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क्या सच में इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट देंगी राष्ट्रपति? जानिए क्या कहते हैं नियम

क्या भारत के राष्ट्रपति के पास ये अधिकार है कि वो Supreme Court के फैसले को बदल सकें? Article 143 और Presidential Reference क्या है?

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आदिश अग्रवाल ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी थी. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Electoral Bond SC Verdict) पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखा गया था. पत्र लिखा था सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने. इस पत्र में राष्ट्रपति से 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' (what is presidential reference) के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की मांग की गई थी. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस पत्र की निंदा की और खुद को इससे अलग कर लिया. लेकिन सवाल ये है कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राष्ट्रपति पलट सकती हैं? और कब-कब ऐसे मामले सामने आए हैं?

इस सवाल के जवाब की एक कड़ी जुड़ी है अग्रवाल की चिट्ठी से. उन्होंने अपनी चिट्ठी में संविधान के अनुच्छेद 143 का जिक्र किया. साथ ही उन्होंने 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' का हवाला दिया. हम ये समझेंगे भारतीय संविधान के आर्टिकल 143 में क्या है? क्या ये आर्टिकल भारत के राष्ट्रपति को इतना अधिकार देता है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल सकें?

Article 143 क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 में राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करने की शक्ति दी गई है. इसमें लिखा है,

"जब कभी राष्ट्रपति को ऐसा लगे कि विधि या तथ्य से संबंधित कोई ऐसा प्रश्न उठा है या उठने की संभावना है, जो सार्वजनिक महत्त्व का है या जिसकी प्रकृति ऐसी है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श लेना उचित होगा तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट के पास परामर्श हेतु भेज सकते हैं."

इस आर्टिकल में आगे लिखा है,

“सुप्रीम कोर्ट उसकी सुनवाई कर उस पर अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज सकता है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया परामर्श राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होता.”

सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि यदि अनुच्छेद 143 के अंतर्गत पूछा गया प्रश्न उन्हें गैर-जरूरी लगे तो वो जवाब देने से इनकार कर सकते हैं.

इसको थोड़ा और आसान करते हैं. किसी सार्वजनिक महत्व या लोक कल्याण से जुड़े मामले में राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट की राय लेने का अधिकार है. इसके लिए राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट को लिखित में प्रश्न भेजते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन सवालों के जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है. अगर कोर्ट को सवाल उचित लगे तो वो जवाब दे सकता है.

आर्टिकल 143 के अनुसार, अगर सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के किसी सवाल पर परामर्श देता है तो उस परामर्श को मानने के लिए राष्ट्रपति भी बाध्य नहीं होंगे.

कुल मिलाकर बात ये है कि राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं पलट सकते. बस सुप्रीम कोर्ट की सलाह ले सकते हैं. और वो सलाह भी तभी मिलेगी अगर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा करना उचित लगा तो.

कब-कब चर्चा में आया Presidential Reference?

साल 1998 में देश के राष्ट्रपति थे- के आर नारायणन. उन्होंने अनुच्छेद 143 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया. और सुप्रीम कोर्ट से न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण के लिए पूछा. अदालत ने इसका जवाब दिया- न्यायिक नियुक्तियों के लिए CJI को कोई भी सिफारिश करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का आकार तीन से बढ़ाकर पांच कर दिया गया था. जिसमें CJI के अलावा उनके चार वरिष्ठतम सहयोगियों को शामिल किया गया.

साल 2015 में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की मांग की गई थी. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने कॉलेजियम और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के मुद्दों पर प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की मांग की थी. उस वक्त अलग-अलग उच्च न्यायालयों के लिए कम से कम 125 न्यायाधीशों की नियुक्ति लटकी हुई थी. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपे गए ज्ञापन में राष्ट्रपति के हस्तक्षेप की मांग की गई थी. इन मामलों के समाधान के लिए 11 न्यायधीशों की पीठ की मांग की गई थी.

इससे पहले, 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी. 11 मार्च को SBI को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि 12 मार्च तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सूचनाओं को ECI को सौंपे. SBI ने ऐसा ही किया. कोर्ट ने ECI से कहा कि 15 मार्च की शाम 5 बजे से पहले इन सूचनाओं को अपनी वेबसाइट पर पब्लिश करे. 

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