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कनाडा की धरती आतंकियों के लिए सेफ़ हेवन कैसे बनी?

22 जून को कनाडा की संसद ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को श्रद्धांजलि दे दी. इसके अगले ही दिन 23 जून को कनाडा में भारतीय अधिकारियों ने कनिष्क आतंकी हमले की 39 वीं बरसी मनाई गई.

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कनाडा में खालिस्तान के समर्थन में प्रदर्शन (फोटो-गेट्टी)

कनाडा और भारत के रिश्ते पिछले 9 महीने से नज़ुक मोड़ पर हैं. खालिस्तान का जिन्न जो बड़ी मुश्किल से बोतल में बंद हुआ था, अब बाहर है. कनाडा से गाहे ब गाहे भारत विरोधी प्रदर्शनों की तस्वीरें आ जाती हैं. भारत कहता है कि जस्टिन ट्रूडो ने प्रश्रय दिया है. वही जस्टिन ट्रूडो, जो इल्ज़ाम लगाते हैं कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियां हो सकती हैं. दोनों देश एक दूसरे के डिप्लोमैटिक स्टाफ को चिह्नित कर रवाना कर चुके हैं. 

हरदीप सिंह निज्जर के समर्थन में कनाडा में प्रदर्शन(फोटो-गेट्टी)


अभी ये ज़ख्म भरे नहीं थे, कि 22 जून को कनाडा की संसद ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को श्रद्धांजलि दे दी. इसके अगले ही दिन 23 जून को कनाडा में भारतीय अधिकारियों ने कनिष्क आतंकी हमले की 39 वीं बरसी मनाई गई. कनाडा में भारत के हाई कमिश्नर ने इस हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी. 39 साल पहले इसी दिन खालिस्तानी आतंकियों ने कनाडा से भारत आ रहे हवाई जहाज़ में बम ब्लास्ट किया था. हमले का एकलौता दोषी इंद्रजीत सिंह रेयात कनाडा में रहता है. उसे 2017 में परोल पर रिहा किया गया था. इंद्रजीत अकेला ऐसा संदिग्ध नहीं है जो कनाडा में रहता है. आरोप हैं कि खालिस्तान समर्थकों की एक बड़ी तादात कनाडा में रहती है. वहां वो अपने मंसूबों को पूरे करने के लिए प्लानिंग करते हैं. पर क्या सिर्फ़ खालिस्तानी आतंकियों को यहां शरण मिलती है? 
जवाब है नहीं. बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के कातिल नूर चौधरी का हाल पता कैनडा ही है. कैनडा में अलकायदा के आतंकी, श्रीलंका के आतंकी, यहूदियों का नरसंहार करने वाले वॉर क्रिमिनल्स - ये सब शरण लेते रहे हैं.

तो समझते है.-
-कनाडा की धरती आतंकियों के लिए सेफ़ हेवन कैसे बनी?
-कनाडा में अपराधियों को शरण देने का क्या इतिहास रहा है?
-भारत और कनाडा के रिश्ते कब सामान्य होंगे?
 

पहले बेसिक्स क्लियर कर लेते हैं.
कनाडा नॉर्थ अमेरिका में बसा देश है. हवाई रास्ते भारत की कनाडा से दूरी लगभग साढ़े 11 हज़ार किलोमीटर है. कुल जनसंख्या लगभग 4 करोड़ है. इसमें से लगभग 18 लाख भारतीय मूल के हैं. कनाडा की राजधानी ओटावा है.

ये तो रही बेसिक बातें. अब समझते हैं कनाडा आतंकियों और अपराधियों के लिए सेफ़ हेवन कैसे हैं? 5 उदाहरणों से समझिए.
 

1. नाज़ी जर्मनों को शरण.

