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कांग्रेस नेता अधीर रंजन के बयान पर संसद में इतना हंगामा क्यों हो गया?

कैमरा बंद होने के बाद सोनिया-स्मृति में क्या बात हुई?

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कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी (बाएं) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (दाएं) (फोटो: इंडिया टुडे)

संसद में सरकार ने लिखित तौर पर बताया कि 8 साल में 22 करोड़ आवेदन आए, मगर नौकरी मिली सिर्फ 7 लाख 22 हजार को. रोजगार के इस मुद्दे पर संसद में बहस हो सकती थी, ये पूछा जा सकता था कि आवेदन फॉर्म के जरिए सरकार को कितने पैसे मिले और उन पैसों का इस्तेमाल कहां किया गया. रोजाना के खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लागू होने के बाद विपक्ष कई दिनों से इस पर बहस की मांग कर रहा था, सरकार की तरफ से कहा गया कि वित्त मंत्री स्वस्थ होकर आएंगी तो बहस कर ली जाएगी. निर्मला सीतारमन कोविड से ठीक होकर लौट आईं तो बहस इस पर भी हो सकती थी. मगर लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन के एक बयान ने बहस की धार को ही बदल दिया. अधीर रंजन चौधरी ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह दिया तो बीजेपी ने उसे आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अपमान बताया. एक नई बहस का उत्पादन हो गया है. बीजेपी अब मुखर हो गई. सदन में नोंक-झोंक में बात सोनिया गांधी तक पहुंच गई तो कांग्रेस अपने नेता के पीछे लामबंद हो गई. दोनों तरफ से दावे-आपत्तियों की बाढ़ आ गई है, जिसमें डूब गई है सार्थक बहस और इस देश से जुड़े असल मुद्दे.

संसद टीवी पर लगा काउंटडाउन खत्म होता है, घड़ी में सुबह के ठीक 11 बज रहे थे. अमूमन 11 बजे लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष पहुंचते हैं, और सभी सांसद खड़े होकर अभिवादन करते हैं. मगर आज सामान्य दिनों से कुछ अलग हुआ. आम तौर पर सबसे पहले स्पीकर के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष अपनी बात रखते हैं. वो बताते हैं कि किन विषयों पर बात होने वाली है. फिर वो उस सांसद का नाम लेते हैं, जिसे सबसे पहले अपनी बात रखने का मौका मिला हो. आज ऐसा कुछ नहीं हुआ, लोकसभा अध्यक्ष के कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बोलना शुरू करती हैं. थोड़े गुस्से में, थोड़े तीखे लहजे में.

मात्र 4 मिनट की कार्यवाही के भीतर ही हंगामा इतना ज्यादा बढ़ा कि सदन को ठप करना बड़ा. 12 बजे तक के लिए लोकसभा स्थगित हो गई. कांग्रेस के नेता सदन अधीर रंजन चौधरी के बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इंगित करते हुए स्मृति ईरानी ने तीखा प्रहार किया. सोनिया गांधी से माफी की मांग की गई. पहले स्मृति ईरानी ने मांग शुरू की और धीरे-धीरे बीजेपी के तमाम सांसद माफी मांगने के नारे लगाने लगे. अधीर रंजन भी कुछ बोलने की कोशिश करते हैं, मगर उनकी आवाज नहीं आती. ये सबकुछ आपने देखा. अब हम आपको वो बातें बताएंगे जो आम लोगों ने नहीं देखा, ना वो कैमरे पर रिकॉर्ड हो पाया. लेकिन उससे पहले अधीर रंजन चौधरी के बयान के बारे में जान लीजिए. जिस पर सारा बखेड़ा खड़ा हुआ.

