इंसानों ने कपड़े पहनना क्यों चालू किया (why humans started wearing clothes). तो जवाब हो सकता है, क्लाइमेट या मौसम वगैरह की मार से बचने के लिए. फिर हम क्लाइमेट से मेट गाला तक पहुंच गए. जहां फैशन के ऐसे कपड़े देखने मिल जाते हैं कि जिन्हें देखकर किसी आदिमानव को मिर्गी का छोटा-मोटा दौरा आने की आशंका हो सकती है. काहे कि कपड़े तो आए थे, उपयोगिता के लिए. माने जो हम पहने वो ठंड में गर्म रखे और गर्मी में ठंडा. लेकिन इसके लिए तो जानना होगा कि क्या ये जरूरी है, मोटे कपड़े ज्यादा गर्म करें? या पतले कपड़े पहनने से भी गर्मी से दिमाग भन्ना सकता है? समझते हैं, इसका पूरा आंचा-पांचा!
गर्मियों में मोटा कपड़ा क्या गरम ही करेगा? कुछ लोग तो गर्मियों में ये वाला ऊन भी पहनते हैं
सितंबर, 2021 की बात है कि खबर आई मोरक्को से. खबर थी कि इंसानों ने कपड़े पहनना कब शुरू किया होगा? बताया गया कि एक गुफा में 1.2 लाख साल पहले के कपड़ों के सुराग मिले हैं. कहा गया हो सकता है कि हम इंसानों ने इसी समय के आस-पास कपड़े पहनना चालू किया होगा. लेकिन क्यों (summer clothes)?
लोग कहते हैं, गर्मी और बेइज्जती जितनी महसूस की जाए, उतनी लगती है. बेइज्जती का तो पता नहीं, लेकिन हमें गर्मी या ठंड लगने के पीछे फिजिक्स, बायोलॉजी और केमिस्ट्री सब काम करते हैं. मामला ऐसा है कि हमारे शरीर का तापमान लगभग एक सा रहता है. जो है, करीब 36-37°C ये जरूरी भी होता है. क्योंकि हमारे शरीर में तमाम केमिकल रिएक्शन इसी तापमान पर हो पाती हैं. वहीं तापमान कम या ज्यादा होने पर काम बिगड़ जाता है.
इसलिए जब ठंड ज्यादा होती है, तो हमारा शरीर कंपकंपी के जरिए गर्मी पैदा करने की कोशिश करता है. और जब गर्मी होती है, तो पसीना निकालकर तापमान सेट रखता है. ये सेटिंग साइंस की भाषा में ‘होमियोस्टेसिस’ कहलाती है. कुल मिलाकर मामला इतना है कि हमारा शरीर लगभग एक फिक्स सेट तापमान पर रहना चाहता है.
लेकिन मुआ मौसम कहां एक सा रहता है! कभी जीरो तो कभी अर्धशतक. ऐसे में जब ठंड होती है तो हमारे शरीर से गर्मी वातावरण में जाती है. वहीं जब गर्मी होती है, तब बाहर का तापमान शरीर से ज्यादा होता है. इस मामले में आसपास से गर्मी हमारे शरीर में आती है. इसलिए हमें गर्मी लगती है. दरअसल हीट हमेशा ज्यादा तापमान से कम की ओर जाती है. तो पूरा मामला इसी का है. इसी से अलग-अलग कपड़े गर्मियों में ज्यादा ठंडे या गर्म हो सकते हैं.
क्या है कपड़ों का ये मामलाहम जानते हैं कपड़ा या फैब्रिक कई तरह का होता है. ऊन, कॉटन, नायलॉन या लेनिन वगैरह. अक्सर हमारे दिमाग में ये होता है कि मोटा कपड़ा, पतले कपड़े से ज्यादा गर्म करता ही होगा. लेकिन ऐसा है क्या?
अगर हम आपको बताएं कि लोग गर्मी में एक तरह के ऊन से बने कपड़े भी पहनते हैं. और ये ठंडक भी देता है. यहां तक की एथलीट भी इसे पहनते हैं. ये कपड़ा है मेरिनो वूल. ये क्या मामला है?
