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हूती विद्रोहियों को आतंकी घोषित करने से अमेरिका को क्या मिलेगा?

इसका ईरान-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?

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हूती लड़ाके. (तस्वीर: एपी)
आज बात एक विद्रोही गुट की. जिसे ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित करने की तैयारी चल रही है. जहां ये तैयारी हो रही है, वहां एक हफ़्ते बाद सरकार बदलने जा रही है. ये फ़ैसला नई सरकार के लिए परेशानी खड़ी करने वाला क्यों है? इन सबके बीच एक ज़ब्त केमिकल टैंकर की कहानी भी सुनाएंगे. इस खेल का विस्तार इतना है कि कई और पक्ष भी दम साधे ये नज़ारा देख रहे हैं. तेल, परमाणु हथियार, शिया-सुन्नी, अरब स्प्रिंग, ज़िद और भी कई पहलू.
ये पूरा मामला क्या है?
मिडिल-ईस्ट में बसा एक देश है, यमन. उत्तर में सऊदी अरब और पूरब में ओमान की सीमा से सटा. बाकी दिशाओं में समंदर से घिरा. यमन के उत्तर-पश्चिम में एक शहर, सैदा. 1990 के दशक में यहां एक स्टूडेंट मूवमेंट शुरू हुआ. द बिलिवींग यूथ. फाउंडर का नाम- हुसैन बेदरदीन अल-हूती. इनका मकसद था, ज़ायदी इस्लाम का पुनर्जागरण.
ज़ायदी, शिया इस्लाम की एक धारा है. यमन में एक हज़ार सालों तक ज़ायदी राजाओं का शासन रहा. 1962 में अंतिम ज़ायदी सुल्तान इमाम अहमद की हत्या हो गई. इसके बाद लंबे समय तक सिविल वॉर चला. यमन दो हिस्सों में बंटा. कुछ समय के लिए साउथ यमन में सोवियत संघ की हवा भी चली.
Yemen
मिडिल ईस्ट में सऊदी अरब और ओमान की सीमा से सटा हुआ है यमन. (तस्वीर: गूगल मैप्स)


फिर आया साल 1978
नॉर्थ यमन में एक आर्मी अफ़सर को राष्ट्रपति बनाया गया. अली अब्दुल्लाह सालेह. उनके समय में नॉर्थ और साउथ यमन के बीच फिर से लड़ाई हुई. हज़ारों की मौत हुई. 1980 के दशक में सोवियत संघ कमज़ोर पड़ने लगा. उसके गुट में शामिल देश बगावत करने लगे थे. यूटोपिया का सपना चकनाचूर हो चुका था.
इसका असर यमन में भी दिखा. नॉर्थ यमन और साउथ यमन एक हो गए. इस मिलन का नया नामकरण हुआ. रिपब्लिक ऑफ़ यमन. नामकरण नया था, मगर सूत्रधार वही. अली अब्दुल्लाह सालेह की सत्ता पर कोई आंच नहीं आई. वो एकीकृत यमन के पहले राष्ट्रपति बने. उन्हें साथ मिला सऊदी अरब और अमेरिका का. सऊदी अरब सुन्नी इस्लामिक देश है. उन्होंने यमन में सलाफ़ी मूवमेंट को बढ़ावा दिया.
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अली अब्दुल्लाह सालेह. (तस्वीर: एपी)


इन सब कतर-ब्योंत के बीच ज़ायदी शिया मुस्लिमों किनारे पर चले गए. एक समय के सुल्तान मुफ़लिसी का जीवन जीने को मजबूर थे. देश की राजनीति में उनका रिप्रजेंटेशन घटता जा रहा था. अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ही बेदरदीन अल-हूती ने ‘बिलिविंग यूथ’ नामक संगठन बनाया था. शुरुआती सालों में इसने बहुत सारे क्लब बनाए. समर कैंप्स लगाए. युवाओं को अपनी तरफ खींचा. इन कैंप्स में शिया स्कॉलर्स की किताबें पढ़ाई जातीं. लेबनान और ईरान के शिया धर्मगुरुओं की कहानियां बाचीं जाती थीं.
एक तरफ़ यमन सरकार सुन्नी सऊदी, अमेरिका और इजरायल के साथ झूला झूल रही थी. वहीं ज़ायदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे. वे अपने लिए ज़रूरी संसाधनों और अधिकारों की मांग कर रहे थे. सालेह सरकार ने उनकी मांगों को अनसुना कर दिया. इससे नाराज़ बेदरदीन अल-हूती ने सरकार के ख़िलाफ़ रैलियां निकालीं. इन रैलियों में भारी भीड़ जुटने लगी. ये सालेह सरकार के लिए नई चुनौती थी.
जाहिर है, इससे तनाव बढ़ा. सरकार ने अल-हूती के ख़िलाफ़ अरेस्ट वारंट निकाल दिया. लेकिन इससे मामला सुलझने की बजाय और उलझ गया. सेना और अल-हूती के समर्थकों के बीच हिंसक जंग शुरू हो गई. दोनों तरफ से लोग मरने लगे.
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विरोध प्रदर्शन करते हुए सलाफ़ी गुट. (तस्वीर: एएफपी)


