CoBRA यानी Commando Battalion for Resolute Action. जिनका आदर्श वाक्त होता है. “संग्रामें पराक्रमी ज्यी” कोबरा कमांडो भारत की उन 8 स्पेशलाइज्ड फोर्सेज में से हैं, जिन्हें हर तरह की स्थिति में लड़ने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है. नक्सलियों से लड़ाई के लिए इन्हें विशेष ट्रेनिंग मिली होती है. इस स्टोरी में हम जानगें कि कोबरा बटालियन क्या है? जो नक्सलियों को जंगल में कड़ी चुनौती देती है. इसमें रिक्रूटमेंट कैसे होता है? ट्रेनिंग कैसी होती है? ये भी जानेंगे कि इस बटालियन को जंगल की लड़ाई में सबसे बेहतर क्यों माना जाता है?
देश की आजादी से पहले 27 जुलाई 1939 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स की स्थापना हुई थी. पहले इसे क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में जाना जाता था. 28 दिसंबर, 1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया. यह आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा संगठन हैं. सरकारें नक्सल को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती हैं. इनसे निपटने के लिए ऐसे बल की जरूरत महसूस की जाने लगी जो जंगल और गुरिल्ला वॉर में माहिर हों. दो से सात दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन में पूरी तरह से सक्षम हो. इसी को ध्यान में रखते हुए 2008 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स ने कोबरा बटालियन का गठन किया.
CRPF के महानिदेशक रहे प्रकाश मिश्रा ने लोकसभा टीवी से बातचीत में कहा था,
CRPF हर तरह की सुरक्षा देखती है, लेकिन नक्सलियों के खिलाफ अभियान के लिए एक अलग तरह के बटालियन की जरूरत थी. जो जंगल में तीन चार दिन रहकर ऑपरेशन कर सके. इसी को ध्यान में रखते हुए कोबरा बटालियन का गठन किया गया.कोबरा की 10 बटालियन हैं. नक्सल प्रभावित राज्य छत्तसीगढ़ में कोबरा की दो बटालियन हैं. कैसे बनते हैं कोबरा कमांडो? कोबरा कमांडो बनने के लिए सबसे पहले UPSC यानी UNION PUBLIC SERVICE COMMISSION की ओर से आयोजित होने वाले Central Armed Police Forces का एग्जाम क्रैक करना होता है. एग्जाम में रैंक ऐसी हो कि आपको CRPF यानी सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स मिले. CRPF की बेसिक ट्रेनिंग कंप्लीट करने के बाद जवान कोबरा कमांडो बनने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. हालांकि CRPF की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अगर कोई तुरंत कोबरा कमांडो बनने का फैसला नहीं ले पाता है, तो जनरल ड्यूटी कर सकता है. यहां काम करते हुए भी कोबरा कमांडो बनने के लिए अप्लाई कर सकते हैं.

इसके लिए आपको मेंटली और फिजिकली फिट होना चाहिए. आप के अंदर कोबरा कमांडो बनने का जज्बा हो. आपको टेस्ट देना होगा. आपको साबित करना होगा कि आप कोबरा कमांडो की ट्रेनिंग के लिए फिट हैं. तीन महीने की टफ ट्रेनिंग CRPF के जवान अगर कोबरा कमांडो बनने के लिए सारी बाधाओं को पार कर लेते हैं, तो इसके बाद उनकी 90 दिनों की ट्रेनिंग होती है. यह ट्रेनिंग इतनी टफ होती है कि ज्यादातर लोग फेल हो जाते हैं. इस दौरान बीमार होने पर भी बाहर कर दिया जाता है. अंतिम सात दिनों की ट्रेनिंग बहुत ज्यादा मुश्किल होती है. ज्यादातर जवान इन सात दिनों में ही बाहर हो जाते हैं. तीन महीने की फिजिकल ट्रेनिंग कोबरा स्कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड स्टैटिक्स में होती है.

