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हेमंत सोरेन को गुर्राहट तो दिखा दी, लेकिन 'कोल्हान के टाइगर' चम्पाई सोरेन के दांत कितने नुकीले हैं?

Champai Soren ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो Hemant Soren का साथ छोड़कर नई पार्टी का गठन कर सकते हैं. इससे पहले चर्चा थी कि वो BJP में शामिल होंगे. समझने की कोशिश करते हैं कि झारखंड की राजनीति में अब उनका कितना महत्व है और नया दल बनाकर चुनाव जीतना उनके लिए कितना मुश्किल होगा.

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चम्पाई सोरेन को 'कोल्हान का टाइगर' कहा जाता है. (फाइल फोटो: PTI)

झारखंड की राजनीति के लिए ये साल बड़ी हलचलों वाला रहा है, खास तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए. 31 जनवरी को हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को ED ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इससे JMM के वरिष्ठ नेता और विधायक चम्पाई सोरेन के सियासी सफर में सबसे बड़ा मोड़ आया. हेमंत सोरेन जाते-जाते चम्पाई सोरेन (Champai Soren) को सीएम बना गए. लेकिन कुछ ही महीनों बाद उनकी गाड़ी को ‘यूटर्न’ लेने पर मजबूर कर दिया गया. हेमंत सोरेन जमानत पर जेल से बाहर आ गए. 3 जुलाई को चम्पाई सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, या कहें देना पड़ा. अब उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी ने उन्हें ‘अपमानित’ किया है, उनके 'आत्मसम्मान को ठेस' पहुंचाई है.

इसी साल के अंत में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. जाहिर है JMM की खलबली ने प्रदेश के लोगों के साथ राजनीति पर नजर रखने वालों के मन में भी कौतूहल मचाया हुआ है. चम्पाई सोरेन की नाराजगी चुनाव में JMM को कोई नुकसान पहुंचाएगी या नहीं, इसे लेकर चर्चा है. उनके समर्थक उन्हें ‘कोल्हान का टाइगर’ कहते हैं. यहां सवाल बनता है कि क्या उनके 'दांत' इतने नुकीले हैं जो हेमंत सोरेन को जख्मी कर पाएं.

हेमंत सोरेन को कितना नुकसान पहुंचा पाएंगे चम्पाई?

जानकार बताते हैं कि अगर चम्पाई को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता तो शायद उनके लिए JMM छोड़ने की नौबत नहीं आती. इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार आनंद दत्त इस बारे में कहते हैं,

"चम्पाई 40 सालों से राजनीति में हैं और एक ही पार्टी में हैं. ऐसे में इस बात पर कोई शक नहीं है कि वो जो बोलेंगे या वो जो करेंगे उसकी चर्चा होगी. चर्चा होगी और बड़े स्तर पर होगी. लेकिन सवाल है कि उससे झारखंड की राजनीति पर कितना फर्क पड़ेगा? इसमें भी कोई शक नहीं है कि उनके पास संगठन मजबूत करने का अनुभव है. उन्होंने पश्चिमी सिंहभूम और कोल्हान जैसे जिलों में JMM को मजबूती दी है. इन जिलों में हेमंत सोरेन कम ही जाया करते थे. सबकुछ चम्पाई ने ही संभाल रखा था. और इसका नतीजा भी ठीक-ठीक रहा."

Champai Soren
चम्पाई सोरेन पिछले दिनों दिल्ली पहुंचे थे. (फोटो: PTI)

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झारखंड की राजनीति को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा कहते हैं,

“झारखंड की राजनीति में चम्पाई सोरेन की पहचान JMM की वजह से ज्यादा है. कई बार मंत्री रहने और मुख्यमंत्री की सूची में नाम जुड़ने की वजह से भी राजनीति में बड़ा चेहरा हैं, पर JMM से अलग होकर वो राजनीति में कितना प्रभावी होंगे, ये परखा जाना बाकी है.”

JMM की जीत में कोल्हान क्षेत्र की विशेष भूमिका रही है. पिछले विधानसभा चुनाव (2019) में इस इलाके की 14 में से 11 सीटों पर JMM को जीत मिली थी. जबकि 2 सीटों पर कांग्रेस को और 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय को जीत मिली थी. चम्पाई खुद भी इसी क्षेत्र से आते हैं. इन सीटों पर जीत में चम्पाई की अहम भूमिका मानी जाती है.

वोटों के मामले में कहां हैं Champai Soren?