दूसरे विश्व युद्ध में यूक्रेन के लगभग 45 लाख लोग स्टालिन की रेड आर्मी में शामिल हुए. जबकि ढाई लाख के करीब लोगों ने नाज़ी जर्मनी का साथ देना चुना. इनमें से कई लोग यहूदियों के सामूहिक नरसंहार में भी शामिल हुए. 1945 में लड़ाई खत्म हुई. नाजियों ने हथियार डाल दिए. सारी दुनिया को इनके कृत्यों के बारे में पता चल गया था. नाज़ियों में जर्मन मूल के अलावा यूक्रेनियों की भी बड़ी तादाद थी. युद्ध हारने के बाद उन्हें किसी ज़मीन की तालाश थी. क्योंकि यूक्रेन में स्टालिन उन्हें वापस बसने नहीं देते. इसलिए उन्होंने इसके लिए कनाडा की धरती चुनी और वहां पलायन किया. लेकिन इसमें सिर्फ यूक्रेन के नाज़ी शामिल नहीं थे. जर्मन मूल के भी बहुत से नागरिकों ने कनाडा में शरण ली. इसमें अमेरिका ने उनकी मदद की. कैसे?

दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया नाज़ियों पर युद्ध अपराध का केस चलाना चाहती थी. इसके लिए न्यूरेम्बर्ग ट्रायब्यूनल का गठन भी हुआ. पर जर्मनी की ओर से लड़ने वाले कई नाज़ी ऐसा हुनर रखते थे, जिसकी अमेरिका की वॉर मशीन को ज़रूरत थी. अमेरिका ने इन नाज़ियों को अपने यहां शरण दी. इनमें से कई इंजीनियर, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक अमेरिकी नागरिक बने और खुशहाल जीवन बिताया. अमेरिका इनकी मदद से सोवियत संघ की जासूसी करवाना चाहता था. कई नाजियों के लिए अमेरीका की ख़ुफ़िया एजेंसी ने फ़र्ज़ी कागज़ात भी बनवाए. इनकी मदद से वो यूरोप के कई हिस्सों में जाकर बसे. कुछ कनाडा भी आए.

इनमें से सबसे कुख्यात नाम था एंटानास केनस्टाविचिस का. उसपर 6 दिन में अपने साथियों के साथ मिलकर करीब 6 हज़ार यहूदियों की हत्या के आरोप थे. 1948 में वो जर्मनी से भागने में कामयाब रहा. उसे ब्रिटेन की मदद से कनाडा की नेशनल रेलवे सर्विस में काम करने का ऑफर मिला. तबसे वो कनाडा जाकर बस गया. वहां उसपर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया गया. इसके अलावा पिछले साल 22 सितंबर को कनाडा में एक ऐसी घटना हुई जिसने कनाडा में नाजियों के सेफ़ हेवन के दावे को और मज़बूत कर दिया.
हुआ ये था कि 22 सितंबर को यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की कनाडा पहुंचे. उन्होंने संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस को संबोधित किया. इसी दौरान सदन के स्पीकर एंथनी रोटा का भाषण भी हुआ. भाषण के बीच में उन्होंने गैलरी में बैठे एक शख़्स की तरफ़ इशारा किया. बोले, वो यूक्रेन और कनाडा के नायक हैं. हम उन्हें उनकी सेवा के लिए शुक्रिया कहते हैं. अगले दिन पता चला कि जिस शख़्स का सम्मान हुआ, वो हिटलर के लिए काम करता था. उसका नाम था, युरोस्लाव हुंका. वो दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान गेलिसिया डिविजन में वॉलंटियर के तौर पर काम करते थे. ये डिविजन हिटलर की पैरामिलिटरी फ़ोर्स SS के अंडर काम करती थी. SS ने 1930 और 1940 के दशक में लाखों यहूदियों की हत्या की. गेलिसिया डिविजन पर भी अत्याचार के आरोप लगते हैं. बाद में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इसके लिए माफ़ी मांगी थी.      

ये तो हुई कनाडा में नाजियों के शरण मिलने की कहानी. अब जानते हैं ओसामा बिन लादेन के संगठन अल क़ायदा का आतंकी कैसे पहुंचा कनाडा.

