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क्या होता है राष्ट्रीय शोक? राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि कब होती है?

सुर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन पर दो दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा हुई है.

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आइकॉनिक गायिका लता मंगेशकर ने 92 वर्ष की उम्र में अंति सांस ली. (फोटो: इंडिया टुडे)
सुर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर का 6 फरवरी की सुबह निधन हो गया. 92 वर्ष की लता मंगेशकर ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली. कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें 8 जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. भारत रत्न लता मंगेशकर के निधन पर केंद्र सरकार ने दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है.
लता मंगेशकर का जन्म 29 सितंबर, 1929 को मध्य प्रदेश में हुआ था. उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक मराठी संगीतकार और थियेटर आर्टिस्ट थे. अपने जीवनकाल में लता मंगेशकर ने एक से बढ़कर एक संगीतकारों के साथ काम किया. उनके गाए गाने आज भी आइकॉनिक बने हुए हैं.
इस स्टोरी में हम समझेंगे कि राष्ट्रीय शोक क्या होता है. किन परिस्थितियों में घोषित किया जाता है. # क्या होता है राष्ट्रीय शोक?

वैसे तो दुनिया के लगभग हर देश में अपनी-अपनी तरह से राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है. इसे मनाने का कारण और प्रक्रिया भी कमोबेश एक सी ही होती है, मगर हम आज विशेष तौर पर भारत की बात करेंगे.

भारत में ‘राष्ट्रीय शोक’ पूरे राष्ट्र के दुःख को व्यक्त करने का एक प्रतीकात्मक तरीका है. ये ‘राष्ट्रीय शोक’ किसी ‘व्यक्ति’ की मृत्यु या पुण्य तिथि पर मनाया जाता है.

# फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया के अनुसार, राष्ट्रीय शोक के दौरान पूरे भारत में और विदेश स्थित भारतीय संस्थानों (जैसे एंबेसी आदि) में राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहते हैं.

# कोई औपचारिक एवं सरकारी कार्य नहीं किया जाता है और इस अवधि के दौरान कोई आधिकारिक कार्य भी नहीं होता.

# समारोहों और आधिकारिक मनोरंजन पर भी प्रतिबंध रहता है.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के देहांत के वक्त सात दिनों तक दूरदर्शन पर केवल ‘नृत्य का अखिल भारतीय कार्यक्रम’, ‘संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम’ और समाचार ही दिखाए जाते थे. समाचार से पहले बजने वाला संगीत भी म्यूट कर दिया जाता था.

# दिवंगत व्यक्ति की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की जाती है.


Pm Narendra Modi
(फोटो सोर्स- ANI)

# क्या होता है राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार में?

यदि नियम-कानून की बात करें, तो केवल वर्तमान और पूर्व प्रधानमंत्री, वर्तमान और पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान और पूर्व राज्यमंत्री ही इस तरह के अंतिम संस्कार के हकदार होते हैं. लेकिन समय के साथ नियम बदल गए हैं. लिखित रूप से नहीं, कार्यरूप से. अब यह राज्य सरकार के विवेकाधिकार पर है कि किसका पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा. मने, कोई निर्धारित दिशा-निर्देश नहीं हैं.

राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने या तिरंगे द्वारा शव को ढकने के लिए सरकार राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान और सिनेमा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में दिवंगत व्यक्ति द्वारा किए गए योगदान को ध्यान में रखती है. इसके लिए संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री अपने वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगियों के परामर्श के बाद निर्णय लेता है.

फैसला ले चुकने के बाद, इसे डिप्टी कमिश्नर, पुलिस आयुक्त और पुलिस अधीक्षक सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचित किया जाता है. जिससे कि राजकीय अंतिम संस्कार के लिए सभी व्यवस्थाएं हो सकें.
# राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि के दौरान पार्थिव शरीर को तिरंगे में में लपेटा जाता है.
# दिवंगत हस्ती को पूर्ण सैन्य सम्मान दिया जाता है. इसमें मिलिट्री बैंड द्वारा ‘शोक संगीत’ बजाना और इसके बाद बंदूकों की सलामी देना आदि शामिल है.
# स्वतंत्र भारत में राजकीय सम्मान के साथ पहला ‘अंतिम संस्कार’ महात्मा गांधी का हुआ था.
# ग़ैर राजनीतिज्ञों और ग़ैर आर्मी पर्सनल्स में – मदर टेरेसा, सत्य साईं बाबा, श्रीदेवी आदि का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा चुका है.
राष्ट्रीय शोक के दौरान आधा झुका होता है झंडा
राष्ट्रीय शोक के दौरान आधा झुका होता है झंडा

# सार्वजनिक अवकाश के बारे में क्या नियम हैं?

# ध्यान रखें कि सार्वजनिक अवकाश, राष्ट्रीय शोक और राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि तीनों अलग-अलग चीज़ें हैं. श्रीदेवी की मृत्यु के दौरान बाकी दो चीज़ें नहीं थीं, लेकिन उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया था. बल्कि राजकीय सम्मान के मामले में भी केवल उनका पार्थिव शरीर तिरंगे से लपेटा गया था.

# 1997 में जारी केंद्र सरकार की एक अधिसूचना के अनुसार, केवल वर्तमान प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की मृत्यु की स्थिति में सार्वजनिक अवकाश दिया जा सकता है. इसी के चलते केंद्र सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर आधे दिन का अवकाश घोषित किया था. लेकिन तब दिल्ली जैसे कई राज्यों ने अवकाश पूरे दिन का रखा था.




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