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चीन की 'कर्ज़ पॉलिसी' जांबिया को गुलाम बना देगी?

खनिज संसाधनों का बड़ा भंडार होने के बावजूद अर्थव्यवस्था बदहाल.

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जांबिया के राष्ट्रपति एदगार लुंगु और चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग (फोटो: एपी)
आज शुरुआत करेंगे 20 दिन पुरानी एक वारदात से. एक वारदात, जो सतही तौर पर तो कोरोना से जुड़ा मामला लगता है. मगर असल में इसकी जड़ है एक बड़े देश द्वारा ग़ुलाम बना लिए जाने का डर. वो डर, जो उस बड़े देश द्वारा दिए गए भारी-भरकम कर्ज़ के जाल में फंसे मुल्क के नागरिकों को सता रहा है. वो नागरिक, जिन्हें लगता है कि 56 साल पहले इतनी मुश्किल से आज़ाद हुए थे हम. और अब फिर एक नई ग़ुलामी की तरफ बढ़ रहे हैं. आज के एपिसोड में कोरोना भी है. नस्लीय नफ़रत और हिंसा भी है. और इसमें है एक देश की डेब्ट ट्रैप पॉलिसी, जो अपनी फ़ितरत में प्रेमचंद की कहानियों के उन क्रूर महाजनों जैसी है जो पहले कर्ज़ देते हैं और फिर उस कर्ज़दार को बंधुआ तक बना लेते हैं.
तीन हमलावर. तीन शिकार. तीन हत्याएं तो जैसा कि हमने कहा, ये कहानी शुरू होती है 20 दिन पुरानी एक वारदात से. तारीख़ थी 24 मई, 2020. रविवार का दिन. दोपहर का समय. जगह, एक कपड़े का गोदाम. तीन लोग हाथ में सरिया लिए गोदाम के अंदर घुसे. अंदर उनकी मुलाकात हुई तीन लोगों से- एक महिला और दो पुरुष. सरिया लेकर आए उन तीन लोगों ने गोदाम के अंदर मौजूद इन तीनों को पीटना शुरू किया. वन-वन का रेशियो था, सो हमलावरों को ये सब करने में बहुत मुश्किल नहीं हुई. 15-16 मिनट में तीनों हमलावरों ने अपने टारगेट्स का काम तमाम कर दिया. फिर वो उनकी खून से सनी लाश को घसीटते हुए मुख्य गोदाम की बिल्डिंग में ले गए. वहां पहले तो हमलावरों ने रुपया-पैसा समेत जितना क़ीमती सामान था, वो बटोरा. फिर उन्होंने लाश समेत समूचे गोदाम में आग लगाई और फरार हो गए.
कहां हुई थी ये वारदात? दक्षिणी अफ्रीका में जांबिया नाम का एक देश है. इसकी राजधानी है लुसाका. यहीं पर हुई ये वारदात. मारे गए तीनों लोग कौन थे? इन तीनों के नाम हैं- 52 साल की चाओ गुइफैंग, जो कि पूर्वी चीन के जिआंग्सु प्रांत की रहने वाली थीं और गोदाम के मालिक की पत्नी थीं. बाकी दोनों थे उनके कर्मचारी- बाओ जुनबिन और फैन मिनजिये. कौन, क्या, कहां और कब. इन सवालों के जवाब जान लिए आपने. अब चलते हैं क्यों के सवाल पर.
Lusaka Zambia
जांबिया की राजधानी लुसाका (स्क्रीनशॉट: गूगल मैप्स)

