दुनिया का नक्शा देखें तो कई जगहें इस वक्त ऐसी हैं जहां जंग चल रही है. चाहे वो गाजा पट्टी हो, रूस-यूक्रेन हो म्यांमार में हो रही हिंसा हो या हाल ही में फिर से हिंसा की जद में आया सीरिया. इन सभी जगहों पर युद्ध के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, पर एक चीज जो सभी जगह कॉमन है, वो है जंग में इस्तेमाल होने वाले हथियार. ये बात सच है कि जंग जीतने के लिए हथियार के साथ-साथ एक फौजी के जज्बात भी मायने रखते हैं. पर अगर हथियार ही ऐन वक्त पर धोखा दे दें तो फिर जंग जीतना तो दूर, जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है.
भारत की फौजों को इन हथियारों की सख्त दरकार, फिर क्यों देरी कर रही है मोदी सरकार?
भारत को Stryker Armoured Vehicle, S-400 Air Defence System, और LCA Tejas के इंजन का इंतजार है. अलग-अलग कारणों से इन डील्स में देरी हो रही है.
इन सब बातों से ये जाहिर है कि भारत की फौज को भी अच्छे हथियारों की जरूरत है. कुल जमा देखें तो भारत के लिए हथियार खरीदने का जिम्मा भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन है. भारत ने हाल ही में अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन की डील की है. इस डील से भारत की मिलिट्री क्षमता को एक नया बल मिलेगा. पर कुछ डिफेंस डील्स ऐसी हैं जो पिछले कुछ समय से अटकी हुई हैं. ऐसे में इंडियन आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की क्षमता में ज़रूरी इज़ाफ़ा भी अटका दिख रहा है. तो जानते हैं कुछ ऐसी ही डील्स के बारे में जिनमें किसी न किसी कारण से देरी हो रही है.
बख्तरबंद गाड़ियां- कनाडाबख्तरबंद गाड़ियां किसी भी फौज के लिए एक रक्षा कवच की तरह होती हैं. ऑपरेशन के दौरान इसके अंदर बैठे सैनिकों की सुरक्षा काफ़ी हद तक बढ़ जाती है. साथ ही ये गाड़ियां उन्हें न सिर्फ गोलियों से बल्कि बारूदी सुरंगों से भी सुरक्षित रखती हैं. इसी जरूरत को देखते हुए भारत ने अमेरिकन कंपनी General Dynamics की एक बख्तरबंद गाड़ी , स्ट्राइकर (Stryker Armoured Vehicle) में दिलचस्पी दिखाई. अब चूंकि अमेरिका को भी चीन आंख दिखानी है और एक तरफ उसे भारत को भी रूस से दूर करना है, ऐसे में अमेरिका ने इस मौके को बखूबी भुनाया.
जून 2024 में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार Jake Sullivan भारत आए थे. उनकी इसी यात्रा के दौरान इस डील की रूपरेखा तय हुई. अमेरिका के Deputy Secretary Of State कर्ट कैम्पबेल ने भी इस डील को लेकर ऐसे बयान दिए जिससे लगा कि अब जल्द ही भारतीय सेना को बख्तरबंद गाड़ियों की सौगात मिल जाएगी. पर सब ठीक था पर इसी बीच हो गया एक कांड. और इससे भारत और कनाडा के संबंध ऐसे बिगड़े की ये डिफेंस डील अटकती हुई दिख रही है.
दरअसल General Dynamics है तो अमेरिकन कंपनी. पर इसी कंपनी की एक सब्सिडियरी है, General Dynamics Land Systems Canada जिसे आमतौर पर GDLS-C के नाम से जाना जाता है. कनाडा के Ontario में इस कंपनी का प्लांट है जहां ये स्ट्राइकर गाड़ियां बनती हैं. प्लान था कि भारत पहले इस प्लांट से कुछ गाड़ियां खरीदेगा, फिर उन्हें आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत GDLS-C के सहयोग से भारत में ही बनाया जाएगा. पर भारत-कनाडा के बिगड़े रिश्ते के कारण ये डील अधर में लटकी दिख रही है.
बीते दिनों खालिस्तान समर्थक आतंकियों को शरण देने और कनाडा द्वारा भारत की एजेंसी रॉ पर लगाए गए गंभीर इल्जामों के कारण दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई. बात इतनी बढ़ गई कि दोनों देशों ने एक दूसरे के डिप्लोमैट्स को निकाल दिया. अब चूंकि General Dynamics Land Systems Canada के जिम्मे ही इस गाड़ी का प्रोडक्शन है, ऐसे में अमेरिकी उप विदेश मंत्री के बयान के बाद से अबतक इस डील में कोई भी प्रोग्रेस नहीं दिखाई दी है. जब तक दोनों देशों के संबंध नॉर्मल नहीं होते तब तक इस डील पर आगे बातचीत होना मुश्किल है.