2. अल्जीरिया के आतंकी को शरण

 अहमद रसाम अल्जीरिया में पैदा हुआ. देश में गृह युद्ध चल रहा था. सरकार ने नाखुश अहमद ने अलकायदा ज्वाइन किया. उसने कुछ समय फ्रांस में बिताया. अफगानिस्तान ट्रेनिंग लेने गया. अहमद को 1999 में न्यू ईयर इवनिंग पर लॉस एंजिल्स इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बमबारी करने की योजना बनाने का दोषी ठहराया गया था. इसके पहले भी अहमद कुछ आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा. 1993 में उसने मोरक्को का फ़र्ज़ी पासपोर्ट बनवाया और फ्रांस रवाना हो गया. फ्रांस में उसे जाली कागज़ रखने के लिए गिरफ्तार किया गया. बाद में मोरक्को वापस भेज दिया गया. वहां भी उसकी दाल नहीं गली. इसलिए 1994 में जाली कागज़ की मदद से वो कनाडा पहुंचा. लेकिन हवाई अड्डे पर ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसने हवाई अड्डे में ही अपने जाली पासपोर्ट वाली बात कबूल कर ली. अपना असली नाम बताया, और अलजीरिय में हुए अत्याचार की फ़र्ज़ी कहानी सुनाई. अहमद ने शरणार्थी का दर्जा पाने के लिए आवेदन भी कर दिया. कनाडा के कानून के मुताबिक उसे 3 साल के लिए देश में रहने की अनुमति मिल गई. उसे उस समय हर महीने लगभग 40 हज़ार रुपए भी मिलते. लेकिन जल्द ही उसके फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ हो गया. उसे कनाडा में ही 4 बार गिरफ्तार किया गया. लेकिन उसे जेल नहीं भेजा जा सका. वो अफगानिस्तान भाग निकला.

3. शेख मुजीब के हत्यारे को शरण

 मार्च 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना. शेख मुजीबुर्रहमान देश के पहले राष्ट्रपति बने. बांग्लादेश के लीडर्स को इस आज़ादी की कीमत भी चुकानी पड़ी. अगस्त 1975 में मुजीब समेत उनके परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया. इस हत्या में बांग्लादेश की सेना के अधिकारी नूर चौधरी शामिल थे. उनपर आरोप सिद्ध हुए. उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. सज़ा से बचने के लिए नूर चौधरी ने कनाडा में शरण ली हुई है. वो अपने परिवार के साथ वही रहते हैं. शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. वो कई बार नूर चौधरी के प्रत्यार्पण की मांग कर चुकी हैं. लेकिन कनाडा की सरकार हमेशा इसपर रोक लगा देती है.

4. श्रीलंका के आतंकियों को शरण

 1983 में बहुसंख्यक सिंहली-भाषी समुदाय और अल्पसंख्यक श्रीलंकाई तमिलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. 2009 में लिबरेशन ऑफ़ तमिल टाइगर्स ईलम (LTTE) के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन की हत्या हो गई. प्रभाकरन पूर्वोत्तर श्रीलंका में तमिलों के लिए एक अलग राज्य की मांग कर रहे थे. इनका संगठन श्रीलंकाई सरकार के साथ लगातार संघर्ष में था. इसी वजह से हजारों लोग श्रीलंका से कनाडा और ब्रिटेन पहुंचे. श्रीलंका सरकार के मुताबिक लगभग 2 लाख श्रीलंकाई लोग इस समय कनाडा में रहते हैं. आरोप हैं कि इनमें से कई आतंकियों से हमदर्दी रखते हैं और कुछ घोषित आतंकी है. इसकी तस्दीक श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी खुद की है. पिछले साल सितंबर में उन्होंने ANI को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि कनाडा ने अभी भी कुछ आतंकियों को अपने देश में पनाह दी हुई है.