इस लड़ाई में निर्णायक मोड़ आया, 10 सितंबर 2004 को
इस दिन सेना ने मुठभेड़ में बेदरदीन अल-हूती को मार गिराया. ये चिनगारी के भड़कने का पहला संकेत था. अल-हूती के समर्थकों ने यमन सरकार के खिलाफ सीधी जंग शुरू कर दी. अल-हूती के नाम पर इस आंदोलन को नाम मिला, हूती विद्रोह. उनके समर्थक कहलाए हूती विद्रोही.
इस लड़ाई में यमन सरकार ने अपना पूरा दमखम झोंक दिया. आर्मी और एयरफ़ोर्स ने हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर खूब बम बरसाए. बरसे तो पैसे भी. सऊदी अरब की ज़ेब से. सऊदी यमन सरकार की तरफ था. पलड़ा भारी था. सरकार का पलड़ा ज़बर था. मगर किस्मत नहीं. इस लड़ाई में हूती विद्रोहियों ने बाजी मार ली. उन्होंने नए ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया. ये सऊदी अरब के मुंह पर करारा तमाचा था.
Dead Hussein Badreddin Al Houthi
बेदरदीन अल-हूती (तस्वीर: एएफपी)


साल 2010 में हूती विद्रोहियों ने यमन सरकार के साथ समझौता कर लिया. दोनों पक्ष युद्धविराम पर राज़ी हो गए. हलचल थम गई. मगर पूरी तरह नहीं. पड़ोस में एक और बड़ी हलचल पकने के लिए तैयार थी. ट्यूनीशिया में. दिसंबर के महीने में. एक फल विक्रेता के चेहरे पर लगे थप्पड़ ने मिडिल-ईस्ट में भूचाल ला दिया.
ट्यूनीशिया से शुरू हुई आग धीरे-धीरे पड़ोसी देशों को भी अपनी चपेट में लेने लगी. मिडिल-ईस्ट के अधिकतर देशों में तानाशाह सरकारों की पैठ थी. वहां दशकों से सत्ता नहीं बदली थी. आम जनता बुरी तरह घुट रही थी.
यही घुटन यमन में भी पनप रही थी. वहां अली अबदुल्लाह सालेह 32 सालों से कुर्सी पर काबिज़ थे. उनके ख़िलाफ़ जनता ने विद्रोह कर दिया. सालेह को सत्ता अपने सहयोगी अब्द्राबुह मंसूर हादी को सत्ता सौंपनी पड़ी. लेकिन ये पावर ट्रांसफर ठीक से हो नहीं पाया. कई तरह की दिक्कतें थीं. अल-कायदा. अलगाववाद. गरीबी-भुखमरी वगैरह-वगैरह.
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यमनी सेना के जवान. (तस्वीर: एएफपी)


फिर यहां शुरू हुआ शिया-सुन्नी
शिया अल्पसंख्यक हूती विद्रोहियों ने भी बगावत कर दी. संघर्ष शुरू हुआ. ऐसा नहीं कि बस शिया ही सपोर्ट कर रहे थे हूती विद्रोहियों को. यमन के अंदर कई सुन्नी भी उनके साथ थे. जनवरी, 2015 में प्रेसिडेंशियल पैलेस पर कब्ज़ा हो गया. राष्ट्रपति मंसूर हादी को देश छोड़कर भागना पड़ा. 06 फरवरी को हूती विद्रोहियों ने संसद भंग कर दी. अब सत्ता हूती विद्रोहियों के हाथों में थी.
मंसूर हादी भागकर सऊदी अरब के पास गए. मदद मांगने के लिए. सऊदी अरब को यकीन था कि हूती विद्रोहियों की मदद ईरान कर रहा है. सऊदी और उसके सहयोगियों ने मिलकर यमन पर हवाई बमबारी शुरू कर दी. इनकी मदद की अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने. ये संघर्ष अब तक चल रहा है. लेकिन हूती विद्रोह अभी तक बीस साबित हुए हैं. यमन का 70 प्रतिशत हिस्सा उनके कब्जे़ में है.
Abdrabbuh Mansur Hadi
राष्ट्रपति मंसूर हादी. (तस्वीर: एएफपी)


