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किस्सा बुलाकी साव-5, साइकिल स्टैंड पर पार्ट टाइम जॉब करने लगा बुलाकी

एक आदमी था फकीर टाइप का, बुलाकी. रोज नई कविताएं सुनाता था. एक रोज उसकी बहन उसे लेकर नाले में गिर पड़ी.

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Avinash Das अविनाश दास

अविनाश दास पत्रकार रहे. फिर अपना पोर्टल बनाया, मोहल्ला लाइव
  नाम से. मन फिल्मों में अटका था, इसलिए सारी हिम्मत जुटाकर मुंबई चले गए. अब फिल्म बना रहे हैं, ‘आरा वाली अनारकली’ नाम से. पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है. कविताएं लिखते हैं तो तखल्लुस ‘दास दरभंगवी’ का होता है. इन दिनों वह किस्से सुना रहे हैं एक फकीरनुमा कवि बुलाकी साव के, जो दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आ रहा है. किस्सों की अगली किस्त हाजिर है, पढ़िए.


'एक लड़की को देखा' गीत तो नकली है जिस साल पूनम सिनेमा में '1942 ए लव स्‍टोरी' लगी थी. उसी साल बुलाकी साव वहां साइकिल स्‍टैंड पर पार्ट टाइम जॉब करने लगा था. इस तरह का कोई भी काम वह तीन महीने से ज्‍यादा नहीं कर पाता था. लेकिन शुरू इतनी प्रतिबद्धता से करता था जैसे वह उसी काम के लिए बना हो. तो पहली बार मैं अपने मित्र संजीव स्‍नेही के साथ वह फिल्‍म देखने गया था. ऐसा जादू चढ़ा कि दूसरे दिन भी अकेले नून शो चला गया. तीसरे दिन अपनी प्रेमिका से मैंने बहुत मिन्‍नत की कि वह मेरे साथ '1942 ए लव स्‍टोरी' देखने चले. प्रेमिकाओं के दिल पत्‍थर जैसे लगते हैं, लेकिन होते मोम जैसे हैं. वह मुस्‍करा उठी. और हम मैटिनी शो देख आये. खुमारी उतर नहीं रही थी. चौथे दिन जब मेरे पांव पूनम सिनेमा की तरफ बढ़े. तो टिकट खिड़की के पास बुलाकी साव सामने से खड़ा हो गया. बोला, 'मुन्‍ना अब और नहीं'. मुझे उसके साथ चौंकने की आदत थी. तो मैं चौंका. बुलाकी साव ने बताया. 'तीन दिन से तुमको देख रहे हैं. पहले दिन संजीब्‍बा के साथ देखे. परसों तुमको अकेले देखे. और कल भी कंचनिया के साथ देख लिये थे. आज सोच लिये थे कि तुमको ज्‍यादा बहकने नहीं देंगे.' गुस्‍सा तो मुझे बहुत आया. लेकिन एक चांस लेते हुए बुलाकी से कहा, 'छलके तेरी आंखों से शराब और ज्‍यादा, खिलते रहे होंठों के गुलाब और ज्‍यादा... आज भर देख लेने दो न बुलाकी!' निहौरा करने की मेरी अदा का उस पर कोई असर नहीं पड़ा. उसने छुट्टी ले ली और मेरा हाथ पकड़ कर राज दरभंगा के गेट तक ले आया. लस्‍सी वाले से दो लस्‍सी मांगी. एक लस्‍सी मेरी तरफ बढ़ाते हुए बुलाकी साव ने पूछा कि ऐसा क्‍या है इस फिल्‍म में, जो तुम तीन दिन से आ-जा रहे हो. लस्‍सी पीते हुए मैंने उसे घूरती आंखों से देखा और मूंछ के नीचे उग आयी उजली लकीर को जीभ से साफ करते हुए कहा, 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्‍़वाब, जैसे उजली किरन, जैसे बन में हिरन, जैसे चांदनी रात, जैसे नरमी की बात... जैसे मंदिर में हो एक जलता दिया!' बुलाकी साव मेरी तरफ देखने लगा. मैंने कहा, 'बिंब देखो! मुझे यह पूरा गीत कंठस्‍थ हो गया है.' बुलाकी ने कहा कि अच्‍छा है, बहुत अच्‍छा है लेकिन फिर मेरे उत्‍साह पर पानी फेरते हुए उसने कहा कि यह पूरा गीत नकल है. 1945 में 'मन की जीत' फिल्‍म के लिए जोश मलीहाबादी ने इस तर्ज को पहली बार सोचा और लिखा था. मैंने कहा, सवाल ही नहीं है. बुलाकी ने सुनाया, 'मोरे जोबना का देखो उभार, पापी जोबना का देखो उभार... जैसे नद्दी की मौज, जैसे तुर्कों की फौज, जैसे सुलगे से बम, जैसे बालक उधम... जैसे कोयल पुकार... मोरे जोबना का देखो उभार!' मैंने कहा, क्‍या बात करते हो - यह तो सेम टू सेम है. पर बुलाकी का दिल बड़ा था. उसने कहा कि अदब में ऐसी रवायत होनी चाहिए कि एक ही जमीन पर लोग अपनी अपनी बातें कह सकें. फिर शरमाते हुए उसने कहा कि मैंने भी ऐसी एक कविता सोची है, सुनोगे? मैंने लस्‍सी का खाली गिलास बेंच पर रखते हुए कहा, सुनाओ. और बुलाकी साव ने जो कविता सुनायी, वह आज मैं आप सबकी नजर कर रहा हूं.