आनंद दत्त कहते हैं कि इन सबके बावजूद चम्पाई बहुत बड़ा चेहरा नहीं हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ उनके कहने पर हजारों लोग वोट करें. उन्होंने बताया कि अधिकतर बार उनकी जीत का मार्जिन भी कम रहा है.

2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में सरायकेला सीट से चम्पाई ने BJP के गणेश महाली को हराया था. उन्हें 15 हजार 667 वोटों से जीत मिली थी. 2014 में भी उन्होंने महाली को हराया. इस बार जीत का अंतर मात्र 1115 वोटों का था. उससे पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने BJP के लक्ष्मण टुडू को 3246 वोटों से हराया था. 2005 में भी उन्होंने टुडू को हराया था और इस बार जीत का अंतर मात्र 882 वोट था. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में चम्पाई को BJP के अनंत राम टुडू ने 8783 वोटों से हरा दिया था.

चुनावजीत का अंतर
201915,667
20141,115
20093,246
2005882

झारखंड साल 2000 में बिहार से अलग हुआ था. इसके पहले साल 1995 में और 1991 के उपचुनाव में भी चम्पाई को जीत मिली थी.

नीरज सिन्हा इस पर कहते हैं,

“फिलहाल नंबर गेम में भी वो बड़ा उलटफेर करते नजर नहीं आ रहे हैं. चम्पाई सोरेन जिस कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, उस इलाके के कई विधायकों के नाम भी इस प्रकरण में उछाले गए थे, लेकिन JMM के उन विधायकों ने खुलकर कहा है कि वो दल में पूरी निष्ठा के साथ मौजूद हैं. मंगलवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ कोल्हान के चार विधायकों की हुई बैठक के बाद भी बहुत कुछ संभलता हुआ नजर आ रहा है.”

Hemant Soren and Champai Soren
चम्पाई को हेमंत सोरेन के परिवार का करीबी माना जाता था. (तस्वीर: सोशल मीडिया)
तीन विकल्पों में से दो विकल्प खत्म

अपने एक इमोशनल पोस्ट में चम्पाई ने आगे के लिए तीन विकल्पों की बात की थी. पहला- राजनीति से संन्यास ले लें, दूसरा- किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाएं और तीसरा- नई पार्टी बनाएं. 19 अगस्त को दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वो संन्यास नहीं ले रहे हैं. आनंद दत्त कहते हैं कि दूसरी पार्टी के लिए उनके पास BJP का विकल्प है. उन्होंने आगे कहा,

“ऐसी खबरें थीं कि BJP ने उनसे 5 से 6 विधायकों को साथ लाने को कहा है. इसके बाद उन पर विचार किया जाता. लेकिन उन विधायकों ने उनका साथ नहीं दिया. खबर ये भी चली कि हेमंत सोरेन ने उन विधायकों को फोन करके समझाया. अब यहां एक दूसरा एंगल भी है. BJP में पहले से 2 बड़े आदिवासी नेता हैं- अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी. एक अमर कुमार बाउरी भी हैं. अगर राज्य में BJP को जीत मिलती है तो ये तीनों CM पद के दावेदार हैं. ऐसे में BJP में इनका (पूरी गर्मजोशी से) स्वागत नहीं किया जाएगा. और जब ऐसा नहीं होगा तो इस पर भी सवाल उठेगा कि चम्पाई BJP के लिए कितने मन से प्रयास करेंगे.”

नीरज सिन्हा कहते हैं कि चम्पाई को जो ओहदा JMM में मिला था वो उनको BJP में तुरंत नहीं मिल सकता. उन्होंने आगे कहा,

“आदिवासी इलाके में JMM छोड़कर कोई नेता BJP में जाकर करिश्माई कमाल कर दे, ये भी कठिन लगता है. हालांकि, कोल्हान में BJP को एक बड़ा आदिवासी चेहरा जरूर मिल जाएगा.”

नई पार्टी बनाएंगे Champai Soren?

सोरेन ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि वो नई पार्टी की ओर बढ़ सकते हैं. आनंद दत्त इस पर कहते हैं कि चम्पाई के लिए बेहतर यही है कि वो JMM और दूसरे दलों के नाराज नेताओं को इकट्ठा करें और नया दल बनाएं. लेकिन आनंद इसमें भी एक पेच बताते हैं,

“विधानसभा चुनाव में एक-दो महीना ही बाकी है. और इतने कम समय में नई पार्टी बनाकर एक सिंगल चेहरे पर वोट पाना मुश्किल है. और अब अगर वो JMM में वापस लौटते हैं तो पार्टी में उनका सम्मान नहीं बचेगा. उनके लिए ये विकल्प भी खत्म ही मान सकते हैं. ऐसा लग रहा है कि वो हेमंत सोरेन को बहुत ज्यादा डेंट भी नहीं पहुंचा पाएंगे. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि उनकी राजनीति ढलान की ओर है. फिलहाल उनके लिए अपनी सीट पर जीत पाना ही बड़ी बात होगी.”

