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कौन होते हैं कार्डिनल? नया पोप चुनने में उनकी क्या भूमिका होती है?

Cardinals choose new Pope: कार्डिनल कैथलिक चर्च के वरिष्ठ पादरी होते हैं. वो पोप के सबसे क़रीबी सहयोगी भी होते हैं. जो वेटिकन और दुनिया भर के चर्च से जुड़े प्रमुख विभागों का संचालन करते हैं. क्या है इनकी पूरी कहानी?

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कार्डिनल पोप के सबसे करीबी सहयोगी होते हैं. (फ़ोटो - रॉयटर्स)

धर्मगुरु पोप फ्रांसिस के निधन के बाद हमारे-आपके मन में कई तरह के सवाल उपजे. इन सवालों के जवाब में हमें बताया गया कि अगले पोप का चुनाव कैसे होगा, कौन-कौन से नाम नए पोप बनने की रेस में हैं. ये भी बताया गया कि पोप का इतिहास क्या है. इस पूरी कवायद में एक शब्द का ज़िक्र बार-बार आया- कार्डिनल, जो नए पोप को चुनेंगे. आगे इन्हीं कार्डिनल्स के बारे में जानेंगे. साथ ही, ये भी बताएंगे कि कैसे इन कार्डिनल्स के चुनाव में पोप फ़्रांसिस ने विविधता लाने की कोशिश की थी.

कार्डिनल कौन होते हैं?

सिर्फ़ पोप ही कार्डिनल्स की नियुक्ति कर सकते हैं. ये ज़रूरी नहीं है कि उनके द्वारा चुना गया कार्डिनल, उनके पद पर रहते हुए ही कार्डिनल रह सकता है. कार्डिनल उनके शासनकाल के बाद भी चर्च में अहम भूमिका निभाते हैं. क्योंकि उनका दर्जा वरिष्ठ पादरी का होता है और उनमें से कोई एक पोप भी बन सकता है.

कार्डिनल कैथलिक चर्च के वरिष्ठ पादरी होते हैं. वो पोप के सबसे क़रीबी सहयोगी भी होते हैं. जो वेटिकन और दुनिया भर के चर्च से जुड़े प्रमुख विभागों का संचालन करते हैं. कार्डिनल्स कॉन्सिस्टोरीज नाम के समारोह में बनाए जाते हैं. जहां उन्हें उनकी अंगूठी और एक लाल बिरेटा दी जाती है. इस बिरेटा को आप आसान भाषा में एक चौकोर टोपी कह सकते हैं.

कॉन्सिस्टोरीज में उन्हें पोप के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाई जाती है. भले ही इसका अर्थ ख़ून बहाना हो या अपने जीवन का बलिदान करना हो. जैसा कि लाल रंग से दर्शाया जाता है.

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बंद कमरों में मीटिंग

जब पोप की मौत हो जाती है या वो इस्तीफा दे देेते हैं. तब यही कार्डिनल मिलकर 'पैपल कॉन्क्लेव' बनाते हैं, जो पोप के चुनाव के लिए वेटिकन में एक गुप्त बैठक करता है. नोट करने वाली बात ये है कि 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल ही पोप के चुनाव में शामिल होते हैं.

पोप की चुनाव प्रक्रिया बहुत गोपनीय होती है. तब तक कुछ भी निश्चित नहीं होता, जब तक कि सिस्टिन चैपल की चिमनी से निकलने वाला सफेद धुआं दुनिया को ये न बता दे कि नया पोप चुन लिया गया है.

आने वाले दिनों में रोम पहुंचने के बाद कार्डिनल्स सम्मेलन की शुरुआत की तारीख तय करेंगे. वेटिकन के आंकड़ों के मुताबिक़, 21 अप्रैल तक कुल 252 कार्डिनल थे. जिनमें से 135 कार्डिनल 80 साल की उम्र से कम यानी वोटिंग के लिए पात्र थे. इनमें से 108 कार्डिनल्स पोप फ्रांसिस ने ही चुने थे. जबकि अन्य 22 उनके पूर्ववर्ती पोप बेनेडिक्ट तथा पांच जॉन पॉल द्वितीय ने.

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गैर-यूरोपियों को तरजीह?

पोप फ्रांसिस ने 10 बार ये पदभार संभाला है. हर बार उन्होंने इस संभावना पर जोर दिया कि उनका उत्तराधिकारी कोई अन्य गैर-यूरोपीय होगा. पोप ने उन जगहों पर चर्च को मजबूत किया है. जहां चर्च या तो अल्पमत में है या जहां चर्च पश्चिमी देशों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है.

बताया जाता है कि लंबे समय तक ज़्यादातर कार्डिनल इटालियन थे. अब भी कार्डिनल इलेक्टर्स का सबसे बड़ा हिस्सा यूरोपीय लोगों का है. लगभग 39%. लेकिन ये 2013 के 52% से कम है, जब फ्रांसिस पहले लैटिन अमेरिकी पोप बने थे. इलेक्टर्स का दूसरा सबसे बड़ा समूह एशिया और ओशिनिया से है, जो लगभग 20% है.

पोप फ्रांसिस ने 20 से ज़्यादा कार्डिनल्स को ऐसे देशों से नियुक्त किया, जहां पहले कभी कोई कार्डिनल नहीं था. ज़्यादातर विकासशील देशों जैसे रवांडा, केप वर्डे, टोंगा, म्यांमार, मंगोलिया और दक्षिण सूडान या स्वीडन से. ये देश बहुत कम कैथोलिक ईसाई वाले देशों में से थे.

कहा जाता है कि पोप फ़्रांसिस ने बड़े यूरोपीय शहरों में रिक्त पदों की बार-बार अनदेखी की. जहां परंपरागत रूप से कार्डिनल्स होते थे. ताकि इस बात पर जोर दिया जा सके कि चर्च इतना यूरो-केंद्रित न हो.

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पोप की विरासत

एक पोप अपने शासनकाल के दौरान जितने ज़्यादा कार्डिनल्स की नियुक्ति करता है, इसकी संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है कि उसका उत्तराधिकारी कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो चर्च और सामाजिक मुद्दों पर उसके समान विचार रखता हो. हालांकि, हमेशा ऐसा नहीं होता है. कुछ-एक अपवाद भी हैं.

बताते चलें, 80 साल की उम्र पार कर चुके कार्डिनल कॉन्क्लेव में प्रवेश नहीं कर सकते. फिर भी वो इसके नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं. क्योंकि उन्हें जनरल कॉन्ग्रिगेशन के नाम से जानी जाने वाली बैठकों में भाग लेने की अनुमति है. जो कॉन्क्लेव शुरू होने से पहले के दिनों में होती हैं. यहां अगले पोप के लिए ज़रूरी गुणों की रूपरेखा तैयार होती है.

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