हूती विद्रोहियों की कहानी आज क्यों?
वजह है एक ऐलान. किसका? अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का. दरअसल, अमेरिका ने हूती विद्रोहियों को ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित करने की तैयारी कर ली है. पोम्पियो ने कहा कि गुट के तीन टॉप लीडर्स को भी ‘ग्लोबल टेररिस्ट्स’ की लिस्ट में शामिल किया जाएगा. उनका दावा है कि इस कदम से यमन, ईरान के कंट्रोल से बाहर आएगा और वहां सब ठीक हो जाएगा.
Mike Pompeo
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो. (तस्वीर: एपी)


जब ट्रंप सरकार ये दावा कर रही है, फिर उन्हें रगेदा क्यों जा रहा है?
ये फ़ैसला 19 जनवरी से लागू हो जाएगा. यानी डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद छोड़ने से ठीक एक दिन पहले. नए राष्ट्रपति बनेंगे जो बाइडन. वो कहते रहे हैं कि ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों पर फिर से विचार करेंगे. हूती विद्रोहियों को ईरान बैक-डोर से सपोर्ट करता रहा है. ईरान और हूती विद्रोही, दोनों ही इस दावे को नकारते हैं. हालांकि, एक बात तो तय है कि इस ऐलान से सऊदी अरब को हित सधेगा. और, ये बात ईरान को नागवार गुजरने वाली है.
साल 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुई न्युक्लियर डील तोड़ दी थी. साथ ही, ईरान पर कड़े प्रतिबंध भी लगाए थे. इस वजह से ईरान के 07 बिलियन डॉलर साउथ कोरिया के बैंकों में फंस गए. साउथ कोरिया ने इन खातों को फ़्रीज़ कर दिया था. अब ईरान ने एक साउथ कोरियन केमिकल टैंकर को ज़ब्त कर लिया है. दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक बातचीत चल रही है. ईरान अपने खातों को चालू करने की मांग कर रहा है.
Donald Trump
डोनाल्ड ट्रंप.


ट्रंप जाते-जाते ईरान-अमेरिका संबंधों में नीम घोल जाएंगे
जानकारों का दावा है कि हूती विद्रोहियों को आतंकवादी समूह घोषित करने का ऐलान न सिर्फ़ यमन में शांति के प्रयासों को पलीता लगाएगा, बल्कि ईरान के साथ संभावित बातचीत को कई कदम पीछे धकेल देगा. अमेरिका में भी लोग ट्रंप सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं. इतना तो साफ है कि जो बाइडन की राह इतनी आसान भी नहीं होने वाली.
इन सबसे इतर, एक और पहलू की चर्चा ज़रूरी हो जाती है. मानवीयता का. सिविल वॉर से जूझ रहा यमन पस्त हो चुका है. भूखमरी और अकाल दिनचर्या का हिस्सा हैं. यहां की 80 फ़ीसदी आबादी बाहरी मदद पर निर्भर है. यमन अपनी ज़रूरत का 90 फ़ीसदी सामान बाहर से आयात करता है. हमने पहले भी बताया, यमन के 70 फ़ीसदी हिस्से पर हूती विद्रोहियों का कब्ज़ा है.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ट्रंप सरकार के फ़ैसले से यमन में मदद पहुंचाना गैर-कानूनी हो जाएगा. उनका सवाल है कि क्या वे एक ‘आतंकी संगठन’ के साथ काम कर पाएंगे? क्या वे पहले की तरह आम लोगों तक मदद पहुंचा पाएंगे?
माइक पोम्पियो ने कहा कि ऐसे NGOs के लिए पास जारी किया जाएगा. इससे एक दूसरा खतरा उभरता है. अमेरिका के पास पर काम रहे लोग हूती विद्रोहियों की नज़र में दुश्मन होंगे. इसके अलावा, हूती इलाकों के साथ व्यापार कर ही कंपनियों में भी डर का माहौल है. उन्हें अमेरिका के साथ रिश्ते खराब होने का अंदेशा है. ऐसे में यमनी व्यापार पर गहरा असर पड़ सकता है.
अमेरिका के इस फ़ैसले से हूती विद्रोहियों को बातचीत की मेज पर लाना मुश्किल होने वाला है. जानकारों का मानना है कि ट्रंप जाते-जाते नई सरकार के लिए नई मुसीबतें छोड़कर जाना चाहते हैं. बिखरी विरासत सौंपना चाहते हैं. ये खिलवाड़ मिडिल-ईस्ट और दुनिया की राजनीति में क्या गुल खिलाएगा, ये वक़्त के अगले पन्नों मे दिखेगा.