यह लेख डेली ओ
से लिया गया है जिसे अनंत कृष्णन ने लिखा है.
दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण.
चीन का मुसलमानों के खिलाफ युद्ध, जिसपर सभी मुसलमान देश चुप बैठे हैं
आज किसी में हिम्मत नहीं कि चीन की दादागिरी पर उंगली उठा दे
लम्बे समय से चीन मुस्लिम-बहुल शीनज़्यांग प्रांत में फैले आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक अतिवाद को लेकर चिंतित रहा है. शीनज़्यांग की आबादी लगभग दो करोड़ है. इसमें तकरीबन आधे मुसलमान हैं. मुसलमानों में 80 लाख के करीब टर्किक वीगर (Turkic Uighurs) हैं. टर्किक तुर्की शब्द से आया है. कज़ाक और हुई (Hui) अल्पसंख्यक समूह भी इस इलाके में बसा है. शीनज़्यांग में 2009 में हुए दंगों में 197 लोग मारे गए थे. तब से आज तक रुक-रुककर हिंसा हुई है. बीज़िंग सारी हिंसा के लिए वीगर (Uighur) अलगाववादियों को दोषी ठहराता है.
2016 में चेन कुआन्गुओ (Chen Quanguo) चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नए अध्यक्ष चुने गए. ये पहले तिब्बत में थे. वे वहां तिबत्तियों का प्रतिरोध कुचलने के लिए सख्त कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं. चेन कुआन्गुओ के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से बीजिंग अलगाववादियों को पीछे हाथ धोकर पड़ गया है. और इसका सबसे बुरा असर पड़ा है वीघर लोगों पर.
आंकड़े बेहद डराने वाले हैं. चेन के नेतृत्व में शीनज़्यांग में बड़ी संख्या में रीएजुकेशन सेंटर (जेल जैसी एक जगह जहां चीन में बसे मुस्लिम, कज़ाक, कर्गिज़ या ऐसे ही दूसरे अल्पसंख्यक जातिय समूहों को प्रशिक्षण के नाम पर कैद कर के रखा जाता है) खोले गए हैं. एक यूरोपियन रिसर्चर के अनुसार, इस समय '10 लाख के करीब लोग राजनीतिक रिएजुकेशन सेंटर में भर्ती हो चुके हैं.'
मतलब हर आठ विगरों में से एक को जबरदस्ती इन केंद्रों में भेजा जा चुका है. ज़ोर पुरुषों पर रहता है. अगर आप एक वीगर पुरुष हैं और आपकी उम्र 20 से 40 वर्ष के बीच है तो प्रबल संभावना है कि आपको इन केंद्रों में कैद कर दिया जाएगा.
चीन ने शीनज़्यांग प्रांत में बड़े पैमाने पर 'आतंकरोधी' कार्रवाई की है.
यूरोपियन स्कूल ऑफ़ कल्चर ऐंड थियोलॉजी के एक शोधकर्ता एड्रियन ज़ेंज़ ने अपने एक रिसर्च पेपर में निर्माण निविदाओं (ठेकों) का संदर्भ देते हुए बताया है कि एक ख़ास योजना और साजिश के तहत मुस्लिम बहुल इलाकों में ऐसे कई बड़े केंद्र सोच-समझ कर खोले गए हैं.
जो लोग इन सेंटर्स से बाहर निकलने में कामयाब रहे और मीडिया से बातचीत कर पाए, वो बताते हैं कि इन सेंटर्स के भीतर जीवन कितना कष्टकर और भयावह है. लेकिन ऐसी कोई भी बात चीन के मूल निवासी या यहां की बहुसंख्य जनता नहीं कह सकती. प्रशासन के खिलाफ बोलने से डरते हैं वे लोग. क्योंकि चीन में प्रशासन अभिव्यक्ति को सेंसर करने में विश्वास रखता है. ये बात तो एक कज़ाक नागरिक ने बताई जो इस केंद्र में रह चुका था और फिर अपने मुल्क लौट गया.
प्रेस से बातचीत के दौरान 2017 में एक ऐसे ही केंद्र में कैद रह चुके ओमीर बेक़ाली ने बताया कि उनपर ये आरोप लगाया गया था कि वे ट्रैवल एजेंसी की आड़ में लोगों को गैरकानूनी ढंग से देश छोड़ने में मदद करते हैं. लेकिन ना ही इस मामले में छानबीन हुई, न मुकदमा चला.
प्रशासन मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर नज़र रखता है
वो न तो अपने वकील से बात कर सकते थे, न ही अपने माता-पिता से. वहां उन्हें एक बहुत छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया था. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं,
''वहां ओमीर को 'टाइगर चेयर' से बांध दिया गया था. उनकी कलाइयों और पैरों पर बेड़ियां थीं. उन्हें कलाइयों के सहारे दीवारों पर इस तरह लटका दिया जाता कि उन्हें अपने पैर उंचे करके खड़े होना पड़ता. जैसे ही वो पैर नीचे करते, कन्धों असहनीय दर्द होता.''
फिर उन्हें एक रीएजुकेशन सेंटर में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां 1000 से भी ज्यादा लोग थे. वहां खाने से पहले उन्हें एक मन्त्र पढ़ने के लिए विवश किया जाता. वह मन्त्र था- पार्टी का धन्यवाद! मातृभूमि का धन्यवाद! राष्ट्रपति शी का धन्यवाद!
वहां रोज़ाना ब्रेनवॉश की एक लम्बी प्रक्रिया चलती. हमें 'इस्लाम के खतरों' के बारे में बताया जाता. नकारात्मक बातें फैलाई जातीं. उन केंद्रों के इंस्ट्रक्टर अजीब-अजीब तरह के सवाल किया करते. जैसे-
''तुम चीन का क़ानून मानते हो या शरिया को मानते हो?''
''क्या तुम जानते हो कि धर्म कितना खतरनाक होता है?''
कैदियों को मुसलमानों के धार्मिक कपड़े पहनने, प्रार्थना करने, अपने बच्चों को कुरान की शिक्षा देने, या इमाम से अपने बच्चों का नामकरण कराने पर भी माफी मांगनी पड़ती थी.
चीन में मुसलमानों की एक बड़ी संख्या संगीनों के साये में रहने को मजबूर है.
''शुक्रवार के अलावा किसी भी और दिन मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ने पर उसे अतिवाद समझा जाता था. इसी तरह अपने गांव से बाहर जाकर जुम्मे की नमाज पढ़ना, फोन में किसी भी तरह की इस्लामिक कविता, तस्वीर या ग्राफिक रखना भी गलत माना जाता था.''
ज़ेंज़ बताते हैं,
''सांस्कृतिक क्रांति के बाद चीन में सोशल री-इंजीनियरिंग के लिए किया जाने वाला ये अब तक का सबसे बड़ा 'शांति' अभियान है. 'आतंक के खिलाफ युद्ध' के नाम पर यहां ज़ोर के बल पर जातीय गठजोड़ का महिमामंडन किया जा रहा है.''
चीन का ध्यान अपने विकास पर अधिक है. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ने और पश्चिम एशिया में उसके आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं. इसीलिए चीन में इस्लाम पर हो रहे इस हमले के बारे में कोई ज्यादा बात ही नहीं करता. यहां तक की चीन के साथ मित्रता का दावा करने वाला पाकिस्तान जो हमेशा कश्मीर के मुद्दे पर हाथ धोकर भारत के पीछे पड़ा रहता है, वो भी शीनज़्यांग में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी साधे बैठा हुआ है.
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