क्यों हुई थीं ये हत्याएं? जांबिया में कोरोना का पहला केस मिला 18 मार्च को. कोरोना का ये केस जांबिया पहुंचा फ्रांस के रास्ते. एक पति-पत्नी वहां घूमने गए थे. लौटे, तो अनजाने में अपने साथ कोरोना ले आए. 25 मार्च तक कोरोना के मरीज़ बढ़कर हो गए 12. मामले और बढ़ते, तो जांबिया के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती. ये सोचकर 25 मार्च को ही जांबिया के राष्ट्रपति एदगार लुंगु ने देश में आंशिक लॉकडाउन लगा दिया. सीमा बंद, स्कूल-कॉलेज बंद, ज़्यादातर दफ़्तर भी बंद कर दिए गए. जांबिया की आबादी है करीब पौने दो करोड़. देश की अधिकांश जनसंख्या गरीब है. लॉकडाउन के कारण उनकी पहले से ही कम आमदनी और कम हो गई. लोग परेशान और नाराज़ थे. इसी माहौल में एक ऐसी ख़बर आई कि लोगों की नाराज़गी और बढ़ गई.
क्या थी ये ख़बर? ये ख़बर जुड़ी थी जांबिया में मौजूद चाइनीज़ कारोबारियों और कारखाना मालिकों से. लोगों को पता चला कि वो लोग न केवल लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं. बल्कि अपने यहां काम करने वाले जांबियन कामगारों का शोषण भी कर रहे हैं. क्या कर रहे थे ये कारखाना मालिक कि ये आरोप लगा? असल में हो ये रहा था कि कई चाइनीज़ कारखाना मालिक अपने यहां काम करने वाले जांबियन कामगारों को कारखाने के अंदर ही रुकने कह रहे थे. ताकि एक तो कामकाज चलता रहे. दूसरा, कामगार बाहर के लोगों से नहीं मिलेंगे, तो संक्रमण का ख़तरा भी कम होगा. यही सोचकर उन्होंने जांबियन कामगारों से कहा कि जब तक कोरोना का ख़तरा कम नहीं होता, वो कारखाने के अंदर ही रहें. यहीं काम करें. यहीं खाना खाएं. यहीं सोएं. परिवार से भी न मिलें. ऐसे में बहुत सारे कामगार दो-ढाई महीने से कारखाने के अंदर ही बंद थे. ये भी आरोप लग रहा था कि जो कामगार आपत्ति कर रहा है, उसे काम से निकाल दिया जा रहा है.
किसने गुस्से को हवा दी? ये बातें जब बाहर पहुंची, तो आम लोगों में गुस्सा बढ़ा. इस गुस्से को हवा दी लुसाका के मेयर माइल्स सांपा ने. उन्होंने इल्ज़ाम लगाया कि चीन के रहने वाले कारखाना मालिक जांबियन नागरिकों को ग़ुलाम बना रहे हैं. उन्हें बंधक रखकर काम करवा रहे हैं. सांपा के मुताबिक, चाइनीज़ कारख़ानों के अंदर रखे गए जांबियन्स अमानवीय स्थितियों में रह रहे हैं. इस बीच मेयर सांपा ने कुछ चाइनीज़ कारोबारियों पर कार्रवाई भी की. उन्होंने लोगों से कहा कि चीन के लोग अपने रेस्तरांओं और दुकानों में जांबियन्स के साथ भेदभाव कर रहे हैं.
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लुसाका के मेयर माइल्स सांपा (फोटो: फेसबुक)

हत्या के बाद मेयर की मुआफ़ी मेयर सांपा की इन बयानबाजियों और नस्लीय टिप्पणियों के क्रम में 24 मई को लुसाका से आई ट्रिपल मर्डर की वो ख़बर. पुलिस ने इस केस को सीधे से ऐंटी-चाइनीज़ सेंटिमेंट के साथ तो नहीं जोड़ा. मगर इस घटना के बाद दो ऐसी बातें हुईं, जिससे समझ आता है कि इन हत्याओं का सीधा संबंध चीन-विरोधी भावना के साथ है. क्या हैं दो बातें? पहली बात, हत्या के तीन दिन बाद 27 मई को आया लुसाका के सरकारी मंत्री चार्ल्स बांडा का बयान. इसमें उन्होंने मेयर सांपा को अपनी हद में रहने की वॉर्निंग दी. और इसके अगले ही दिन मेयर ने चीन-विरोधी टिप्पणियों और कार्रवाइयों के लिए सार्वजनिक मुआफ़ी मांग ली.
बीते सालों की कुछ हेडलाइन्स अब सवाल है कि क्या जांबिया में रातोरात चीन-विरोधी लहर फैली? क्या इस गुस्से की वजह बस इतनी है कि चीनी मूल के कारख़ाना मालिकों ने जांबियन कामगारों को फैक्ट्री में रोक लिया? इन सवालों का जवाब देने से पहले कुछ पुरानी हेडलाइन्स का ज़िक्र करना ज़रूरी है.
Zambia Mine Blast April 2005
2011 में 51 जांबियन नागरिक जलकर मारे गए (फोटो: एएफपी)

