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चीन ने किया नॉन न्यूक्लियर हाइड्रोजन बॉम्ब का सफल परीक्षण, चीनी अखबार का खुलासा, भारत के लिए बढ़ा खतरा!

China Tests Non-Nuclear Hydrogen Bomb: चीन ने नॉन न्यूक्लियर हाइड्रोजन बॉम्ब का परीक्षण किया है. जो बिना परमाणु सामग्री के भी पारंपरिक बम से 15 गुना ज्यादा शक्तिशाली और घातक है. ड्रैगन का ये कदम भारत के लिए एक strategic military threat बन सकता है. जानें कैसे यह नया superweapon एशिया में ताकत का संतुलन बदल सकता है.

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चीन का नॉन न्यूक्लियर हाइड्रोजन बॉम्ब

चीन ने एक बेहद शक्तिशाली नॉन न्यूक्लियर हाइड्रोजन बॉम्ब (Non-Nuclear Hydrogen Bomb) का सफल परीक्षण किया है. ये टेस्ट दक्षिण-पश्चिम चीन के एक गुप्त सैन्य परिसर में किया गया, जिसे बाद में एक चीनी वैज्ञानिक रिसर्च पेपर में सार्वजनिक किया गया. 

South China Morning Post के मुताबिक चीन ने मार्च 2024 में इस गैर परमाणु हाइड्रोजन बॉम्ब परीक्षण को अंजाम दिया. इस बॉम्ब का परीक्षण छोटे स्केल पर किया गया, जिसमें 2 किलो का हथियार शामिल था. परीक्षण के दौरान 1000 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक तापमान वाली आग की गेंद बनी, जो पारंपरिक TNT विस्फोट के मुकाबले 15 गुना ज्यादा लंबे समय तक जलती रही. इस विस्फोट में मैग्नीशियम हाइड्राइड जैसे हाई क्वालिटी हाइड्रोजन स्टोरेज पदार्थों का इस्तेमाल किया गया, जिससे ये बहुत ज्यादा शक्तिशाली और खतरनाक बन जाता है. इसके बावजूद इस बॉम्ब को गैर-परमाणु हथियारों की कैटेगरी में ही रखा जाएगा.

ये टेस्ट है क्या?

ये Non-Nuclear Hydrogen Bomb पारंपरिक परमाणु बॉम्ब से अलग है. इसमें न्यूक्लियर फ्यूजन या फिशन रिएक्शन नहीं होते, यानी न ही रेडियोधर्मी कचरा फैलता है और न ही अंतरराष्ट्रीय न्यूक्लियर ट्रीटी का उल्लंघन होता है. फिर भी इसका प्रभाव पारंपरिक बॉम्ब की तुलना में कहीं ज्यादा होता है.

चीन के वैज्ञानिकों का दावा है कि ये बॉम्ब, कम लागत में, कम रेडिएशन के जोखिम के साथ ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. इसका मतलब है कि चीन अब 'परमाणु हथियारों' का इस्तेमाल किए बिना भी एक तरह से 'सुपर वेपन' बना रहा है.

चीन का ये हथियार सामान्य बॉम्ब से 15 गुना ताकतवर है (फोटो- AP)
चीन का ये बॉम्ब, पारंपरिंक बॉम्ब से 15 गुना ज्यादा घातक (फोटो- AP)

चीन क्या हासिल करना चाहता है?

चीन इस नये हथियार के जरिए कई निशाने एक साथ साधने की कोशिश में है. जिससे ना तो किसी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन हो और ना ही दुश्मन पर बड़ा हमला करने के लिए विकल्प की कमी रहे. डिफेंस एक्सपर्ट्स की मानेंं तो चीन को मुख्य रूप से 3 फायदे हो सकते हैं.

1. Strategic Edge: बिना परमाणु टैग के भी ऐसे हथियार चीन को युद्धक्षेत्र में बढ़त देंगे.

2. Deterrence Boost: परमाणु हथियारों के विकल्प के रूप में ये बॉम्ब दुश्मन देशों के लिए एक ऐसा खतरा बनेगा, जिसके लिए वो पहले से तैयार नहीं हैं.

3. Treaty Loophole: अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन किए बिना चीन अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ा सकता है.

भारत के लिए कितना खतरा?

