क्या सचमुच कॉकरोच झेल सकते हैं न्यूक्लियर हमला?
जब दूसरे विश्व युद्ध की रिपोर्ट्स आयीं, यो पता चला कि पूरे शहरों को ख़त्म कर देने वाले इस हमले से भी कॉकरोच बच निकले थे.

कहते हैं जापान के हिरोशिमा और नागासकी पर अमरीका के हमले का असर कई सालों तक रहा. इन शहरों में रहने वाले लगभग सारे लोग मर गए थे. और जो किसी तरह बच गए थे, वो बमों के न्यूक्लिअर रेडियेशन की वजह से अपंग हो गए थे. पर जब दूसरे विश्व युद्ध की रिपोर्ट्स आयीं, यो पता चला कि पूरे शहरों को ख़त्म कर देने वाले इस हमले से भी कोई बच निकला था. वो था कॉकरोच. तब से ये बात पूरी दुनिया में चर्चित रही कि कॉकरोच न्यूक्लिअर अटैक झेल सकते हैं. सुनने में ये बात सच नहीं लगती कि जिस बम से किसी देश के पूरे शहर, पूरी सभ्यता ही उड़ जाए, ऐसी सिचुएशन में एक नन्हा सा कॉकरोच जिंदा रह सकता है. तो कुछ खुराफाती वैज्ञानिकों ने तय किया कि इसके पीछे का सच जानेंगे. एक लंबे चलने वाले एक्सपेरिमेंट के बाद पता चला कि जिस तरह की न्यूक्लिअर रेडियेशन से लोग जापान में मारे गए थे, उसे सचमुच आधे कॉकरोच झेल सकते हैं. पर अगर रेडियेशन की इंटेंसिटी दस गुना बढ़ा दी जाए तो सारे कॉकरोच भगवान को प्यारे हो जायेंगे. रेडियेशन झेल पाने की इनकी क्षमता का कारण है इनका शरीर. हर जीव का शरीर कई सेल्स (cells) से बना होता है. ये सेल्स हमेशा बढ़ते रहते हैं, और पुराने मरते रहते हैं. इंसानों का शरीर ज्यादा हाई फाई होता है इसलिए हमारों शरीरों के सेल्स तेज़ी से डिवाइड होकर बढ़ते रहते हैं. न्यूक्लिअर रेडियेशन सबसे ज्यादा उन शरीरों को नुकसान पहुंचाते हैं जिनकी सेल साइकिल तेज़ चलती हो. जहां इंसान के शरीर में सेल्स हर समय तेज़ी से विभाजित होते रहते हैं, कॉकरोच के शरीर में ऐसा हफ्ते में एक बार होता है. इसलिए कॉकरोच का शरीर एक हद तक न्यूक्लियर रेडियेशन से सुरक्षित रहता है.