मैं प्रोफेशनल मुस्लिम नहीं हूं : सईद नकवी
संसार के तथाकथित सबसे बड़े साहित्य उत्सव 'जयपुर लिट फेस्ट' के दूसरे दिन का हाल.
18 एकड़ में फैला जयपुर का डिग्गी पैलेस जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) में उमड़ी भीड़ की वजह से बहुत छोटा नजर आने लगा है. गुजर गए वाक्य में भीड़ को इनवर्टेड कॉमा में भी लिखा जा सकता है. इस भीड़ के बारे में अगर एक स्वीपिंग रिमार्क दें तब कह सकते हैं कि बहुत बड़े स्तर पर हो रहे एक साहित्य उत्सव के संदर्भ में यह भीड़ बहुत सस्पेक्टेड है. गुजर गए वाक्य में साहित्य उत्सव को इनवर्टेड कॉमा में भी लिखा जा सकता है क्योंकि जेएलएफ के संदर्भ में साहित्य बहुत सस्पेक्टेड शब्द है. इस सस्पेक्टेड सीन में दूसरे दिन के पहले सेशन (चारबाग में) का नाम ‘सस्पेक्टेड पोएट्री’ था. प्रशासनिक अधिकारी और लेखक पवन के. वर्मा ने गीतकार गुलजार से उनकी नई किताब ‘सस्पेक्टेड पोएम्स’ पर बातचीत की. गुलजार के पूरे कवि-व्यक्तित्व के संदर्भ में देखें तो उनकी इस नई किताब का नाम सबसे ज्यादा मानीखेज और सच्चा है. एक सस्पेक्टेड सीन में सस्पेक्टेड पोएट्री पर एक सस्पेक्टेड सेशन में हो रही बातचीत बहुत सस्पेक्टेड रही, लेकिन अंग्रेजी और हिंदी दोनों को ही ठीक से बोलने में लंगड़ाने वाली एक सस्पेक्टेड भीड़ के आगे ‘सस्पेक्टेड पोएम्स’ तालियां बजवा ले जाती हैं. ठीक इस सेशन के समय ही बैठक में ‘नवरस : अंडरस्टैंडिंग इंडियन एस्थेटिक्स’ नाम के सेशन में बहुत शांत और संयमित बातचीत चल रही है. बैठक में बैठने की जगह पाकर यों प्रतीत होता है कि जैसे दूसरे दिन जेएलएफ में चीजें अपने नाम के अनुरूप घट रही हैं. अलका पांडे, हर्षा दहेजिया, James McHugh और मकरंद परांजपे के साथ मृणाल पांडे बातचीत कर रही हैं. मकरंद : रस (अंग्रेजी में रसा) एक दार्शनिक क्रिया है. हर्षा : सब लोग रसिक (अंग्रेजी में रसिका) नहीं हो सकते. भावक (अंग्रेजी में भावका) वह है जो सौंदर्य को इंजॉय कर सकता है. मृणाल पांडे भीमसेन जोशी की एक बंदिश को याद करते हुए ‘सहृदय’ (अंग्रेजी में सहृदया नहीं) की व्याख्या करती हैं. अलका पांडे ‘सब कुछ पैनल ने कह दिया है, मैं क्या कहूं’ कहने के बाद जब बहुत कुछ कहती हैं, तब लगता है कि यह वाक्य हिंदी में भी इस तरह से ही बोला जाना चाहिए. अलका : हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं वह रसा है और हम सब रसिका हैं. मृणाल इस रसा-प्रसंग में कास्ट सिस्टम को ले आती हैं. इस पर बातचीत कुछ यों आगे बढ़ती है... हर्षा : रसिका की जाति नहीं होती, वह एनलाइटेन होता है. विश्रांति ही रसा है. (गुलजार अपनी 'सस्पेक्टेड पोएम्स’ पर जो तालियां चारबाग में बजवा रहे हैं, उनकी गूंज यहां बैठक तक में सुनाई दे रही है. लेकिन खैर, आप जारी रखिए... हां तो विश्रांति ही रसा है...) रसिया रसिका नहीं हैं. तानसेन और कानसेन वाला फर्क है. मकरंद : कास्ट सिस्टम रिवर्स हो