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Chandrayaan 3: मिशन सफल तो, चांद पर कॉलोनी काटने की राह खुल सकती है

क्या मंगल पर जाने वाले रॉकेट चांद से ईंधन लेकर उड़ सकते हैं? क्या चांद पर खदान बनाने वाला देश अकूत परमाणु ऊर्जा की कुंजी पा लेगा? ऐसे सवालों के कुछ जवाब चंद्रयान-3 मिशन से मिल सकते हैं.

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एक आम आदमी के लिए चंद्रयान-मिशन की सफलता के मायने क्या हैं?

चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन से भारत को बहुत उम्मीदें हैं. चांद पर 'विक्रम' लैंडर (Vikram Lander) की सॉफ्ट लैंडिंग होना पूरे देश के लिए खुशी की बात होगी. इसके बाद लैंडर से ISRO का बनाया 6 पहियों वाला रोवर बाहर आएगा और चांद की जमीन पर घूम-टहल कर डेटा इकट्ठा करेगा. चंद्रयान-3 मिशन के सफल होने के मायने एक वैज्ञानिक उपलब्धि से कहीं आगे के हैं. कैसे? आइए समझें.

चंद्रयान-3 अभी किस स्टेज में है?

चंद्रयान-3 को 14 जुलाई, 2023 की दोपहर 2:35 बजे पृथ्वी से लॉन्च किया गया. 19 अगस्त की मध्यरात्रि के बाद रात 1 बजकर 50 मिनट पर चंद्रयान की गति कम करने के लिए दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन पूरा हुआ. अब लैंडर, चांद से 25 किलोमीटर की न्यूनतम दूरी और 134 किलोमीटर की अधिकतम दूरी वाले ऑर्बिट में है. लैंडर के इंस्ट्रूमेंट्स की जांच के बाद अगर सब कुछ ठीक रहा तो 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव के इलाके में सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. मतलब हौले से चांद की ज़मीन पर कदम रखेगा.

ये मिशन सफल हुआ तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. लेकिन ये होड़ किसलिए है? करोड़ों खर्च करके चांद के दक्षिणी ध्रुव पर क्या ढूंढा जा रहा है?

मिशन के फायदे

असल में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कई बड़े हिस्सों पर मौजूद क्रेटर (गड्ढे) अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी से अछूते हैं. कह लीजिये कि वहां एक किस्म की “परमानेंट शैडो” है. कभी सूरज का प्रकाश नहीं पड़ा, इसीलिए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर का तापमान काफी कम है. इसीलिए ये मत रहा कि यहां के क्रेटर्स में बर्फ मिल सकती है. इसीलिए सारे ताकतवर देशों ने अपने मून मिशन्स में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर फोकस किया, छानबीन की. इनमें अमरीका के लूनर प्रॉस्पेक्टर (1998), LRO (2009), LCROSS (2009), चीन का चैंग’ई 4 (2018) और भारत का चंद्रयान -1 (2008) प्रमुख हैं.  

चांद के दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर्स की रचना अपने में अनूठी है और वहां हमारे सौर मंडल के पैदा होने से जुड़े सुबूत मिल सकते हैं. ये भी मत है कि इन विशेषताओं के चलते, चांद का ये इलाका मानव बस्ती बसाने की क्षमता रखता है. अमेरिका का नासा भी अपने आर्टेमिस III कार्यक्रम के ज़रिये चांद पर 2025 में जो मानव अभियान भेज रहा है, वो भी दक्षिणी ध्रुव पर ही जाएगा. दुनिया के दूसरे कई देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां ​​​​और निजी कंपनियां चंद्रमा के इस क्षेत्र का पता लगाने के लिए मिशन की योजना बना रही हैं.

लेकिन  चंद्रयान-3 मिशन से सीधे तौर पर कोई नई चीज नहीं मिलने जा रही है. पहले के अभियानों की तरह ये भी एक खोजी अभियान है, एक एक्सपेरिमेंट है. लेकिन इस मिशन से मिलने वाला डेटा, भविष्य में चांद को लेकर बड़ी संभावनाओं के रास्ते खोल सकता है. मसलन, चांद, पृथ्वी से करीब 3 लाख, 84 हजार किलोमीटर दूर है. फिर भी चांद पृथ्वी को प्रभावित करता है. कैसे? असल में पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है, ये हम जानते हैं. इस झुकाव को नियंत्रित करने का काम चांद भी करता है. और इस नियंत्रण से पृथ्वी की जलवायु प्रभावित होती है. पृथ्वी पर समुद्री ज्वार-भाटा (हाई टाइड - लो टाइड) भी चांद की वजह से आता है. माने समुद्री लहरों की गति और प्रकृति भी चांद नियंत्रित करता है. 

सो चांद की नई जानकारियां सामने आने से पृथ्वी पर चांद के प्रभाव को बेहतर तरीक से समझा जा सकेगा. चांद के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टानों के केमिकल टेस्ट से उस इलाके की भौगोलिक विशेषताओं, वातावरण की जानकारी मिलेगी, भविष्य में चांद पर इंसानों को भेजने के मिशन आसान होंगे. निजी संस्थाओं के लिए मून मिशन एक व्यवसाय की तरह उभर रहा है. इसमें भी बढ़ोत्तरी होगी.

