अतीक़ अहमद चर्चा में है. राजू पाल हत्याकांड (Raju Pal Murder Case) के गवाह उमेश पाल की हत्या के मामले में यूपी पुलिस ने अतीक़ अहमद के दो बेटों को हिरासत में ले लिया है. पुलिस अब तक 14 संदिग्ध लोगों को इस मामले में पकड़ चुकी है. एक आरोपी की एनकाउंटर में मौत हो चुकी है. मामले की जांच चल रही है, लेकिन गैंगस्टर अतीक़ अहमद के जीवन में राजूपाल हत्याकांड जैसे ही कई कांड दर्ज हैं. एक समय पर अतीक़ और उसके भाई पर 100 से ज़्यादा मुक़दमे थे. लेकिन अतीक अहमद से जुड़ा पहला कांड क्या था, उसकी बात करते हैं.
चांद बाबा हत्याकांड की पूरी कहानी, जिसने पूरे इलाहाबाद में अतीक अहमद का खौफ बना दिया था
दिन-दहाड़े, बीच बाज़ार हुई थी चांद बाबा की हत्या.
70 के दशक की बात है. प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे. उद्योग लग रहे थे. ख़ूब ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों को अमीर बनने का चस्का लगा था. अमीर बनने के लिए वो कुछ भी करने को उतारू थे. कुछ भी, मतलब कुछ भी. हत्या, वसूली, अपहरण.. कुछ भी. इसी इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया. यहां के एक तांगे वाले के लड़के को भी अमीर बनने का चस्का था. वो भी ‘कुछ भी’ करने लगा. 17 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा और इसके बाद शुरू हुआ सफ़र. गुंडई-रंगदारी से माफ़िया और माफ़िया से नेता-कारोबारी बनने तक का सफ़र. लड़के का नाम था अतीक़ अहमद. फिरोज तांगेवाले का लड़का.
लेकिन हम पूरे सफ़र की बात नहीं करेंगे. केवल अतीक़ के पहले बड़े कांड के बारे में बताएंगे, जिसने उसे शहर में कुख्यात कर दिया.
पुराने शहर में उन दिनों शौक़ इलाही उर्फ़ चांद बाबा नाम के गैंगस्टर का ख़ौफ़ हुआ करता था. पुराने इलाहाबादी बताते हैं कि पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ़ नहीं जाती थी. उस समय तक अतीक़ 20-22 साल का हो गया था और उसे ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था. पुलिस और नेता, दोनों ही उसे शह दे रहे थे. दोनों ही चांद बाबा के ख़ौफ़ को ख़त्म करना चाहते थे. सो उन्होंने पुरानी नीति का सहारा लिया- ख़ौफ़ के बरक्स ख़ौफ़. इसी क़वायद का नतीजा था अतीक़ का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज़्यादा पुलिस के लिए खतरनाक हो गया.
जैसे-जैसे अतीक़ और उसके लड़कों का नेटवर्क बढ़ा, पुलिस के लिए नासूर बनने लगा. अतीक़ को इस बात की भनक लग गई. उसने एक पुराने मामले में ज़मानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उसके ख़िलाफ़ रासुका लगा दिया गया. लोगों में मेसेज ये गया कि अतीक़ बर्बाद हो गया. लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई. एक साल बाद अतीक़ जेल से बाहर आ गया. जेल से आते ही उसने इस सहानुभूति का फ़ायदा उठाया. उसे समझ आ गया था कि अब बचने के लिए सियासत ही काम आ सकती थी. हुआ भी ऐसा ही. 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए. इलाहाबाद पश्चिमी सीट से अतीक़ ने निर्दलीय पर्चा भर दिया.
सामने था चांद बाबा. चांद बाबा और अतीक़ में कई बार गैंगवार हो चुका था. अपराध जगत में अतीक़ का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को अखर रहा था. यही कारण था कि चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी. काउंटिंग वाले दिन, अतीक़ अहमद अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग़ में चाय की टपरी पर था. चांद बाबा अपनी गैंग के साथ आया. और, दोनों के बीच भीषण गैंगवॉर हुई. गोलियां, बम, बारूद से बाज़ार पट गया. इसी गैंगवॉर में चांद बाबा की मौत हो गई. चांद बाबा की हत्या पर प्रशासन ऐक्शन लेता या चांद बाबा के गुर्गे, इससे पहले ही चुनाव के रिज़ल्ट्स घोषित हो गए. अतीक़ अहमद विधायक चुन लिया गया.
और, कुछ ही महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग ख़त्म हो गया. कुछ मार दिए गए. बाक़ी भाग गए. बाबा का दौर ख़त्म हो चुका था और अतीक़ का दौर आ गया था. इस हत्या में अतीक़ अहमद पर कोई मुक़दमा दर्ज नहीं हुआ और चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया था.
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चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक़ का ख़ौफ़ इस क़दर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से ख़ुद ही मना कर देते थे. यही कारण था कि निर्दलीय रहकर अतीक़ ने 1991 और 1993 के चुनाव जीते. फिर सपा से नजदीकी बढ़ी, तो 1996 में सपा से टिकट मिल गया. चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना. 1999 में अपना दल का हाथ थामा. 2002 में अपना दल से अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ा और 5वीं बार इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा में पहुंच गया.
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