रहा है. बहरहाल, अपने कुल असर में यह सेशन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि रस-निष्पत्ति के लिए शारीरिक, मानसिक और नैतिक रूप से स्वस्थ रहने की जरूरत है. बैठक का अगला सेशन बहुत उत्तेजक और बहसतलब होने वाला है. पवन के. वर्मा चारबाग से उठ कर बैठक में आ गए हैं. वह ‘अक्रॉस द रीवर्स : गंगा-जमुनी तहजीब’ सेशन में सईद नकवी से बातचीत करेंगे. पवन की आवाज जितनी ऊंची है, उनका हस्तक्षेप उतना ऊंचा नहीं है. वह सईद को उनकी किताब ‘बीइंग द अदर : मुस्लिम इन इंडिया’ को लेकर बहुत घेरने की कोशिश करते हैं. सईद बार-बार इस घेराव से शेरो-शाइरी की मार्फत निकलने की कोशिश करते हैं. पवन उनसे कहते हैं कि अगर आप हर सवाल का जवाब शे’र से देंगे तब तो कोई बात ही नहीं हो पाएगी. पवन की कोशिशें इस सेशन में संस्कृति से ज्यादा राजनीति पर बात हो जाए इसे लेकर दिख रही हैं. सईद की बातों को वह मोनोलॉग समझने की भूल भी कर रहे हैं. पवन के यह कहने पर कि आप जैसे लोग मुस्लिमों की भीतरी समस्याओं पर नहीं बोलते हैं, सईद कहते हैं कि मैं प्रोफेशनल मुस्लिम नहीं हूं. यह बातचीत चल रही है और गुलजार उठ कर चले जाते हैं, सुधीर मिश्रा बैठक में शामिल होते हैं. पवन : आप प्रतीकवाद में उलझ रहे हैं. सईद : हमारी सारी मुसीबत मुल्लों से है. लेकिन हमारी राजनीति ने सिवाए मुल्लों के और किसी को पेट्रोनाइज नहीं किया. मुल्ले नेताओं के लिए कॉन्ट्रेक्टर हैं, वह वोट दिलाने का काम करते हैं. ग़ालिब, मीर, फैज़ जितने भी बड़े शाइर और संगीतकार हुए सबने मुल्लों को रिजेक्ट किया, लेकिन हमारी राजनीति ने उन्हें अपनाया कट्टरपंथ जिनकी भाषा है. इस सचमुच बेहतरीन सेशन के बाद जब आप बाहर निकलते हैं, तब एक बार फिर यह लगता है कि साहित्य और कुछ नहीं सिर्फ एक धक्का है, यह धक्का गुदगुदा भी लगता है. यह बताने की जरूरत नहीं कि क्यों? चिंटू जी (ऋषि कपूर) आ चुके हैं और भीड़ ने बाहर निकलने के सारे रास्ते जाम कर दिए हैं. ‘मैं शाइर तो नहीं’ इस नाम के सेशन में Rachel Dwyer ने ऋषि कपूर से बातचीत की और इस सेशन का नाम देख कर फिर यों प्रतीत हुआ कि दूसरे दिन जेएलएफ में चीजें सचमुच अपने नाम के अनुरूप घट रही हैं. सरकारी और अखबारी शब्दावली में कहें तो ऋषि कपूर ने इस मौके पर अपनी किताब ‘खुल्लम खुल्ला’ का जिक्र करते हुए अपने जीवन और कॅरियर से जुड़े कई खुलासे किए. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वह न तो राजनीति में आना चाहते हैं और न ही किसी पार्टी का सपोर्ट या विरोध करना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने यहां कांग्रेस पार्टी का यह कह कर विरोध किया कि क्या देश में सारे इम्पोर्टेंट एसेट गांधी परिवार के नाम पर ही होने चाहिए? जेएलएफ की फिजा धीरे-धीरे केसरिया हो रही है... पधारो म्हारे देस... जल्द ही सब कुछ यहां केसरिया होने की उम्मीद है. जेएलएफ के पहले दिन का हाल यहां पढ़ें :