अप्रैल, 2005: जांबिया की एक तांबा खदान 'चामबिशी माइन' में धमाका. 51 लोग जलकर मारे गए. सभी मृतक जांबियन नागरिक. चीन की कंपनी है खदान की मालिक.
दिसंबर 2009: बेहद कम वेतन मिलने से नाराज़ जांबियन खदानकर्मियों ने माइन के चीनी मैनेज़रों पर ज्वलनशील पदार्थ फेंके.
जून 2010: तांबा खदान में गैस धमाके से 22 खदानकर्मी बुरी तरह घायल. नाराज़ भीड़ ने एक चीनी नागरिक को घेरा. बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागा चीनी नागरिक.
अक्टूबर, 2010: जांबिया की कोलम कोयला खदान में शोषण और काम करने की बुरी स्थितियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों पर खदान के दो चाइनीज़ मैनेजर्स ने गोली चलाई. कई लोग घायल. चीन की एक कंपनी है इस कोयला खदान की मालिक.
अप्रैल, 2011: नवंबर 2010 की कोयला खदान गोलीबारी में गिरफ़्तार दोनों चीनी नागरिक रिहा. जांबिया सरकार ने उनपर लगाया गया अटेम्पटेड मर्डर का केस वापस लिया. जांबियन्स का आरोप, उनके देश में रह रहे चीनी नागरिक कोई भी अपराध करके बच जाते हैं.
Released Chinese Manager
रिहा किए गए चीनी नागरिक (फोटो: एएफपी)

अगस्त, 2012: कम वेतन मिलने से नाराज़ जांबियन खदानकर्मियों ने अपने चाइनीज़ सुपरवाइज़र की हत्या की. खदान के एक और चाइनीज़ मैनेजर को गंभीर रूप से जख़्मी किया.
क्या है कॉमन? इन सारी हेडलाइन्स में कुछ बातें कॉमन हैं. जांबिया की खदानें. खदान पर चीनी कंपनियों का मालिकाना हक़. उनके यहां मज़दूरी करते जांबियन नागरिक. कम वेतन और काम करने की बुरी स्थितियों के कारण उनमें उपजी नाराज़गी. और इस तनाव के कारण चाइनीज़ मैनेज़मेंट और स्थानीय खदानकर्मियों के बीच होने वाली हिंसा.
इन हेडलाइन्स और इनके आपसी कनेक्शन से मौजूदा तनाव का एक अहम सिरा पकड़ आता है. मोटामोटी कहें, तो ये सिरा बताता है कि जांबिया के संसाधनों पर चीन का अधिकार है. और जांबिया के लोग अपने ही राष्ट्रीय संसाधनों का फ़ायदा नहीं उठा पा रहे हैं . यानी इस पूरी तस्वीर में जांबियन नागरिक मज़दूर हैं और चीनी नागरिक उनके मालिक. इस संघर्ष को समझने से पहले थोड़ा जांबिया का अतीत खंगाल लेते हैं.
पास्ट टेन्स अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से में रोडिज़िया नाम का एक हिस्सा था. जैसे भारत पर अंग्रेज़ों की ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्ज़ा था. वैसे ही रोडिज़िया पर कब्ज़ा था अंग्रेज़ों की ब्रिटिश साउथ अफ्रीका कंपनी का. 1911 में इसे दो हिस्सों में बांट दिया. उत्तर का हिस्सा कहलाया नॉदर्न रोडिज़िया और दक्षिण का हिस्सा कहलाया सदर्न रोडिज़िया. 1964 में नॉदर्न रोडिज़िया आज़ाद हुआ और इसने अपना नाम रखा- जांबिया. जांबिया चारों दिशाओं में ज़मीन के रास्ते कई देशों से जुड़ा है. यानी लैंडलॉक्ड है. लैंडलॉक्ड होने के अपने कई नुकसान हैं. मसलन, आप अपने कारोबार के लिए पड़ोसी देशों पर निर्भर रहते हैं. आपके पास कोई समुद्री तट नहीं होता.
क्या है जांबिया के पास? हमने जान लिया कि जांबिया के पास क्या नहीं है. अब ये जानिए कि इसके पास क्या है? इसके पास है बड़ा खनिज भंडार. तांबा, कोयला, चांदी, पन्ना, कोबाल्ट, यूरेनियम, कई तरह के खनिज हैं यहां. सबसे ज़्यादा मात्रा में है कॉपर, यानी तांबा. इतना तांबा कि जांबिया के प्रांत का नाम ही है- कॉपरबेल्ट प्रोविंस. इस प्रांत में करीब 10 ज़िले हैं. इन ज़िलों में मौजूदा तांबा भंडार के कारण दुनिया के तांबा उत्पादकों में सातवें नंबर पर है जांबिया. जांबिया के कुल विदेशी निर्यात का 70 फीसदी हिस्सा इसी कॉपरबेल्ट प्रोविंस से आता है.
Copper Mines
जांबिया में इतना कॉपर है कि जांबिया के एक प्रांत का नाम ही है- कॉपरबेल्ट प्रोविंस. (फोटो: एएफपी)