चांदी जैसी सोने जैसी पानी भरे भगोने जैसी पूजा घर के कोने जैसी भरी खीर के दोने जैसी
तुम हो तुम हो
पके धान की बाली जैसी सुर में बजती ताली जैसी अस्‍ताचल की लाली जैसी हां बिल्‍कुल घरवाली जैसी
तुम हो तुम हो
मीठे मीठे जामन जैसी कीचड़ में भी पावन जैसी गरम जेठ में सावन जैसी हंसी, फूल, मनभावन जैसी
तुम हो तुम हो
लतरी हुई लताएं जैसी छायी हुई छटाएं जैसी सन सन सनन हवाएं जैसी घन घन घनन घटाएं जैसी
तुम हो तुम हो


 
बुलाकी की बहन लवटोलिया के पास वाले नाले में गिर पड़ी खाजासराय (लहेरियासराय, दरभंगा) में एक मिडिल स्‍कूल है. जहां मेरी बहन पढ़ती थी. मेरे गांव से उस स्‍कूल की दूरी लगभग दो किलोमीटर है. गांव से बहन अपनी सहेलियों के साथ स्‍कूल जाती थी. बरसात का महीना था. बागमती अपने उफान पर थी. बहन स्‍कूल के लिए निकली, तो मैं जोर-जोर से रोने लगा. उस वक्‍त तक मैं स्‍कूल नहीं जाता था. गांव में ही कुइरा गुरुजी से पहाड़ा सीखता था. मैंने ज़ि‍द पकड़ ली कि बहन के साथ मुझे भी स्‍कूल जाना है. मेरा रोना देख कर बहन पसीज गयी. और मुझे अपने साथ ले गयी. बीच में लवटोलिया (नवटोलिया) के पास एक नाला बहता था. जो आम तौर पर सूखा ही रहता. लेकिन बरसात थी तो नाले में पानी था. उसे टपना पड़ता था. बहन ने मुझे गोद में लिया. और सहेलियों के साथ पानी में उतर गयी. मिट्टी गीली थी और पांव फिसल रहे थे. बहन की सहेलियां तो टप गयीं. लेकिन बहन एक जगह गिर गयी. उसकी सलवार और कमीज पानी और मिट्टी से भीग गयी. उसने मुझे बचा तो लिया. पर मैं भीतर से पूरी तरह डर गया था. उन दिनों बुलाकी साव की झोंपड़ी वहीं नाले के उस पार थी. झोंपड़ी के बाहर एक चापाकल लगा था. बहन ने वहीं अपने कपड़े साफ किए. स्‍कूल जाने का मेरा सारा उत्‍साह मर गया. और मैं फिर जोर-जोर से रोने लगा. मुझे स्‍कूल नहीं जाना था. बुलाकी साव ने ही मुझे हमारे आंगन तक पहुंचाने का जिम्‍मा लिया. बहन और उनकी सहेलियां स्‍कूल चली गयीं. बुलाकी साव ने मुझे कंधे पर बिठाया. नाला पार किया. और हमारे आंगन की ओर चल पड़ा. पूरे रास्‍ते मैं उसके कंधे पर बैठा रहा. हल्‍की हल्‍की बारिश हो रही थी और वह रस्ते भर एक कविता गुनगुना रहा था. चूंकि वह बच्‍चों के लिए कविता नहीं सोच पाता था. उसने लोकधुन की राह पकड़ी. मुझे उस कविता की गुनगुनाहट अब भी याद है.

बोलो एक दो तीन मेरा सैयां नमकीन
चले चार कोस रोज धरे हीरो का पोज जैसे एस्‍नो-पाउडर वैसे चम चम चम ओज धनुकटोली का पंच खाये बाभन का भोज छिपा ननदों के बीच उसे खोज खोज खोज
हाय हाय रंंगीन मेरा सैयां नमकीन
मज़ेदार मारवाड़ी का नौकर झक्‍कास पीये कैंपाकोला लगे उसको जो प्‍यास भारी बज्‍जर गिरे करे मेम संग रास धोखेबाज बीए पास चालबाज बीए पास
बड़ा बतिया महीन मेरा सैयां नमकीन


बुलाकी साव के किस्सों की पिछली चार कड़ियां यहां हैं-
 

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