भारत-चीन सीमा पर पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति है, खासकर लद्दाख और अरुणाचल में. इस बॉम्ब की तैनाती से चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में Quick Strike Capability हासिल कर सकता है. वो भी बिना न्यूक्लियर वार की जवाबदेही उठाए. सर्जिकल स्ट्राइक जैसी परिस्थितियों में चीन इस हथियार का इस्तेमाल कर सकता है, जिससे भारी नुकसान तो होगा, लेकिन वह परमाणु युद्ध शुरू करने का जिम्मेदार नहीं माना जाएगा.  

भारत बनाम चीन: सैन्य ताकत का मुकाबला

चीन ने पिछले कुछ सालों में अपनी सेना को AI, Drone Swarm, Hypersonic Missiles, और अब Non-Nuclear Strategic Weapons से लैस किया है. दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं की तुलना करें तो जो तस्वीर उभर कर सामने आती है, वो चिंता में डालने वाली है. आइये एक-एक करके भारत और चीन की सैन्य ताकत को एक साथ रखकर तौल लेते हैं.

सैन्य बजट

किसी भी देश की सैन्य ताकत का सीधा संबंध उस बजट से होता है, जिसे वो देश अपनी सेना और सैन्य तैयारियों पर खर्च करती है. SIPRI की 2024 की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक साल 2023 में चीन ने 292 बिलियन यूएस डॉलर यानी 24.236 लाख करोड़ रुपये रक्षा पर खर्च किए तो वहीं उसी साल भारत का रक्षा खर्च था 83.6 बिलियन डॉलर, बोले तो 6.93 लाख करोड़ रुपये. आसान शब्दों में कहें तो चीन के बजट का करीब-करीब एक चौथाई. 

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सैनिकों की तादाद

बजट के बाद बात करते हैं सैनिकों के तादाद की. दुनिया भर के आंकड़ों पर नजर रखने वाली संस्था Statista की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 के अंत तक चीन में लगभग 20 लाख सक्रिय सैनिक थे. जबकि उसी दौरान भारत में करीब 14.5 लाख सक्रिय सैनिक सेवा में थे. 

परमाणु हथियार

SIPRI की प्रेस रिलीज के मुताबिक साल 2024 तक चीन के पास छोटे-बड़े करीब 500 न्यूक्लियर वॉरहेड्स थे. जबकि भारत के पास उससे बेहद कम 172 न्यूक्लियर वॉरहेड्स मौजूद थे. 

वायु सेना

ग्लोबल फायर पावर की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पास इस वक्त 3200 एयरक्राफ्ट मौजूद हैं. जबकि भारत के पास 2100 एक्टिव एयरक्राफ्ट हैं.

नौसेना

चीन के पास इस वक्त 360 से ज्यादा युद्धपोत मौजूद हैं. जबकि भारत के पास करीब 150 बैटलशिप हैं. ये आंकड़े भी Global Firepower की रिपोर्ट में बताए गए हैं.

साइबर और अंतरिक्ष क्षमताएं

Carnegie Endowment की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने साइबर और अंतरिक्ष क्षमताओं में भारी निवेश किया है. उसका इरादा भविष्य में खुद को स्पेस बैटल के लिए तैयार करना है. साथ ही जरूरत पड़ने पर चीन किसी भी देश के खिलाफ साइबर वॉर भी छेड़ सकता है. जबकि भारत ने भी इस दिशा में काफी काम किया है. राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति और रक्षा साइबर एजेंसी की स्थापना, इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं. 

इसके अलावा मिसाइलों के क्षेत्र में चीन का भंडार भारत की तुलना में काफी बड़ा है. The Bulletin के एक लेख के मुताबिक भारत के पास अग्नि सीरिज, ब्रह्मोस, पृथ्वी जैसी मिसाइलें हैं तो चीन के पास DF-21, DF-26 समेत हाइपरसोनिक मिसाइलों का जखीरा मौजूद है.

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चीन की तैयारियां भारत से कहीं ज्यादा हैंं
नॉन न्यूक्लियर हाइड्रोजन बॉम्ब की नई रणनीति

South China Morning Post की रिपोर्ट के अनुसार, ये परीक्षण चीन की सैन्य रणनीति में एक नया मोड़ है. Non-Nuclear Hydrogen Bomb, चाहे नाम में 'नॉन' हो, लेकिन असर में ये ‘न्यूक्लियर’ से कम नहीं.

भारत को अपनी रणनीति, सैन्य तैयारी, और Hybrid Warfare Tools को मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि वह ऐसे अप्रत्याशित खतरों का मुकाबला कर सके. आने वाले वर्षों में चीन की ये नयी टेक्नोलॉजीज भारत की डिफेंस पॉलिसी के लिए एक नई चुनौती होंगी. 

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