5. खालिस्तानी आतंकियों को शरण

कनाडा, खालिस्तानी आतंकियों को शरण देता है. कुछ बड़े नाम सुनिए. इंद्रजीत सिंह रेयात – कनिष्क हवाई जहाज़ में आतंकी हमला करने वाला आतंकी. 2017 से परोल पर कनाडा में घूम रहा है.
हरदीप सिंह निज्जर-  बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सदस्य था. ये एक सिख अलगाववादी समूह है. जो खालिस्तान की मांग करता है. जून 2023 में इसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. ये 1997 से कनाडा में रह रहा था.
भगत सिंह बरार, सतेन्द्र पाल गिल, लिस्ट लंबी है. भारत सरकार ने बब्बर खालसा, खालिस्तान लिब्रेशन फ़ोर्स जैसे संगठनों को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है. इसके कई मेम्बर्स कनाडा में रहते हैं. फिर भी उनपर कोई एक्शन नहीं होता है.

ये थे 5 उदाहरण जिनसे समझ आता है कि कनाडा अपराधियों और आतंकियों के लिए सेफ़ हेवन है. अब समझते हैं क्यों? इसकी सबसे बड़ी वजह है. वहां का लचीला कानून. उसे समझिए. अगर आप अवैध रूप से एंट्री करते समय पकड़े जाते हैं तो आप शरणार्थी का स्टेट्स लेकर रह सकते हैं. आपको बस बताना होगा कि किस तरह आपको आपके देश में ख़तरा है. उसके बाद आपको 30 दिन के भीतर अपने दावों के लिए सबूत देने होते हैं. सबूत न भी दे पाएं तो आपको देश से निकाला नहीं जाएगा. वार्निंग दी जाएगी. जानकार कहते हैं अमूमन ये प्रक्रिया साल देढ़ साल चलती है. हर साल कनाडा में लगभग 30 हज़ार शरणार्थी आते हैं. इनमें से लगभग 60 फीसद लोगों के पास या तो कोई कागज़ात नहीं होते. या होते भी हैं तो जाली होते हैं. इसके अलावा अगर कोई देश कनाडा में रहने वाले शरणार्थी को अपराधी बताकर प्रत्यर्पण की मांग करता है तो भी कनाडा रोड़ा लगा देता है. जानकार कहते हैं अगर प्रत्यर्पण की मांग करने वाले देश में मौत की सज़ा का प्रावधान है तो कनाडा से उसका प्रत्यर्पण लगभग नामुमकिन है.

इसकी चर्चा क्यों?

कनिष्क आतंकी हमले की 39 वीं बरसी है. क्या हुआ था इस दिन? 23 जून 1985 को एयर इंडिया का बोइंग 747 विमान कनाडा से दिल्ली आ रही थी.  प्लेन अटलांटिक महासागर के ऊपर था. जमीन से ऊंचाई थी 31 हजार फीट. लंदन पहुंचने में कुछ ही देर थी. कि अचानक प्लेन में तेज धमाका हुआ. और प्लेन आग के गोले में बदल गया. जलता हुआ प्लेन आयरलैंड के पास समंदर में गिरा. जहाज में बैठे सभी 307 पैसेंजर और 22 क्रू मेंबर्स की मौत हो गई थी. ये 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सरकार की कार्रवाई का बदला था. इसके बारे में लोगों को बाद में पता चला जब खालिस्तान की मांग कर रहे सिख आतंकवादियों ने बाद में इसकी जिम्मेदारी ली. ब्लास्ट के पीछे बब्बर खालसा ग्रुप था और कनाडा का एक ग्रुप भी उनसे मिला हुआ था. एयर इंडिया के इस विमान का नाम भारत के महान सम्राट कनिष्क के नाम पर रखा गया था.  23 जून की इसी की बरसी मनाई गई है. इस मौके पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया

विदेश मंत्री एस जयशंकर का ट्वीट (फोटो-एक्स)


“आज इतिहास में आतंकवाद के सबसे भयानक कृत्यों में से एक की 39वीं बरसी है. मैं कनिष्क विमान हमले में मारे गए 329 लोगों को श्रद्धांजलि देता हूं, जो 1985 में आज ही के दिन मारे गए थे. मेरी संवेदनाएं उनके परिवारों के साथ हैं. सालगिरह इस बात की याद दिलाती है कि आतंकवाद को कभी बर्दाश्त क्यों नहीं किया जाना चाहिए.”
 