भारत ने रूस से काफ़ी उन्नत माने जाने वाले S 400 एयर डिफेंस सिस्टम की डील को 2018 में अंतिम रूप दिया था. भारत ने रूस से कुल 5 ऐसे सिस्टम्स की डील के लिए 5.43 बिलियन डॉलर की डील पर साइन किया था. ये सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी तक एयरक्राफ्ट, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों से निपटने में सक्षम है. एस 400 में एक उन्नत रडार लगा है जिसे 91N6E रडार कहा जाता है. ये एक समय में 600 किलोमीटर की दूरी से 300 खतरों को एक साथ ट्रैक कर सकता है. रूस में इसे MZKT-7930 8X8 ट्रक पर लगाया जाता है.
इस एयर डिफेंस सिस्टम का दूसरा हिस्सा है इसका कमांड एंड कंट्रोल पोस्ट. ये भी एक ट्रक पर बनाया जाता है. टारगेट की खोज से लेकर उन्हें नष्ट करने वाली मिसाइल फायर करने तक, सारे कमांड यही से दिए जाते हैं.
इसके बाद आता है इंगेजमेंट रडार. ये रडार टारगेट को ढूंढने नहीं बल्कि उनपर सटीक ढंग से हमला करने में इस्तेमाल होता है. इसमें अधिक ऊंचाई से लेकर कम ऊंचाई पर उड़ने वाले खतरों को इंगेज करने की क्षमता होती है.
इसके बाद आता है इस सिस्टम का हथियार यानी मिसाइल जिससे टारगेट्स को तबाह किया जाता है. एस 400 में 4 तरह की मिसाइल्स का इस्तेमाल होता है.
- 9M96E शॉर्ट रेंज मिसाइल: रेंज 40 किलोमीटर
-9M96E2 मीडियम रेंज मिसाइल: रेंज 120 किलोमीटर
-48N6 लॉन्ग रेंज मिसाइल: रेंज 250 किलोमीटर
-40N6E अधिकतम रेंज मिसाइल: रेंज 400 किलोमीटर
अब जब इतना ताम झाम और इतना उन्नत सिस्टम है, और डील भी फाइनल है तो फिर इसमें इतनी देरी क्यों? वजह है रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग. जब रूस ने ये डील की थी तब वहां शांति थी पर आज की तारीख में यूक्रेन और उसके बीच जंग छिड़ी हुई है.
रूस ने दिसंबर 2021 में भारत को इसके पहले यूनिट की डिलीवरी दे दी थी. अगले साल इसके 2 और यूनिट भी आ गए. खबरों के मुताबिक भारत ने अपने प्यारे पड़ोसियों, चीन और पाकिस्तान द्वारा समय-समय पर प्यार भरे नजरानों को देखते हुए इन्हें तैनात भी कर रखा है. पहले कोविड महामारी और अब रूस यूक्रेन जंग, कारण चाहे जो भी हों पर सच्चाई ये है कि इस देरी की वजह से भारत की सामरिक क्षमता पर असर जरूर पड़ रहा है.
तेजस के इंजन4 नवंबर 2024 को फाईनेंशियल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत ने अमेरिकी कंपनी GE Aerospace पर तेजस के इंजन की डिलीवरी में हो रही देरी के लिए जुर्माना लगाया है. हालांकि जुर्माने की रकम कितनी है, ये अभी पता नहीं है. GE Aerospace को ये इंजन 2 साल पहले ही भारत की Hindustan Aeronautics Limited को भेजने थे. ये FN404-IN20 इंजन हैं जो भारत के Light Combat Aircraft , जिसे तेजस कहा जाता है, उसमें लगते हैं. ये एक हल्का, मल्टीरोल सुपरसोनिक फाइटर जेट है.
भारत के रक्षा मंत्रालय ने इंजन डिलीवरी में हो रही देरी को कान्ट्रैक्ट की शर्तों का उल्लंघन मानते हुए GE Aerospace पर जुर्माना लगाया है. इस मामले पर GE Aerospace ने भी अपना पक्ष रखा है. हालांकि GE Aerospace ने इंजन डिलीवरी में हुई देरी का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया है पर विशेषज्ञ कहते हैं कि कोविड महामारी के बाद से सप्लाई चेन में जो बाढ़ आई है, ये उसी का नतीजा है. हालांकि अब GE Aerospace ने एक नई डेट दी है. कंपनी का कहना है कि अब अप्रैल 2025 तक ये इंजन भारत के HAL को डिलीवर कर दिए जाएंगे.
देरी का शिकार हो रही रक्षा डील्स के कारण भले अलग-अलग हों, पर निश्चित तौर पर इसका असर भारत की फौजी क्षमता पर पड़ रहा है. भारत भले जंग न लड़ रहा हो लेकिन अपनी हिफाजत के लिए उसके पास उन्नत हथियार होना जरूरी है क्योंकि हथियार सिर्फ जंग के लिए नहीं बल्कि इसलिए भी होते हैं कि शांति बनी रहे. फौज और जंग के संदर्भ में एक बड़ी प्रचलित कहावत है कि शांति कोई उपलब्धि नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है.
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