाहों को मान्यता दी गई थी लेकिन इसमें सपिंड विवाह जैसे रिश्तों को शामिल नहीं किया गया. बात करें इटली की तो यहाँ इन रिश्तों को कानूनी मान्यता तो प्राप्त है पर अगर इस तरह के रिश्तों की वजह से समाज का बैलन्स बिगड़ता है तो ऐसी शादी को अवैध माना जाएगा. अब आखिर में बात अमेरिका की. अमेरिका के 50 स्टेट्स में सपिंड शादियों को अवैध माना जाता है. पर इसमें अपवाद के तौर पर दो राज्य हैं, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड. इन दो राज्यों में अगर दो वयस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाएगा.