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शेर, बाघ, तेंदुआ के अलावा भारत में गुलदार भी मिलता है, लेकिन पहचानें कैसे?

भारत में तमाम कैट स्पीशीज़ (Cat species in India) पाई जाती हैं. आज बात इन सभी प्रजातियों पर करते हैं और जानते हैं कि गुलदार, तेंदुआ, बाघ इन सबमें अंतर क्या होता है.

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भारत में तमाम कैट स्पीसीज़ पाई जाती हैं. बाघ और गुलदार उनमें से एक हैं.

# किसी भी 2 टाइगर के शरीर पर बनी धारियां कभी सेम-टू-सेम नहीं होतीं. दोनों में कुछ न कुछ, छोटा-बड़ा अंतर ज़रूर होता है. वैसे ही जैसे किसी भी 2 इंसानों के हाथ की लकीरें कभी एक सी नहीं मिलेंगी.

# एक किस्म का तेंदुआ होता है, जिसके शरीर पर चौकोर चकत्ते होते हैं. एक होता है, जिसके शरीर पर गोल चकत्ते होते हैं. सिर्फ गोल और चौकोर के अंतर से दोनों को अलग-अलग प्रजाति माना जाता है.

जो जंगल की और जंगली जानवरों की दुनिया होती है न, उसमें ऐसी तमाम रोचक जानकारियां होती हैं. फिलहाल आज इस पर बात करेंगे कि भारत में पाई जाने वाली कैट स्पीशीज़ पर. और जानेंगे कि कैसे छोटे-छोटे से अंतर के चलते ये एक-दूसरे से अलग हैं.

एशियाटिक लॉयन

शेर. परिचय देने की ज़रूरत नहीं. कैट स्पीशीज़ में सबसे बड़ा नाम और किंग ऑफ द जंगल. शेर को दो सब-कैटेगरी में बांट सकते हैं- अफ्रीकी शेर और एशियाई शेर. भारत में एशियाई शेर पाए जाते हैं, वो भी सिर्फ गुजरात के गिर में. 2020 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 600 से अधिक शेर हैं. अच्छी बात ये है कि गिर में शेर लगातार बढ़े ही हैं. एक्सपर्ट्स ये तक कहते हैं कि गिर में शेर इतने बढ़ चुके हैं कि अब जंगल में उनके रहने की जगह कम पड़ रही है.

एशियाटिक लॉयन. (सोर्स- इंडिया टुडे)
रॉयल बंगाल टाइगर

एशियाटिक लॉयन के अलावा भारत रॉयल बंगाल टाइगर का भी घर है. पूरे शरीर पर धारियां. रौबदार कद-काठी. मादा का वजन 160-170 किलो तक और नर 260-270 किलो तक का. पूरे भारत में जहां भी टाइगर यानी बाघ पाए जाते हैं, वो रॉयल बंगाल टाइगर ही हैं. टाइगर भारत का राष्ट्रीय पशु भी है. 1973 से भारत में टाइगर संरक्षण पर काम चल रहा है. भारत में बाघों की संख्या करीब 3 हज़ार है, जो दुनिया में इनकी आबादी का करीब 75 फीसदी है.

रॉयल बंगाल टाइगर. (फोटो- पेंच नेशनल पार्क)
तेंदुआ (लैपर्ड)

फोटो देखिए और पहचान लीजिए. ये होता है तेंदुआ.

तेंदुआ. (फोटो सोर्स- Jhalana Safari Booking)

गिर, पन्ना, सतपुड़ा जैसे तमाम नेशनल पार्क में तेंदुआ पाया जाता है. लेकिन अक्सर रिहायशी इलाकों में भी स्पॉट हो सकता है. यानी ये अलग-अलग हैबिटेट और अलग-अलग फूड सोर्स पर गुजारा कर सकते हैं. इनका वजन 30-35 किलो से लेकर 75 किलो तक हो सकता है.

स्नो लैपर्ड

लैपर्ड जैसी ही बनावट, लेकिन रंग में कुछ सफेदी सी लिए होते हैं. स्नो लैपर्ड मुख्य रूप से करगिल और लद्दाख के आस-पास पाए जाते हैं. दुनिया में ये सिर्फ 12 देशों में पाए जाते हैं, जिनमें से भारत एक है. लैपर्ड वजन में हल्का और बहुत तेज दौड़ने वाली बड़ी बिल्ली है. स्नो लैपर्ड भी काफी तेज होता है, लेकिन इसकी हड्डियां लैपर्ड के मुकाबले काफी मोटी और मजबूत होती हैं. एक अंतर ये कि लैपर्ड की अपेक्षा स्नो लैपर्ड का दिखना दुर्लभ होता है. ये काफी शर्मीले माने जाते हैं. आबादी से दूर, बहुत दूर रहते हैं. इन्हें देखने के लिए वाइल्ड एंथुजिएस्ट को कई-कई दिनों तक डेरा डालना पड़ता है.

स्नो लैपर्ड. (फोटो सोर्स- Natural World Safaris)
गुलदार

गुलदार भी एक किस्म के लैपर्ड ही होते हैं, लेकिन कुछ अंतर हैं.

गुलदार. (फोटो- आज तक)

एक्सपर्ट बताते हैं कि लैपर्ड के शरीर पर चकत्ते चौकोर होते हैं, जबकि गुलदार के शरीर पर गोल चकत्ते होते हैं. सिर्फ गोल और चौकोर का अंतर ही इन दोनों को अलग करता है. गुलदार के शरीर के चकत्ते गुलदार के फूल जैसे दिखते हैं इसलिए भी इस कैट को गुलदार कहते हैं.

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