Champai Soren with Hemant Soren
चम्पाई सोरेन की उपस्थिति में तब के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंपते हेमंत सोरेन. (फाइल फोटो: ANI)

हालांकि, नीरज सिन्हा कहते हैं कि चम्पाई अगर नया दल बनाते हैं तो कोल्हान में कुछ सीटों पर वोट के समीकरण प्रभावित कर सकते हैं.

JMM से अलग होकर राजनीति करना कितना आसान?

अब तक के ट्रेंड बताते हैं कि ऐसे नेताओं के लिए राह आसान नहीं रही है. या तो उनकी राजनीति खत्म हो गई या उन्हें वापस JMM में ही आना पड़ा. हालांकि, अर्जुन मुंडा और विद्युत वरण महतो अपवाद रहे हैं. इससे इतर, साल 1993 में JMM के 2 सांसद और विधायकों ने JMM से विद्रोह किया था. इसका नेतृत्व किया था- राजकिशोर महतो और कृष्णा मार्डी ने. बाद में इस गुट की राजनीति ढलान पर चली गई. ये नेता भी बहुत अच्छा नहीं कर पाए.

एक दौर में JMM में सूरज मंडल को शिबू सोरेन के बाद दूसरा सबसे बड़ा नेता माना जाता था. सूरज मंडल ने भी JMM से विद्रोह किया था. उन्होंने रामदयाल मुंडा के साथ मिलकर झारखंड विकास दल का गठन किया था. उनकी राजनीति भी लगभग खत्म हो गई. इस लिस्ट में शैलेंद्र महतो, साइमन मरांडी, हेमलाल मूर्मू और स्टीफन मरांडी जैसे नेताओं का नाम भी शामिल है.

किसके सुझाव पर लिया गया फैसला?

आनंद दत्त एक नाम लेते हैं- चंचल गोस्वामी का. चम्पाई ने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उन्हें अपना मीडिया सलाहकार बनाया था. बताया जा रहा है कि गोस्वामी के सुझाव पर ही चम्पाई ने इस फेरबदल का फैसला लिया है.

Jitan Ram Manjhi से अलग है Champai की राजनीति?

चम्पाई की कहानी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की याद दिलाती है. जीतन भले ही नंबर्स के मामले में बिहार में बहुत अच्छी स्थिति में ना हों, लेकिन NDA गठबंधन में उन्होंने अपना अस्तित्व कायम रखा है. जीतन से चम्पाई की तुलना पर आनंद दत्त कहते हैं,

“जीतन राम मांझी अपनी जाति के एकमात्र बड़े नेता थे और हैं. चम्पाई के मामले में बात अलग है. JMM में कई आदिवासी चेहरे हैं. ऐसा ही अन्य दलों में भी है. चम्पाई भले ही उम्र और अनुभव में आगे हैं लेकिन कई मामलों हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन उनसे आगे निकल गई हैं.”

Kalpana Soren with Hemant Soren
कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन. (तस्वीर: सोशल मीडिया)

चम्पाई के मुख्यमंत्री रहते लोकसभा चुनाव 2024 हुआ, तब भी पार्टी का चेहरा कल्पना सोरेन को ही बनाया गया था. कुल 14 लोकसभा सीटों में से 3 पर JMM को और 2 पर कांग्रेस को जीत मिली. जबकि BJP को 8 और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली.

'कोल्हान का टाइगर'- चम्पाई सोरेन

चम्पाई का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में हुआ. कम उम्र में ही अलग झारखंड के लिए आंदोलन में शामिल हो गए थे. 1970 के दशक में जब इस आंदोलन ने गति पकड़ी तो 1973 में JMM का गठन हुआ. चम्पाई सोरेन को उनके समर्थक ‘कोल्हान का टाइगर’ कहते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक में एक बार उन्होंने जमशेदपुर में टाटा स्टील के गेट पर असंगठित मजदूरों की मांगों को आगे बढ़ाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था. 1993 में उनके खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ था. ये मामला रेलवे की संपत्ति को नष्ट करने से संबंधित है.

वीडियो: ‘मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं', BJP में शामिल होने की अटकलों के बीच चम्पाई सोरेन का जवाब