दरअसल 27 जुलाई को कांग्रेस सांसद संसद भवन के बाहर सोनिया गांधी पर ईडी की कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. दोपहर के साढ़े 12 बजे ABP न्यूज के एक रिपोर्टर कवरेज करते हुए अधीर रंजन चौधरी से बात करते हैं. दूसरे चैनल का वीडियो हम दिखा नहीं सकते, मगर उसमें हुई बातचीत को हुबहू बता जरूर सकते हैं. 
 

सवाल पूछा जाता है- अधीर दादा, आज रणनीति में बदलाव के साथ यहां पर धरना देंगे, 
अधीर रंजन चौधरी जवाब में कहते हैं- धरना देंगे, अपना बात रखेंगे, मार्च करेंगे, बहुत कुछ करना बाकी है. 
रिपोर्टर फिर पूछता है- कल तो राष्ट्रपति भवन जा रहे थे तो जाने नहीं दिया गया था ?
अधीर रंजन फिर जवाब देते हुए कहते हैं- जाने नहीं दिया गया, आज भी जाने की कोशिश करेंगे, हिंदुस्तान की राष्ट्रपति जी सबके लिए हैं.
यहां तक तो सब ठीक था, इसके आगे अधीर रंजन चौधरी बोलते हैं, "राष्ट्रपति जी, नहीं राष्ट्रपत्नी जी, हिंदुस्तान की राष्ट्रपत्नी जी सबके लिए हैं. हमारे लिए क्यों नहीं."

यहां पर अधीर रंजन चौधरी ने दो बार राष्ट्रपत्नी शब्द का इस्तेमाल किया. रिपोर्टर ने अधीर रंजन चौधरी को तत्काल टोकते हुए कहा राष्ट्रपति के लिए राष्ट्रपति शब्द का इस्तेमाल करना ही बेहतर रहेगा.  

यहां एक बात बिलकुल साफ थी कि पहले राष्ट्रपति शब्द का इस्तेमाल किया, फिर राष्ट्रपत्नी. कुल जमा 57 सेकेंड की वो क्लिप कांग्रेस के गले की आज फांस बन गई. संसद में बीजेपी सांसदों ने प्रदर्शन भी किया और अधीर रंजन अपने बयान पर सफाई देते रहे.

अधीर रंजन बार-बार अपने वक्तव्य को स्लिप ऑफ टंग यानी गलती से जुबान फिसल जाना बताते रहे, लेकिन बात सिर्फ उन तक सीमित नहीं रही. सदन में बात सोनिया गांधी तक पहुंच चुकी थी. 11 बजे हुए हंगामे के बाद अधीर रंजन चौधरी स्पीकर के कक्ष में उनसे मिलने गए. उनके समर्थन में सोनिया गांधी भी साथ में गईं, जहां पत्रकारों ने उनसे सवाल किया.

पहले तो सवाल का जवाब नहीं दिया, दूसरी बार सवाल होने पर सोनिया गांधी ने पलट कर कहा- He has already apologised, यानी उन्होंने माफी मांग ली है. सोनिया गांधी भी तल्ख लहजे बोलीं. इसके बाद सोनिया गांधी की मौजूदगी में अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर से अपनी बात को रखने का मौका मांगा. सूत्रों के मुताबिक स्पीकर ने उन्हें 12 बजे बोलने का समय दिया. 11 बजे हुए हंगामा के बाद जब सदन 12 फिर से बैठा तो हंगामा फिर से शुरू हो गया. बीजेपी सांसद अपनी सीट पर खड़े होकर सोनिया गांधी से माफी मांगने की मांग करने लगे. शोर-शराबा इतना चेयर पर स्पीकर के तौर पर आए राजेंद्र अग्रवाल को 40 सेकेंड के अंदर ही सदन को 4 बजे तक के लिए फिर से स्थगित करना पड़ा. यानी अधीर रंजन चौधरी अपनी बात नहीं रख पाए. यहां तक सबकुछ कैमरे पर ऑन रिकॉर्ड था. अब वो जानिए, जो कैमरे पर रिकॉर्ड में नहीं हुआ.