23 जून को ही कनाडा में भारत के हाई कमिश्नर संजय वर्मा ने कहा
 

“दुनिया में किसी भी सरकार को अपने राजनीतिक लाभ के लिए आतंकवाद के खतरे को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आम लोगों की जान, राजनीतिक हितों से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है. सभी आतंकवादी गतिविधियों पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.”

 कनाडा में भारत के हाई कमिश्नर संजय वर्मा का ट्वीट (फोटो-एक्स)


ये था हमारा बड़ी ख़बर सेग्मेंट. अब सुर्खियां जान लेते हैं-
पहली सुर्खी रूस से है. रूस के दाग़ेस्तान प्रांत में बड़े आतंकी हमले की ख़बर आ रही है. दाग़ेस्तान रूस के दक्षिण-पश्चिम में बसा है. इसकी सीमा जॉर्जिया और अज़रबैजान से मिलती है. आतंकवादियों ने दो शहरों में चर्च, यहूदी मंदिर और पुलिस थाने को निशाना बनाया. स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक़, हमले में 15 से अधिक पुलिसवालों और एक पादरी की हत्या कर दी गई. कई आम लोग भी हताहत हुए हैं. उनकी संख्या का पता नहीं चला है. पुलिस ने मुठभेड़ में छह हमलावरों को भी मार गिराया.

किसने किया हमला?

सरकारी न्यूज़ एजेंसी तास की रिपोर्ट के मुताबिक़, सेगोकालिन्स्की डिस्ट्रिक्ट के मुखिया मगमद ओमारोव को हिरासत में लिया गया है. ओमारोव पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं. शक़ है कि हमले में उनके दो बेटे शामिल थे. दोनों अभी फरार चल रहे हैं. इसके अलावा कोई और जानकारी नहीं दी गई है. किसी संगठन ने भी हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है. रूस की इन्वेस्टिगेटिव कमिटी घटना की जांच कर रही है.

क्यों अहम है दाग़ेस्तान?

दाग़ेस्तान की पश्चिमी सीमा चेचन्या से लगी है. चेचन्या में लंबे समय तक इस्लामी अलगाववाद की समस्या थी. वहां रूसी फ़ौज को दो लड़ाइयां लड़नी पड़ीं. पहली, 1994 से 1996 और दूसरी 2000 से 2009 तक. अभी चेचन्या में रमज़ान कादिरोव का शासन है. उन्हें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सबसे वफ़ादार सिपहसालारों में गिना जाता है.
चेचन्या की ही तरह दाग़ेस्तान में भी मुस्लिम बहुमत में है. वहां भी इस्लामी अलगाववाद का ख़तरा रहा है. दाग़ेस्तान से हज़ारों लोग इस्लामिक स्टेट (IS) के लिए लड़ने जा चुके हैं. उससे पहले कॉकेसियन अमीरात के अंडर इस्लामी गुट आतंक फैला रहे थे. बाद में उन्होंने IS से हाथ मिला लिया. रूस के सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है. इस्लामी जिहाद के ख़िलाफ़ रूसी सेना ने भी अभियान चलाया. मगर जड़ से खत्म करने में सफल नहीं हुए.

इस बीच 22 मार्च 2024 की तारीख़ आई. आतंकियों ने मॉस्को में क्रॉकस सिटी हॉल पर हमला किया. उस वक़्त लोग एक म्युजिक प्रोग्राम देखने इकट्ठा हुए थे. उस हमले में 130 से अधिक लोग मारे गए. रूस ने बिना सबूत के यूक्रेन पर आरोप लगाया. हालांकि, 31 मार्च 2024 को रूस की सुरक्षा एजेंसी FSB ने दाग़ेस्तान में छापेमारी की क्रॉकस सिटी हॉल के अटैकर्स की मदद के आरोप में चार संदिग्धों को गिरफ़्तार किया. FSB ने टेररिस्ट सेल को ध्वस्त करने का भी दावा किया.