ये तो इस मिशन के सीधे फायदे हैं. जो डाटा इकठ्ठा होगा, उससे मिलने वाले फायदे. लेकिन भविष्य को लेकर कुछ दूरगामी और बड़ी उम्मीदें भी हैं.
चांद पर जीवन की संभावना ढूंढ रहे वैज्ञानिक ये जानते हैं कि चांद पर तापमान पृथ्वी की तरह जीवन के योग्य नहीं है. चांद पर तापमान बहुत तेजी से बदलता है. दिन में चांद 127 डिग्री सेल्सियस तक गर्म जबकि रात में माइनस 173 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा. लेकिन चांद के पास कई संसाधन ऐसे हैं जिनके लालच में दुनिया भर के देशों की स्पेस एजेंसियां चांद को और ज्यादा खोजने, टटोलने और समझने में जुटी हैं.

चांद के पास क्या है, जो हमें चाहिए?

इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक, साल 2008 में भारत के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान हमने चांद पर पानी खोज लिया था. इस मिशन के दौरान चांद की सतह पर हाइड्रॉक्सिल (ऐसे यौगिक जिनमें हाइड्रोकार्बन के साथ OH ग्रुप भी होता है. माने ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु शामिल होते हैं) के अणु मिले थे. चांद के दोनों ध्रुवों पर इनकी तादाद और ज्यादा थी. अब यही पानी जीवन के लिए तो आधारभूत जरूरत है ही, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का स्रोत भी होता है. जो रॉकेट के लिए बतौर ईंधन इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ऐसे में चांद के किसी इलाके में अगर बहुतायत में पानी होने का पता चला तो आने वाले वक्त में रॉकट्स के लिए चांद पर ही ईंधन जुटाने की कोशिशें शुरू की जा सकती हैं.

इसके अलावा चांद पर मौजूद है हीलियम-3. ये हीलियम गैस का एक आइसोटोप (समस्थानिक) होता है, जो पृथ्वी पर दुर्लभ है, न के बराबर मात्रा में है. लेकिन नासा के मुताबिक, चांद पर लाखों टन हीलियम-3 तत्व मौजूद है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के मुताबिक, हीलियम-3, प्रकृति से रेडियोएक्टिव नहीं होता इसलिए इसका इस्तेमाल न्यूक्लियर एनर्जी बनाने में हो सकता है. और इससे कोई खतरनाक रेडियोएक्टिव कचरा भी नहीं पैदा होगा. 

इसके अलावा चांद पर कई ऐसे मेटल मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर वगैरह बनाने में होता है. एयरक्राफ्ट, रॉकेट और जहाज बनाने वाली कंपनी बोइंग ने एक रिसर्च की थी. इसके मुताबिक, चांद पर स्कैंडियम, येट्रियम और 15 लैंथेनाइड्स मौजूद हैं. इन्हें रेयर अर्थ मेटल भी कहते हैं. माने ये धरती पर बहुत कम मात्रा में मिलते हैं.   

किसी खनिज या धातु को पाने के लिए उसका खनन (माइनिंग) की जाती है. चांद पर इन तत्वों की माइनिंग कैसे होगी, ये साफ़ नहीं है. इसके लिए पहले तो चांद पर ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा. मोटा-माटी कहें तो खदान बनानी होगी. फिर मशीनों के जरिए खनन का काम किया जा सकता है.

लेकिन ये संभावनाएं अभी दूर की कौड़ी हैं. और चांद पर खनन कौन करेगा, और जो भी इस खनन से निकलेगा, उसका मालिक कौन होगा, इसे लेकर दुनिया के देशों के बीच अधिकार की लड़ाई जारी है. साल 1966 में यूनाइटेड नेशंस आउटर स्पेस ट्रीटी में कहा गया है कि दुनिया का कोई भी देश चांद या किसी भी और खगोलीय पिंड पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता. और अंतरिक्ष में जो भी रिसर्च या खोजबीन होगी उससे सभी देशों का फायदा होना चाहिए. इसके बाद साल 1979 में मून एग्रीमेंट हुआ. इसमें भी कहा गया कि चांद का कोई हिस्सा किसी देश या संस्था की प्रॉपर्टी नहीं हो सकता. इसी तरह साल 2020 में अमेरिका ने आर्टेमिस एकॉर्ड्स की घोषणा की.

आर्टेमिस एकॉर्ड्स क्या है जिस पर PM मोदी ने साइन किए थे, यहां पढ़ सकते हैं.

इसके जरिए चांद पर सेफ्टी जोन बनाने की बात कही गई. भारत सहित कई देश इस पर दस्तखत कर चुके हैं लेकिन अभी रूस और चीन इस समझौते से दूर हैं. 

वीडियो: चंद्रयान-3 का लैंडर अलग हुआ, सबसे ज्यादा नाजुक मौका अब शुरू, यहीं कैसे फेल हुआ था चंद्रयान-2?