कोबरा कमांडो के बारे में कहा जाता है कि ये कुछ बातों में अमेरिकन मरीन कमांडो से आगे हैं. इस बटालियन का गठन इसी आधार पर किया गया है जिस आधार पर अमेरिकी कमांडो तैयार किए जाते हैं. कोबरा की ट्रेनिंग से लेकर उनके ऑपरेशन को अंजाम देने के तरीकों तक, बहुत कुछ यूएस मरीन कमांडो से मिलता है. खासतौर पर घने जंगलों में नक्सली और आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग मिली होती है. जंगल में लड़ाई के लिए खास ट्रेनिंग कोबरा बटालियन का गठन जंगल की लड़ाई के लिए ही किया गया है. सबसे पहले उन्हें यह सिखाया जाता है कि जंगल में कैसे सरवाइव करना है. अगर ऑपरेशन के दौरान कोई अवरोध आ जाए तो कैसे लक्ष्य तक पहुंचना है. इस बटालियन को इंस्पेक्टर जनरल रैंक का ऑफिसर हेड करता है. कोबरा जवानों को गुरिल्ला वॉरफेयर, फील्ड इंजीनियरिंग, विस्फोटकों का पता लगाने, जंगल में जान बचाने की टेक्निक समेत उग्रवादियों और नक्सलियों से लड़ने के लिए भी तैयार किया जाता है. इनके स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम में जंगल वॉरफेयर, ऑपरेशन की प्लानिंग और उसे पूरा करना, शारीरिक क्षमता, मैप रीडिंग, जीपीएस, इंटेलीजेंस और हेलीकॉप्टर से कूदना शामिल होता है.इन कमांडो को कोंबो फ्लाइंग यानी जमीन के रंग और पत्तियों के अनुरूप ढलकर दुश्मन पर हमला और बचाव करना सीखाया जाता है.

इन जवानों की इस तरह की ट्रेनिंग मिली होती है कि वह जमीन, पानी, पहाड़ कहीं भी आसानी से ऑपरेशन कर सकते हैं. अपने हथियार और जरूरत के सामान के साथ पानी में तैर कर इस पार से उस पार पहुंच पहुंचना इनके लिए कोई मुश्किल का काम नहीं है. दिन हो या रात हर समय ऑपरेशन के लिए तैयार रहते हैं. ट्रेनिंग के दौरान इन जवानों को रात की परिस्थितियों में ढलने की भी ट्रेनिंग कराई जाती है. इतिहास से लेते हैं सबक इन जवानों को ऑपरेशन के दौरान इतिहास में हुई गलतियों से सबक लेना सीखाया जाता है. रात को नक्सली पेड़ काटकर गिरा देते हैं, जैसे ही कोई हटाने की कोशिश करेगा तो IED ब्लास्ट हो जाता है. डेड बॉडी के अंदर प्रेशर बम लगा देते हैं ताकि इन शवों को उठाने वाले को भी नुकसान पहुंचा सकें.
तीन से चार दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन में अगर पानी खत्म हो गया, तो जवान गांव में पानी भरने नहीं जाते हैं. क्योंकि नक्सली हैंडपंप और मटके में भी बम फिट कर देते हैं. इससे जवानों का नुकसान हो जाता है. इसलिए ऑपरेशन के दौरान जवान नदी और नाले से ही पानी भरते हैं. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें नक्सलियों के तरीकों से पार पाना सीखाया जाता है.
एक बार कोबरा कमांडो बनने के बाद हर साल एक महीने की ट्रेनिंग करनी होती है. जब जवान ऑपरेशन नहीं कर रहे होते हैं तो उस दौरान वह ट्रेनिंग करते हैं ताकि खुद को हर ऑपरेशन के लिए फिट रख सकें.
आम तौर पर कोबरा कमांडो की सर्विस पांच साल की होती है. फिट होने पर सात साल कर सकते हैं. कोबरा कमांडो को CRPF के दूसरे जवानों की तुलना में रिस्क अलाउंस मिलता है. फैमिली रखने की सुविधा मिलती है. कैंटीन की सुविधा मिलती है. सर्विस के बाद कोबरा कमांडो अपनी मर्जी की पोस्टिंग ले सकते हैं. वापस CRPF की दूसरी बटालियन में जा सकते हैं. नहीं NSG, SPG और NDRF में भी जा सकते हैं. CRPF की कोबरा बटालियन में अब महिला कमांडोज को भी शामिल किया जाने लगा है.