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कपड़ों से हमारा शरीर ठंडा कैसे होता है?जैसा कि हमने आपको बताया कि गर्मियों में हमारे शरीर का तापमान बाहर से कम होता है. ऐसे में गर्मी, बाहर के वातावरण से हमारे शरीर में आती है. लेकिन हमारे शरीर का तापमान कम रखना जरूरी है. तो इसके लिए कुदरत ने जुगाड़ निकाला. जुगाड़ पसीने के जरिए, शरीर की गर्मी को बाहर निकालने का. होता ये है कि पानी हमारे शरीर की गर्मी को लेकर भाप में बदलता है. और शरीर से गर्मी लेकर उड़ जाता है.
जब हम कोई कपड़ा पहनते हैं. तो उसकी मोटाई के अलावा भी काफी चीजें होती हैं. जो यह तय करती हैं कि कपड़ा शरीर को कितनी ठंडक पहुंचाएगा. मसलन कपड़ा कितना पानी सोख सकता है. उसकी बुनाई कैसी है, जिसकी वजह से उसमें कितने पोर या छोटे छेद हैं. साथ ही उसका वजन कितना है. मतलब वो शरीर से कितना ज्यादा चिपककर रहता है. शरीर और कपड़े के बीच कितनी पतली हवा की परत है. इन सब महीन बातों का कपड़ों के ठंडक पहुंचा पाने पर असर पड़ता है. सेल में टी शर्ट खरीदते वक्त कभी सोचा न था इतना तामझाम है इसमें.
बेसिकली हीट का लेना-देना कुछ तरीकों से होता है. जैसे थर्मल कंवेक्शन यानी कौन सा मटेरियल कितनी तेजी से हीट सोखकर फैला सकता है. और इवैपुरेशन या पानी का भाप बनना.
कॉटन माने कूल?
जैसे इस मामले में एक रिसर्च की गई, जिसमें कॉटन, पॉलिएस्टर, सिल्क और नॉयलॉन जैसे फैब्रिक को टेस्ट किया गया. टेस्ट ये देखने के लिए था कि कौन सा कपड़ा शरीर को कितना ठंडा करता है. इसमें देखा गया कि कॉटन बाकी कपड़ों की तुलना में ज्यादा ठंडा कर पा रहा था. नीचे लगे ग्राफ से आप इसे समझ सकते हैं.
इस रिसर्च के आधार पर कुछ निष्कर्ष भी निकाले गए. कहा गया कि गीले कपड़े से सिर्फ त्वाचा के मुकाबले ज्यादा ठंडक मिल सकती है. मतलब कुछ न पहनने से अच्छा है कुछ पहनना, जो पानी सोख सके. ये भी देखा गया कि कपड़ा जितना ज्यादा नमी सोख सकता है, वो उतना ठंडक पहुंचा सकता है.
ये ऊन गर्मी में भी पहनते हैंइसी संदर्भ में बात करते हैं एक ऐसे ऊन की जिसे लोग गर्मियों में भी पहनते हैं. वही अपना मेरिनो ऊन. दरअसल इसके गर्मियों में भी पहने जा सकने की वजह है, इसकी नमी सोखने सकने की शक्तियां. और बाहरी वातावरण से इसका संबंध.
होता ये है कि ऊन काफी हाइड्रोफिलिक मटेरियल होता है. यानी ये पानी को बुलाता है, पानी आता भी है. यही कारण है कि ये अपने वजन का 20% से 35% हिस्से के बराबर नमी सोखकर भी पहनने में अजीब नहीं लगता. और ठंडक भी पहुंचाता है.
लेकिन ठंड का मामला सिर्फ नमी सोखने तक का नहीं. इस नमी को ये हीट के साथ वातावरण में निकालता भी है. इसलिए कपड़ा कितनी तेजी से नमी को भाप में बदल सकता है ये भी जरूरी है.
इसके लिए कपड़ा पोरस या ज्यादा हवा को पास कर सकने वाला होना चाहिए.
लेकिन कपड़ों के ठंडक का मामला सिर्फ कपड़े की मोटाई पर नहीं टिका. इसमें उसका मटेरियल, वो कितनी हीट एब्जार्ब कर सकता है. वो कितनी तेजी से नमी सोखकर उसे भाप में बदलने में मदद कर सकता है. यहां तक कि उसका रंग कैसा वो सूरज की रोशनी को कितना एब्जार्ब कर सकता है. इन सब बातों का कपड़ों के तापमान पर फर्क पड़ता है. बताइए खरीदने से पहले ये सब कहां सोचा जाता है.
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