12 बजे सदन के फिर स्थगन के बाद सोनिया गांधी सदन से बाहर जाने लगीं. पीछे सोनिया गांधी माफी मांगो के नारे लगते रहे. इस पर सोनिया गांधी पलटकर ट्रेजरी बेंच के पास जाकर बीजेपी सांसद रमा देवी से बात करती हैं, वो इसलिए क्योंकि रमा देवी भी हाउस को कई मौकों पर चेयर करती हैं. आज तक की खबर के मुताबिक सोनिया गांधी ने रमा देवी से कहा- इस मामले में अधीर रंजन ने माफी मांग ली है, मेरा नाम क्यों लिया जा रहा है. इस पर रमा देवी ने कहा कि आपके पार्टी के सांसद ने गलत बात कही है. बातचीत के बीच पीछे से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी आती हैं, वो कहती हैं Madam, may I help you? I took your name.” 

जवाब में सोनिया गांधी कहती हैं- Don't talk to me. माने मुझसे बात मत कीजिए.

कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि इसके बाद स्मृति ईरानी ने कहा-  don't behave like this, this is not your party office. मतलब ऐसा व्यवहार मत करिए, ये आपका पार्टी ऑफिस नहीं है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी ने उंगली दिखाते हुए कहा- I am not speaking to you. मतलब मैं आपसे बात नहीं रही हूं. एक तरह से दोनों के बीच नोकझोंक हुई. इसके बाद बीच-बचाव में दूसरी पार्टी के लोगों को आना पड़ा. सूत्रों के मुताबिक एनसीपी सांसद सुप्रीया सुले और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और अपरुपा पोद्दार, सोनिया गांधी को वहां से बाहर ले जाती हैं. उधर सदन में संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी सबको शांत कराते हैं. ये वो सब था, जो कैमरे पर रिकॉर्ड नहीं हुआ. हर पक्ष ने इसे अपने तरह से परिभाषित किया. फिर शुरू होता है आरोप-प्रत्यारोप का दौर. बड़े नेता मोर्चा संभालते हैं और वित्ता निर्मला सीतारमण का बयान आता है.

निर्मला सीतारमण आरोप लगाती हैं कि सोनिया गांधी ने थ्रेटनिंग यानी धमकी भरे अंदाज में बात की. माफी की मांग को यहां भी दोहराया जाता है, दिलचस्प ये कि सिर्फ इधर से ही माफी की मांग नहीं हो रही है. स्मृति ईरानी के व्यवहार को लेकर माफी की मांग कांग्रेस की तरफ से भी जा रही है.

तरुण गोगोई इशारों में स्मृति ईरानी के गुस्से को उनके परिवार से जुड़ी खबर को जोड़ते हैं. जिसमें उनकी बेटी पर आरोप लगे थे. और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और पीएम मोदी से माफी की मांग करते हैं. दोनों की तरफ से राजनीतिक तलवारें खिंची हुई हैं.

दोनों के बीच हुई नोकझोंक से वापस अधीर रंजन चौधरी के बयान पर आते हैं. ये बात सत्य है कि अधीर रंजन चौधरी की मातृ भाषा बांग्ला है. हिंदी में कई बार वो गड़बड़ियां करते हैं. इस पर उन्हीं की पार्टी के नेता प्रमोद कृष्णम ट्वीट कर लिखते हैं. हिंदी आती नहीं तो बोलते क्यूँ हो, बंगला में ही भाषण दे दिया करो, पार्टी को बर्बाद करना ज़रूरी है क्या ?
और ये पहला मौका नहीं है जब अधीर रंजन चौधरी के बयान पर विवाद हुआ है. इससे पहले भी कई मौके आए. मसलन इस साल मई में राहुल गांधी के नेपाल टूर को लेकर जब बीजेपी ने सवाल उठाया था तब अधीर रंजन ने मोर्चा संभाला था. उस समय अधीर रंजन ने कहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 13 हज़ार करोड़ रुपए के दो प्लेन खरीदे हैं. उस प्लेन में स्विमिंग पूल है और वह (मोदी) उसी में नहाते-नहाते विदेश जाते हैं और वहां भाषण देकर वापस आ जाते हैं. हालांकि, इस बयान को लेकर अधीर रंजन के खिलाफ संसद में उनके खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस दिया गया था.