दूसरी सुर्खी SCO समिट से जुड़ी है. कज़ाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में 03 जुलाई से शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (SCO) की लीडर्स समिट शुरू हो रही है. इसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ जैसे नेता जा रहे हैं. जाना तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी था. वहां वो पुतिन और जिनपिंग से मिल सकते थे. मगर अब इसमें व्यवधान आता दिख रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, पीएम मोदी SCO समिट को स्किप कर सकते हैं. उनकी जगह विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. इसके बारे में SCO को बता दिया गया है. हालांकि, अभी तक इस बात की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. 2023 में भारत ने SCO की वर्चुअल मेज़बानी की थी. वहां पीएम मोदी ने शहबाज़ शरीफ़ के सामने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को जमकर सुनाया. बिना पाकिस्तान का नाम लिए कहा कि कुछ देश क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म को अपनी नीतियों के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं. आतंकवादियों को पनाह देते हैं.

SCO की कहानी

SCO की स्थापना चीन और रूस ने 2001 में की थी. इसमें नौ देशों को फ़ुलटाइम मेंबरशिप मिली है - रूस, चीन, भारत, ईरान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान,पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान.
SCO का शुरुआती मकसद आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद जैसी समस्याओं से मिलकर लड़ना था. बाद में अर्थव्यवस्था और रक्षा जैसे मसलों पर भी सहयोग की बात होने लगी.

आज की तीसरी और अंतिम सुर्खी ब्रिटेन से है.
ब्रिटेन में चुनावी सट्टा कांड ऋषि सुनक के गले की फांस बन गया है. उनके क़रीबी लोगों पर चुनाव की तारीख़ को लेकर सट्टा खेलने का आरोप लगा है. उनके ख़िलाफ़ जांच चल रही है.

सट्टा कांड क्या है?

ब्रिटेन में संसद के निचले सदन का नाम हाउस ऑफ़ कॉमंस है. उसमें बहुमत दल या गठबंधन का नेता प्रधानमंत्री बनता है. मौजूदा हाउस ऑफ़ कॉमंस का कार्यकाल जनवरी 2025 में ख़त्म होने वाला था. नए सदन के नेताओं के चुनाव के लिए दिसंबर 2024 तक वोटिंग कराने की डेडलाइन थी. माना जा रहा था कि बीच का रास्ता निकाला जाएगा. अक्टूबर या नवंबर में वोटिंग कराई जाएगी.
मगर 23 मई को सुनक ने एलान किया कि चुनाव 04 जुलाई को होगा. ये अधिकतर लोगों के लिए सरप्राइज़िंग था. मगर कुछ लोग इससे परे निकले. उन्होंने एलान से पहले ही चुनाव की तारीख़ पर पैसे लगा दिए थे. इनमें से कई सुनक की कंज़र्वेटिव पार्टी से हैं. माना जा रहा है कि उन्हें इस ‘सरप्राइज़’ की जानकारी पहले से थी. इस मामले में 12 जून को ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने एक रिपोर्ट पब्लिश की. दावा किया कि सुनक के एलान से तीन दिन पहले क्रेग विलियम्स ने 100 पौंड का सट्टा लगाया था. भारतीय रुपये में लगभग 10 हज़ार पांच सौ. 
 

ब्रिटिश अख़बार गार्डियन की रिपोर्ट (फोटो- गार्डियन वेबसाइट)

क्रेग, सुनक के क़रीबी लोगों में से हैं. वो संसद के अंदर सुनक के प्राइवेट सेक्रेटरी थे. इस बार के चुनाव में दो सीटों से लड़ रहे हैं. क्रेग ने जुलाई में चुनाव के नाम पर सट्टा खेला था. जीतने पर उनको 500 पौंड मिलने वाले थे. जोकि वो जीते भी. 13 जून को क्रेग विलियम्स ने सट्टबाज़ी के लिए माफ़ी मांगी. मगर ये बताने से मना कर दिया कि उन्हें अंदर की सूचना थी या नहीं.
उनके ख़िलाफ़ गैम्बलिंग कमिशन जांच कर रही है.