कहां लगता है तांबा? इंडस्ट्रीज़ के लिए तांबा बहुत ज़रूरी धातु है. कंन्सट्रक्शन, बिजली उत्पादन, बिजली वितरण, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, कारखानों में लगने वाले मशीन, गाड़ियां इन सबको तांबे की ज़रूरत पड़ती है. एक टन तांबा पता है कितना कुछ कर सकता है? 'कॉपर अलाइन्स ओआरजी' के मुताबिक, इतना तांबा 40 कारों को चलने लायक बना सकता है. 60 हज़ार मोबाइल्स को पावर दे सकता है. 400 कंप्यूटरों में जान फूंक सकता है. 30 घरों में बिजली पहुंचा सकता है.
बही-खाता अब समझिए, एक इंडस्ट्रियल अर्थव्यवस्था के लिए जांबिया जैसे सप्लायर की कितनी अहमियत होगी. आप जो समझ रहे हैं, वो चीन बहुत पहले समझ चुका था. इसीलिए बीते कुछ दशकों में उसने जांबिया जैसे खनिज संपन्न अफ्रीकी देशों में ख़ूब पैसा निवेश किया. ख़ूब कर्ज़ दिया उन्हें. और इसी वजह से आज जांबिया समेत 15 अफ्रीकी देश चीन के कर्ज़ जाल में बुरी तरह फंस गए हैं.
जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, जांबिया के ऊपर करीब 1 लाख 13 हज़ार करोड़ रुपये का विदेशी कर्ज़ है. इसमें से 44 फीसद कर्ज़ उसे अकेले चीन को चुकाना है. ये आंकड़ा 2017 तक का है. ये लोन देकर न केवल चीन ने जांबिया को अपना कर्ज़दार बनाया, बल्कि उसकी इकॉनमी को भी अपने कंट्रोल में ले लिया. बड़ी संख्या में जांबिया की खदानें लीज़ पर चीन को दे दी गईं. उनका पूरा कामकाज चीनी कंपनियों के पास आ गया. चीन का दखल बस माइनिंग तक नहीं रहा. जांबिया के ज़्यादातर बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स चाइनीज़ कंपनियों के हवाले है. एयरपोर्ट, हाईवे, बांध, जहां देखिए वहां चाइना है. चीन की करीब 280 कंपनियों की मौजूदगी है जांबिया में. उसके करीब 80 हज़ार लोग जांबिया में काम करते हैं.
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग (फोटो: एपी)