साल 2019 में NRC के मुद्दे पर पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लेकर भी विवादित बयान दिया था. एनआरसी को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, 

“अमित शाह जी, नरेंद्र मोदी जी आप खुद घुसपैठिये हैं. घर आपका गुजरात है, आ गए दिल्ली. आप खुद माइग्रेंट हैं. वैध-अवैध बाद में पता चलेगा.” 

इस बयान पर जमकर हंगामा मचा था और बीजेपी उनसे माफी मांगने की मांग पर अड़ गई थीं.

साल 2019 में ही कॉरपोरेट टैक्स पर लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लेकर भी विवादित बयान दिया था. चर्चा के दौरान अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, ..

"कभी-कभी मुझे आपको, बहुत सम्मान तो करते हैं आपको हालात देखकर मुझे कहने को दिल करता है कि आपको निर्मला सीतारमण के बदले ‘निर्बला सीतारमण’ कहना ठीक होगा या नहीं, क्योंकि आप मंत्री पद पर हैं लेकिन आप जो चाहते हैं वो आप कर भी पाती हैं या नहीं, मुझे मालूम नहीं.''

बाद में अधीर रंजन ने निर्मला सीतारमण को अपनी बहन बताते हुए माफी तक मांगनी पड़ी थी. अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर बहस के दौरान कश्मीर को इंटरनेशनल मुद्दा बताना हो या बड़ा पेड़ गिरने जैसा ट्वीट करना हो. कई मौकों पर अधीर दादा पार्टी को अधर में लटका चुके हैं.

अब ये राष्ट्रपति और राष्ट्रपत्नि वाला मुद्दा. अधीर रंजन ने ये बात गलती से कही या फिर जानबूझ कर ये तो वही जाने. मगर प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति बनने के वक्त भी ये सवाल उठा था कि महिला राष्ट्रपति को क्या कहा जाएगा? ये सवाल आजादी के वक्त संविधान सभा में भी उठा था. संविधान का अनुच्छेद 52 राष्ट्रपति पद को स्वीकृत करता है, वो पूरे राष्ट्र का प्रतीक होता है. अनुच्छेद 53 के मुताबिक राष्ट्रपति तीनों सेना का कमांडर होता है, वो कार्यपालिका का प्रमुख होता है. ऐसे कई अनुच्छेद हैं जिनमें राष्ट्रपति की शक्तियों और महत्व को परिभाषित किया गया है. हम सब जानते हैं कि संविधान की मूल प्रति इंग्लिश में है. वहां प्रेसिडेंट शब्द का इस्तेमाल हुआ है. मगर हिंदी को लेकर संकट था. राष्ट्रपति महिला हो या फिर पुरुष उसे राष्ट्रपति ही क्यों कहा जाए, इस पर बाकायदा बहस हुई थी. इस पर पंडित नेहरू और डॉ अंबेडकर की क्या भूमिका थी. इसे जानने के लिए हमने संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी से बात की. पीडीटी आचारी ने कहा,

"प्रेसीडेंट शब्द के लिए आज हिन्दी में 'राष्ट्रपति' शब्द का इस्तेमाल होता है, पहले ये सम्बोधन कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए इस्तेमाल होता था. नेहरू की अध्यक्षता में जो संविधान सभा बैठी थी, उसमें ये सिफारिश की गई कि इंग्लिश में प्रेसीडेंट शब्द के बगल में ब्रैकिट में राष्ट्रपति लिखा जाए. लेकिन बाद में ड्राफ्टिंग कमेटी ने ये ते किया कि अंग्रेजी में सिर्फ प्रेसीडेंट शब्द ही लिखा जाए. बाद में डॉ अंबेडकर ने कहा था कि जब संविधान का हिन्दी वर्जन तैयार होगा तब उसमें राष्ट्रपति शब्द लिखा जाएगा."