क्रेग विलियम्स के अलावा चार और लोग जांच के दायरे में हैं,
> लॉरा सैंडर्स - उन्होंने 2015 तक कंज़र्वेटिव पार्टी के लिए काम किया. उनके पति टॉनी ली कंज़र्वेटिव पार्टी के कैंपेन डायरेक्टर हैं. सैंडर्स ने कब और कितना पैसा लगाया, इसकी जानकारी बाहर नहीं आई है.
> टॉनी ली - कंज़र्वेटिव पार्टी के कैंपेन डायरेक्टर हैं. वो फ़िलहाल छुट्टी पर चल रहे हैं.
> निक मेसन - कंज़र्वेटिव पार्टी के चीफ़ डेटा ऑफ़िसर हैं. वो भी गैम्बलिंग कमिशन के रडार पर हैं. उनको भी छुट्टी पर भेजा गया है. संडे टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, मेसन ने चुनाव की घोषणा से कई दिन पहले एक दर्ज़न से ज़्यादा सट्टे लगाए थे.
> पांचवां शख़्स लंदन पुलिस का एक सीनियर ऑफ़िसर है. संबंधित अधिकारी को 17 जून को गिरफ़्तार कर लिया गया. उसको पद से भी बर्खास्त कर दिया गया है.

ब्रिटेन में सट्टेबाज़ी को लेकर क्या नियम-क़ानून हैं?
ब्रिटेन में सट्टेबाज़ी अवैध नहीं है. मगर उसमें चीटिंग या किसी को चीटिंग करने में मदद करना ग़ैरक़ानूनी है. इस अपराध में अधिकतम दो बरस तक की जेल हो सकती है. अवैध सट्टेबाज़ी पर निगरानी रखने के लिए गैम्बलिंग कमिशन है. ये किसी भी तरह की बेटिंग की जांच कर सकती है. मुकदमा भी चला सकती है. मगर उसने अभी तक यदा-कदा ही ऐसा किया है. हाल का सट्टा कांड गैम्बलिंग कमिशन के सामने आया सबसे बड़ा मामला है.

कितना बड़ा है स्कैंडल?
इलेक्शन बेटिंग स्कैंडल की तुलना 2022 के पार्टीगेट से की जा रही है. पार्टीगेट क्या था? कोरोना के टाइम जब पूरा ब्रिटेन प्रतिबंधों के दायरे में जी रहा था, उस वक़्त तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के घर और दफ़्तर में पार्टियां होतीं थी. जॉनसन और उनके स्टाफ़ सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे नियमों का पालन नहीं कर रहे थे. जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ा, कंज़र्वेटिव पार्टी के अंदर विरोध होने लगा. आख़िरकार, जॉनसन को कुर्सी छोड़नी पड़ी.

जॉनसन के इस्तीफ़े के बाद कंज़र्वेटिव पार्टी के अंदर इंटरनल इलेक्शन कराए गए. उसमें लिज़ ट्रस प्रधानमंत्री बनीं. मगर दो महीने बाद उनको भी इस्तीफ़ा देना पड़ा. उसके बाद ऋषि सुनक आए. तमाम कोशिशों के बावजूद वो पार्टी और सरकार की छवि सुधारने में नाकाम रहे. प्री-इलेक्शन पोल्स में उनकी पार्टी बुरी तरह हारती दिख रही है. कहा जा रहा है कि सुनक अपनी सीट भी नहीं बचा पाएंगे. ऐसे में सट्टा कांड ने उनकी बची-खुची क़मर भी तोड़ दी है. पार्टी के अंदर और बाहर से सख़्त कार्रवाई की मांग उठ रही है. इसलिए, सुनक के लिए चुनाव प्रचार पर फ़ोकस करना मुश्किल हो रहा है. उन्हें पार्टी को चुनावी हार से पहले नैतिक हार से बचाना है.

वीडियो: ध्रुव राठी और डाबर का विवाद कैसे खत्म हुआ?