हर तरफ, हर जगह अर्थव्यवस्था से इतर और भी कई शिकार हैं चीन के. मसलन, 2015 में राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा शुरू किया प्रॉजेक्ट टेन थॉउज़ेंड विलेजेस़. क्या था ये प्रॉजेक्ट? ये प्रॉजेक्ट था डिजिटल सैटेलाइट टीवी नेटवर्क को अफ्रीका के गांवों तक ले जाने का. इस प्रॉजेक्ट का बाहरी आवरण था लोगों तक सैटेलाइट क्रांति के फ़ायदे पहुंचाना. ताकि वो ढेर सारे अलग-अलग टीवी चैनल देख सकें. मगर इस आवरण के नीचे छुपा असल मकसद था अफ्रीका के गांव-गांव तक प्रो-चाइना प्रोपोगेंडा की सप्लाई करना. ताकि स्थानीय आबादी चीन को अपना हितैषी समझे. चीन और चीनी कंपनियों को हाथोहाथ ले. टेलिविजन नेटवर्क चीन के हाथ में होगा, तो लोगों तक चीन की आलोचना कैसे पहुंचेगी? 2015 में शुरू हुए इस प्रॉजेक्ट की कामयाबी देखिए. जांबिया समेत कुल 30 अफ्रीकी देश मिलाकर इसके करीब एक करोड़ सब्सक्राइबर हो चुके हैं.
फॉर एग्जाम्पल... अब इसी प्रॉजेक्ट की एक मिसाल से समझिए चीन की चालाकी. इस प्रॉजेक्ट के तहत जांबिया में टॉप स्टार नाम की एक कंपनी बनाई गई. इसमें दो पार्टनर थे. एक, ZNBC. इसको समझ लीजिए जांबिया का दूरदर्शन. टॉप स्टार का दूसरा पार्टनर है स्टार टाइम्स. इस स्टार टाइम्स का संबंध है चीन की सरकार से. अब सुनिए इस मामले का सबसे दिलचस्प ऐंगल. इस साझा कंपनी के लिए ZNBC को देनी थी लगभग 30 लाख रुपये की पूंजी. इतना पैसा उसके पास था नहीं. ऐसे में स्टार टाइम्स ने उसे ये पूंजी दी, बतौर कर्ज़. अब समझिए. टॉप स्टार करती है चीनी प्रोपेगेंडा का प्रचार. कनेक्शन लेने वाले उसको पैसा भी देते हैं. और तब भी इस कंपनी में चीन के पास है 60 फीसदी हिस्सा.
ऐसी कई मिसालें हैं. 2018 में अमेरिका के तत्कालीन नैशनल सिक्यॉरिटी अडवाइज़र जॉन बॉल्टन ने कहा था कि जांबिया की सरकार चीन का कर्ज़ नहीं चुका पाएगी और उस स्थिति में चीन उसकी सरकारी कंपनियों पर कब्ज़ा कर लेगा. ये आशंका सिर्फ़ अमेरिका को नहीं है. जांबिया की आम आबादी भी सशंकित है. उन्हें लग रहा है कि चीन उन्हें अपना गुलाम बना रहा है. जांबिया के लोग कहते हैं कि उनकी सरकार भी चीन की जेब में है. चीन के दबाव में चीनी नागरिकों पर जांबिया का कोई क़ानून नहीं चलता. वो अपनी मनमानी करते हैं. आग लोग क्या सोचते हैं, इसका अंदाज़ा आप दिसंबर 2019 में छपी गार्डियन की एक रिपोर्ट से लगा सकते हैं. इसमें लुसाका के रहने वाले आदमी का बयान कुछ यूं छपा था-
सरकार के लोग सूट-बूट पहनकर, हवाई जहाज़ में उड़कर चीन जाते हैं और वहां जाकर हमारे देश को बेच आते हैं. हमारी सड़कों का मालिक चीन है. हमारे होटल चीनी नागरिकों के लिए हैं. मुर्गी के फार्म चाइनीज़ हैं. यहां तक कि घरों में लगने वाली ईंटे तक चाइनीज़ हैं यहां.
Dec 2019 Lusaka People Quote Guardian
दिसंबर 2019 में छपी गार्डियन में लुसाका के रहने वाले आदमी का बयान (स्क्रीनशॉट: गार्डियन)

बिफ़ोर. आफ़्टर लोगों में चीन के लिए कितना गुस्सा है, इसे जांबिया के पूर्व राष्ट्रपति माइकल साटा की मिसाल से समझिए. करीब चार बार राष्ट्रपति पद के लिए खड़े हुए साटा. उनका पूरा कैंपेन चीन विरोधी भावना पर टिका होता था. चीन पर कार्रवाई करने और उसके प्रभाव को कम करने के वादे पर 2011 में वो राष्ट्रपति बने और सत्ता में आते ही चीन से ऐसी यारी हो गई उनकी कि कहने लगा, चीन तो हमारा सदाबहार दोस्त है.
मई 2020 में इकॉनमिस्ट ने एक ख़बर छापी. इसकी हेडिंग थी- ज़ांबिया तो पहले ही मिसाल था कि अपनी अर्थव्यवस्था में क्या ग़लतियां न करें और अब इसके ऊपर कोरोना भी आ गया. इकॉनमिस्ट की इस स्टोरी में लिखा था कि जांबिया जितने बड़े कर्ज़ के जाल में फंसा है, उसके आगे कोई उम्मीद नज़र आती. यही नाउम्मीदी शायद 24 मई को हुई उस हिंसा की असली जड़ है, जिसके ज़िक्र से हमने आज के एपिसोड की शुरुआत की थी.


विडियो- स्वीडिश PM ओलॉफ़ पाल्मे मर्डर केस, 34 साल बाद भी क्यों सुलझ नहीं सकी?