संविधान सभा के सदस्य रहे केटी शाह ने यहां तक सलाह दी कि महिला राष्ट्रपति होने पर उसे नेता या फिर कर्णधार यानी कैप्टन कहा जाए. मगर पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस पर तैयार नहीं हुए, डॉ अंबेडकर के हस्तक्षेप के बाद आखिर में राष्ट्रपति शब्द पर ही मुहर लगी. अब राष्ट्रपति शब्द ही क्यों? पति शब्द का अर्थ होता क्या है? पति शब्द और भी कई शब्दों में जुड़ता है. जैसे अधिपति, दलपति, गणपति. इस शब्द का व्याकरण क्या कहता है? इसे जानने के लिए हमने भाषा विज्ञान के जानकार संत समीर से बात की. उन्होंने बताया,

"पति एक संस्कृत शब्द है. संस्कृत में धातु, प्रत्यय उपसर्ग आदि का इस्तेमाल कर शब्द का निर्माण होता है. संस्कृत से हिन्दी में आए शब्दों को तत्सम शब्द कहते हैं, यानि वे शब्द जिन्हे हिन्दी में बिना किसी बदलाव के इस्तेमाल किया जाता है. यहां ये जरूरी नहीं कि पति का सिर्फ एक ही अर्थ निकले. संस्कृत में पति शब्द का मतलब स्वामी, रक्षा करने वाला, किसी समान या जगह का मालिक है."

मतलब ये कि पति शब्द का इस्तेमाल जब राष्ट्र के साथ है तो वो आम पति-पत्नी जैसा नहीं रहता. वो फिर पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति होता है, चाहे वो महिला हो या पुरुष. प्रधानमंत्री, मंत्री जैसे शब्द भी ऐसे ही हैं. हमने संविधान विशेषज्ञ को सुनवाया, हमने भाषा वैज्ञानिक की बात भी आपके सामने रखी. अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति से मिलकर उनसे माफी मांगने की भी बात कही है. अब सवाल ये है कि सिर्फ माफी से काम हो जाएगा या फिर ये बहस और लंबी खिचेगी और संविधैनिक तरीके से भी कोई कार्रवाई हो सकती है? इसका जवाब भी हमने संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी से जाना, उन्होंने बताया,

"ये बहस लंबी नहीं खिंचनी चाहिए. माफी मांगने से बात खत्म हो जानी चाहिए. राष्ट्रपति तो राष्ट्रपति ही रहेंगी."

जानकारों की माने तो माफी मांगने से बात खत्म हो जानी चाहिए. बार-बार अधीर रंजन जोर देकर कह रहे हैं कि वो राष्ट्रपति का अपमान सपने में भी नहीं कर सकते. तो फिर उन्हें भी माफी मांग विवाद का पटाक्षेप कर देना चाहिए. और अगर गलती से कोई शब्द निकल जाए तो बेवहज की इस बहस से भी बचना चाहिए. वैसे भी हमारे देश में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम मुद्दे हैं जिस पर बहस की अति आवश्यकता है.

एक बयान से पैदा हुई बहस के बारे में आपने जान लिया. अब ये जानिए कि इस बहस के शोर में कौनसे असल मुद्दे डूब गए. बहस और सलाह मशविरे का सबसे बड़ा मंच है संसद. संसदीय लोकतंत्र की परंपरा में सरकार से अपेक्षित होता है कि वो ज़रूरत पड़ने पर कानून का मसौदा तैयार करे. और फिर संसद में उसपर बहस हो. बहस में पकने के बाद मसौदे के परिष्कृत रूप को कानून की शक्ल दी जाए. लेकिन भारत में जिस तरह कानून बनाए और लागू किए जाते हैं, उनपर ये बात लागू नहीं होती. हमारे यहां सरकार कानून लाती है. कब लाती है, आप कार्यवाही का लाइव प्रसारण देखकर भी पता नहीं लगा पाएंगे. क्योंकि प्रायः विपक्षी सांसद शोर मचा रहे होते हैं, और सत्ताधारी सांसद विपक्ष के शोर का जवाब अपने शोर से दे रहे होते हैं. इसी शोर में बिल पेश होता है. जाने कैसे वोटिंग हो जाती है. और बिल पास भी हो जाते हैं. और आप ये जानने से रह जाते हैं कि माननीयों ने आपके भविष्य को लेकर क्या फैसला ले लिया. हो सकता है, कोई ऐसा फैसला हो, जिससे आपकी शादी प्रभावित होने वाली हो. इसीलिए हम आपको उन बिलों के बारे में बताएंगे, जो इस मॉनसून सत्र के दौरान सदन में पेश हुए, लेकिन उनकी जानकारी आप तक कुछ कम पहुंची.

इसके लिए हमने संसदीय कार्य मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट से जानकारी ली. वेबसाइट पर बिल लिस्ट नाम के पेज पर 167 बिल्स की सूची है. साथ में मंत्रालय का नाम, बिल पेश करने की तारीख और दोनों सदनों से पास होने की तारीख. आइए देखते हैं कि 18 जुलाई से लेकर अब तक कौनसे कानून सरकार ने पेश किए और उनपर संसद में क्या हुआ.

सत्र के पहले ही दिन माने 18 जुलाई 2022 को विधि एवं न्याय मंत्रालय ने The Family Courts (Amendment) Bill, 2022 पेश किया. शादी और पारिवारिक मसलों का समाधान करने के लिए 1984 में 'परिवार न्यायालय कानून' बनाया था. इसके तहत पारिवारिक विवाद और उससे जुड़े मामलों में सुलह और तेजी से समाधान के लिए देश के सभी राज्यों में 'परिवार न्यायालय' या ‘फैमिली कोर्ट’ बनाए जाने थे. इसका पालन करते हुए राज्यों ने अपने यहां परिवार न्यायालय बनाए और इस कानून के अनुसार मामलों का निपटारा करना शुरु किया. लेकिन इसमें दो राज्य पीछे रह गए थे- हिमाचल प्रदेश और नागालैंड. नागालैंड में 2008 में और हिमाचल प्रदेश में 2019 में फैमिली कोर्ट की शुरुआत हुई थी.

हालांकि केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी प्रदान नहीं की थी. इस कारण इन दोनों राज्यों के 'फैमिली कोर्ट' के फैसलों पर सवाल खड़े हो रहे थे कि इन्हें माना जाएगा या नहीं. इसी समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार एक संशोधन लेकर आई थी. इसके तहत नागालैंड और हिमाचल के परिवार न्यायालयों के सभी फैसलों, आदेशों, नियमों, नियुक्तियों आदि को वैध करार दिया जाएगा. 26 जुलाई को लोकसभा में पास हो गया.

अगला बिल है - The Indian Antarctic Bill, 2022 पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2022 को ये बिल पेश किया था. इसका मकसद है, अंटार्कटिक संधि के अनुरूप भारत में कानून बनाना. साल 1959 में 12 देशों ने मिलकर एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें ये प्रावधान किया गया कि दुनिया के तमाम देश आपस में सहयोग के साथ अंटार्कटिक में शांतिपूर्ण ढंग से शोध करेंगे, लेकिन यहां पर कोई सैन्य गतिविधियां नहीं की जाएंगी. इसे अंटार्कटिका संधि के नाम से जाना जाता है.

भारत ने साल 1983 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था. लेकिन 40 साल बाद जाकर इसपर कानून बनाया जा रहा है, जिसका नाम 'इंडियन अंटार्कटिका बिल, 2022' है. पिछले बजट सत्र के दौरान भी इसे संसद में पेश किया गया था, लेकिन इसे पारित नहीं कराया जा सका था. अंटार्कटिका बिल में ये व्यवस्था दी गई है कि अंटार्कटिका में किसी भारतीय मिशन पर गए व्यक्ति द्वारा अपराध के मामलों में न्याय भारत की अदालतों में होगा. अभी तक अंटार्कटिका में भारतीय अभियानों पर अंतरराष्ट्रीय कानून चलता था.

इस विधेयक में अंटार्कटिका में कमर्शियल मछली पालन का प्रावधान किया गया है. वैसे भारत के लोग यहां मछली पकड़ने का काम नहीं करते हैं, लेकिन चूंकि सभी देशों को एक कोटा मिला हुआ है, इसलिए इसमें ये भी चीज जोड़ी गई है. हालांकि ये सब अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में ही हो पाएगा. अभी तक यहां भारत के लोग कोई पर्यटन गतिविधियां नहीं कर रहे थे. भारत के लोगों को अगर यहां जाना होता था, तो वे दूसरे देशों के माध्यम से जाते थे. इस विधेयक के तहत भारतीय टूर ऑपरेटर्स को अंटार्कटिका में काम करने की अनुमति देने की व्यवस्था की गई है. साथ ही अंटार्कटिका में कचरा प्रबंधन, वहां के पर्यावरण को सुरक्षित रखने इत्यादि के संबंध में भी कई प्रावधान किए गए हैं. 22 जुलाई 2022 को ये लोकसभा में पास हो गया.

अगला बिल है - The National Anti-Doping Bill, 2021. युवा मामले एवं खेल मंत्रालय ने ये बिल 17 दिसंबर 2021 को पेश किया था. डोपिंग का ज़िक्र आप खेलों के संदर्भ में सुनते होंगे, खासकर एथलेटिक्स में. खिलाड़ियों पर आरोप लगते हैं कि इन्होंने तो डोपिंग कर ली. डोपिंग माने ऐसी दवा या प्रतिबंधित पदार्थ का सेवन करना, जिससे आपको मुकाबले के दिन अपने प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त मिल जाए. भारत में नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी NADA के तहत डोपिंग पहले से ही प्रतिबंधित है. लेकिन कानूनी शक्तियां देकर डोपिंग पर और सख्त रोक लगाई जाएगी.  NADA और  National Dope Testing Laboratory (NDTL)के काम को कानूनी वैधता दी जाएगी. एक National Board of Anti Doping बनाया जाएगा, जो डोपिंग के मामलों में खिलाड़ियों के साथ न्याय सुनिश्चित करेगा. लोकसभा में ये 27 जुलाई 2022 को पास हो गया.

आप सोच रहे होंगे कि अब तक हमने राज्यसभा का नाम क्यों नहीं लिया. तो इसका जवाब आपको राज्यसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर मिल जाएगा. वेबसाइट पर एक लिंक है, लेजिस्लेशन नाम से. इसमें जाकर आप ''बिल पास्ड'' वाला टैब दबाएंगे, तो आपको ये नज़र आएगा-

No bill passed during 257 session.

ये 28 जुलाई की शाम साढ़े 5 बजे तक की जानकारी है. ये बताता है कि हाउस ऑफ एल्डर्स में काम के नाम पर क्या हो रहा है. लोकसभा में जितने कानून पास हुए हैं, वो भी इसीलिए कि एक पार्टी के पास बहुमत है. तो बिल पास करवा लिए जाते हैं. चर्चा कितनी हो रही है, हमारे खास कार्यक्रम - ''संसद में आज'' में आप देख ही रहे हैं. 

वीडियो: सांसद में ‘राष्ट्रपत्नी’ को लेकर इतना विवाद क्यों बढ़ गया?